जी हां, स्लॉग ओवर में आज आपकी मुलाकात हाथी पर रौब गांठती चींटी से कराऊंगा...लेकिन पहले आपको मेरे एक सवाल का जवाब देना होगा...बताइए कि इस मंहगाई के दौर में देश में कहां किस ढाबे में एक रुपये की चाय मिलती है...क्या कहा...नहीं पता...तो लीजिए मैं बताता हूं...जानकर आपको ताज्जुब होगा कि हमारे माननीय सांसदों को कितनी तंगहाली मे जीना पड़ रहा है...बेचारे चाय के लिए एक रूपये से ज़्यादा खर्च ही नहीं कर सकते....संसद की हाउस कैंटीन में उन्हें एक रुपये की ही चाय मिलती है...
आपके लिए कभी-कभार घर से बाहर जाकर होटल का खाना चखना बेशक अब सपना बनता जा रहा हो लेकिन सांसदों के लिए ऐसी कोई दिक्कत नहीं है...उन्हें संसद की कैंटीन में ही बढ़िया और लज़ीज़ खाना कौड़ियों के दाम मिल जाता है....अब आप देखिए संसद की कैंटीन, मध्यम वर्ग के ठीक-ठाक रेस्तरां और पांचसितारा होटल में मिलने वाले खाने के कम से कम रेट....
...................खाना किसका, ख़ज़ाना किसका.............
..........संसद कैंटीन........मध्यम वर्ग का होटल....पांचसितारा होटल
चाय.....................1.............................17.................45
सूप......................5.50........................65................135
दाल की कटोरी.......1.50....................... 40..............95
वेज थाली..............12.50......................85..............410
नॉनवेज थाली...........22........................145............630
बटर चिकन..............27........................170...........550
फिश करी-चावल.......13..........................145..........630
फिश फ्राई................17..........................90..............330
चपाती.....................1.............................8.................31
चावल की प्लेट.........2............................45.............210
डोसा........................4........................ 55...................290
खीर की कटोरी........5.50........................55..............350
फ्रूट सलाद.................7.........................45................190
...............सभी रेट रुपये में...................................
आपको ये भी बताता चलूं कि संसद की हाउस कैंटीन को चलाने के लिए संसद ने इस वित्तीय वर्ष में पांच करोड़ तीस लाख रुपये का बजट जारी किया है...इसमें लोकसभा की हिस्सेदारी तीन करोड़ पचपन लाख और राज्यसभा के ज़िम्मे एक करोड़ सत्ततर लाख रुपये आया है...और ये पैसा कोई सांसदों के वेतन से नहीं काटा जाता...ये पैसा आप और हम जैसे टैक्स देने वाले जो टैक्स सरकार के ख़ज़ाने में देते हैं, वहीं से आता है....
संसद की कैंटीन में खाने-पीने के सामान के जो दाम हैं वो पिछले पांच साल से जस के तस हैं...यानि महंगाई का सांसदों के खाने पर कोई असर नहीं पड़ा....और आम इंसान के लिए महंगाई के चलते घर पर दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी भारी हो गया है....
स्लॉग ओवर
एक हाथी स्विमिंग पूल में फिसल कर गिर गया...स्विमिंग पूल में जितनी चींटिया थी बाहर भागने लगी...लेकिन एक दिलेर चींटी हाथी के ऊपर ही चढ़ गई...उसकी सहेली ने देखा तो चिल्ला कर बोली...डुबो...डुबो साले को पानी में...स्विमिंग पूल में घुस कर लड़कियों को छेड़ता है....
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ज़मीन के साथ पत्नी बेचने वाला आदमी
बच्चे का सिर उड़ाने का इरादा रखने वाला शख्स
बेटी के साथ शादी की तैयारी में पिता
सास की मौत का ज़िम्मेदार दामाद....
अगर आप इन सभी से मिलना चाहते हैं तो आइए मेरे अंग्रेज़ी ब्लॉग Mr Laughter पर......
