भारत में नसीरूद्दीन शाह के इंटरव्यू जैसा ही पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर प्रोफेसर निदा किरमानी के ट्वीट पर उबाल, क्यों कहा जा रहा है लाहौर की यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़ में पढ़ाने वालीं प्रोफेसर को भारतीय एजेंट, निदा किरमानी के ट्वीट का ग़लत मतलब निकाला गया कि भारत में हिंदुत्व के उभार के लिए जिन्नाह ज़िम्मेदार
नई दिल्ली (2 जनवरी)।
निदा किरमानी इस वक्त पाकिस्तान के सोशल
मीडिया पर ट्रेंड कर रही हैं. निदा लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़ के
स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल मीडिया में सोशियोलॉजी की फैकल्टी हैं. जेंडर,
इस्लाम, महिला आंदोलन, विकास और अरबन स्टडीज़ जैसे मुद्दों पर निदा खुल कर अपने
विचार रखती हैं. प्रोफेसर होने के साथ वे जानीमानी ऑथर और कॉलमनिस्ट भी हैं.
निदा किरमानी के एक ट्वीट को लेकर पाकिस्तान
में तूफ़ान आया हुआ है. ठीक वैसे ही जैसे भारत में एक्टर नसीरुद्दीन शाह के एक
इंटरव्यू को लेकर डिबेट छिड़ी हुई है. नसीर ने द वॉयर के लिए करन थापर को दिए
यूट्यूब चैनल पर दिए इंटरव्यू में कहा कि हरिद्वार में 17 से 19 दिसंबर को हुई
धर्मसंसद में भारत के मुसलमानों को लेकर जिस तरह के उकसावे वाले बयान दिए गए वो एक
तरह से भारत को सिविल वॉर यानि गृहयुद्ध की ओर ले जाने वाले हैं. नसीरुद्दीन शाह
के इस इंटरव्यू का हवाला देते हुए पाकिस्तान में सरकारी स्तर पर और निजी स्तर पर
सोशल मीडिया यूज़र्स की ओर से कहा जाने लगा कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली
जिन्नाह ने सही कहा था कि भारत में मुस्लिमों को सेकेंड क्लास सिटीजन यानि दोयम
दर्जे के नागरिक बनाने की की कथित कोशिश होंगी.
नसीरुद्दीन ने भी अपने इंटरव्यू में एक जगह कहा था कि भारत में मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के लिए संगठित कोशिश हो रही हैं और ये हर क्षेत्र में हो रहा है.
इन्हीं सभी बयानबाज़ियों और काउंटर अटैक्स के बीच निदा किरमानी ने 30 दिसंबर को एक ट्वीट किया. इसमें उन्होंने लिखा कि “ये कहना कि जिन्नाह भारत को लेकर अपनी भविष्यवाणियों में सही थे, गुमराह करने वाला है. भारत जैसा कि आज बना है संभवत: वैसा नहीं होता अगर बंटवारा न हुआ होता. दो देशों के धर्म के आधार पर विभाजन ने बॉर्डर के दोनों तरफ़ धार्मिक राष्ट्रवाद को सही साबित किया."
निदा किरमानी के इसी ट्वीट को लेकर उन्हें पाकिस्तान में ट्रोल किया जाने लगा. यहां तक कि उन्हें भारत का एजेंट बताया जाने लगा. यहां ये बताना ज़रूरी है कि निदा ने अपने रिसर्च वर्क के लिए बड़ा वक्त भारत में भी गुज़ारा है.Saying Jinnah was right in his predictions about India is misleading. India would probably not be what it has become today if Partition had not happened. The division of the two countries on the basis of religion has justified religious nationalism on both sides of the border.
— Nida Kirmani (@NidaKirmani) December 30, 2021
निदा किरमानी ने कहा कि जो मैंने ट्वीट में नहीं कहा, उसका खुद ही मतलब निकाल कर मेरे ट्वीट में पढ़ा जा रहा है जैसे कि भारत में हिंदुत्व के उभार के लिए जिन्नाह ज़िम्मेदार हैं. जैसे कि धार्मिक राष्ट्रवाद 1947 में बंटवारे के साथ शुरू हुआ. जैसे कि बंटवारे से पहले भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति अच्छी थी, जैसे कि बंटवारा न होता तो सब बेहतर रहता.
