दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड की वेबसाइट से साभार |
‘देशनामा’ पर आज़ादी पर विमर्श की यह तीसरी और आख़िरी कड़ी है. पहली कड़ी में आपने आज़ादी के मायने पर अलग-अलग राय जानी. दूसरी कड़ी का सवाल था कि देश में एक चीज़ बदलने को कहा जाए तो आप क्या बदलेंगे. आज तीसरी कड़ी के लिए सवाल था- 1947 से अब तक देश में विकास का कौन सा सबसे बड़ा काम हुआ है?
आज
पोस्ट का थोड़ा क्रम बदलता हूं. पहले मैं अपनी राय बता देता हूं. फिर ब्लॉगर
बिरादरी, मित्रों, खुश_हेल्पलाइन
से जुड़े युवा साथियों की ओर से मिली प्रतिक्रियाओं का ज़िक्र करूंगा.
हमारा
देश विशाल आबादी वाला है. 1947 में देश की आबादी 33 करोड़ थी जो आज तब से एक अरब
से भी ज़्यादा बढ़ चुकी है. उस वक्त 88 रुपए में एक तोला (10 ग्राम) सोना खरीदा जा
सकता था. आज 10 ग्राम सोने की कीमत 48-49 हज़ार रुपए के करीब है. आज़ादी के बाद के
74 साल में देश काफ़ी बदला है. औद्योगीकरण,
हरित क्रांति, दुग्ध क्रांति, स्पेस रिसर्च, परमाणु परीक्षण, कंप्यूटर क्रांति,
संचार (कम्युनिकेशन) क्रांति, हाईवे निर्माण, ट्रांसपोर्टेशन- सभी कुछ इस देश ने
देखा. अंग्रेज़ जो रेलवे का जाल बिछा गए थे, उसे बढ़ाया गया.
मेरी राय में आज़ादी के बाद विकास का जो सबसे बड़ा और अच्छा काम कामयाबी के साथ अमल में आया वो है विभिन्न शहरों में मेट्रो का संचालन. ख़ास तौर पर राजधानी दिल्ली में.
24 दिसंबर 2002 को दिल्ली मेट्रो की
शुरुआत तीस हजारी-शाहदरा लाइन के साथ
हुई. दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) ने दिल्ली-एनसीआर में आज 285
स्टेशनों के साथ 389 किलोमीटर का नेटवर्क खड़ा कर लिया है, इसमें नोएडा-ग्रेटर
नोएडा कॉरिडोर और रैपिड मेट्रो गुरुग्राम भी शामिल है. कोरोना की दस्तक से पहले तक
दिल्ली मेट्रो पर प्रति दिन 57 लाख यात्री सफ़र करते थे. पिछले साल 22 मार्च से
लेकर 7 सितंबर तक मेट्रो संचालन पूरी तरह बंद रहा. इसके बाद आंशिक तौर पर कोरोना सुरक्षा
प्रोटोकॉल के साथ संचालन शुरू हुआ. दिल्ली इकोनॉमिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक इस
साल मार्च में 10 लाख यात्री हर दिन से मेट्रो से सफर कर रहे थे.
दिल्ली
मेट्रो नेटवर्क न खड़ा हुआ होता तो आज दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक का कैसा बुरा
हाल होता समझा जा सकता है. दिल्ली मेट्रो ने हर साल 6.3 लाख टन प्रदूषण राजधानी
में घटाने में मदद की. इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र ने डीएमआरसी को दुनिया के पहले
मेट्रो रेल सिस्टम के तौर पर चुना जिसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के
लिए कार्बन क्रेडिट्स दिया गया. इसके अलावा दिल्ली मेट्रो सुरक्षा और स्वच्छता की
भी मिसाल है. अचूक सुरक्षा व्यवस्था की वजह से दो दशक में दिल्ली मेट्रो ने कोई बड़ी
अप्रिय घटना नहीं देखी. जिस देश में हम गंदगी वाले रेलवे स्टेशन देखने के आदि थे,
वहीं दिल्ली मेट्रो ने स्वच्छता के मामले में भी मिसाल कायम की.
ये
सब संभव हुआ मेट्रो की इस सफल गाथा के सूत्रधार ई श्रीधरन की वजह से. मेट्रोमैन के नाम से मशहूर श्रीधरन ने मेट्रो
को खड़ा करने के लिए जो किया, अगर उसका अनुसरण हर फील्ड में किया जाए तो देश का
नक्शा ही पलट जाए. ये वहीं श्रीधरन हैं जिन्होंने दिल्ली
में मेट्रो का एक पिल्लर गिरने पर इस्तीफ़ा देने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाई
थी. लेकिन सरकार के पास उनका विकल्प कहां से आता, बड़ी मुश्किल से श्रीधरन इस्तीफ़ा वापस
लेने को तैयार हुए. इन्हीं श्रीधरन को हैदराबाद मेट्रो में सलाहकार बनने के लिए
न्यौता दिया गया था, लेकिन
श्रीधरन ने प्रोजेक्ट रिपोर्ट देखते ही उसमें भ्रष्टाचार को सूंघ लिया और साफ तौर
पर उससे जुड़ने से इनकार कर दिया था. 88 साल की
उम्र में श्रीधरन ने इस साल बीजेपी के टिकट पर केरल विधानसभा की पलक्कड सीट से
चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के शफी पाराम्बिल से 3,859 वोट
से चुनाव हार गए.
