ओ, तुमसे दूर रह कर हमने जाना, प्यार क्या है
दिल ने माना, यार क्या है...
तुमको पाके न पहलू में लगता था यूं
जीते हैं किस लिए और ज़िंदा हैं क्यों
हम भी रहते थे बेचैन से हर घड़ी
बिन तुम्हारे तो वीरान थी ज़िंदगी
ओ, तुमसे दूर रह कर हमने जाना, प्यार क्या है
दिल ने माना, यार क्या है...
अदालत फिल्म के इस गाने को पिछले तीन दिनों में मैंने जितना याद किया, पहले कभी किसी गाने को नहीं किया...तीन दिन ब्लॉगिंग से दूर रहा, आपसे दूर रहा...बस यही समझ लिए कि जो हालत मछली को पानी से बाहर निकाल देने पर होती है, वही मेरी रही...आपकी तो नहीं कह सकता लेकिन मैंने आप सबको बहुत मिस किया...बरेली से लौटने के बाद पहला काम ज़्यादा से ज़्यादा छूट गई पोस्ट पढ़ने का कर रहा हूं...
बरेली जाने से पहले मेरी आखिरी पोस्ट पर नववर्ष की अनेक शुभकामनाएं मिली...उस वक्त तो मैं जवाब नहीं दे सका, लेकिन इस पोस्ट के ज़रिए आप सबके लिए 2010 में अपार खुशियों की कामना के साथ आभार व्यक्त कर रहा हूं...कुछ और लिखने से पहले बताता चलूं कि बरेली में बहुत ही खुशमिज़ाज इंसान से मुलाकात हुई...वो हैं दरबार ब्लॉग वाले धीरू सिंह जी, राजनीतिक परिवार के सदस्य होते हुए भी राजनीति के अहंकार और दूसरी बुराइयों से मीलों मीलों दूर...इस मौके पर धीरू भाई के परिवार के दूसरे सदस्यों से भी मिलने का मौका मिला...भाभी जी बरेली डिग्री कॉलेज में बॉटनी पढ़ाती हैं और बिटिया नैनीताल के सेंट मैरीज़ स्कूल में आठवीं में पढ़ती है...बिटिया की इस उम्र में भी समसामयिक विषयों पर इतनी अच्छी समझ, निश्चित रूप से उसके उज्ज्वल भविष्य पर मुहर लगाती है...ऐसे में अगर वो अपने को एमपी इन वेटिंग कहती है तो गलत नहीं कहती...
इस मौके पर धीरू भाई से जो मुझे शिकायत है वैसे ही भाव भाभी जी ने भी ज़ाहिर किए...यानि धीरू भाई लिखते बहुत अच्छा हैं, लेकिन कम लिखते हैं...मैंने धीरू भाई से वादा लिया कि आगे से वो कम लिखने की शिकायत का मौका नहीं देंगे...इस अवसर पर एक और हस्ती से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ...नाम मैं जानबूझकर नहीं लिख रहा...लेकिन वो हस्ती हैं धीरु सिंह जी के पिताश्री...तीन बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं...उसूलों के पक्के होने की वजह से आजकल की राजनीति से विमुख हैं...उनके साथ बातें करते हुए पता ही नहीं चला कि कब तीन घंटे बीत गए...उनसे बात कर मुझे यकीन हो गया कि राजनीति में अब भी बहुत कुछ बाकी है...सब कुछ खत्म नहीं हो गया...किसान और किसानी पर इतनी अच्छी पकड़ कि मुझे भी पत्रकार होने के बावजूद कॉम्प्लेक्स होने लगा...
