तस्वीरों का ख़ूबसूरत इमोशनल कनेक्ट, विदेश में बच्चों की आवाज़ सुनने को तरसता पिता, जिस दिन बच्चे घर आएं उसी दिन पिता की दिवाली, तस्वीर के लिए पास आते हैं, कभी कभी तस्वीरें भी पास लाती हैं
नई दिल्ली (1 नवंबर)।
यादों के एक संदूक में छिपा कर मैंने रखी है...
रिश्तों की इस डोरी को जो कस कर थामी है...
हाथों से फिसले ये जैसे रेत है या पानी है...
दिल के इक कोने में संभाले मैंने रखी है...
मुस्कुराते चेहरे पर आंख क्यों नम सी है...
थम गया ये वक्त क्यों खुशियां क्यों कम सी हैं...
क्रिएटिविटी दिखाने के लिए ज़रूरी नहीं कि
आपको दो ढाई घंटे की मूवी ही दिखाई जाए. ये काम चंद मिनट में भी हो सकता है.
स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनी वीवी का दीवाली जॉय ऑफ होमकमिंग एड ऐसा ही है. एड की
शुरुआत इस टैग लाइन के साथ होती है- The homecoming- The perfect gift for a father this diwali.
This Diwali, let the #JoyOfHomecoming fill your heart, as you look forward to spend this magical time of the year with your family. Click beautiful pictures, make wonderful memories, and cherish them forever.#HappyDiwalipic.twitter.com/Ieq63pTjDA
एक हिलस्टेशन पर बड़े से मकान में एक नौकर
के साथ अकेले रहने वाले पिता के लिए इससे बड़ा तोहफ़ा और क्या हो सकता है कि विदेश
में रहने वाले उसके तीन बच्चे अचानक उसके सामने आ कर खड़े हो जाएं. वो बच्चे जो
उसे जान से भी ज़्यादा प्यारे हैं. जो उनसे बात करने के लिए भी तरसता रहता है.
नातिन के मुंह से नानू सुनने के लिए उसके कान हमेशा इंतज़ार करते रहते हैं.
मझे हुए अभिनेता कंवलजीत सिंह ने पिता के इस
किरदार को वीवो एड में पूरी शिद्दत के साथ निभाया है. एक नानू का नातिन के साथ बात
करते वक्त बेटी का कहना कि अब बच्ची के खाने का टाइम हो गया है, मैं आपसे फिर बात करती हूं. ये पिता बेटे का दिया कुर्ता पहन कर बेटे को
वीडियो कॉल करके दिखाता है तो बेटा नाइस कहता है, साथ ही कहता
है कि श्रुति सो रही है. डेंटसु एजिस नेटवर्क इंडिया लिमिटेड की क्रिएटिव एजेंसी
डेंटसु एजिस ने लाजवाब कंसेप्ट का तानाबाना इस एड के लिए बुना. स्मार्टफोन से की
गई फोटोग्राफी का बहुत खूबसूरत इमोशनल कनेक्शन जोड़ा गया है. इस फिल्म को डेंटसु
इम्पैक्ट के लिए अनुपमा रामास्वामी ने क्रिएट किया है.
रिश्तों की जमापूंजी से बढ़ कर कुछ नहीं और
अपनों के साथ मिलकर दिन बिताने से बड़ी और कोई सौगात नहीं. कोरोना की बंदिशों ने
अपनों की अहमियत का एहसास सभी को कराया है.
अपनों की याद को हर कमरे में संजोए ये पिता
इतने बड़े घर के एक गेस्टरूम को विजिटर्स को शार्ट स्टे के लिए रेंट पर देता है.
पैसे कमाने के मकसद से नहीं अपनी तन्हाई को कुछ हद तक कम करने के लिए. दिवाली से
पहले एक लड़का दो हफ्ते के लिए इस घर के एक कमरे को रेंट पर लेता है. कंवलजीत उससे
पूछते हैं कि दिवाली तो सब घर पर बनाने हैं वो यहां आ गया. इस पर लड़का कहता है
उसे पॉल्यूशन और शोर से दिक्कत होती है. वो लड़का दिवाली की रौशनी और साफ सफाई में
कंवलजीत की मदद करता है. दोनों साथ दिवाली मनाते हैं. लड़का स्मार्टफोन से
तस्वीरें खिंचता है. इन तस्वीरों में कंवलजीत बच्चों का फ्रेम भी साथ रखते हैं.
उनके चेहरे पर मुस्कान होती है लेकिन आंखें नम. ये तस्वीरें देखकर विदेश में रहने
वाले कंवलजीत के बच्चों की भी आंखें गीली हो जाती हैं.
दिवाली के बाद ल़ड़का अपने घर वापस जाने
लगता है तो कंवलजीत उससे कहते हैं कि तुमने रूम तो दो हफ्ते के लिए लिया था इतनी
जल्दी जा रहे हो तो वो कहता है कि उसे मम्मी की याद आ रही है. उस लड़के के जाने के
थोड़ी देर बाद डोरबेल बजती है. डोर खोलते हैं तो दोनों बेटे और बेटी, नातिन खड़े होते हैं. ये बच्चे सॉरी कहते हैं कि दिवाली पर वो नहीं आ सके.
लेकिन कंवलजीत कहते हैं कि दिवाली तब मनाई जाती है जब घर का बच्चा बड़े दिनों बाद
घर लौटता है. एक पिता के लिए जिस दिन बच्चे घर आते हैं, उसी दिन
दिवाली है और वही सबसे बड़ा गिफ्ट.
तस्वीरों के लिए पास तो सभी आते हैं लेकिन
कभी कभी तस्वीरों से भी पास आ जाते हैं.
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-11-2021) को चर्चा मंच "रूप चौदस-एक दीपक जल रहा" (चर्चा अंक-4236) पर भी होगी! -- सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें। -- दीपावली से जुड़े पंच पर्वों कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ। डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-11-2021) को चर्चा मंच "रूप चौदस-एक दीपक जल रहा" (चर्चा अंक-4236) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'