यहां मैं नज़ीर देना चाहूंगा जवां खून वाले दो छोटे ब्लॉगर भाइयों की...एक महफूज़ और दूसरा सागर...महफूज़ तो आलराउंडर है, कविता, गद्य, शोध....कुछ भी रवानगी के साथ कह सकता है...लेकिन सागर ज़्यादातर कविता में ही अपने भावों को व्यक्त करता हूं...बोल्ड अंदाज़ में कुछ भी लिख जाता है...साफ़-सपाट...महफूज़ और सागर, दोनों में एक बात बड़ी अच्छी है, दोनों अपनी कमज़ोरियों को बिल्कुल नहीं छुपाते...डंके की चोट पर लिखते हैं...यकीन मानिए यही चीज़ इंसान को अपने पर भरोसा करना सिखाती है...कई बार आप ये सोच कर कि लोग क्या कहेंगे, चुप रहते हैं...या फिर अपने को वैसा दिखाने की कोशिश (प्रीटैंड) करते हैं जो कि असल में आप है नहीं...मैं कहता हूं निकाल फेंकिए अपने अंदर से इस हिचक को...बेबाक अंदाज़ में अपने को अभिव्यक्त कीजिए...अपनी खामियों को भी और अपनी खूबियों को भी...आप देखेंगे कि जितना अपने बारे में आप सच लिखेंगे, उतना ही पाठकों में ज़्यादा पसंद किए जाएंगे...
जब भी कोई नया ब्लॉगर आता है तो उसकी यही ख्वाहिश होती है कि रातों-रात उसकी पहचान बन जाए...पांच महीने पहले मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो मेरे साथ भी यही हुआ था...मैं खुशकिस्मत रहा...मुझे थोड़े वक्त में ही ब्लॉगवुड में बुज़ुर्गों से आशीर्वाद, हमउम्र साथियों से प्रोत्साहन और छोटों से भरपूर प्यार मिल गया...इससे मेरा हौसला बहुत बढ़ा...यही हौसला है जो मुझे, चाहे मैं कितना भी थका क्यों न हूं...कुछ न कुछ नया लिखने की शक्ति दे देता है...कमेंट्स के ज़रिए मुझे ब्लॉगवुड का प्यार भी हाथोंहाथ मिल जाता है...अगर कोई मेरे विचारों से असहमति जताता है तो उसे मैं अपने लिए और अच्छी बात मानता हूं...इसे इसी तरह लेता हूं कि मेरी पोस्ट ने सभी को कुछ न कुछ कहने को उद्वेलित किया...इस मामले में मैं प्रवीण शाह भाई का बड़ा कायल हूं...वो विरोध भी जताते हैं तो बड़े संयम और शालीन तरीके से...उनसे संवाद (विवाद नहीं) कायम कर आनंद आ जाता है...यही तो ब्लागिंग का मज़ा है...हां, एक बात मैं ज़रूर अपने युवा साथियों से कहना चाहता हूं...ब्लॉगिंग पर्सन टू पर्सन ट्यूनिंग की बात है...आपको ब्लॉग विशेष के ज़रिए उस ब्लॉगर के मिज़ाज को समझने की कोशिश करनी चाहिए...कमेंट्स देते हुए भी अपने शब्दों का चयन पूरी तरह तौल-मोल के बाद करना चाहिए...एक गलत शब्द भी आपके बारे में गलतफहमी खड़ी कर सकता है...ब्लॉगिंग भी एक किस्म का रेडियो पर कमेंट्री सुनने जैसा है...जैसे कि आप कमेंट्री सुनते समय अपने अंदाज़ से दिमाग में चित्र बनाते रहते हैं, ऐसे ही ब्लॉग पर आपकी लेखनी (टाइपिंग) से आपके व्यक्तित्व के बारे में दूसरों के बीच पहचान बनती है..
यहां याद रखना चाहिए कि बंदूक से निकली गोली और ज़ुबान से निकले बोल, कभी वापस नहीं आते...इसलिए ऐसी बात कही ही क्यों जाए, जिस पर बाद में पछताना पड़े...और रही बात आपकी पहचान बनने की, तो वो सिर्फ आपका लेखन ही बनाएगा...दूसरा ओर कोई शार्टकट यहां काम नहीं करता...एक बार आपका रेपुटेशन बन जाए तो फिर उसी मानक के अनुरूप आपको अच्छा, और अच्छा लिखते रहने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए...आप ईमानदारी से ये काम करेंगे तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती...
चलिए स्लॉग ओवर में आपको आज रेपुटेशन की अहमियत पर ही एक किस्सा सुनाता हूं...लेकिन पहले आप सभी से एक सवाल...मैंने तीन-चार पोस्ट पहले लिखी अपनी पोस्ट...महफूज़ इक झूमता दरिया...में समूचे ब्लॉग जगत या बिरादरी के लिए ब्लॉगवुड शब्द का इस्तेमाल पहली बार किया था...अदा जी ने इसे पसंद करते हुए कमेंट भी किया था...आज दीपक मशाल ने भी अपनी पोस्ट में इस शब्द का इस्तेमाल किया तो मुझे बहुत अच्छा लगा...आप सब को ब्लॉग जगत के लिए ब्लॉगवुड नाम कैसा लगता है...अगर अच्छा लगता है तो इसे ही इस्तेमाल करना शुरू कर दीजिए...एक बार ये प्रचलन में आ गया तो बॉलीवुड को भी टक्कर देने लगेगा...लेकिन पहले आप अपनी राय बताइए कि ब्लॉगवुड शब्द कैसा है...
स्लॉग ओवर
रॉल्स रॉयस कार पिछली सदी की शुरुआत में बनना शुरू हुई थी...ये कार रखना तभी से दुनिया भर में स्टेट्स-सिंबल माना जाता रहा है...ऑफ्टर सेल्स सर्विस में भी इस कार को बनाने वाली कंपनी का जवाब नहीं है...