खैर ये तो रही मेरी बरेली-गाथा...अब आता हूं ब्लॉगिंग पर वापस...जो पोस्ट पढ़ पाया हूं उससे लगता है पिछले तीन चार दिन माहौल काफ़ी गरम रहा है...न जाने क्यों ये सब अच्छा नहीं लगा...नए साल में हिंदी ब्लॉगिंग को सार्थक दिशा और दशा देने की जगह यहां हमारे अपने अहम हावी होते नज़र आ रहे हैं...कहीं एक तरफ शब्दों की मर्यादा को लेकर वाक्-बाण चल रहे हैं तो कहीं पैसे के बल पर सम्मान बांटने का खेल खेला जा रहा है...कहीं एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए चक्रव्यूह रचे जा रहे हैं..यानि राजनीति की जितनी बुराइयां हैं उनसे ब्लॉगिंग को संक्रमित करने का पूरा जुगाड़ किया जा रहा है...लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद मेरी उम्मीदें कायम है...कुछ सिपाही हैं जिनकी बदौलत हिंदी ब्लॉगिंग उस मकाम तक पहुंच कर ही दम लेगी जिसकी कि वो हक़दार है...ऐसे ही एक सिपाही हैं- अविनाश वाचस्पति जी...अविनाश भाई ने सम्मान के नाम पर पैसे की राजनीति के कुचक्र से खुद को जिस शालीनता और मर्यादा से अलग किया है, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है...अविनाश भाई ने दिखा दिया कि उनका ब्लॉगिंग में क्यों इतना सम्मान है...और इस सम्मान को पैसे के बल पर लगाए जाने वाले किसी ठप्पे की ज़रूरत नहीं है...अविनाश भाई आपको मेरा सैल्यूट...
हां, आख़िर में अपनी पोस्ट पर आई एक टिप्पणी का ज़िक्र करना चाहूंगा...ये टिप्पणी हैं मेरे आइकन डॉ अमर कुमार की...और मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि मुझे कभी इससे ज़्यादा अच्छा कॉम्पलिमेंट नहीं मिला...लेकिन साथ ही मुझे डॉक्टर साहब से एक शिकायत भी है...शिकायत क्या है, वो बाद में बताऊंगा...पहले उनकी टिप्पणी यथावत..
खुशदीप भाई, तुमको पढ़ने में ऎसा लगता है कि मैं अपने ही विचारों को किसी अपने के शब्दों में पढ़ रहा हूँ, शायद इसी वज़ह से मैं नेट पर लिखने में आलसी होता जा रहा हूँ । और हाँ, इस टिप्पणी में टाइप किया हुआ एक भी शब्द झूठ नहीं है । यह वर्ष और आने वाला हर वर्ष तुम्हारे नाम का हो !
शुभकामनायें !
डॉक्टर साहब, मैं नहीं जानता कि आपने जो मुझे ये मान दिया, उसका मैं सही मे हक़दार भी हूं या नहीं...लेकिन आगे से ये कोशिश ज़रूर करुंगा कि आपके विश्वास का हमेशा मान रखूं...लेकिन मेरी शिकायत ये है कि डॉक्टर साहब मैं आपको ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ना चाहता हूं...आपकी पोस्ट की बात तो छोड़ दीजिए....आपकी टिप्पणी के एक-एक शब्द में जो वजन होता है वो उस पोस्ट को भी धन्य कर देता है, जिस पोस्ट पर आपने टिप्पणी दी होती है...रही बात आपके ये कहने की...आप आलसी होते जा रहे हैं और कम लिख रहे हैं...तो डॉक्टर साहब हम आपका पीछा इतनी आसानी से छो़ड़ने वाले नहीं है...
और अगर आपका कहने का आशय ये है कि मुझ जैसे टटपूंजियों का लिखा अगड़म-बगड़म आपके कहे एक जुमले की बराबरी भी कर सकता है तो माफ कीजिएगा, डॉक्टर साहब मैं ये भ्रम पालने के लिए कतई तैयार नहीं हूं...और आपको पढ़ने के लिए अगर मुझे ब्लॉग पर खुद लिखना छोड़ना भी पड़े तो मैं उस हद तक जाने के लिए भी तैयार हूं...इसलिए मेरा फिर विनम्र निवेदन है कि डॉक्टर साहब आपको पढ़ने का हमें ज़्यादा से ज़्यादा मौका दें और अपनी अनमोल टिप्पणियों की गंगा बहाते हुए समूची ब्लॉगर बिरादरी को कृतार्थ करें...मैं पूरी ब्लॉगर बिरादरी से भी अनुरोध करता हूं कि वो भी डॉक्टर अमर कुमार से इसी तरह का आग्रह करें...
