Youth will govern 2019 Election...खुशदीप

राजनीति को नई दिशा-परिभाषा देता युवा...

मूलतः प्रकाशित- नई दुनिया-जागरण आई नेक्स्ट, 9 अप्रैल 2014



यंगिस्तान जाग चुका है। अब उसे सिर्फ भविष्य का भारतकह कर ही टरकाया नहीं जा सकता। देश का युवा वर्ग आज के भारत को बदलने के लिए भी अधिक से अधिक भूमिका चाहता है। युवाओं के महत्व को अब देश के राजनीतिक दल भी अच्छी तरह समझ रहे हैं। शायद यही वजह है कि 2014 लोकसभा चुनाव में युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी सियासी पार्टियां एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हुए हैं। इस लोकसभा चुनाव में कुल 81 करोड़ 45 लाख मतदाता हैं। इन मतदाताओं में से 23 करोड़ दस लाख ऐसे युवा हैं जो पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।  

2011 की जनगणना के मुताबिक देश के 55 करोड़ लोग 35 साल या उससे नीचे की उम्र के हैं। इनमें 15 से 35 साल के बीच की आयु के युवाओं की हिस्सेदारी 42 करोड़ 20 लाख है। ये देश की कुल आबादी का 34.8 फीसदी है। संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत के लोगों की आयु का मध्यमान सिर्फ 29 साल होगा। यानि भारत पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा युवा लोगों का देश होगा। यहां कुल आबादी के 64 फीसदी लोग काम करने लायक आयु वर्ग के होंगे।

 भारत की तेज़ी से बढ़ती आबादी लंबे समय से बहस का विषय रही है। पिछली सदी के नौवें दशक तक बड़ी आबादी को देश के लिए बोझ माना जाता रहा। सिकुड़ते संसाधन, कुपोषण, बदहाल शिक्षा जैसी चुनौतियां का सामना करने में सरकारी तंत्र के हमेशा पसीने छूटते रहे। लेकिन पिछली सदी के अंतिम दशक में उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद देश की आबादी को लेकर दृष्टिकोण बदलने लगा। सेवा क्षेत्र के तेज़ी से बढ़ने की वजह से देश की बड़ी आबादी को कमजोरी की जगह खूबी माना जाने लगा। देश की आबादी में बड़ा हिस्सा युवा होने का ही कमाल है कि 2004 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जो सिर्फ 687 डॉलर था वो 2013 मे बढ़कर 1107 डॉलर हो गया।

अमेरिका, चीन और जापान विकास की दृष्टि से दुनिया में आज अग्रणी माने जाते हैं। लेकिन तीनों ही देशों की आबादी तेज़ी से बुढ़ाती जा रही है। ऐसे में युवाशक्ति के बूते भारत को आज सबसे ज़्यादा संभावनाओं वाला देश माना जा रहा है। देश में अर्थव्यवस्था के खुलने का ही नतीजा है कि देश के युवा वर्ग के सपनों को पंख लग गए है। आज के युवा के मिजाज को समझने के लिए उसकी तीन आकांक्षाओं को समझना ज़रूरी है। 1- युवा अपने लिए अच्छी शिक्षा और अच्छे रोज़गार के ज़रिए खुशहाल जिंदगी सुनिश्चित करना चाहता है। 2- युवा वर्ग खुद को किसी भी बंदिश में नहीं बंधते नहीं देखना चाहता। उसको धर्म की दुहाई या जात-पात के पचड़ो से भरमाया नहीं जा सकता। 3- युवा पीढ़ी के लिए भ्रष्टाचार का मतलब ये नहीं है कि किसी कर्मचारी को कुछ रुपये रिश्वत में देने पड़ते हैं। युवाओं के लिए भ्रष्टाचार ये है कि उन्हें किसी काम के लिए लाइन में लगकर अपना कीमती वक्त बर्बाद करना पड़ता है। युवा वर्ग सरकारी दफ्तरों में सिंगल विंडो से त्वरित ढंग से अपना काम होता देखना चाहता है।

युवाओं की बढ़ती उम्मीदों की वजह से राजनीतिक दलों को भी इस लोकसभा चुनाव में अपनी रणनीतियों को बदलने के लिए विवश होना पड़ा है। देश में, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, अब तक चुनाव की जो धुरी धर्म और जात-पात पर टिकी होती थी, वो अब बदल कर विकास पर केंद्रित हो गई है। ये युवावर्ग की आकांक्षाओं के दबाव की वजह से ही हुआ है।

देश के युवा और नए मतदाता का ज़ोर आज समावेशी राजनीतिक संवाद पर है। राजनेताओं तक अपनी बात पहुंचाने के लिए युवा मतदाता के पास आज सोशल मीडिया जैसा मज़बूत साधन मौजूद है। अभिव्यक्ति के इस माध्यम के सशक्त होने की वजह से राजनीतिक दलों के हर कृत्य पर आज देशवासियों की पैनी नज़र है। आज़ादी के बाद ये सुखद बदलाव है कि आम आदमी को केंद्र में रखकर अब शासन की नीतियां बनाई जाने लगी हैं। सभी राजनीतिक दल शासन को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाने की बात करने लगे हैं।

बीते तीन साल में देश में कई मौकों पर देखा गया कि जनाक्रोश को युवावर्ग ने धार दी। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ अन्ना हज़ारे की अगुवाई में आंदोलन हो या दिल्ली में निर्भया के साथ हुई बर्बरता पर रोष जताने के लिए सड़क पर उमड़ा जनसैलाब, हर जगह युवा सबसे आगे दिखे। यहां तक कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को मिली कामयाबी में भी युवा मतदाताओं का खासा हाथ रहा।

देश की युवा पीढ़ी को अब समस्याओं के समाधान के लिए वर्षों तक इंतज़ार नहीं कराया जा सकता। उसे तुरंत नतीजा चाहिए। शायद यही वजह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 49 दिन के राज के बाद ही उसकी लोकप्रियता का ग्राफ़ नीचे आ गया। ज्यादा साल नहीं हुए, नब्बे के दशक तक युवा वर्ग को चुनाव की दृष्टि से अप्रासंगिक माना जाता था। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। अब वो लोकतांत्रिक प्रकिया में अपनी ज़्यादा से ज़्यादा भागीदारी के लिए आगे आ रहा है। लोकतंत्र का ये समावेशी रूप आश्वस्त करता है कि भारतीय राजनीति आज नहीं तो कल वंशवाद और वीआईपी वर्चस्व की बेड़ियों से मुक्त होगी।
- खुशदीप सहगल






Keywords:Youth,Election, Politics

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7 टिप्पणियाँ
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  1. बूड़े गाईड छोड़ देंगे क्या युवाओं को भटकाना तब ?

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    1. सुशील जी,

      जब हर प्रोफेशन में रिटायरमेंट की उम्र है तो राजनीति में क्यों नहीं ?

      जय हिंद...

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  2. सही कहा आपने, साथ ही अब युवा विकास की सड़ी गली परिभाषा में भी नहीं पड़ना चाहता है ।

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    1. युवा ने भारत के साथ अपना भविष्य सुनहरा बनाना है तो उसे नेतृत्व अपने हाथ में लेना ही होगा...

      जय हिंद...

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  3. उत्तर
    1. जिस देश में 86 साल का व्यक्ति भी पीएम बनने की हसरत रखता है और चुनाव में ताल ठोक सकता है, वहां बदलाव तो बनता है...

      जय हिंद...

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  4. युवा ही अपना भविष्य निश्चय करेगा।

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