1905 मॉडल रॉल्स रॉयस कार, मानचेस्टर के म्युज़ियम ऑफ साइंस एंड इंडस्ट्री में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा गया दुनिया का सबसे पुराना वाहन
देश को आज़ादी मिलने से पहले की बात है...एक भारतीय सेठ ने शहर में अपना रूतबा दिखाने के लिए विलायत से रॉल्स रॉयस कार मंगाने का फैसला किया...शिप के ज़रिए कार भारत आ भी गई...कार आते ही सेठ का घर-घर में चर्चा होने लगा...लेकिन एक महीने बाद कार में खराबी आ गई...कार चलने का नाम न ले...ये देख सेठ को बहुत गुस्सा आया...सेठ ने फौरन कार बनाने वाली कंपनी को टेलीग्राम भेजा...किस बात का आपका नाम है....एक महीने में आपकी रॉल्स रॉयस कार ने जवाब दे दिया...अब बताओ क्या करूं मैं इसका...टेलीग्राम पढ़ने के बाद कंपनी में हड़कंप मच गया...आखिर दुनिया भर में साख का सवाल था...अगले ही दिन कंपनी ने इंजीनियरों की पूरी टीम भारत रवाना कर दी...टीम ने सेठ के पास आकर रॉल्स रॉयस कार का मुआयना किया...कार का बोनट खोलते ही इंजीनियर हंसने लगे...सेठ को ये देखकर और भी गुस्सा आया...बोला..मैंने आपको यहां हंसने के लिए नहीं कार का नुक्स ठीक करने के लिए बुलाया है...इस पर इंजीनियरों की टीम के हेड ने कहा...सॉरी सेठ जी, हमें बताते हुए खुद शर्म आ रही है कि इस कार को बनाते वक्त हम इसमें इंजन डालना ही भूल गए थे...इस पर सेठ ने कहा...ये कैसे हो सकता है, कार तो एक महीना चली है...इस पर इंजीनियरों की टीम के हेड ने कहा...वो एक महीना तो कार अपने नाम के रेपुटेशन से ही चल गई.....
Ram se bada Ram ka naam wahi baat hai ji bhaia.... aur is naam Blogwood ko apnane ke bare me main kya kahoon main to aapke nakshekadam pe chal apna bhi chuka hoon...
जवाब देंहटाएंae khuda har faisla tera mujhe manjoor hai..... samne malik tere banda bahut.....
badhiya lekh laga
haan aur ab main kal se better hoon
Jai Hind...
ब्लॉगवुड अलार्मिंग है..इस्तेमाल करेंगे. बाकी तो सही सलाह है.
जवाब देंहटाएंरेपुटेशन की महत्ता सीख देने वाली है स्लॉग ओवर में...इसे बोध कथा ही जानो!!
जिस तरह इस दुनिया में हर व्यक्ति खासियत से भरा होता है .. उसी तरह उन्हीं के विचारों का प्रतिनिधित्व करनेवाला हर ब्लॉग भी तो कुछ अलग अंदाज में कुछ न कुछ कहेगा .. लेकिन हम सबों को अपने विचारों को दिन ब दिन और स्तरीय बनाना होगा .. लेखन में गंभीरता बरतनी होगी .. ताकि पाठकों के मानक पर खरा उतरा जा सके .. 'ब्लागवुड' अच्छा शब्द है .. नाम के प्रभाव से सबकुछ चलते तो सुना था .. पर सिर्फ नाम से बिना इंजन की कार का चलना पहली बार पढा .. वाह बहुत सुंदर पोस्ट !!
जवाब देंहटाएंब्लॉगवुड ने सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार दिया है ....आपके लिखे पर तुरंत प्रतिक्रिया मिलने का ये एक बहुत ही अच्छा माध्यम है ...कोई शक नहीं ...और महफूज़ के लिए तो बहुत ही सुरक्षित भी ....:) ...
जवाब देंहटाएंखास और आम सभी यहाँ एक समान है ....
सेठ जी के रेपुटेशन से कार बिना इंजिन चल गयी ....क्या बात है ...मगर क्या ब्लॉग भी बिना कंटेंट चलेगा ...?
अपने ब्लागवुड मे भी रेपुटेशन से भी काम चलता है . यहां भी बिना इन्जन की रोल्स रोयस आपको दौड्ती दिख जायेगी . कभी ध्यान दीजिये सम्झ मे आ जायेगा .अब मै बोलुंगा तो बोलोगे कि बोलता है .{निर्मल हास्य ही समझा जाये}
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई-ये पाँच-पाँच ब्लाग चुनने वाली बात मेरी समझ मे नही आई,कुछ बेतुकी ही लगी,
जवाब देंहटाएंहम भी कार नही बेकार ही है जो अभी तक रेपुटेशन के दम पर ही चल रहे है। यहाँ तो उपर वाला माला भी खाली और ईंजन तो लग कर नही आया।:):):)
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जवाब देंहटाएंखुशदीप जी, मुझे तो अंकुर गुप्ता जी का ब्लॉगों के विषय का वर्गीकरण पसंद आया। अब यदि मैं "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" ब्लॉग अलग से न बना कर रामायण से सम्बन्धित पोस्टों को अपने "धान के देश में" के पोस्टों के बीच बीच में डालते जाता तो क्या रामायण का तारतम्य बना रह पाता?
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सही बातें कही हैं, भाई।
जवाब देंहटाएंलोग क्या कहेंगे --अजी कुछ भी कहें क्या फर्क पड़ता है।
विदेश यात्रा में हमने यही देखा और सीखा।
और हाँ, ब्लोग्वुद तो कमाल का शब्द है।
ऐसा लगता है जैसे हम ब्लोगर्स भी फिल्म स्टार बन गए हों।
स्लोग ओवर मस्त। हा हा हा !
एक बार अपनी कार भी दो तीन किलोमीटर बिना पेट्रोल के ही चल गयी थी --अरे भाई मारुति थी ना --रेप्युटेशन।
आपका इंजन तो शुरू से ही सही काम कर रहा है । बधाई ।
जवाब देंहटाएंस्लाग ओवर मस्त रहा...बाकी आपकी सोच काबिले तारीफ़ है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
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जवाब देंहटाएं.
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खुशदीप जी,
अभिभूत हूँ आपके स्नेह से, यद्यपि ईमानदारी बरतूं तो मुझे लगता है कि ऐसा कुछ खास किया या लिखा नहीं मैंने...
ब्लॉगवुड वाकई कमाल का शब्द है, हिन्दी ब्लॉगिंग इसे पकड़ ले और एकाधिकार बना ले अपना इस पर...जबान और की-बोर्ड से तो चिपक ही जायेगा यह आसानी से...