स्लॉग ओवर
एक बुज़ुर्ग को ऊंचा सुनने की तकलीफ़ हो गई...डॉक्टर को दिखाया...डॉक्टर ने सारे टेस्ट करने के बाद बुज़ुर्ग के लिए सुनने की मशीन तैयार की...बुज़ुर्ग को अब सब कुछ साफ-साफ सुनाई देने लगा...डॉक्टर ने कहा कि आप एक महीने बाद फिर चेक करा लीजिएगा...कोई परेशानी होगी तो पता चल जाएगी...बुज़ुर्ग एक महीने बाद डॉक्टर के पास गया...डॉक्टर ने कहा...एक्सीलेंट...आपकी सुनने की शक्ति तो जवानों को भी टक्कर देने वाली हो गई है...अब तो आपके परिवार के सभी सदस्य भी बहुत खुश होंगे...बुज़ुर्ग ने इस पर जवाब दिया...डॉक्टर साहब, अब आपसे क्या छुपाना...मैंने घर पर बताया ही नहीं था कि मेरी सुनने की ताकत वापस आ गई है...बस घर वालों की बातें सुनने का ये नतीजा निकला है कि एक महीने में मैं तीन बार अपनी वसीयत बदल चुका हूं...
ब्लॉगिंग से दूर रहकर हमने जाना ब्लॉगिंग क्या है...खुशदीप
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सोमवार, जनवरी 04, 2010
ब्लोगिंग भी एक लत ही बनती जा रही है ...
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टियाँ खासकर सलग ओवर की कमी बहुत खटकी ....
बुढ़ापे में श्रवण शक्ति कम होने में ही फायदा है ....खुद का भी और वसीयत पर नजर टिकाये रिश्तेदारों का भी ...:)...
स्लॉग ओवर
जवाब देंहटाएंहम भी आपको खोज रहे हैं...
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई , अभी भी लग रहा है कुछ ही देर हुई है आपसे मिलके . एक नया अनुभव मिला और एक नयी दिशा भी . आगे भी आपका सानिध्य मिलता रहेगा .
जवाब देंहटाएंन पूछो के ये दिन कैसे बिताये तुम्हारी कसम तुम बहुत याद आये ...
जवाब देंहटाएंबलागिंग बहुत बुरी लत है.... जिसे पड़ जाए छूटनी असंभव है......
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट.....आपकी पुन:उपस्थिति अच्छी लगी।
सच है कि यह लत है
जवाब देंहटाएंडॉक्टर अमर कुमार से आग्रह मैं भी कर रहा
बी एस पाबला
अच्छा लगा पढ़कर। आपकी चिंता जायज है।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह...लाजवाब ...!!
जवाब देंहटाएंअवधिया भईया की बात मेरी भी बात मानी जाय.....:):)
स्लोग ओवर...
अब हमरा क्या होगा ...अब तो गयील भैस पानीये में.....ना....प्लीस वसीयत मत बदलियेगा ??:)
खुशदीप भाई, ब्लोगिंग का हाल तो शराब जैसा है।
जवाब देंहटाएंकिसी ने शराब के बारे में कहा है ---it provokaths and unprovokaths.
यानि , कम मात्रा में आनंद और अधिक मात्रा में रंग में भंग।
नए साल में स्वागत है।
खुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंतीन दिन आप की पोस्ट न देख अजीब सा लगा। आप की धीरूभाई से मुलाकात का पता उन के ब्लाग से चल गया था। वे वास्तव में बेहतरीन व्यक्ति हैं।
बहुत दिनों से डॉ अमर जी को नहीं पढ़ा, उन की गैर हाजरी खलती है। मेरा भी अनुरोध है कि वे ब्लाग जगत में वापस लौटें यदि समय की कमी हो तो भी साप्ताहिक रूप से अवश्य आते रहें।
अविनाश भाई ने बहुत बढ़िया काम किया है। मुझे लगता है कि सभी नामांकित ब्लागरों को उन का अनुकरण करना चाहिए।
आज के स्लॉग ओवर ने हँसाने की अपेभा अवसाद से भर दिया। वह मजाक कम और विडम्बना अधिक है।
अब कोई बताये भी ...कुसूर किसका है ....डॉ का ..बुजुर्ग का या उनके परिवार वालों का ...पर सच कहूँ तो सारा कुसूर इस मशीन का है या उसे बनाने वाले वैज्ञानिक का ...
