Watch: बिन ब्लाउज़ साड़ी: फैशन बनाम परम्परा

 

मेहंदी ब्लाउज़ डिजाइन (इंस्टाग्राम)


सोशल मीडिया पर मेहंदी से ब्लाउज़ का पैटर्न बनवा कर साड़ी पहने महिला की तस्वीर-वीडियो वायरल, अतीत में मिथिला समेत देश के कई हिस्सों में पूर्व में रह चुका है बिना सिलाई वस्त्र पहनने का रिवाज, बिहार के दरभंगा में हुआ एकवस्त्र फैशन शो, बिना ब्लाउज़ साड़ी पहने स्टेज पर आईं 17 मॉडल्स



नई दिल्ली (18 दिसंबर)। 

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर-वीडियो को बहुत शेयर किया जा रहा है जिसमें एक महिला सफेद साड़ी में दिखाई देती है जिसने शरीर के ऊपरी हिस्से पर मेहंदी से ऐसा पैटर्न बनवा रखा है जिससे ब्लाऊज होने का आभास होता है. थॉनोस जट्ट नाम से इंस्टाग्रैम हैंडल पर पोस्ट किए गए वीडियो में पहले महिला की बैक नज़र आती है फिर वो मुड़ कर कैमरे की ओर देखकर मुस्कुराती है.

ब्यूटी इज़ इन द आईस ऑफ ए बिहोल्डर वाली कहावत को सही साबित करते हुए सोशल मीडिया यूज़र्स इस वीडियो पर अपने अपने नज़रिए से कॉमेंट करने लगे. किसी को इसमें गज़ब की क्रिएटिविटी नज़र आई तो किसी ने इसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया.

अब आपको इससे हट कर बिहार के दरभंगा ज़िले में ले चलते हैं. जलजबॉय नाम से अरविंद झा के वैरीफाइड ट्विटर हैंडल पर 14 दिसंबर को यहां हुए एकवस्त्र नाम से हुए फैशन शो का वीडियो शेयर किया गया. फैशन शो का आयोजन मधुबनी लिट्रेचर फैस्टिवल के तहत हुआ. दरभंगा के कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में इस फैशन शो का आयोजन किया गया.

इससे एक दिन पहले इसी ट्विटर हैंडल से मिथिला के पत्रकारों से इस अनोखे इवेंट को कवर करने का आग्रह किया गया था. साथ ही लिखा गया था कि मिथिला में जो पहले कभी नहीं देखा गया- एक फैशन शो जिसमें स्थानीय कपड़ों का इस्तेमाल, बिना सिला पहनने की अवधारणा, वन पीस साड़ी को वैदिक तरीके से पहने देखा जा सकेगा.  

 बिना सिले कपड़े को एकवस्त्र या अखंड वस्त्र कुछ भी नाम दिया जा सकता है. दरंभगा में ये ऐसा फैशन शो रहा जिसमें हिस्सा लेने वाली मॉडल्स बिना ब्लाउज़ साड़ी पहने स्टेज पर आईं.

 मिथिला में पूजा-पाठ, शादी-संस्कार जैसे अवसरों पर महिला और पुरुष अखंड वस्त्र अब भी पहने देखे जा सकते हैं. इसे शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. अतीत में मिथिला में सिलाई वाले कपड़े नहीं पहने जाते थे, बल्कि बुनकरों की ओर से तैयार कपड़े पहनने का ही प्रचलन था. एकवस्त्र फैशन शो के माध्यम से मिथिला के उसी गौरवशाली इतिहास को दिखाया गया जिसमें सादगी और कॉस्मेटिक्स की जगह नैसर्गिक सुंदरता पर ही ज़ोर रहता था. फैशन शो में हिस्सा लेने वाली 17 मॉडल्स में दरभंगा की दो स्थानीय युवतियां भी शामिल थी. दरभंगा के अलावा पटना, बेंगलुरू और मुंबई से भी आईं मॉडल्स ने इस फैशन शो में शिरकत कीं. मुंबई से आईं एक्ट्रेस सोनल झा इस आयोजन में शो स्टॉपर रहीं. सोनल के मुताबिक इस तरह के वस्त्र प्राचीन काल के रहन-सहन को दिखाते हैं, उस समय की सादगी अब भी मौजूद हैं.

मैथिली परंपराओं के जानकारों का कहना है कि पहले अखंड या एकवस्त्र के तौर पर साड़ी पहनने का ही रिवाज़ था, सिलाई का प्रचलन मुस्लिमों की ओर से शुरू हुआ. वक्त बीतने के साथ साड़ी के साथ ब्लाऊज पहनने का प्रचलन बढ़ा. इसके बाद धीरे धीरे एकवस्त्र या अखंड साड़ी की परंपरा हाशिए पर खिसकती चली गई. मिथिला ही नहीं देश के कई और हिस्सों में भी बिना ब्लाउज़ साड़ी पहनने का चलन रहा है. शुंग काल की टेराकोटा की मूर्तियों को देखा जाए तो उनमें भी महिलाएं साड़ी जैसे एकवस्त्र में बिना ब्लाउज़ ही दिखती हैं.

 

 

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