"हां, एक बात मैं ज़रूर अपने युवा साथियों से कहना चाहता हूं...ब्लॉगिंग पर्सन टू पर्सन ट्यूनिंग की बात है...आपको ब्लॉग विशेष के ज़रिए उस ब्लॉगर के मिज़ाज को समझने की कोशिश करनी चाहिए...कमेंट्स देते हुए भी अपने शब्दों का चयन पूरी तरह तौल-मोल के बाद करना चाहिए...एक गलत शब्द भी आपके बारे में गलतफहमी खड़ी कर सकता है...ब्लॉगिंग भी एक किस्म का रेडियो पर कमेंट्री सुनने जैसा है...जैसे कि आप कमेंट्री सुनते समय अपने अंदाज़ से दिमाग में चित्र बनाते रहते हैं, ऐसे ही ब्लॉग पर आपकी लेखनी (टाइपिंग) से आपके व्यक्तित्व के बारे में दूसरों के बीच पहचान बनती है..."
पूरी तरह सहमत हूँ आपके उपरोक्त कथन पर... आपके लेखन, आपकी टिप्पणियों से जो छवि बनती है... वही ब्लॉगिंग में आपका ब्रान्ड है... भविष्य में जब ब्लॉगवुड का आधार और बड़ा होगा तो उस भीड़ में आपका यही ब्रान्ड नेम आपको खोने नहीं देगा...
आदरणीय धीरू सिंह जी की बात में भी दम है...ब्लॉगवुड में तो कई ऐसी कारें हैं... जो न तो रोल्स रॉयस हैं... और न ही उनमें ईंजन है... फिर भी देखिये सरपट दौड़ रही हैं...रोल्स रॉयस की रिश्तेदार (आभासी) जो हैं...{निर्मल हास्य ही समझा जाये}
आभार!
पूरे मोहल्ले में अपनी तो ऐसी रेपुटेशन है कि लड़कियाँ शक्ल देखते ही दुम दमा के भाग लेती हैं ... :-)
जवाब देंहटाएंब्लोगवुड बढ़िया शब्द है
सही बात आत्म नियंत्रण जरूरी है
जवाब देंहटाएंब्लोगवुड अच्छा है इसे टाइगर वुड से बचाना :)
रोल्स के बारे में पटियाला के महाराजा का किस्सा प्रसिद्ध है कंपनी को माफी मांगनी पड़ी थी
स्लॉग ओवर बहुत कुछ सोचवा रहा है। ऐसही हम आप के फैन नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंरचना कर्म तो ईमानदार होना ही चाहिए - टिप्पणी मिले न मिले कोई बात नहीं।
ब्लॉगवुड कहिए, ब्लॉगवन कहिए, ब्लॉगकानन कहिए, ब्लॉग उपवन कहिए जो कहिए । मन को ग्राह्य नवीनता जँच ही जाती है।
ब्लॉगवुड नाम बहुत पसंद आया ....और आपके स्लॉग वुड भी कम नहीं होते ...सच्चाई से लिखा गया हमेशा दिल के बहुत करीब होता है ..
जवाब देंहटाएंअदा जी ने ई-मेल से ये कमेंट भेजा है...
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
यह सही है कि किसी की भी रचना उस ब्लाग्गेर के व्यक्तित्व का आईना है ...जाहिर सी बात है आप वही लिखेंगे जो आप सोचेंगे...आप वही सोचेंगे जो आप अन्दर से हैं...तो आपकी रचना आपका 'पोस्टमार्टम रिपोर्ट' है...सम्हल के रहिएगा...
जहाँ तक चिट्ठों के दौड़ने का प्रश्न है...हमको कुल मिला कर जो बात समझ में आई है वो यह है कि यहाँ दो तरह के चिट्ठे सफल होते हैं...
1. जो चटपटे होते हैं
2. जो समझ में नहीं आते हैं
चटपटे तो फिर भी चलिए हिंदी मसाला फिल्मो कि तरह हैं...
और जो समझ में ना आये वो आर्ट फिल्म या abstract पेंटिंग की तरह है....जब समझ में ना आये तो उसे बहुत महान कृति मान लिया जाता है ...फिर चाहे वह बची हुई चाय फेंक कर क्यूँ ना बन गई हो..और फिर देखिये कैसे लोग मधुमखी के छत्ते की तरह चिपट ही जाते हैं...
'ब्लॉगवुड' शब्द पर हम वैसे ही फ़िदा हो गए थे ...लिख कर भी दिए ...अब का 'tatoo' करवा लेवें... हाँ नहीं तो...
स्लाग ओवर का dose सही रहा ...हमेशा की तरह
बधाई..