Things I am NOT saying in this tweet that people are nevertheless reading into it:
— Nida Kirmani (@NidaKirmani) December 31, 2021
Jinnah is responsible for Hindutva.
Religious nationalism began with Partition.
The situation for minorities in India was great before Partition.
If Partition didn't happen, all would be perfect. https://t.co/RaGCNQPowp
निदा किरमानी ने एक ट्वीट में ये भी लिखा कि ये भी मैने नहीं कहा कि जिन्नाह बंटवारे के लिए ज़िम्मेदार थे. कुछ लोगों की बौद्धिक बेइमानी मेरे ट्वीट को जानबूझ कर ग़लत मायने देकर पेश कर रही है जो दुख:द है.
Also not saying Jinnah was responsible for Partition. The intellectual dishonesty of some of the people deliberate misinterpreting this tweet is just sad.
— Nida Kirmani (@NidaKirmani) December 31, 2021
निदा किरमानी ने कहा कि जो पुरुष इस बात से अपसेट हैं कि मैं कई विषयों पर ट्वीट करती हूं, वो पुरुष प्रधान सोच वाले वाले हैं.
.और ऐसे ही पुरुष मैन्सप्लेनिंग का सहारा लेते हैं. मैन्सप्लेनिंग का अर्थ है मैन प्लस एक्सप्लेन. यानि अगर महिला की जिस क्षेत्र में दक्षता है, उसी को लेकर ज़रा सा मौका मिलने पर ही उसे सीख देना शुरू कर दिया जाता है. ऐसे कि जैसे महिला को उनके मुकाबले कोई जानकारी नहीं हैं.Men getting upset that I tweet about a range of subjects are sexist.
— Nida Kirmani (@NidaKirmani) December 31, 2021
There.
I said it.
Meanwhile the same men will mansplain your own area of expertise to you if given the slightest chance. 😂
— Nida Kirmani (@NidaKirmani) December 31, 2021
अब बताते हैं ट्रोल्स ने पाकिस्तानी सोशल
मीडिया पर निदा किरमानी के लिए क्या क्या लिखा-
एक सोशल मीडिया यूज़र अस्मा खान ने निदा किरमानी के ट्वीट को लेकर लिखा कि जिनके फिक्स्ड एजेंडे होते हैं, उन्हें फिक्स्ड करने की ज़रूरत है क्योंकि उनके पागलपन और मूर्खता के लिए यही मैथड है. जिन्नाह विज़नरी नेता थे लेकिन निदा किरमानी सूरज को लाइट दिखाने की कोशिश कर रही हैं, मुझे ऐसे शिक्षण संस्थानों पर दया आती है जो ऐसे उन्मादी और अनभिज्ञ लोगों को हायर करते हैं.
The ones with fixed agendas need to be fixed as there's a method to their madness &insanity.
— Asma Khan (@AsmaHumairKhan) December 30, 2021
Jinnah was a visionary leader but Nida Kirmani is trying to show light to the sun.The audacity !Pity our educational institutions that hire such delusional fanatics& ignorants to the core pic.twitter.com/HPlPBTE5od
वहीं सोशल मीडिया यूज़र शाह ए हमदान ने लिखा कि मैंने पिछले कुछ अर्से में नोट किया है कि सभी ऐसे फासीवादी असल में कायदे आज़म के विरोधी हैं. चाहे वो बाचा खान हो या निदा किरमानी जैसे पीटीएम सपोटर्स. ये सारे लिबटार्ड्स असल में पाकिस्तान के वजूद में आने के ही खिलाफ हैं.
Over a period of time I have noticed that all these fascists (also known as surkhas) are actually anti Quaid e Azam. Whether it was Bacha khan or PTM supporters like Nida Kirmani. All of these libtards are inherently against the very creation of our beloved motherland “Pakistan” pic.twitter.com/X2F8gFJEns
— (شاہِ ہمدان) Shah e Hamdan (@Justice_Serves) December 30, 2021
यूज़र ज़ैन ख़ान ने अपने ट्वीट में कहा कि आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी 1947 में नहीं, मॉम निदा किरमानी कृपया कोई किताब उठाइए. शुक्रिया.
RSS was founded in 1925, not 1947. This gender studies professor needs a history lesson. Please pick up a Book Ma'am Nida Kirmani. Thanks https://t.co/Ll96cfqVX2
— Zain Khan (@ZKhanOfficial) December 30, 2021
ग्रेस्क्रिब्बलस यूज़र ने लिखा कि कोई कैसे हर वक्त निदा किरमानी बने रह सकता है. क्या आपको कुछ आराम की ज़रूरत नहीं है.
