Watch: ‘शुभ सुख चैन की बरखा’ और राष्ट्रगान का सच!



सोशल मीडिया पर नेताजी का नाम लेकर वायरल पोस्ट तथ्यात्मक तौर पर ग़लत, गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के राष्ट्रगान संस्करण में बदलाव नहीं किया था, न ही गुरुदेव ने भारतो भाग्यो विधाता को किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा था, हक़ीक़त ये है कि नेताजी ने गुरुदेव के बांग्ला ब्रह्मो स्तुति-गीत का हिन्दी-उर्दू अनुवाद तैयार कराया था




सोशल मीडिया पर ऐसी कुछ पोस्ट देखने को मिलती हैं जिसमें भारत के राष्ट्रगान जन गण मन को लेकर भ्रामक दावा किया गया है कि प्रोविजनल गर्वमेंट ऑफ फ्री इंडिया का राष्ट्रगान शुभ सुख चैन की बरखा है जिसे आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस गाया करते थे और बाद में जिसमें बदलाव करके गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने किंग जॉर्ज पंचम के स्वागत में बनवाया था और जिसे ही आज हर सरकार राष्ट्रगान की मान्यता दे कर गवा रही है. फेसबुक ने ऐसी पोस्ट को स्वतंत्र फैक्ट चेकर्स की ओर से तथ्यात्मक तौर पर गलत पाए जाने की वजह से अब इन पोस्ट के ऊपर उसका मेंशन कर दिया है. 


यहां सबसे पहले तो ये बताना ज़रूरी है कि आज़ाद हिन्द फौज का गठन रास बिहारी बोस ने 1942 में किया था और जिसे 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने पुनर्गठित किया था. वहीं गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर का निधन 7  अगस्त 1941 को अस्सी साल की उम्र में हो गया था. इसलिए ये कहना ग़लत है कि नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के साथ जिस राष्ट्रगान शुभ सुख चैन को गाया करते थे, उसमें गुरुदेव न बदलाव करके किंग जार्ज प्रथम के स्वागत में बनवाया था. पहली बात तो जिस किंग जार्ज प्रथम का ज़िक्र किया जा रहा है उनका दिल्ली दरबार में भारत के सम्राट के तौर पर राज्याभिषेक दिल्ली दरबार में 12 दिसंबर, 1911 में हुआ था. साफ है कि किंग जार्ज पंचम से जुड़ी घटनाएं आज़ाद हिन्द फौज के गठन से तीन दशक पहले ही हो गई थीं, इसलिए ये कहना भी ग़लत है कि गुरुदेव ने  आज़ाद हिन्द फौज के शुभ सुख चैन में बदलाव करके उसे किंग जार्ज प्रथम के स्वागत के लिए बनवाया. इसका खंडन खुद रवींद्र नाथ टैगोर ने 10 नवंबर 1937 को पुलिन बिहारी सेन को लिखे एक पत्र में किया था. टैगोर ने तब साफ किया था कि भारतो भाग्यो विधाता में युगों युगों से भारत के रथ के उतार चढ़ाव का जिक्र था जो किसी जार्ज प्रथम या किसी भी जार्ज के लिए नहीं हो सकता था.

 अब आपको राष्ट्रगान जन गण मन की पूरी कहानी बताते हैं जिससे कोई भ्रम की स्थिति न रहे. ये तथ्य है कि किंग जार्ज़ पंचम का जब राज्याभिषेक हुआ, उससे एक दिन पहले यानि 11 दिसंबर 1911 को रवींद्र नाथ टैगोर ने जन गण मन को भारतो भाग्यो विधाता स्तुति गीत के तौर पर लिखा था. जन गण मन को पहली बार सार्वजनिक तौर पर 27 दिसंबर, 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सालाना अधिवेशन के दूसरे दिन रविंद्र नाथ टैगोर की भतीजी सरला देवी चौधुरानी ने कुछ सहेलियों के साथ गाया था. इसका नोटेशन या संकेतन टैगोर ने 1919 में सेट किया जिसे आज तक मान्य माना जाता है.

जन गण मन जो आज गाया जाता है वो टैगौर के लिखे ब्रह्मो स्तुति गीत के पांच स्टैंजा में से सिर्फ पहला लिया एक स्टैंजा है. मूल गीत में संस्कृतनिष्ठ बांग्ला के पांच स्टैंजा हैं. जो देश के स्वाधीनता संघर्ष, संस्कृति और मूल्यों को दर्शाते हैं. जन गण मन का पूरा वर्शन यहां सुन सकते हैं...