जवाब देंहटाएंखुश दीप जी बात आप की सच्ची है, लेकिन हमे कानो की मशीन कभी नही लगवानी चाहिये.
जवाब देंहटाएंब्रेक तो बनता था बॉस पर आपका छोटा ब्रेक भी ज्यादा ही लम्बा लगता है।
जवाब देंहटाएंजय हिंद।
हम उम्मीद करेंगे कि डॊ. अमर कुमार जी की भविष्यवाणी सार्थक हो॥
जवाब देंहटाएंबरेली गये थे तो क्या बरेली के बाज़ार से झुमका भी ले आए... उसका ज़िक्र नहीं हुआ :)
स्वागत है जनकपुरी से लौट आने पर
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जवाब देंहटाएंखुशदीप लल्ला..
अपुन दास मलूका टाइप मानुष हैं, लल्लो-चप्पो नहीं करते ।
नववर्ष की पूर्व-सँध्या पर तुम्हारे द्वारा चित्रित तीन विसँगतियों ने तुम्हारे द्वारा चित्रित तीन विसँगतियों ने मुझे भी उतना ही उद्वेलित किया, जितना आप हुये होगे ।
मैं पोस्ट तैयार करने की सोच रहा था, और तुम्हारी यह पोस्ट पढ़ने को मिल गयी । सो.. लल्ला, हमनें लिखबे को का ज़रूरत ?
इसे कहते हैं, पॅरपज़फुल ब्लॉगिंग !
और आपने यहाँ मुझको लेकर एक मुहिम छेड़ दी ? ऎसा नहीं है..
टँकी-वँकी.. रूठ-तकरार.. मैं क्या जानूँ रे
जानूँ तो जानूँ बस ये कि अपना कुँआ जानूँ रे
आजकल अपने कुँयें, समझो कि डोमेन को कॅनफिगर कर रहा हूँ, फिर वहीं चैन से टर्रायेंगे ।
जानते ही हो कि, बुद्धिजीवी गोत्र में दिखने की मज़बूरी है, कि गाहे बगाहे, बात बेबात, बेमौसम टर्राना..
मुला अविनाश जी ने दिल खुश कर दिया, टर्र महाराज की टर्र हवा कर दी ।
khus rahne wale sehgal ji
जवाब देंहटाएंtabhi aap office me nazar nahi aaye......
Chaleye Dheeru bhai ke yaha jaker hi sahi rajneenti abhi gai gujri nahi hai yeh to pata laga kai logo lo....
unke blog par alag se timpny kar raha hu....
waise me kabhi Vasihaat nahi bana payugna....hahah...awaro ko vasihat wasi bhi nahi banti...
सही बात है खुशदीप जी मैं भी कई दिन से ब्लाग से दूर रही हूँ मगर मैं ही जानती हूँ कि धयान बस ब्लाग मे सच माने तो सपने भी ब्लाग जगत के ही आते रहे। पोस्ट तो अभी कल के बाद ही कर पाऊँगी मगर आज कुछ टिपिआने का समय मिला है बस।िआपको भी नये साल की बहुत बहुत मुबारक आशीर्वाद आप सदा उन्न्ति करें और कभी भी ब्लाग से छुट्टी न करें नहीं तो हमे भी छुट्टी करनी पडती है अब देखिये न आपकी वजह से ही तो मैं नहीं आ पाई इतने दिन । आप धीरु भाई जी से मिले बधाई । अब मेरी बारी कब आयेगी? इन्तज़ार मे हूँ। स्लाग ओवर अच्छा लगा मुझे भी कुछ कम सुनाई देने लगा है। देखती हूँ क्या होता है मेरे साथ भी।
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