ब्लॉगवुड में रेप्यूटेशन बनाने की कोशिश अपन भी करते हैं
जवाब देंहटाएंउम्मीद है कि बिना पोस्ट डाले ही कुछ टिप्पणियां मिल जाएंगी।
खुशदीप इस बात से पूरी तरह सहम्त हूँ
जवाब देंहटाएंये कोई क्लास नहीं है, जहां पांच-पांच टॉप स्टूडेंट्स को छांटा जाए....दूसरी बात ब्लॉग्स को विषय की हदों में बांधना भी मुझे ऐसा लगता है जैसे बहते पानी पर बांध बना देना। और तुम्हारी नसीहतें वाह आज ये बुज़ुर्गाना अन्दाज़ ! बहुत अच्छा लगा। बलाग्वुड को खुशदीप जैसे खुले विचारों की जरूरत है। मैं तो आज से ब्लागजगत की जगह ब्लागवुड ही लिखूँगी। स्लागओवर की क्या बात है । बहुत बहुत आशीर्वाद्
@ खुशदीप
जवाब देंहटाएंपिछले कुछ दिनों से यह देखने मे आरहा है कि तुम आत्ममुग्ध हुये जारहे हो। जो कि तुम्हारे जैसे उदयीमान ब्लागर के लिये अच्छा नही है। मेरी इस टिप्पणी से तुमको बुरा भी लगेगा और झटका भी लगेगा. फ़िर भी हम तो सच बोलने की वजह से ही बुरे बने हैं आज तक। हमको कोई फ़र्क नही पडता। अब तो यहां ये सब आत्ममुग्धता देखते हुये ५ वर्ष से ज्यादा का समय हो चुका है। यहां सब बरसाती नदी नालों जैसे आये और चले गये।
अब असली बात
तुम पिछले कुछ दिनों से रोज इस बात पर खुद की पीठ ठोक रहे हो और तुम्हारे यहां आने वाले लोग ठॊक भी जाते हैं कि ब्लागवुड शब्द तुमने इजाद किया है. जबकि कुछ पुराने ब्लागर भी तुमको इस बात पर दाद दिये जारहे हैं जबकि वो जानते हैं कि यह सही नही है. मतलब तुमको चढा रहे हैं चने के झाड पर। इन्होनें कईयों को चढाया और उतारा है अब लगता है नंबर तुम्हारा है।
इस संबंध मे मुझे दो बाते कहनी हैं और जो पुराने या तथाकथित वरिष्ठ या गरिष्ठ ब्लागर जिनकी यहां टिप्पणीयां मौजूद हैं वो भी सुन लें।
१. यह कि तुम्हारा शब्द ब्लागवुड गलत है| असली शब्द होगा "ब्लागीवुड" जैसे की मुंबई का बालीवुड, अमेरिका का हालीवुड, कोलकाता का टालीवुड और पाकिस्तान (लाहोर) के लिये लालीवुड होता है| जरा सोचो..अगर बालीवुड को बालवुड, हालीवुड को हाल्वुड, टालीवुड को टालवुड और लालीवुड को लालवुड कहा जाये, तो कैसा लगेगा? ऐसा ही तुम्हारा ब्लागवुड शब्द लगता है. अत: यह शब्द ब्लागवुड नही बल्कि ब्लागीवुड होगा।
२. अब तुमको असली झटका लगेगा । ब्लागीवुड शब्द का इस्तेमाल शायद सबसे पहले कुश जी ने किया था| अत: इस शब्द का जनक वो ही है आप नही। और यह बात यहां जितने भी गरिष्ठ ब्लागर हैं उन्हें अच्छी तरह पता है।
और अगर तुमको या तुम्हारे समर्थकों को मेरी बात गलत लग रही हो तो जरा गूगल सर्च मे ब्लागीवुड शब्द हिंदी मे डालकर सर्च करना। तुमको पता चल जायेगा कि यह शब्द तुम्हारे ब्लाग लेखन में पैदा होने के बहुत वर्षों पहले से इस्तेमाल होता आरहा है।
वैसे हम आजकल कुछ बोलते नही है। क्युंकि आजकल सब चमचागिरी का राज चल रहा है। पर रोज रोज तुम जैसे लोगों का यह आत्मप्रचार सहन नही होता इसलिये असली बात कहे बिना रहा भी नही गया।
सच्ची बात कहने मे मिर्ची लगती ही है, तो लगे हमारी बला से।
यहीं सही बात भी है दिल की बातों को सीधे और सपाट तरीके से व्यक्त करना ही ब्लॉगिंग को एक संपूर्णता प्रदान करना है..
जवाब देंहटाएंऔर महफूज जी हो या दीपक जी या प्रवीण जी सबकी रचनाओं में एक खास बात होती है..बढ़िया चर्चा..धन्यवाद खुशदीप जी
@ मियाँ जी...जरा सुनो...
जवाब देंहटाएंवैसे तो जो कुछ आपने खुशदीप जी से कहा है उसका जवाब वही देंगे....की वो कितने आत्ममुग्ध है या कितने बरसाती नदी है...
मैं इस लिए जवाब देने आई हूँ...क्यूंकि मैंने भी 'ब्लागवुड' शब्द को पसंद किया था....मुझे तो वैसे भी ५ महीने ही हुए हैं ब्लॉग्गिंग करते हुए इसलिए ना तो मैं गरिष्ठ हूँ ना वरिष्ठ ना ही विशिष्ठ...फिर भी मुझे' ब्लागवुड' शब्द 'ब्लागीवुड' से ज्यादा पसंद आया..हालांकि इसकी व्युत्पत्ति के बारे में मुझे अभी-अभी आपसे ही पता चला...खुशदीप जी के शब्द हो पढ़ते साथ अपने आप ही मन में 'ब्लागीवुड' आ गया था...क्यूंकि..बॉलीवुड , लालीवुड, hollywood इनसब की जानकारी हमें भी है...और सभी नाम hollywood की तर्ज़ पर बने है....कॉपी ही है...कौन सी ओरिगिनल बात है इसमें....कम से कम ब्लागवुड तो ओरिगिनल है....
अपनी अपनी पसंद है ..
आप कहते हैं की आप ५ साल से ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं फिर भी आपके प्रोफाइल में कुछ नज़र नहीं आया....और इतने वरिष्ठ, गरिष्ठ विशिष्ठ होते हुए भी आपको यह बात छुप कर कहनी पड़ी..
हैरान हूँ...!!
@ अदा जी, समस्त वरिष्ठ एवम गरिष्ठ ब्लागर गण,
जवाब देंहटाएंहमने तो पहले ही रहा था कि सही बात पर सबको मिर्ची लगेगी। सो तुरंते लग गई। आप लोग जो सही बात है उसको स्वीकारने की बजाये उल्टा हमें ही आंखे दिखा रहे हैं? ई त कोनू सही बात नाही बा।
और मिर्ची तो सही बात पर ही लगती है सो लग गई। अब हमे कुच्छौ नाही कहना है, जो हकीकत है वो है। अब आप नया नया लोग हैं तो आपसे क्या कहें? आप तो समझते हैं कि दुनियां वही है जेतना आपको दिखाई पडता है तो क्या दुनिया एतना छोटा होजायेगा?
