Jano Fact: ये बच्चे भारत के नहीं पाकिस्तान के हैं!



टीन-कनस्तर से देशभक्ति की धुन बजाते बच्चों का क्या है सच? बच्चे भारत के किसी गांव के नहीं, पाकिस्तान के हुंजा के हैं, स्वतंत्रता दिवस 2021 के बाद अभिनेता अनुपम खेर ने भी शेयर किया था ये वीडियो



नई दिल्ली (28 जनवरी)।

 26 जनवरी हो या 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय पर्व हो या 2 अक्टूबर को गांधी जयंती, पिछले कुछ अर्से से देखा जा रहा है कि ऐसे मौकों पर एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जाने लगता है. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि ग्रामीण परिवेश के कुछ बच्चे टीन-कनस्तर और कबाड़ के साथ संगीत निकालकर पूरे जोश के साथ ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तानी’ धुन बजा रहे हैं.

इस गणतंत्र दिवस पर भी ये वीडियो वॉट्सऐप आदि पर शेयर किया जाने लगा. पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के बाद 18 अगस्त को जाने-माने अभिनेता अनुपम खेर ने इस वीडियो को शेयर किए जाने के साथ लिखा था- भारत के किसी गाँव में कुछ बच्चो ने मिलकर अपना एक बैंड तैयार किया है।इस बैंड के पास कोई आधुनिक साज़ो सामान नहीं है।और इन्होंने धुन भी क्या चुनी है! मिलिट्री बैंड की।क्योंकि ये जानते हैं कि “असली पावर दिल में होती है!!” इन बच्चों की जय हो।किधर हैं ये बच्चे?

आइए, अब आपको वीडियो में जो बच्चे दिख रहे हैं, जो धुन सुनाई दे रही है, उसकी हक़ीक़त बताते हैं. ये धुन दरअसल, देशभक्ति के प्रसिद्ध गाने ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की’- है. ये गाना फिल्म जागृति (1954) के लिए कवि प्रदीप ने लिखा और गाया था. इसे कम्पोज़ हेमन्त कुमार ने किया था.

जागृति फिल्म की कॉपी करके ही पाकिस्तान में कुछ साल बाद फिल्म बेदारी बनाई गई. इस फिल्म में जागृति की धुनों को भी हू-ब-हू उठा लिया गया. जैसे कि ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की’ को बदल कर ‘आओ बच्चों तुम्हे सैर कराएं पाकिस्तान की’ में बदल दिया गया. जब ये पता चला कि ये फिल्म भारतीय फिल्म की नकल करके बनाई गई है तो इस पर पाकिस्तान में बैन लगा दिया गया. लेकिन इसके गाने अब भी यूट्यूब पर देखे जा सकते हैं.

तो जो वीडियो भारत के बच्चों का बता कर सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, वो बच्चे असल में पाकिस्तान के हैं और फिल्म बेदारी के गाने, ‘आओ बच्चों तुम्हें सैर कराएं पाकिस्तान की’ धुन बजा रहे थे. धुन भारत के प्रसिद्ध देशभक्ति के गाने से मिलने की वजह से ही अनुपम खेर से भी चूक हो गई. वो बच्चों से प्रभावित हुए और ट्वीट कर डाला.

लेकिन पाकिस्तान के एजुकेशन एक्टिविस्ट और सिंगर शहज़ाद रॉय ने अनुपम खेर के ट्वीट पर 27 अगस्त 2021 को रिप्लाई में लिखा- "शुक्रिया अनुपम खेर सर, वीडियो को शेयर करने के लिए जो मैंने कुछ दिन पहले शेयर किया था. आपने लिखा कि ये प्रतिभावान बच्चे भारत के हैं. एक विनम्र संशोधन है कि ये बच्चे हुंजा, पाकिस्तान से हैं, मैं उनके टच में हूं और मैंने उन्हें जिन म्युजिकल इंस्ट्रूमेंट्स की ज़रूरत थी, वो भिजवाए हैं."

इस पर अनुपम खेर ने तत्काल ग़लती की ओर ध्यान दिलाने के लिए शहज़ाद का शुक्रिया जताया. अनुपम खेर ने ये भी लिखा कि उन्हें वीडियो बहुत पसंद आया था. उन्होंने बच्चों के लिए काम करने पर शहज़ाद को शुभकामनाएं भी दीं.



हाल-फिलहाल में देखा है कि देशभक्ति के कुछ ऐसे गाने हैं जो एक मुल्क में हिट होते हैं, तो दूसरे मुल्क में भी वो लोकप्रिय होते हैं. जैसे कि बॉलिवुड की फिल्म केसरी (2019) के लिए मनोज मुंतज़िर का लिखा खूबसूरत गीत- ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’ बहुत पसंद किया गया. इसी गाने को पाकिस्तान में बलूच गायक वहाब अली बुगती भी गाते दिखाई दिए.


 


2018 में मेघना गुलजार की बनाई फिल्म ‘राजी’ में उनके पिता गुलजार का लिखा एक गाना था- ‘ऐ वतन, वतन मेरे आबाद रहे तू, मैं जहां रहूं जहां में याद रहे तू’. फिल्म में सीक्वेंस ऐसा था कि पाकिस्तान के नेशनल डे के लिए टीचर्स की ओर से सिखाए इस गीत को बच्चे गाते हैं. गीत ऐसा है, इसे कहीं भी गाया जा सकता है, क्योंकि इसमें किसी मुल्क़ का नाम नहीं है.


अब जैसे फिल्म ‘काबुलीवाला’ (1961) के गीत को देखिए- ए मेरे प्यारे वतन, ए मेरे बिछड़े चमन, तुझ पे दिल कुर्बान. भारत में हम बचपन से ही इस गीत को गुनगुनाते आए हैं. दरअसल हिन्दी फिल्म ‘काबुलीवाला’ गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की 1892 में लिखी कहानी पर आधारित  थी. इसमें बलराज साहनी ने काबुल से कलकत्ता आकर ड्राई फ्रूट्स बेचने वाले पठान रहमत का लीड रोल निभाया था. रहमत को कलकत्ता में चार साल की एक बच्ची में खुद की बेटी का अक़्स नज़र आता है.


बलराज साहनी पर फिल्माया काबुलीवाला का गीत अमर हो गया. प्रेम धवन के लिखे इस गीत को सलिल चौधरी ने कम्पोज किया और मन्ना डे ने अपनी आवाज़ से इसमें रूह भर दी. ज़ाहिर है इस फिल्म में एक पठान के अपने मुल्क़ अफ़गानिस्तान से बिछड़ने का दर्द शिद्दत के साथ ज़ुबां पर आया था-


अपने मुल्क़ की कसक क्या होती है ये उनसे पूछनी चाहिए जिन्हें अपने कामकाज के लिए मुल्क़ से बाहर रहना पड़ता है. विदेश में जो भारतीय रहते हैं, वही सही ढंग से जान सकते हैं, अपनी जड़ों से दूर रहने का दर्द.


“You can take an Indian out of India, but you can never take India out of an Indian”


ब्यूरो रिपोर्ट, देशनामा

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