How can someone be Nida Kirmani all the time? Like babe don't you need some rest?
— ° (@greyscribbles) December 30, 2021
@OSINT_Insider ने लिखा कि मैं कुछ खोज रहा था तो पाया कि प्रोफेसर निदा किरमानी 2017 तक ओवरसीज़ इंडियन सिटीजन थी, तब भारतीय अधिकारियों ने उनके दस्तावेज को ये कहते जब्त कर लिया कि वो पाकिस्तान और भारतीय नागरिक, दोनों बने नहीं रह सकतीं.
I was digging into something & found out that prof. Nida Kirmani was Overseas Indian citizen, untill 2017 when Indian officials seized her documents saying she can't be both Pakistani & Indian national.
— OSINT Insider (@OSINT_Insider) December 30, 2021
Every day, you learn something new on Pakistani twitter. 🤷
हालांकि कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स निदा किरमानी
के सपोर्ट में भी सामने आए.
@Ehteysham1 ने लिखा जब देश बुरे आर्थिक संकट से गुज़र रहा है और आतंकवादी हमले देश भर में बढ़ रहे हैं, पाकिस्तानी ट्विटर निदा किरमानी को एक्सपोज़ करने के लिए इस बहस में उलझा है कि उनका जन्म कहां हुआ. वो साहसी बुद्धिजीवी हैं. हमें उनके अपने बीच में होने पर गर्व है.
When country is suffering from worst financial crisis and terrorist attacks are increasing across the country, Pakistani twitter is discussing where Nida Kirmani was born in an effort to "expose her".
— Ehtesham Hassan (@Ehteysham1) December 30, 2021
She's a bold public intellectual. We're proud to have her among us.
@NidaKirma
एक और यूजर ने लिखा कि ट्विटर पर एक पूरा वर्ग है जिसका ब्रैंड डॉ निदा किरमानी से नफरत करना है, कभी कभी मुझे निदा किरमानी की ताकत से ईर्ष्या होती है.
There is an entire section of Twitter whose brand is hating Dr Nida Kirmani and sometimes I'm just in awe of both her power and their faraghat
— OhChiefestAndGreatestOfCalamities (@mustyoumustard) December 30, 2021
निदा किरमानी ने पांच साल पहले अपने एक
लेख में लिखा था कि धार्मिक बहुसंख्यकवाद किसी एक देश को लेकर नहीं बल्कि पूरे
दक्षिण एशिया के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इस लेख में निदा किरमानी ने ये भी
लिखा था कि बंटवारे के वक्त भारत से जो मुस्लिम पाकिस्तान आए, उन्हें और उनकी आगे
की पीढ़ियों को ये जानने में हर वक्त दिलचस्पी रहती है कि भारत में मुस्लिमों की
क्या स्थिति है. इस लेख में निदा किरमानी ने ये भी लिखा था कि 2011 की जनसंख्या के
मुताबिक भारत की कुल आबादी में 14.4 फीसदी मुस्लिम हैं. ये करीब 17.4 करोड़ बैठता
है. इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद ये किसी भी देश में मुस्लिमों की तीसरी सबसे
ज़्यादा आबादी है. निदा के मुताबिक इसलिए भारत में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक कहना
भ्रामक है. निदा ने लेख में ये भी लिखा था कि एक समुदाय की शक्ति की तुलना में
दूसरे समुदाय की शक्ति को देखा जाए मुस्लिम निश्चित रूप से अल्पसंख्यक हैं. ठीक
वैसे ही जैसे हर जगह महिलाओं की स्थिति है या रंगभेद के दिनों में दक्षिण अफ्रीका
में अश्वेतों की स्थिति थी. निदा ने ये भी लिखा कि भारत में 1980 के दशक से ही
हिन्दू दक्षिणपंथी शक्तियों के बढ़ते प्रभाव की वजह से ऐसी स्थिति बनी.
बहरहाल भारत में नसीरुद्दीन शाह के
इंटरव्यू को लेकर जिस तरह भारत में बहस छिड़ी है उसी तरह पाकिस्तान में निदा
किरमानी के ट्वीट को लेकर उबाल आया हुआ है.
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