हम तो एके बात कहुंगा कि ब्लाग्वुड गलत शब्द है अऊर ई कोनू खुशदीप का इजाद नाही बा।
खुश दीप भाई लोग क्या कहे गे,हमे पहले ऎसा काम ही नही करना चाहिये जो गलत है, ओर अगर कर दिया तो फ़िर बताने मे केसी शर्म आप की बात से सहमत हुं, ओर इस ब्लॉगवुड से भी सेठ जी नेतो कमाल कर दित्ता
जवाब देंहटाएंयह बात आपने बिलकुल सही कि बंदूक से निकली गोली और ज़ुबान से निकले बोल, कभी वापस नहीं आते... मेरी एक टिप्पणी को ढाल बनाया गया.... बिना मतलब के.... गलती मेरी ही थी कि मैंने ऐसी टिप्पणी क्यूँ दी? लेकिन उस वक़्त मैं दूसरी मानसिक स्तिथि में था... तो गुस्से में लिख दिया.... बाद में समझ में आया... कि ऐसा नहीं लिखना चाहिए था..... लेकिन कई बार आक्रोश तो निकलता ही है.... और कई लोग ऐसे हैं.... जिनका मानसिक लेवल ज़ीरो है..... लेकिन बनते फन्ने खान हैं.... वही लोगों ने ज्यादा बवाल मचाया.... कुछ लोगों ने तो यहाँ वहां फोन भी कर के लोगों को बोला कि मेरे ब्लॉग पर ना आयें क्यूंकि मैंने गन्दी टिप्पणी दी है..... वही लोग उलटे सीधे लेखों का समर्थन करते हैं.... और अपने को तोपची कहेंगे.... जैसे झाँसी का टॉप यही लोग उड़ायेंगे.... इसीलिए खुद को बचाने में ही ज्यादा भलाई है.... इमानदारी से अपना काम करते रहेंगे तो कोई फॉल्स फन्ने खान आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता....
जवाब देंहटाएंअब आप एक आपकी ही टिप्पणी में इन (मियां जी..जरा सुनो! ) महाशय को देख लीजिये ... यह आ गए... फॉल्स प्रोफाइल बना कर.... अब मैं इनको गाली दूं कि नहीं.... ? यह आदमी लात खाने वाला काम कर रहा है कि नहीं ? आप के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा है कि नहीं ? और जो भी अंब मेरे भाई के बारे में उल्टा सीधा बोलेगा तो वो लात खायेगा कि नहीं ? मेरे जैसा आदमी सिर्फ एक भाषा जानता है इन जैसों के लिए.... वो है लात की भाषा.... यह son of virgin mother है.... तभी फॉल्स प्रोफाइल बना कर आया है.... दम होता तो अपने सही नाम से बहस करता.... आप जैसे परिपक्व इंसान के बारे में कुछ भी बोलने से पहले तीन सौ छत्तीस बार सोचता.... वरिष्ठ या गरिष्ठ ब्लोग्गेर्ज़ के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा है.... तो मेरा यह फ़र्ज़ है कि नहीं ....कि मैं इसको लात मारूं? अगर कोई हमारे घर के सदस्यों को उल्टा सीधा बोल कर निकल जायेगा और हम देखते रहें? नहीं..... मेरा adrenalin hormone इसकी इजाज़त नहीं देता..... यह रिश्तों को चमचागिरी बोल रहा है..... खुद का वजूद छुपा रहा है.... क्या करे यह .... यह कई सारे बापों का संस्कार पाया हुआ एकमात्र इंसान है.... अगर यह आपका भला चाहता तो मेल में लिख कर भेज देता .... अब हम लोगों को तो यह बात पता नहीं थी कि ब्लोग्गीवुड शब्द का इजाद कुश ने किया है.... कुश ने किया है.... हम उसका सम्मान करते हैं.... पर यह बात हम लोगों को पता तो होनी चाहिए.... यही बात यह ईजी वे में बता सकता था.... यह तो पूरा बेईज्ज़ती करने आ गया.... और मैं यह कतई बर्दाश्त नहीं करूँगा.... मिर्ची लगने वाली कोई बात नहीं है.... दम होता इस बन्दे में तो साफ़ साफ़ बोलता.... मैं कोई डुअल व्यक्तित्व वाला साइको नहीं हूँ.... जो इतना कुछ लिख रहा हूँ.... इसे यह नहीं पता... कि यह किस्से पंगा ले रहा है.... कोई मेरे परिवार के सदस्य के बारे में कुछ भी बोलेगा.... तो फाड़ कर रख दूंगा.... कईयों को फाड़ा है.... यह तो वैसे भी कई बापों का संस्कार है....
अब मेरी इस टिप्पणी को क्या कहेंगे .... है ना चीप क्लास....? पर घटियों के लिए घटिया ही बनना पड़ता है.... ब्लॉगवुड या ब्लोग्गीवुड किसी की बपौती नहीं है.... हम सबका सम्मान करते हैं... पर परिवार पर कोई बात आएगी.... तो दुनिया के हर कोने में फाड़ने का दम रखते हैं.... जिसको जो अच्छा लगे वो बोले...
NB: मेरी टिप्पणियों का मेरी qualifications, profession, शक्ल और लेखन से कोई मतलब नहीं है... यहाँ बात परिवार की है... जिसे भी लड़ना है वो खुल के मैदान में आये....
ब्लागरा डिस्कशन के बाद मैंने उन सभी नामकरण के प्रयासों में रूचि लेना छोड़ दिया है जिनकी व्युत्पत्ति ब्लॉग से होती हो .
जवाब देंहटाएं@मियां जी...ज़रा सुनो!
जवाब देंहटाएंभाई जी आप जो भी है, पहली बात तो आपका ब्लॉगवुड में स्वागत है, आपने आज ही अपना प्रोफाइल बनाया है....शायद मेरी पोस्ट पर टिप्पणियां देने के लिए ही आपने इतनी तकलीफ़ उठाई...बहरहाल आप मेरी पोस्ट पर आए, अपनी बात कही,उसके लिए शुक्रिया...अभी मैं कहीं व्यस्त हूं, इसलिए दो फिल्मी गानों के मुखड़े और एक
फिल्मी डॉयलॉग आपकी शान में कहूंगा...उम्मीद है कबूल फरमाएंगे...
पहले बोल...
ज़रा सामने तो आओ छलिए,
छुप-छुप छलने में क्या राज़ है,
यूं छुप न सकेगा परमात्मा,
मेरी आत्मा की ये आवाज़ है
दूसरे बोल...
क्या मिलिए ऐसे लोगों से,
जिनकी सूरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आए,
असली फितरत छुपी रहे...
तीसरा डॉयलॉग...
