इनसान को ज़िंदगी में कितना कुछ भी न मिल जाए लेकिन उसकी मृगतृष्णा कभी ख़त्म नहीं होती. और...और...और हासिल करने के लिए वो तब तक दौड़ता रहता है जब तक उसका शरीर साथ देना बंद नहीं कर देता. इनसान दूसरों से होड़ करता है, इसीलिए हमेशा दुखी रहता है. वो ये नहीं देखता कि ऊपर वाले ने उसे क्या क्या दे रखा है. वो हमेशा ये देखता है कि दूसरों के पास क्या क्या है जो उसके पास नहीं.
संतोष क्या होता है, ये सीखना है तो इसके लिए मोटी फीस लेने वाले मोटिवेटर्स के पास जाने की ज़रूरत नहीं. बस जमशेदपुर में रिक्शा चलाने वाले बालेश्वर दास की बातों को सुन लीजिए. बालेश्वर सवारी की राह देखते देखते सड़क किनारे अपने रिक्शा पर ही बैठे हुए थे. उनसे देशनामा के लिए रिपोर्टर दीपिका प्रधान ने बात की. जो कुछ भी बालेश्वर ने कहा, हम उसे सीधे आप तक पहुंचाते हैं. सच्चे मन से बिना लागलपेट बालेश्वर ने जो भी कहा वो उन लोगों के लिए बड़ा फ़लसफ़ा है जो सब कुछ होने के बाद भी साम, दाम, दंड, भेद हर वक़्त एक ही माला जपते रहते हैं, ये दिल मांगे मोर.
बालेश्वर जी की महज़ 100-200 रुपए दिहाड़ी होती है, उसमें से भी रिक्शा मालिक को रिक्शे का दैनिक भाड़ा देना होता है. गांव में पत्नी और दो बेटों का परिवार है. तमाम दिक्कतों के बावजूद बालेश्वर जी को किसी से कोई शिकायत नहीं. आइए उन्हीं के मुंह से सुनते हैं ज़िंदगी जीने का फ़लसफ़ा-
जो भी मिले यहाँ, जितना मिले
जवाब देंहटाएंउसी में खुश हो ले
पूरा नहीं होता किसी का
यहाँ हर सपन
गाओ मेरे मन…
मिले जो गम तो क्या हुआ
बहारों के गीत सजा ले
बुझे कोई आशा का दीया
तो फिर से जला ले
दुखों से तू हार न राही
किए जा जतन
गाओ मेरे मन…
सच है हँस के काम करो या रो कर करना तो वही है फिर क्या रोना और कब तक रोना
बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
शुक्रिया कविता जी...
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