कैसे जीते हैं भला, हमसे सीखो ये अदा...खुशदीप


कैसे जीते हैं भला
हम से सीखो ये अदा
ऐसे क्यूँ ज़िंदा हैं लोग
जैसे शर्मिंदा हैं लोग

दिल पे सहकर सितम के तीर भी
पहनकर पाँव में ज़ंजीर भी
रक्स किया जाता है
आ बता दें ये तुझे
कैसे जिया जाता है
दिल पे सह कर...


आनंद बक्षी ने ये गीत आज से 47 साल पहले रिलीज हुई फिल्म दोस्त के लिए लिखा था. मुझे ये गीत बहुत पसंद रहा है. एक तो मेरे फेवरेट धर्मेंद्र और ऊपर से ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझाने वाले बक्षी साहब के बोल. हालात कैसे भी हों, इनसान में उन पर काबू पाने का जज़्बा होना चाहिए. चुनौतियों का सामना करते हुए भी छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढनी चाहिए. वरना मृगतृष्णा पर तो कभी विराम नहीं लगने वाला है. इनसान की फ़ितरत ही ऐसी है कि वो अपनी आख़िरी सांस तक भी दिल मांगे MORE’ करता रहेगा.



यही बात मैं अपने युवा साथियों से कहना चाहता हूं. जो आपके हाथ में नहीं है, उसके बारे में ज़्यादा मत सोचो, उसके पीछे भागने में अपना कीमती समय व्यर्थ मत करो. जो आपके हाथ में है, उसके बारे में सोचो.


'A Bird in the Hand is Worth Two in the Bush'


आपकी कोशिश खुद को हर दिन बेहतर से बेहतर बनाने की होनी चाहिए. ये सोचिए कि आपको आज जॉब के लिए कहीं से बुलावा आ जाए तो आप वहां कैसे परफॉर्म करेंगे. उसके लिए कैसे खुद को पूरी तरह तैयार रखा जा सकता है. आपके पास हर वक्त वैकल्पिक प्लान भी होने चाहिए. अगर आपका प्लान A  आपके मनमुताबिक नहीं रहा तो फिर प्लान B की ओर बढ़िए. प्लान B फेल रहा तो प्लान C की तरफ...इसी तरह ये सिलसिला बढ़ता रहे. ये नहीं होना चाहिए कि आप प्लान A पर ही अटके रहें, क्योंकि वो आपकी सबसे बड़ी चाहत रहा है. नाकामी इनसान की सबसे बड़ी गुरु होती है. वही उसे आगे खुद को और निखारने के लिए प्रेरित करती है. ग़लती करना इनसान का जन्मसिद्ध अधिकार है. लेकिन एक ग़लती दोबारा रिपीट नहीं करनी चाहिए. उससे सीखना चाहिए. अगले दिन फिर नई ग़लती हो तो कोई बात नहीं, उससे फिर सीखने का मौका मिलेगा. लेकिन एक ही ग़लती दोबारा कभी नहीं.


हर इनसान को अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीने का अधिकार है. उसे देखना होगा कि सबसे अधिक खुशी उसे किसमें मिलती है. मैं फिर अपने फेवरेट धर्मेंद्र की मिसाल देना चाहूंगा. शोहरत, दौलत, संतान सुख ऐसी कोई बात नहीं जो वो न देख चुके हों. लेकिन अब वो वही कर रहे हैं जो उनके मन को सबसे अच्छा लगता है. फार्महाउस में वो फिर ज़मीन से जुड़ गए हैं. 86 साल की उम्र में वो ट्रैक्टर चलाते हैं, स्विमिंग करते हैं, फल-सब्जियां उगाते हैं, पशुओं का ध्यान रखते हैं. ज़मीन से जुड़ा व्यक्ति ऐसा ही होता है. तमाम दुनिया देखने के बाद वो फिर अपनी जड़ों की ओर लौटता है. धर्मेंद्र आज भी चाहते तो दौलत के पीछे भागते रह सकते थे. लेकिन उन्होंने वो रास्ता चुना जो उन्हें सबसे अधिक सुकून देने वाला है.


मैं धर्मेंद्र को सबसे अंडर रेटेड एक्टर मानता हूं. इतने लंबे करियर में उन्हें एक भी फिल्मफेयर अवार्ड नहीं मिला. मिला भी तो लाइफटाइम एचीव्मेंट अवार्ड 2007 में. मेरी अपनी सोच है कि उन्हें 1969 में सत्यकाम के लिए मिल जाना चाहिए था. ऋषिकेश मुखर्जी की ये फिल्म मेरी सबसे पसंदीदा फिल्म है. धर्मेंद्र को लाइफटाइम एचीव्मेंट अवार्ड उनके सबसे फेवरेट कलाकार दिलीप कुमार के हाथों मिला था. उस वक्त धर्मेंद्र का दर्द ज़ुबां पर आ भी गया था कि वो हर साल इस आस में नया सूट सिलाते रहे कि शायद इस साल फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर की ट्राफी मिल जाए लेकिन कभी नहीं मिली. ये मान्यता नहीं मिलने के बावजूद धर्मेंद्र ने अपना मुकाम बनाया. उनकी खासियत ये है कि वो कलाकार होने से पहले दिल के बहुत अच्छे इनसान है. और मेरे लिए यही सबसे अधिक मायने रखता है.

 

युवा साथियों से मैं फिर कहना चाहूंगा कि वो अपने अंदर के जुनून (Passion) को पहचानें और फिर उसका कैसे पॉजिटिव इस्तेमाल करते हुए करियर में आगे बढ़ा जा सकता है, इस पर फोकस रखें. एक ही वक्त में कई कामों के बारे में सोचना सही नहीं है. कामयाबी तभी मिलती है जब आप अपना एक लक्ष्य तय कर लेते हैं. और फिर अर्जुन की तरह उसे भेदने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते हैं.


"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत." अर्थात् उठो, जागो, और ध्येय की प्राप्ति तक रूको मत...

-स्वामी विवेकानंद


(खुश हेल्पलाइन को मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. आप भी मिशन से जुड़ना चाहते हैं और मुझसे अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)

 

 

 

 

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6 टिप्पणियाँ
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  1. बहुत खूब.....संतुष्ट जीवन जीने की कला

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (11-08-2021 ) को 'जलवायु परिवर्तन की चिंताजनक ख़बर' (चर्चा अंक 4143) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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