मियां जी आप काफी वरिष्ठ लगते हैं, आपने त्रिशूल फिल्म तो ज़रूर देखी होगी...उसमें शशि कपूर गुस्से में अमिताभ बच्चन से हिसाब-किताब बराबर करने जाते हैं तो अमिताभ कमरे में होते हैं...शशि कपूर कहते हैं...हमारी मुलाकात के लिए ये जगह छोटी पड़ेगी, इसलिए बाहर खुले में आना पड़ेगा...और फिर ढिशुम-ढिशुम....
इसलिए ये टिप्पणी वाली जगह आपको जवाब देने के लिए छोटी पड़ेगी, रात को पोस्ट के ज़रिए ही आप जो-जो सुनने की चाह रखते हैं, वो आपको सुनाऊंगा...मुझे पता है आपको बेसब्री में उस पोस्ट के इंतज़ार तक वक्त काटना मुश्किल हो जाएगा...
@अदा जी,
@महफूज़
आपका आभार....मुझ जैसे नौसिखिए के लिए इस तरह का स्टैंड लेकर आपने
अभिभूत कर दिया...बाकी मैं दिल से करीब दूसरे अपनों से भी पूछना चाहूंगा कि मैंने ऐसा कौन सा काम किया है या पोस्ट लिखी है, जिससे मेरे आत्ममुग्ध होने का आभास होता हो...
मेरी तरफ़ से शेष रात को....
जय हिंद...
हम तो पहले ही कहे रहे कि सही बात पर मिर्ची लगेगी त लग गई..आप अऊर आपके चम्मच छुरीयां बाहर आगये। अब पोस्टवा लिख कर कौन सी बात सही कर लोगे? सत्य त सदा सत्य ही रहेगा मियां?
जवाब देंहटाएंका महफ़ूज मियां? तुहार adrenalin hormone कछु जियादेई बढ गईल का?
अऊर हां खुशदीप मियां...पोस्टवा सिर्फ़ तुमको ही नाही सबको लिखनी आती है...समझे कि नाही?
@ मियां जी..जरा सुनो!
जवाब देंहटाएंबहुत बेशर्म इंसान हो.... अपनी पैदाइश आख़िर साबित कर ही दी ना? गलत नहीं कहा था... SON OF A VIRGIN MOTHER...
मियां जी... कुछ बोलने से पहले सोच लेना... IP Address पता कर के ...घर खोज लेना बहुत आसान काम है... घर खोज लिया तो रात में तीन बजे घर में घुस कर मारूंगा.... ब्लॉग पर तीन लोगों का IP address पता कर के लोगों को बताया हूँ.... यकीन ना हो तो जाकिर अली'रजनीश" और मिश्र जी से पूछ लो.... मैंने IP Address पता कर लिया तो बहुत मुश्किल में आ जाओगे.... तुमने अभी अदा जी और खुशदीप जी को उल्टा सीधा लिखा है... अब और बोलोगे... तो पछताने के अलावा कोई चारा नहीं होगा....
मैं वैसे भी ओल राउनडर हूँ.... तुम मेरा कुछ भी नहीं उखाड़ पाओगे... मिर्ची तो मैं ऐसी जगह तुम्हारे ठूसूंगा ... कि बुढौती/जवानी सब खराब हो जाएगी.... मुझे जानने वालों से पूछ लो...
"मैं वैसे भी ओल राउनडर हूँ.... तुम मेरा कुछ भी नहीं उखाड़ पाओगे... मिर्ची तो मैं ऐसी जगह तुम्हारे ठूसूंगा ... कि बुढौती/जवानी सब खराब हो जाएगी.... मुझे जानने वालों से पूछ लो..."
जवाब देंहटाएंAti sundar mahphooj bhai, ise kahte hai bahaaduri ! Thats really gr8.
http://chitthacharcha.blogspot.com/2008/10/blog-post_2006.html
जवाब देंहटाएंमहफूज़,
जवाब देंहटाएंशांत...गदाधारी महफूज़ानंद जी...शांत...सोचा तो था रात को ही जवाब दूंगा लेकिन तुम्हे आपे से बाहर होता देख मुझे फिर टिप्पणी के लिए मजबूर होना पड़ा है...पहली बात जो पहले से ही मरा हुआ है उसके लिए क्यों खुद का जी जला रहे हो...मरे हुए को क्या मारना...अपनी ज़ुबान क्यों गंदी कर रहे हो...जो अपनी पहचान के साथ सामने आकर बात न रख सके, छुप कर वार करना चाहे, वो तो मरे हुए से भी बदतर है...उस बेचारे पर तरस खाओ, गुस्सा नहीं...कोई मानसिक संतुलन खो चुका हो तो उसके साथ महफूज़ दया के साथ पेश आना चाहिए...उसके साथ टक्कर नहीं मारनी चाहिए बल्कि कामना करनी चाहिए कि वो सही सा डॉक्टर ढूंढ कर अपना इलाज कराए...इसलिए महफूज़ गुस्सा थूको और कोई अच्छी सी पोस्ट के साथ ब्लॉगवुड में आओ...वही इनके लिए सही जवाब है...तुम्हारी लोकप्रियता का ग्राफ तो पहले से ही आसमान पर है...ये जितना और ऊपर चढ़ेगा, उतने ही इनकी छाती पर और सांप लोटेंगे...बस महफूज़, अब मैं तुमसे कह रहा हूं, इस प्रकरण पर एक शब्द भी नहीं बोलोगे...अगर ये शालीनता की भाषा समझते हैं तो आज रात मेरी पोस्ट से समझ जाएंगे...वरना इनका रामजी भला करेंगे....
जय हिंद...
@कुश जी,
जवाब देंहटाएंआपने सिर्फ लिंक देकर छोड़ दिया...बाकी एक भी शब्द नहीं लिखा...मुझे याद पड़ता है तो आप पिछले पांच महीने में सिर्फ एक बार मेरी किसी पोस्ट में कमेंट करने आए थे...आज...मियां जी...ज़रा सुनो!!! के जन्म लेने के साथ आप फिर अचानक अवतरित हो गए...कहीं इस नवजात शिशु से आपका कोई संबंध तो
नहीं...
जय हिंद...