खुश दीप भाई गरीबी तो गरीबो को सत्म करने के लिये है, भुल गये वो नारा हमारा हाथ गरीब के साथ, यानि जो कुछ उस गरीब के पास है उसे भी छीन लो, खाने की लिस्ट देख कर हेरान रह गया
जवाब देंहटाएंवैसे मेरे घर से चारसौ मीटर दूर एक दुकान पर छह माह पहले तक एक रुपए में चाय मिलती थी। अभी उस ने रेट बढ़ा कर शायद डे़ढ़ या दो रुपए कर दी है, या न की हो दिन में पता करता हूँ। दुकान के सामने छात्रों की साइकिलों और बाइकों का मेला लगा रहता है। जिस से सड़क संकरी हो जाती है। जब भी पुलिस गाड़ी उधर से निकलती है साइकिलों पर कार्यवाही करती है और बेचारे छात्रों को अपने वाहन इधर उधर भगाने पड़ते हैं।
जवाब देंहटाएंवैसे चींटियों को पता नहीं था कि हाथी स्वीमिंग पूल में डूबने नहीं तैरने गया था गहराई कम होने से ठीक से तैर भी नहीं पाया।
खुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंये सारे नेता उठाईगीरे हैं....मुफ्तखोर हैं ...अगर ये एक रुपैया भी दे रहे हैं न तो ...अहसान जता कर दे रहे होंगे..... मालूम...
अब ज़रा सिरिअस बात करें.....
हम भी राजनीति ज्वाइन कर लेवें....और कुछ नहीं तो कम से कम कैटीन का तो फायदा तो होगा ही.....हा हा हा
स्लोग ओवर ...
ज़रूर हाथी गोता लगा गया होगा ...मरे शर्म के...
और ये आपके लिए.....
एक हाथी ने रोमांटिक अंदाज़ में एक चींटी को छेड़ दिया....चींटी गुस्से में आग बबूला होकर हथिनी के पास पहुँच गयी और कहा ....'बहन जी आप अपने आवारा पति को समझा देवें कि ऐसी ओछी हरक्कत न करें...वर्ना मर्द हमारे घर में भी हैं...हाँ नहीं तो...' :):)
सांसदों का मीनू देख तो मूँह में पानी आ गया-सांसद बन जाने को!! :)
जवाब देंहटाएंस्विमिंग पूल में घुस कर लड़कियों को छेड़ता है....हा हा!! मारो!!
इतने कम भाव वाले मीनू के होटल की हमें भी तलाश है, अब संसद का पास लेना पड़ेगा..
जवाब देंहटाएंसही है अब तो सांसद बनने में ही फायदा है
जवाब देंहटाएंक्या गलत किया चीटी ने -- डुबाना ही चाहिये ऐसे मनचलो को
बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंअब आपको अदाजी के चुनाव लड़ने के प्रस्ताव पर गम्भीरता से सोचना चाहिए ...हमारा काम तो आप दोनों के नाम से हो ही जाएगा ...दिन भर संसद की कैंटीन में डेरा डाले बैठे रहेंगे ....
जवाब देंहटाएंचींटी को भी हक़ है भाई ....हाथी पर रोब गांठने का ....
प्रजातंत्र है ....!!
अब स्लोग ओवर पर जाऊं की मूल कंटेंट पर -चलिए कंटेंट पर ही ....यह कितनी बड़ी विडंबना है की रिक्शेवाला और आम जनता तो टैक्स देकर और भी पेट पीठ एक कर रही है और ये सफेदपोश उनकी गाढ़ी कमाई पर ऐश कर रहे हैं -कीड़े पड़ेगें नरक गामी होगें !
जवाब देंहटाएंसही बात है, अब संसद में जाने की सोचनी पड़ेगी।
जवाब देंहटाएंबड़ी दिलेर चींटी थी भई! संसद से हो कर आई थी शायद :-)
बी एस पाबला
बेहद सटीक आकड़ा जो बहुत कुछ कह जाती है..स्लॉग ओवर तो भाई जानदार होने की अब तो गारंटी हो गयी है..बढ़िया प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंमुफ्तखोर हैं साले! ऐसा ही होगा। वो चाय नहीं गरीबों का खून पी रहे हैं, वो खा नहीं बददुआएं खा रहे हैं। आपकी पोस्ट बेहद अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंऔरत का दर्द-ए-बयां
"हैप्पी अभिनंदन" में राजीव तनेजा
कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'
विडम्बना है कि सब जानते हुए भी लोग उन्हें ही सांसद बनाते हैं .. आंखें बंद कर झेलना ही होगा कम से कम और पांच वर्ष !!
