सुबह डाक्टर टी एस दराल अपने नर्सिंग होम में बैठे हुए थे...एक पहलवाननुमा मरीज़ कमर दर्द से कराहता हुआ डॉक्टर दराल के चैम्बर में पहुंचा...मरीज़ का बुरा हाल था...
डॉक्टर साहब ने उसे बेड पर लिटा कर चेक किया...फिर कहा...ओके, ठीक हो जाओगे...लेकिन तुम्हारी कमर को हुआ क्या...मरीज़ बोला...डॉक्टर साहब आप से क्या छुपाना...मैं एक नाइट रेस्तरां में बॉक्सर (हुड़दंगियों पर नज़र रखने वाला) का काम करता हूं...रात भर ड्यूटी देकर सुबह घर पहुंचा तो अपने बेडरूम से मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दी...मैं बेडरूम में दाखिल हुआ तो वहां मेरी पत्नी के अलावा कोई नहीं था...लेकिन बॉलकनी का दरवाजा खुला हुआ था...मैं झट से वहां पहुंचा...बॉलकनी से नीचे झांक कर देखा तो एक आदमी अपने कपड़े ठीक करता हुआ भाग रहा था...मैंने आव देखा न ताव, बॉलकनी में रखा पुराना फ्रिज ही उठा कर उस आदमी पर दे मारा...वो फ्रिज उठाने के चक्कर में ही मेरी कमर का बल निकल गया...
ड़ॉक्टर दराल ने बॉक्सर जी को वार्ड में भेजा ही था कि दूसरा मरीज़ और आ पहुंचा...उसकी हालत तो और भयावह थी...ऐसे जैसे किसी ने हथोड़े का वार कर चपटा बना दिया हो...दर्द से छटपटाता हुआ...डॉक्टर साहब ने पूछा...भई, हौसला रखो...पहले ये बताओ, ऐसा हाल तुम्हारा किस वजह से हुआ....दूसरा मरीज़ बोला......डॉक्टर साहब...कुछ न पूछो...कुछ महीने पहले छंटनी में मेरी नौकरी चली गई थी..तभी से बेरोज़गार हूं...आज एक कंपनी के बुलावे पर इंटरव्यू देने जाना था...पर अलार्म लगाना भूल गया...सुबह देर से उठा तो इंटरव्यू का टाइम सिर पर आ गया था...बस किसी तरह मुंह धो कर झटपट कपड़े अड़ा कर ही भागा जा रहा था...पेंट की बेल्ट बांध रहा था कि किसी ने मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की पता नहीं कौन सी बॉलकनी से भारी-भरकम फ्रिज मेरे ऊपर दे मारा...
ये सुनकर डॉक्टर को बॉक्सर की बात याद आ गई लेकिन बोले कुछ नहीं...दूसरे मरीज की मरहम पट्टी कर उसे भी वार्ड में भेज दिया...दूसरा मरीज चैम्बर से रुखसत ही हुआ था कि एक तीसरा मरीज़ और आ पहुंचा...डॉक्टर साहब उसे देखते ही पहचान गए...वो मक्खन था...मक्खन का हाल तो पहले दोनों मरीजो से भी ज़्यादा बुरा था...डॉक्टर दराल ने ठंडी सांस लेकर पूछा कि अब भईया मक्खन तुम्हे क्या हुआ...
मक्खन के मुंह से बड़ी मुश्किल से शब्द निकले....वो..ओ...ओ...डॉ...क्टरररर...सा..अ..आब....मैं...
सुबह...फ्रिररररिज़ ...में......बैठा....थ..अआ....क....कि...सी...ने...उठअअआ...कअअर....
थ..ररर्रड....फ्लोओओर....से...नीईचेएएएए...देएएएए...माआआआररररा....
(वो डॉक्टर साहब, मैं सुबह फ्रिज़ में बैठा था कि किसी ने उठा कर थर्ड फ्लोर से नीचे दे मारा)....
हा...हा...हा...बहुत ही मजेदार .....मज़ा आ गया जी फुल्ल बटा फुल्ल
जवाब देंहटाएंभेत्रीन है भाई...
जवाब देंहटाएंडाक्टसा को क्यों घसीट लिया फ्रिज में?
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जवाब देंहटाएंआज ही मक्खन कह रहा था मुझसे ..कि मैं अपने चहरे का नूर कुछ कम करना चाहता हूँ.......लोग बाग़ परेशान हो जाते हैं.. मेरी हैन्दसमियत से ...अब तो हो गयी न तसल्ली.....हाँ नहीं तो...:):):):)
जवाब देंहटाएंपूरी कहानी इस पते पर...
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/01/blog-post_20.html
मख्खन के चक्कर में कितने लफड़े मच गये..बहुत बदमाश निकला ये मख्खन तो. :)
जवाब देंहटाएंवैसे डॉक्टर साहब को एक अकेला मख्खन मिलता पिटा हुआ..मगर उसके कारण दो मरीज और मिले. डॉक्टर साहब को तो उसका अभिनन्दन करना चाहिये. :)
जवाब देंहटाएंमक्खन फ्रिज में तब भी अकड़ टूट गयी !
जवाब देंहटाएंरोचक।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
वाह यह भी खूब रही,
जवाब देंहटाएंऔर तो और तीनों मरीज भी आये तो अपने डॉ. दराल साहब के पास वाह भई, मख्खन ने तो गजब ही कर दिया।
ईश्वर तीनों मरीजों का भला करे! धन्य हैं वे डॉक्टर जिनके मरीज महान हैं!