ओह्ह!! खुशदीप भाई..देर से किसी पोस्ट पर आओ तो यही होता है...पोस्ट के कंटेंट पर टिप्पणियाँ हावी हो जाती हैं....अब वापस पोस्ट पढनी पड़ेगी...फिलहाल..'ब्लॉगवुड' पर ही बात की जाए..इस शब्द पर इतना हंगामा क्यूँ??....क्या एक जैसी बात दो लोगों के दिमाग में नहीं आ सकती?....'कुश' भी मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और आपने तो रश्मि बहना कह कर दिल जीत ही लिया है ....मैं तो बहुत खुश हूँ कि इस शब्द में मेरे दोनों करीबियों का योगदान है....और आज से मैं तो 'ब्लॉगवुड' शब्द ही इस्तेमाल करुँगी...
जवाब देंहटाएंहाँ, एक बात और..संगीता पूरी जी ने अपनी टिप्पणी में वही बात कही है जिसपर मैंने कल पोस्ट लिखी है...अच्छा लगा,उनकी सहमति देख.
स्लॉग ओवर का माल दोबारा पढ़ने को मिला.
जवाब देंहटाएंपहले जितना ही सुस्वादु. उम्म्मा.
:)
कहते हैं , एक चुप सौ को हरावे।
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई, महफूज़ भाई को शांत करो।
यहाँ पहले ही मूंह का जायका काफी खराब हो चुका है।
आपको इस कमेन्ट को डिलीट कर देना चाहिए था।
अब अनामी टिप्पणियों के नए अंदाज़ नज़र आने लगे हैं।
मैं एक वेब डेवेलपमेंट कंपनी में हु.. कई बार किसी वेबसाईट के लिए डोमेन बुक करते है तो पता चलता है किसी ने बहुत पहले ही लिया हुआ है.. इसका ये मतलब नहीं कि हमने कोपी किया.. बस हमारी सोच और उनकी सोच मिलती है.. वैसे भी जो कुछ हम सोचते है वो कोई और भी कही ना कही सोच रहा होता है... ऐसा कई बार हो जाता है...
जवाब देंहटाएंसागर ने इस पोस्ट का लिंक दिया था.. लंच से पहले अपना लिंक तो दे ही दिया था जहाँ मैंने ये शब्द खोजा था.. आपने भी खोज लिया.. अच्छी बात है..
फेक प्रोफाईल से काम लेना बहुत गलत है.. मेरे खिलाफ तो कई लोगो ने इस्तेमाल किया है... एक बार किसी ने डिम्पल के बारे में कायरता पूर्ण टिपण्णी की थी बहुत ही घटिया.. महफूज़ भाई से गुज़ारिश है कृपया उन लोगो के आई पी का पता लगाये.. ताकि इस ब्लोगिंग से कुछ तो गन्दगी दूर हो.. मेरी आवश्यकता पड़े तो बताइयेगा महफूज़ भाई..
खुशदीप भाई से कोई शिकायत नहीं.. ख़ुशी हुई कि अपनी सोच वाले और भी कई है..
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जवाब देंहटाएं.
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सौ बात की एक बात...
"ब्लॉगीवुड" और "ब्लॉगवुड" दोनों दो अलग-अलग शब्द हैं।
"ब्लॉगीवुड" भले ही चार साल पहले प्रयोग हुआ, पर चिपका नहीं...
"ब्लॉगवुड" में जमने और चिपकने की संभावनायें दिख रही हैं...और इस विवाद का तो और फायदा होगा उसे...
रही बात सही या गलत की, तो दोनों में से कोई शब्द गलत नहीं है... कोई भी नया शब्द कभी गलत नहीं होता!
सबसे पहले यहाँ सभी वरिष्ठ और श्रेष्ठ ब्लोगरो को चरण स्पर्श
जवाब देंहटाएंआज मन में बहुत रोष है और गुस्सा भी , खुशदीप भईया को क्या कहूँ खैर छोडीये अब आता हूँ मुद्दे पर, शायद मेरी ये बातें बहुत से लोगो को अच्छी नां लंगे, सबसे पहले लेख के शुरुआत से शुरु करता हूँ, सबसे पहले सबसे पहले मेरा आरोप है खुशदीप भईया पर कि कम से कम बढिया ब्लोगर ना सही, आलराउंडर ना सही, छोटा भाई होने के नाते याद कर लेते । अब आता हूँ मुख्य मुद्दे, मैं कहता हूँ कि आप ब्लोगवुड कहें या और कुछ ये आपकी मर्जी है, ब्लोगिंग किसी के बाप की जागिर तो नहीं हैं ना जो चाहे जो नाम दे दे, फिर वह चाहे आप हों या कुश जी, हाँ हो सकता है कि ये बहुत से लोगो को बढिया लगें, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि इसे सभी मानें या मानना चाहिए , रही बात नाम देंने मुझे नहीं लगता कि ये नाम बुरा है, और जब नाम देना ही है तो किसी के तर्ज पर क्यों , कुछ नया बताईये ।
शुक्रिया खुशदीप बाबू,
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए मुआफी... सबसे पहले मेरा नाम का जिक्र अपने पोस्ट में किया इसके लिए शुक्रिया... सुबह से देख रहा हूँ इस पोस्ट को लेकिन फुर्सत निकल कर कमेन्ट नहीं कर पाया... कुश जी को लिंक मैंने ही दिया था क्योंकि आज वो चिठ्ठाचर्चा करने वाले थे...
दुःख इस बात पर हुआ कि कुछ वरिष्ठ ब्लॉगर भी बड़े छोटे मन के हैं... इसपर ज्यादा कुछ नही कहूँगा ...
बस इतना याद दिलाना है कि कल आप कुछ और लिखने वाले हैं जिसका आपने वादा किया है... आप उस पर एकाग्र हों.. आप खुद इतना अच्छा माहौल बना कर लिखते हैं... पत्रकारिता का स्टुडेंट होने के नाते मैंने हमेशा से आपको पढ़ा... और आपने जिस तरेह से ब्लॉग को नियमित और मेंटेन रखा है वो प्रशंशनीय है... आपके पढने वाले कुछ नियमित पाठक हैं... उसे एक बेहतरीन पोस्ट से वंचित ना करें... बांकी सब चीजें आती जाती रहती हैं... अभी ज्यादा नहीं लिख सकता बॉस शनिवार को ऑफिस में ही होते हैं... .).).) हाँ सोमवार को नयी पोस्ट मत लिखिए... मैं सन्डे को पढ़ नहीं पाता... अपनी ब्लॉग्गिंग दफ्तर से खाली समय में होती है...
