हर आदमी का कोई न कोई पैशन (जूनुन) होता है. प्रफेशन बेशक उसका दूसरा हो लेकिन ये पैशन उससे ताउम्र अलग नहीं हो पाता. इसलिए अगर किसी का पैशन ही उसका प्रफेशन बन जाता है तो इससे बढ़िया उसके लिए कोई बात और नहीं हो सकती. अगर ऐसा होता है तो इनसान प्रफेशन से जुड़ा हर काम दिल लगा कर करेगा. ऐसा होगा तो एक न एक दिन वो ज़रूर अपना नाम बनाने में कामयाब होगा. बस ‘अपना टाइम आएगा’ वाली एप्रोच होनी चाहिए.
यहां मैं ‘3-Idiots’ फिल्म के फरहान कुरैशी (आर माधवन) का हवाला देना चाहूंगा. फरहान का जूनुन वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर बनने का था. लेकिन उसके जन्म लेते ही पिता ने एलान कर दिया था कि वो आईआईटी से इंजीनियर बनेगा. आईआईटी में पहुंचने के बाद भी फरहान का मन वहां नहीं रमता. रमता भी कैसे उसका जूनुन वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी जो था. एक दिन उसकी खींची फोटो को अंतर्राष्ट्रीय नामचीन फोटोग्राफर से मान्यता मिलती है और उसे वही करने का मौका मिल जाता है जिसकी उसे शुरू से चाहत थी.
यही बात मैं पत्रकारिता या मीडिया के लिए कहना चाहता हूं. अगर युवा साथियों में वाकई इसके लिए जज़्बा है, जुनून है, जोश है तो इस लाइन को अपना करियर बनाने की सोचें. देखा देखी या किसी और स्ट्रीम में अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिला तो इसकी तरफ न मुड़ें.
अब युवा साथियों का एक अहम सवाल है कि योग्यता पर
सिफ़ारिश और जुगाड़ हावी है. यहां मैं ऐसे साथियों से कहना चाहूंगा कि कोई भी
अच्छा संस्थान किसी को नौकरी पर रखेगा तो पहले अच्छी तरह उसे अपने पैमाने पर तौलेगा.
लाख सिफ़ारिश हो अगर आप काम के दबाव को नहीं झेल पाते तो बहुत जल्दी एक्सपोज़ हो
जाओगे. ऐसे में आपके साथ साथ सिफ़ारिश करने वाला भी सवालों के घेरे में आएगा.
आप इस तरह के निगेटिव ख्यालों को दूर रख अपने को हर दिन
और बेहतर, और बेहतर बनाने की ललक रखते हैं तो जीवन में आपको आगे बढ़ना आसान हो
जाएगा.
चलिए आपको मैं एक काल्पनिक स्थिति देता हूं. आप खेल
पत्रकार बनना चाहते हैं और कहीं स्पोर्ट्स डेस्क पर कोई पोस्ट खाली है. आपको उसके
लिए किसी अच्छे संस्थान से आज ही टेस्ट के लिए बुलावा आ जाता है. आप वहां जाएंगे,
टेस्ट देने के लिए. अब टेस्ट के दौरान आप में जो चीज़ें देखी जाएंगी वो ये हैं- (टाइपिंग
तो मस्ट है ही)...आपको अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद अच्छा आना चाहिए. क्योंकि
जब ये अनुवाद कराया जाएगा तो उसी में आपका लिखने का स्टाइल भी उजागर हो जाएगा. ये
भी पता चल जाएगा कि आपकी वर्तनी कैसी है, कैसे वाक्य बना रहे हैं. बिना किसी
त्रुटि लिख रहे हैं या नहीं. इसके अलावा स्पोर्ट्स के सभी करंट इवेंट्स का भी आपको
पता होना चाहिए. रविवार को ही तोक्यो ओलिम्पिक्स ख़त्म हुए हैं तो उसके सारे मेजर
इवेंट्स आपके टिप्स पर होने चाहिए. वहां सिर्फ़ नीरज चोपड़ा को जैवेलिन थ्रो में
गोल्ड मिलने या भारत को कुल पदक कितने मिले, सिर्फ़ इससे बात नहीं बनने वाली है.