जवाब देंहटाएं"संसद की हाउस कैंटीन में उन्हें एक रुपये की ही चाय मिलती है..."
जवाब देंहटाएंएक रुपया देना भी अखरता होगा, हर जगह फोकट वाली आदत जो पड़ी है।
धन्य है भारत की शासन व्यवस्था!!!
अवधिया जी,
जवाब देंहटाएंआप सही कह रहे हैं...इतने कम पैसे देना भी कई सांसदों को अखरता है....और उधार खा-खा कर उनके नाम मोटे बिल इकट्ठे हो जाते हैं और वो भुगतान करने का नाम नहीं लेते हैं...आखिर उन पर सख्ती करने वाला कौन है...
जय हिंद...
बहुत बढ़िया मीनू कार्ड दिखाया!
जवाब देंहटाएं'सांसद'--ये किस वर्ग में आते हैं???
ओह ! आज तो पेट भर कर खाने की सोचने की हिम्मत कर रहा हूँ। बस कैंटीन में एंट्री मिल जाये।
जवाब देंहटाएंआपने ये नहीं बताया की चींटी ने हाथी को डुबोया की छोड़ दिया, दया दिखाकर । हा हा हा , मस्त, मस्त, भाई।
पैसा देना अखरता ही नही, बिलकुल अखरता है। संसद मे लंगर खोल दे तो ठीक है एक भी पैसा नही देना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंडुबो...डुबो साले को पानी में...स्विमिंग पूल में घुस कर लड़कियों को छेड़ता है....
छेड़ग़ा तो डुबना भी पड़ेगा और छित्तर भी गिनने पडेगें चाहे चींटियों के ही हों। हा हा हा हा हा
खुशदीप जी इस बार तो हम ने सोच लिया है अब सांसद बन कर ही दम लेंगे नहीं तो पेन्शन मे रोती कहां नसीब होगी। बिजली पानी और सीवरेज का बिल भरते ही जेब खाली हो जाती है। इन सांसदो के लिये शर्मनाक बात है । कितनी गालियाँ निकलती हैं इनका नाम लेते ही मगर इन्हें शर्म नहीं आती । तभी तो गरीबों का हाल इन्हें पता नहीं चलता। स्लाग ओवर मज़ेदार है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई...पता नहीं ऐसे उदाहरण हमें कहाँ कहाँ नहीं मिलते...आम आदमी को खून पसीने की कमाई खर्च कर 90 दिन पहले रिज़र्वेशन करवाना पड़ता है...और ये लोग एक घंटे पहले फ़ोन उठा...VVIP कोटे में फर्स्ट क्लास ए. सी. में सफ़र करते हैं...
जवाब देंहटाएंआपके और अदा के .दोनों के जोक्स...मस्त हैं
मृगनयनी पांडे, आकाशवाणी में हमारी एक सिनिअर जो ससंद में काम भी करती हैं... उन्होंने भी इन सांसदों को करीब से देखा है.. चुनाव जीत कर आये नहीं की "हमें क्या मिलेगा वाली लाइन में खड़े हो जाते हैं".
जवाब देंहटाएंपर ऐसे में भी दिल्ली विधानसभा के कैंटीन में घोटाला हो जाता है... यह है कमाल की बात.
अरबों पति होकर भी बिचारे BPL (गरीबी रेखा के नीचे) की तरह एक रुपये वाली चाय पी रहे हैं. आप लोग क्या चाहते हैं कि ये ताऊ लोग अब भीख मांग कर चाय पीयें? है कोई शख्स जो एक रुपये वाली चाय पीकर दिखा दे?
जवाब देंहटाएंरामराम.
बढ़िया जानकारी भरी पोस्ट।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंsir, kaha se likh lete hai itna acha. jo bhi ho apke blog par aakar man khush ho jata hai..
जवाब देंहटाएंजितना सांसद फ़ायदा उठाते है पत्रकार भी कुछ कम नही . और रियायती दरो पर तो सुप्रीम कोर्ट मे भी खाना मिलता है . प्रेस क्लब मे भी और प्रेस क्लब मे तो दारु भी सस्ती मिलती है . लोकतन्त्र के चारो स्तम्भ लूट रहे है हमारी गाढी कमाई को हम यानी निरही जनता
जवाब देंहटाएंबेचारे नेता :( उनके पास एक रुपया भी नहीं होता चाय के लिए तो सफ़र क्या करेंगे? यही सोंच कर अब सरकार ने उनके समस्त परिवार और रिश्तेदारों को मुफ़्त सफ़र की अनुमती दे दी। मेरा भारत महान...