@खुशदीप जी
जवाब देंहटाएंमैंने अपने कमेन्ट के ऊपर आपका कमेन्ट पढ़ा नहीं था.. अगर पढ़ लिया होता तो कमेन्ट ही नहीं करता.. गलती थी जो यहाँ पर कमेन्ट किया.. जो लोग कान बंद करके बैठते है उन्हें आप कुछ समझा नहीं सकते.. आपको आपका शब्द मुबारक..
और हाँ अपनी बात कहने के लिए मुझे बेनामी बनने की जरुरत भी नहीं.. गलती के लिए माफ़ी यहाँ दोबारा आ गया..
वेरी वेरी गुड, छा जाएगा ब्लॉगवुड।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी पोस्ट, यू आर गुड होस्ट
फेसबुक एवं ऑर्कुट के शेयर बटन
कुश जी भी कान बन्द करके न बैठें और बहुत मुगालते में न रहें. जिस चिठ्ठाचर्चा मंच का लिंक लेकर वो नाचते हुये बताने आये हैं कि उन्होंने यह शब्द ईज़ाद किया, उसी चिठ्ठाचर्चा मंच पर उनसे पहले यह शब्द तरुण जी इस्तेमाल कर चुके हैं. मगर इस मगरुर को तो अपने आगे कोई दिखता ही नहीं है. यहाँ पर दोनों लिंक देखिये:
जवाब देंहटाएंतरुण जी:
जुलाई १९, २००८
http://chitthacharcha.blogspot.com/2008/07/blog-post_19.html
कुश मगरुर:
अक्टूबर ८, २००८
http://chitthacharcha.blogspot.com/2008/10/blog-post_2006.html
अब भी कुश जी को कुछ कहना बाकी रह गया हो तो कहें: जो लोग कान बंद करके बैठते है उन्हें आप कुछ समझा नहीं सकते.. आपको आपका शब्द मुबारक.. खुद दूसरे का शब्द इस्तेमाल करते समय क्या यह वाक्य ध्यान नहीं था?
ya rabba.....itne shabd kahan se laate hain aap log....
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बात है कि आप 'गन्दगी सफाई आन्दोलन ' चलाये हुए हैं...
Blogwood सोचा कौन ....इजाद किया कौन....बोला कौन ....लिखा कौन ....का फरक पड़ता है.....इसको जम कर चलाया कौन और ब्लॉग जगत में चिपकाया कौन (प्रवीण शाह की बात है और हम सहमत हैं) ई माने रखता है...और ई काम तो खुशदीप बाबू ही किये हैं....इसलिए उनका ही वर्ड हुआ ई भाई...
आज से ५ लाख साल पहिले डाइनासोर था तो हम का करें.....हम तो आज ही देखे हैं.....Richard Attenborough की कृपा से..और हम उनको ही जानते हैं....
यहां तो काफ़ी गम्भीर मनन हो रहा है।
जवाब देंहटाएंखैर लगे रहिये बढ़िया है।
अपनी तो आद्त है कि कुछ नहीं कह्ते।
प्रवीण शाह जी व अदा जी से सहमत।
@महफूज़ भाई धैर्य।
'होंठ घुमा सीटी बजा, सीटी बजाकर बोल, भइया आल इज वेल'
जय हिंद
खुशदीप भाई , एक अफ़वाह जोरों पे सुनी थी कि , कुछ नकारात्मक मानसिकता वाले , ब्लोगजगत में जानबूझ कर अच्छी बातों/बहसों को गलत दिशा में /उकसा रहे है , मुझे लग रहा है कि अफ़वाहों में दम था ,और अब तो दिख भी रहा है , मगर लगे रहिए जी , जिसे जो कहना है कहता रहे, खुशी का दरिया बहता रहे
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
जो चाहे लिखो ब्लागवुड़ लिखो ब्लागीवुड़ लिखो,दिल मिलने चाहिये।घर बसने के पहले ही बर्तन खड़खड़ाने लगे तो फ़िर क्या फ़ायदा।वैसे रेपुटेशन के नाम पर बिना इंजन चलने वाली कार जमी अपुन को।
जवाब देंहटाएंअजय जी का कहना कि
जवाब देंहटाएंअफ़वाहों में दम था ,और अब तो दिख भी रहा है ,
मुझे भी इसमें दम दिखता है
पूरा किस्सा पढ़ कर हंसे जा रहे हैं.. किसी एक पर नहीं, सभी पर..
जवाब देंहटाएंकोई भी इजाद किया, कोई भी इस्तेमाल किया? उससे किसी को क्या फर्क पड़ता है? कम से कम मुझे तो नहीं पड़ता है..
वैसे अपनी बात कहूं तो, मुझे ना तो ब्लौगीवुड सुहाता है और ना ही ब्लौगवुड..
ब्लौग को ब्लौग ही रहने दें कोई नाम ना दें.. और अगर देते भी हैं तो क्या फर्क पड़ता है?
वैसे अफ़वाहों में वाकई दम है..
आपने स्लॉग ओवर में रॉल्स रॉयस कार की बात की है। इसका एक सही किस्सा मेरी तरफ से। इसे मैंने इरविंग स्टोन की बेहतरीन पुस्तक 'द संडे जेन्टेलमैन में पढ़ा था।
जवाब देंहटाएंएक बार एक यूरोप का दौरा करते समय एक व्यक्ति की रॉल्स रॉयस का एक्सल टूट गया। उसने कंपनी वालों को खबर की। उन्होंने अपना इंजीनय भजव कर उसे बदलवा दिया। उस व्यक्ति ने उन्हें अपना कार्ड दिया और उस पर बिल भिजवाने की बात की। जब कई महीने तक बिल नहीं आया तो उसने रॉल्स रॉयस कंपनी वालों से बात की। उनका जवाब था,
'आपको गलतफहमी हुई होगी, रॉल्स रॉयस कार का एक्सल कभी नहीं टूटता।'
यह उस कंपनी जस्बा, अपने उत्पाद के बारे में।