...यहां सब के सर पे सलीब है...खुशदीप

अलविदा जग'जीत'...

8 फरवरी 1941---10 अक्टूबर 2011
 कोई दोस्त है न रक़ीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है...

वो जो इश्क था, वो जूनून था,
ये जो हिज्र है ये नसीब है...

यहाँ किसका चेहरा पढ़ करूं,
यहाँ कौन इतना क़रीब है...


मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
यहाँ सब के सर पे सलीब है...


- कलाम-राणा सहरी, आवाज़-संगीत- जगजीत सिंह

रक़ीब...दुश्मन
सलीब...क्रॉस
हिज्र...वियोग, बिछुड़ना

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12 टिप्पणियाँ
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  1. मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
    यहाँ सब के सर पे सलीब है...

    Alvida ...

    http://hbfint.blogspot.com/2011/10/12-tajmahal.html

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  2. विनम्र श्रद्धांजलि। भगवान बुरी दुनिया से अच्छे लोगों को उठाने में लगा है।

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  3. बहुत-से बर्फ पिघले थे, कई बाक़ी हैं अब तक / हमारे होंठों पे तारी है उदास मुस्कुराहटों के रंग / अभी तक याद आती हैं, कागज़ की किश्तियां / बारिशों के पानियों में, तुम्हारी आवाज़ की छपाक़... / जब दर्द ज़िंदा है, है तड़प की तासीर हाज़िर.../ मोहब्बतों के जख़्म बाक़ी हैं और बिछोह की टेर भी जारी.../ बहुत नाराज़ हूं तुमसे...अकेला छोड़ क्यों चल दिए जगजीत? ... मेरी मोहब्बत, दर्द, चाहत, ज़ुदाई... सब के हमराज़, तुम्हें श्रद्धांजलि...!

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  4. बहुत दिन पहले कहीं पढ़ा था की अगर भगवान की आवाज़ हमें सुनने को मिलती तो वो शायद जगजीत सिंह जैसी ही होती. जगजीत सिंह को सुनते हुए एक ज़माना हो गया है. शुरुआत युवावस्था के मीठे ख्यालों के साथ साथ ऐसे ही मानो नशे में डूबी हुई गहरी आवाज़ के साथ जो हुई आज ४९ वर्ष की अवस्था में भी उसमें रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया. शायद यही होता है अमर स्वर जो कभी न धुंधलाए. हम तुम्हारे बिना बहुत उदास हैं हमारे प्यारे जगजीत.

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  5. वो जो इश्क था, वो जूनून था,
    ये जो हिज्र है ये नसीब है...

    विनम्र श्रद्धांजली

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  6. हिंदुस्तान के ग़ज़लों और गीतों के शहंशाह जगजीत सिंह जी के निधन से संगीत संसार अधूरा सा हो गया है ।
    बेहतरीन गायक थे जिनका गाने का सहज अंदाज़ मन को बड़ा सकून देता था ।
    उनकी कितनी ही ग़ज़लें हैं जो दिल को छू जाती हैं । उनकी कमी को पूरा नहीं किया जा सकता । विनम्र श्रधांजलि ।

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  7. गजल का रहनुमा चला गया...
    श्रध्‍दासुमन.....

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  8. मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
    यहाँ सब के सर पे सलीब है...
    gazal ki duniyan be-rounak ho gai... ....alvida ...

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