जवाब देंहटाएंजागो सोने वाले इंन्सान:)
भैया..... संसद कैंटीन का यह हाल तो है ही.... आप अगर जहाँ जहाँ railways headquarter है.... वहां के कैंटीन में अगर जाएँ तो इससे भी सस्ता है.... समोसा..आज भी २५ पैसे का...चाय भी २५ पैसे की, कॉफ़ी भी ५० पैसे की, केक ७५ पैसे का.... थाली ५.५० रुपये की है..... और इन canteens में कोई भी जाकर खा सकता है...... और यह IRCTC ही चलाता है..... अब पता नहीं यहाँ कितनी सब्सिडी मिलती है?
जवाब देंहटाएंवैसे यह subsidised खाने का प्रोविज़न हमारे लौ में है..... यह public distribution system का एक पार्ट है.... जैसे गैस सिलिंडर पे रियायत है..... जबकि उसकी एक्चुअल कास्ट ३००० रुपये है..... लेकिन हमें ३०० रुपये में मिलता है.... ऐसे जितनी भी PSU's हैं.... वहां भी खाना ऐसा ही सस्ता है.... banks (HQ's/RH) की कैंटीन में भी खाना ऐसा ही सस्ता है..... यह PDS का एक पार्ट है..... जो की अन्नुअल CAG रिपोर्ट में इनक्लूदेड होता है..... ऐसा ही डिफेन्स कैंटीन के भी साथ है.... संसद में अगर खाना अगर सस्ता है.... तो यह इकोनोमिक पोलिसी का एक पार्ट है.... हाँ! यह गलत है.... कि सासदों के लिए ऐसा नहीं होना चाहिए..... यह पोलिसी संसद में काम करने वालों के लिए थी ..... जिसका फायदा ...सांसद लोग भी उठाने लग गए.... दरअसल ... आजकल हो यह गया है कि मीडिया में नालेज वाले लोग कम आ रहे हैं.... वो लोग बस ज़रा सा देख कर हल्ला मचाने लगते हैं.... आजकल टी.वी. पे आने वालों को देखिये किसी को भी अपने सब्जेक्ट कि नॉलेज नहीं है.... वही लोग जब इस कैंटीन में गए...तो सस्ता खाना देख कर बवाल मचाने लगे.......यह एक इकोनोमिक पालिसी है..... जिसको कोई जान नहीं रहा है... एक पोस्ट इस पर भी तैयार करता हूँ.... जर्नालिस्म पूरी तरह तरह depth का सब्जेक्ट है....
जय हिंद......
लगता है आज हाथी डूब कर ही रहेगा....
जवाब देंहटाएंहे हे हे हे
जय हिंद...
मेरा भारत महान...
जवाब देंहटाएंबेचारे नेता :अरबों पति होकर भी बिचारे बी.पी.एल.(गरीबी रेखा के नीचे)वर्ग में आते हैं।
ठीक कहा आपने "और उधार खा-खा कर उनके नाम मोटे बिल इकट्ठे हो जाते हैं और वो भुगतान करने का नाम नहीं लेते हैं..."
आखिर?????????????????????
चींटी और हाथी तैराकी के लिये गये। लेकिन बजाय एक साथ तैराकी करने के, वे एक एक कर के पूल में जाते थे। दोनों पूल में एक ही समय में कभी नहीं थे। क्यों?
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क्यों कि उनके पास शॉर्ट्स की सिर्फ एक जोड़ी थी:):):)
जय हिंद...
आप सब को और आप सब के परिवार को मैरी क्रिसमस।
जवाब देंहटाएंजय हिंद।
मेरे ख्याल से तो ये *&ं%$#@#$ एक रुपया भी नहीं देते होंगे... ऐसे सिस्टम में जहाँ जनता के खून-पसीने की कमाई को चन्द लोगों की विलासिता में उड़ाया जाता है...वहाँ एक आम आदमी गाली देने के अलावा और कर भी क्या सकता है? ...
जवाब देंहटाएं