जवाब देंहटाएंभाग्यशाली हैं दराल साहब, सुबह सुबह तीन मरीज मिल गए। इधर वकील के पास एक भी नहीं पहुँचा।
जवाब देंहटाएंद्विवेदी सर,
जवाब देंहटाएंफिक्र मत कीजिए, ये तीनों मरीज़ मुकदमा दर्ज़ कराने के लिए आपके पास ही आ रहे हैं...हां, अपने डॉक्टर दराल साहब को ज़रूर बयान देने के लिए दिल्ली से कोटा आना पड़ेगा...भगवान बचाए ऐसे मरीज़ों और मुवक्किलों से...
जय हिंद...
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंजोरदार फ़ंडा है। आप कहां पर थे? पर ये तीनो मरीज डॉक्टर दराल के पास ही क्यों पहुंचे, कहीं खुशदीप भाई कमीशन तो नही बधां है।:)
ललित भाई,
जवाब देंहटाएंउस बॉक्सर की बेचारी पत्नी का हाल भी पूछने वाला तो कोई चाहिए था...मैं उसके पास था...
जय हिंद...
कमबख्त यह घटना भी क्या दराल साहब के ही एरिया में होनी थी :)
जवाब देंहटाएंएक अकेले मक्खन के चक्कर में कितने मारे गए ...!!
जवाब देंहटाएंkya baat hai!!!!!!!!1
जवाब देंहटाएंMaza aa gaya...
there is truth behind every joke....
ha ha ha haaaaaaaaaaaaaa!!
दराल साहब तो अभी कोहरे से परेशान थे , अब ऐसे मरीजों से भी होंगे
जवाब देंहटाएंकोहरे का इलाज है न
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक गोली खानी है
और सिर्फ 15 मिनिट बाद
कोहरा दो घंटे के लिए
आंखों को बहरा नहीं बनायेगा
जानकारी चाहिये तो यहां पर
माउस क्लिकाइये झकाझक टाइम्स
पर आइये।http://jhhakajhhaktimes.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html
लोगों को समझा दिजिये. ताऊ मक्खन से जरा बच कर ही रहें.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
मुझे मालूम था कि यह मख्खन ही निकलेगा फ्रिज से.....
जवाब देंहटाएंहहहहहहहाहहाहा.....
जय हिंद....
haha ha a a..bahut majedar.
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा हा हा बहुत खूब शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअरे अरे रे रे रे ! खुशदीप भाई, आज थोडा व्यस्त क्या रहा , यहाँ तो पूरा कांड कर डाला आपने। सारे राज़ खोल डाले। रही सही कसर ललित जी ने पूरी कर दी। वो भी धुंध भरी आधी रात में। और हमारे बीसियों मित्र खड़े खड़े तालियाँ बजाते हुए तमाशा देखते रहे।
जवाब देंहटाएंअब समझ में आया क्यों आज अजीब अजीब से लोग मुझे अस्पताल में ढूंढ रहे थे। जाने कौन थे ए बी सी डी आई वाले। खैर हमने भी अफवाह फ़ैलाने वालों में आपका नाम पता बता दिया उनको। लेकिन वो कहने लगे --हमें अफवाह की परवाह नहीं है। हम तो उन्हें इसलिए पकड़ेंगे की उन्होंने खबर ही झूठी दी। हमने जिसका ब्यान लिया वो बौक्सर नहीं बाउंसर था। बड़ी मुश्किल से हमने उनको रोका , की भाई जाने दो अपना छोटा भाई है।
अब चलिए --कान पकड़कर मुर्गा बन जाइए।
और हाँ, इस मक्खन से सबको सावधान करना पड़ेगा। कहाँ लोगों के फ्रिज में घुस जाता है।
खुश दीप भाई कमेंटरी तो बहुत सुंदर दी, अगर साथ मै आप फ़िल्म भी बना लेते तो अच्छा था :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगा
क्या बात है..बहुत ही रोचक और बड़े मजेदार ढंग से बयाँ भी किया है...
जवाब देंहटाएंवो सब तो ठीक है , मगर वो बंदा कहां गया यार जिसे अपने घर से निकलता देख मक्खन ने दौडा दिया था और मक्खन उसीका पीछा करते करते पडोसन के घर में घुस गया फ़िर फ़्रिज में , आगे का हाल आपने बता दिया , कहीं आप ही तो नहीं थे मक्खन के आगे आगे
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
डॉक्टर दराल सर,
जवाब देंहटाएंये तो आपने बताया नहीं कि बैठा हुआ मुर्गा बनना है या खड़ा हुआ...मैं सुबह से यही इंतज़ार कर रहा था, आप पोस्ट पर कमेंट देने कब आएंगे...रही बात बाउंसर की तो वो बॉक्सिंग में मे़डल जीतने की वजह से बॉक्सर के नाम से मशहूर था...इसी झोंक में बाउंसर की जगह बॉक्सर लिख गया...(अब गलती पर किसी तरह तो पर्दा डालना
था...)
जय हिंद...
खुशदीप भाई, सजा तो तुम्हे मिलेगी, बराबर मिलेगी।
जवाब देंहटाएंलेकिन टीचर्स के सामने खड़े हों या बैठे , दोनों चलता है।
अब पसंद आपकी।