नेताजी और आजाद हिन्द फौज का नाम लेकर जिस शुभ सुख चैन की बरखा की बात की जाती है वो टैगोर के 1911 में लिखे ब्रह्मो स्तुति गीत भारतो भाग्यो विधाता का ही हिन्दी-उर्दू संस्करण है जिसका अनुवाद नेताजी ने खुद आईएनए के कैप्टन आबिद अली और मुमताज हुसैन के साथ मिलकर किया था. इसकी धुन आईएनए के कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने तैयार की थी. एक इंटरव्यू में कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने कहा था कि नेताजी की ओर से धुन को बहुत महत्व दिया गया था जिससे कि वो ऐसी फौज में जोश भरने का काम कर सके जो आखिरी सांस तक लड़ने के लिए तैयार है. राम सिंह ठाकुर के मुताबिक नेताजी ने सिंगापुर की कैथे बिल्डिंग में स्थित आईएनए ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन में आकर कहा था कि रवींद्र नाथ टैगोर के मूल बंगाली से अनुवाद किए गीत पर ऐसी मार्शल धुन तैयार करूं जो लोगों को सोने ना दें बल्कि उन्हें भी जगा दे जो सो रहे हैं. नेताजी ने इस गीत को प्रोविजनल गवर्मेंट ऑफ फ्री इंडिया की नेशनल एंथेम के तौर पर 1943 में मान्यता दी. इस गर्वमेंट को भारत से ब्रिटिश रूल को समाप्त करने के उद्देश्य से बनाया गया था.

जन गण मन की फाइनल धुन को किसने तैयार किया था, इसको लेकर बरसों से विवाद चला आ रहा है. जिसे आज भारत के राष्ट्रीय गान के तौर पर जाना जाता है. जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि ब्रह्मो स्तुति गीत भारतो भाग्यो विधाता को पहली बार 11 दिसंबर 1911 को गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने लिखा. हालांकि आठ साल बाद फरवरी 1919 में टैगोर की कम्पोजिशन को आइरिश महिला मार्ग्रेट कज़िन्स ने नई धुन दी. 1919 में टैगोर आंध्र प्रदेश के मदनापल्ले में बिसेंट थिओसोफिकल कॉलेज में आए. कॉलेज के प्रिसिंपल जेम्स हेनरी कजिन्स और उनकी पत्नी मार्ग्रेट कजिन्स ने उन्हें वहां रिसीव किया. कविता सेशन के दौरान टैगोर ने छात्रों और कज़िन्स के सामने धुन सुनाई. जब मार्गेट कज़िन्स को कविता के बारे में बताया गया तो उन्होंने धुन को नए तरीके से कम्पोज करने की इच्छा जताई.  राष्ट्रगान की स्टोरी ने यहां से नया ट्विट्स लिया. कज़िन्स की ओर से जन गण मन की सेट की गई धुन धीमी थी. वैसे ही जैसे कि टैगौर ने इसे गाया था. आज हम जो राष्ट्रगान का तेज वर्शन गाते हैं उसके पीछे ब्रिटिश संगीतकार हर्बर्ट मुर्रिल को श्रेय दिया जा सकता है.  मुरिल ने राष्ट्रगान के मार्शल ऑर्कस्ट्रा वर्शन को तैयार किया.  राष्ट्रगान और शुभ सुख चैन की धुनों को समानता उनकी मार्शल नेचर को लेकर है. बोस आजाद हिन्द फौज  के लिए मार्चिंग सॉन्ग चाहते थे. इसी को ध्यान में रखते हुए शुभ सुख चैन के म्यूजिक को सेट किया गया.  जन गण मन के बारे में भी यही बात कही जा सकती है क्योंकि हर्बर्ट मुर्रिल आर्केस्ट्रा ने आजाद भारत के राष्ट्र गान का मार्शल स्कोर सेट किया. लेकिन दोनों ने ही रबिन्द्र नाथ टैगोर की हाइम भारतो भाग्यो बिधाता से मूल धुन उधार ली, इसको लेकर कहीं कोई संशय़ नहीं है.

जन गण मन की पहली म्यूजिकल कम्पोजिशन 11 सितंबर 1942 को हैम्बर्ग जर्मनी में सुनाई गई थी.तब इसे गाया नहीं गया था. बाद में नेताजी ने इसे आज़ाद भारत का राष्ट्रगान घोषित कर दिया. हालांकि तब तक इसे कोई आधिकारिक दर्जा नहीं मिला था.

जन गण मन को आधिकारिक दर्जा 1950 में मिला जब 24 जनवरी को गीत को इसके हिन्दी वर्शन में भारत की संविधान सभा ने स्वीकार किया और भारत का आधिकारिक तौर पर राष्ट्र गान घोषित किया. इसे गाने की अवधि 52 सेकेंड की है. इसका एक बीस सेकेंड का छोटा वर्शन भी है जिसमें पहली और आखिरी पंक्तियों को लिया जाता है. हालांकि इसका आम तौर पर इस्तेमाल नहीं होता, ये ज़रूरी नहीं कि राष्ट्रगान बजते समय हर कोई इसे साथ गाए लेकिन राष्ट्रगान बजते समय सावधान की मुद्रा में न खड़े रहना भी राष्ट्रगान के प्रति सम्मान का सूचक माना जाता है. हां अगर कोई राष्ट्रगान बजते वक्त जानबूझकर व्यवधान पैदा करता है तो वो कानून के मुताबिक दंड का पात्र है.


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