जनसंपर्क रखना अच्छी बात है. रेफरेंस के लिए ये काम आता
है. लेकिन अगर आपके पास कथित सिफ़ारिश नहीं है तो क्या उसी के पीछे भागते रहोगे या
अपने को मांझने में उस वक्त का सदुपयोग करोगे. तमाम निगेटिविटी को दूर कर अपने को
एवर-रेडी स्थिति में रखोगे तो आपको हर मंज़िल आसान लगेगी. देखिए बड़े संस्थानों में
सीमित स्थान हैं और वहां पहले से ही अनुभवी लोग काम कर रहे हैं. मैं ये नहीं कह
रहा कि बड़े संस्थानों में फ्रेशर्स के लिए कोई मौका ही नहीं है. उनके लिए जगह
निकलती है. लेकिन वहां जो सबसे क़ाबिल लगेगा उसी को मौका दिया जाएगा.
इसे उपदेश ही मत मानिएगा कि एक्सलेंस हासिल करो, सक्सेस
खुद आपके पीछे आएगी.
मान लेते हैं कि आपमें तमाम योग्यता होने के बावजूद, लाख कोशिश करने के बाद भी
किसी अच्छे मीडिया हाउस में काम करने का मौका नहीं मिल पाता. तो फिर? क्या करेंगे आप? अनुभव हासिल करने के लिए आपको जो भी अवसर मिलता है, वहां काम करिए. बस ये
ध्यान रखिएगा कि शातिर लोगों के हाथ न लग जाएं. जहां भी आपसे काम करने के लिए
सिक्योरिटी, विज्ञापन आदि के नाम पर पैसे लाने की बात की जाती है तो वहां दूर से
ही हाथ जोड़ दीजिएगा. कोई भी साख वाला और अच्छा मीडिया संस्थान इस तरह की हरकत
नहीं करता.
आप में योग्यता है, अच्छा कंटेंट जेनेरेट करने की क्षमता
है तो आप स्वावलंबन की ओर भी बढ़ सकते हैं. जैसे कि मैं पिछली पोस्ट में भी लिख
चुका हूं कि ब्लॉग, यू-ट्यूब चैनल और पत्र-पत्रिकाओं में आर्टिकल लिखकर भी धन
अर्जित कर सकते हैं. इसके लिए आपको इस क्षेत्र में खुद को स्थापित कर चुके लोगों
से संपर्क कायम करने की कोशिश करनी चाहिए. उनके अनुभव जानने चाहिए. देखना चाहिए कि
वो अपना कंटेंट तैयार करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं.
सिफ़ारिश के बिना जॉब, इंटर्नशिप नहीं मिलती तो क्या करें...खुशदीप
मेरा हमेशा यही मानना रहा है. दिल की बात दिल से कही जाए तो वो लोगों के दिलों तक जाती है. पत्रकारिता या मीडिया में कामयाब होने के लिए युवा साथियों का यही ध्येय होना चाहिए. सिफारिश, भाई-भतीजावाद जैसी चीज़ें हमें योग्य होते हुए भी आगे नहीं बढ़ने दे रही तो इस तरह के निगेटिव ख्याल अपने दिल से बाहर निकाल फेंको. जहां चाह है वहा राह है. आपको अपने लिए राह खुद ही निकालनी होगी.
दशरथ मांझी हथौड़े छैनी से पहाड़ को चीर कर रास्ता बना
सकते हैं तो आप युवा भी ठान लें तो क्या नहीं कर सकते? बस अपने अंदर की
असली शक्ति को पहचानिए.
(खुश हेल्पलाइन को मेरी उम्मीद से कहीं
ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. आप भी मिशन से जुड़ना चाहते हैं और मुझसे
अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)