अब जानिए ब्लॉगर बिरादरी, मित्रों,
खुश_हेल्पलाइन से जुड़े युवा
साथियों ने 1947 के बाद देश में किसे विकास के सबसे बड़े काम के तौर पर चुना.
राहुल
त्रिपाठी- कनेक्टिविटी
(एक सड़क से दूसरी सड़क को जोड़ना)
जितेंद्र
कुमार भगतिया- कनेक्टिविटी
धीरेंद्र
वीर सिंह- फ्री
राशन के साथ फ्री थैला
विवेक
शुक्ला- आई टी सेक्टर की उड़ान
संगीता
पुरी- तकनीकी
विकास
अमित
नागर- लोकतंत्र
आलोक
शर्मा- तकनीकी
विकास
हरिवंश शर्मा- हमारी उम्र में वृद्धि हुई, बहुत कुछ खोया, कुछ कुछ पाया, "कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे"
प्रमोद राय- सूचना और संचार
सुशोभित सिन्हा- केंद्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय, जहां से शिक्षा की
मजबूत नींव डाली जाती रही है.
चंद्र
मोहन गुप्ता- समय रहते कंप्यूटर/ संचार/ सोलर इनर्जी क्रांति
प्रवीण
शाह- मंडल आयोग
प्रखर शर्मा- विकास तो सतत प्रक्रिया है विकास के कारण ही समुद्र से द्वीप और द्वीप से
देश, देशों के समूह से महाद्वीप बने. अतः विकास सतत होता है, हां राजनीतिक बात
करें तो विकास 1947 से अबतक सबसे ज़्यादा नकारात्मक विकास
प्रदूषण का हुआ और सकारात्मक विकास सर्वाधिक संचार माध्यम का हुआ.
सरवत
जमाल- सूचना
का अधिकार
शाहनवाज़- 1947 के बाद सबसे बड़ा विकास खासतौर
पर आज़ादी के शुरुआती दौर हमारे देश के सरकारी शिक्षण संस्थानों का होना है, हालाँकि
इसे और कई गुना तेज़ और उन्नत किया जाना चाहिए।
रेखा
श्रीवास्तव- 1947 के बाद सबसे
बड़ा विकास यह है कि हमको हर क्षेत्र में विश्व के पटल पर एक सम्मानजनक स्थान
प्राप्त है.
आकाश देव शर्मा- इंटरनेट में विस्तार
अमित कुमार श्रीवास्तव- कनेक्टिविटी यानि संपर्क
प्रवीण द्वारी- सशक्त भारत निर्माण की ओर अग्रसर
अर्चना
चावजी- संपर्क,संचार,सफाई।
निर्मला
कपिला- 1947
के बाद एक मजबूत भारत की नींव रखी गई. जिस देश में एक सूई तक नहीं बनती थी उस देश
ने हजारों कारखाने, डैम, सड़कें, रेलवे, एम्स जैसे मेडिकल कालेज, साइंस रिसर्च,
एयरपोर्ट के तौर पर विकास को देखा. बैलगाड़ी पर माल ढोने वाले देश को चंद्रमा तक
पहुंचा दिया. खेतीबाड़ी पंचायत सिस्टम मजबूत हुए. लेकिन मौजूदा सरकार के बारे में
कहने से मन क्षोभ से भर उठता है.
जसविंदर बिंद्रा- हरित क्रांति
अजित वडनेरकर- स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी
सुदेश आर्या- नाले की गैस में चाय पकौड़े तलना
रविंद्र
प्रभात- देश
में सर्वत्र अराजकता का माहौल है और अराजकता हमेशा गुलामी या विनाश की ओर ले जाती
है. 1947 के बाद विकास तो हुआ है, मगर राम भरोसे. अन्य देशों से तुलना
करें तो मेरे विचार से भारत का विकास नगण्य दिखता है.
सुनील
हंचोरिया- संचार,सार्वजनिक परिवहन
यशवंत
माथुर- IIMs, AIIMS की स्थापना और कंप्यूटराइजेशन
मतभिन्नता इस सवाल पर भी साफ़ है जो लोकतंत्र में होनी भी चाहिए. मुझे खुशी है कि आज़ादी से जुड़े तीन सवालों पर बहुत ही सार्थक विमर्श हुआ. ये सभी के सहयोग के बिना संभव नहीं था. सभी का दिल से शुक्रिया.
जय भारत...
(#Khush_Helpline को मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा मुझसे अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)
विकास एक सतत प्रक्रिया है। किसी जमाने मे हम दिल्ली में तांगे से घूमे फिर फटफट से और आज मेट्रो और AC लो फ्लोर बसों से भी। चांदनी चौक में ट्राम चलते तो नही देखी लेकिन उसकी पटरी देखी।
जवाब देंहटाएंआगे भी विकास होता रहेगा। कभी विकास बिना ढिंढोरा पीटे होता था अब गा बजा कर होता है।
बस भावना सही होनी चाहिए...मकसद वाकई लोकहित है या बस आत्मप्रचार...
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