राज कपूर के करियर की शुरुआत से बहुत कुछ सीख सकते हैं युवा...खुशदीप


करियर की शुरुआत हो या आत्मनिर्भर बनने का  सवाल, युवा साथियों को ‘The greatest show-man of Indian Cinema’ राज कपूर के करियर के स्टार्ट से काफ़ी कुछ सीखने को मिल सकता है. आज सुबह मैंने राज कपूर की एक शुरुआती फिल्म वाल्मिकी’ (1946)  की एक तस्वीर फेसबुक पर अपलोड की और सबसे इसे पहचानने के लिए कहा. इस तस्वीर में युवा राज कपूर नारद के वेश में बिना मूच्छ के थे, इसलिए उन्हें पहचानना मुश्किल था. लेकिन पटना के Vinod Kanth  सर ने सही पहचान लिया.

Source: MyViewsOnBollywood

राज कपूर के भारतीय सिनेमा में स्थापित होने के बाद कई विवाद भी उनसे जुड़े. लेकिन फिल्मकार के तौर पर उनकी विलक्षण प्रतिभा को कोई नकार नहीं सकता. लेकिन यहां मैं युवाओं से कहना चाहूंगा कि वो सिर्फ इस बात पर फोकस करें कि राज कपूर ने किशोरावस्था और करियर की शुरुआत में युवा के नाते क्या-क्या किया. 40 के दशक में उसी पक्की बुनियाद का नतीजा था जिसने राज कपूर को वो राज कपूर बनाया, जिन्हें हम सब जानते हैं.  


पिता पृथ्वीराज ने दी थी नसीहत- नीचे से शुरुआत करोगे तो बहुत ऊपर तक जाओगे


भारतीय सिनेमा जब अपने जन्म के बाद धीरे-धीरे पनप रहा था, लगभग उसी दौर में राज कपूर बचपन से किशोर और फिर युवावस्था में प्रवेश कर रहे थे. ऐसा नहीं कि वो किसी गुमनाम परिवार से ताल्लुक रखते थे. राज कपूर के दादा बशेश्वरनाथ कपूर पेशावर में इम्पीरियल पुलिस फोर्स में ऑफिसर (दीवान) थे वहीं पड़दादा केशवमल कपूर तहसीलदार थे. लेकिन राज कपूर में कलाकार बनने के जींस उनके पिता पृथ्वीराज कपूर से आए. पृथ्वीराज युवावस्था में ही स्टेज का जानामाना नाम बन गए थे. उन्होंने फिल्मों में अभिनय की शुरुआत 1928 में दो धारी तलवारसे की. पृथ्वीराज ने रंगमच के शौक को कभी अपने से अलग नहीं किया. पृथ्वीराज ने कोलकाता में न्यू थिएटर्स के लिए काम किया. बाद में वो मुंबई में ही बस गए और वहीं अपने पृथ्वी थिएटर की स्थापना की. राज कपूर की स्कूली पढ़ाई कोलकाता में ही हुई, लेकिन पढ़ाई में उनका अधिक मन नहीं रमा और उन्होंने दसवीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी.

 

पृथ्वीराज कपूर ने किशोर बेटे राज कपूर को यही शिक्षा दी कि जो बनना है अपने दम पर बनो. पृथ्वीराज उसूलों के बहुत पक्के थे. उन्होंने बेटे से साफ कह दिया था कि नीचे से शुरुआत करोगे तो बहुत ऊपर तक जाओगे. पिता की इसी नसीहत को मान कर राज कपूर ने 17 साल की उम्र में ही रणजीत मूवीटोन में एप्रेंटिस के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. राज कपूर ने खुद भी पिता के नाम का कभी इस्तेमाल नहीं किया. सेट पर वो आम एप्रेंटिस (आज के शब्दों में कहें तो इंटर्न) की तरह ही भारी वजन उठाते, दरियां बिछाते और पोछा लगाने में भी शर्म नहीं करते थे.

 

रणजीत मूवीटोन के लिए ही तब पंडित केदार शर्मा फिल्में निर्देशित किया करते थे. केदार शर्मा और पृथ्वीराज कपूर में अच्छी दोस्ती थी. लेकिन पृथ्वीराज ने कभी उनसे बेटे के लिए कुछ नहीं कहा. राज कपूर उस वक्त क्लैपर ब्वॉय का भी काम करते थे. एक दिन फिल्म के शॉट के दौरान राज कपूर ने क्लैप को इतनी ज़ोर से टकराया कि एक एक्टर की दाढ़ी क्लैप में फंसकर बाहर आ गई. इस पर केदार शर्मा ने गुस्से में आकर सबके सामने राज कपूर को जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. लेकिन राज कपूर ने बतंगड़ बनाने या पिता पृथ्वीराज को कुछ कहने की जगह अपनी ग़लती मानते हुए और ध्यान से काम करना शुरू कर दिया. राज कपूर की काम सीखने की ललक और जी तोड़ मेहनत देख कर केदार शर्मा मन से बहुत प्रभावित थे लेकिन कभी मुंह से इसका इज़हार नहीं किया. केदार शर्मा ने ही पहली बार राज कपूर को 23 साल की उम्र में मधुबाला के साथ लीड रोल में मौका दिया. फिल्म थी नील कमल जो 1947 में रिलीज हुई. राज कपूर ने आगे चलकर एक इंटरव्यू में कहा भी था कि 'केदार शर्मा एक संस्थान की तरह थे और फिल्म मेकिंग के बारे में उनसे बहुत कुछ सीखा'.

 

कुमार राज से राज कपूर बनने का किस्सा


राज कपूर नील कमल में लीड रोल मिलने से पहले चार फिल्मों में काम कर चुके थे. 11 वर्ष की उम्र में पहली बार 1935 में रिलीज फिल्म इन्कलाब में काम किया. 19 साल की उम्र में राज कपूर 1943 में हमारी बात और गौरी में छोटे रोल निभाते नज़र आए. लेकिन 1946 में रिलीज हुई फिल्म वाल्मीकि ने राज कपूर का करियर बनाने में बहुत अहम रोल निभाया.  इस फिल्म के क्रेडिट में उनका नाम कुमार राज के तौर पर दर्ज था. इस फिल्म में राज कपूर खुद लीड रोल में नहीं थे. बल्कि उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने टाइटल रोल किया. राज कपूर ने इस फिल्म में नारदमुनि का रोल निभाया था. ये वो दौर था जब ऐतिहासिक और पौराणिक चरित्रों पर बनी फिल्में खूब पसंद की जाती थीं. जब ये फिल्म रिलीज हुई थी राज कपूर महज़ 22 साल के थे.


वाल्मीकि को भालजी पेंढारकर ने डायरेक्ट किया था. वह कपूर ख़ानदान के बेहद नज़दीकी थे और सब उन्हें मामाजी कह कर बुलाते थे. जब उन्होंने फ़िल्म में अच्छे अभिनय के लिए राज कपूर को पैसे देने चाहे तो पृथ्वीराज कपूर ने साफ़ इंकार कर दिया. मगर भालजी पेंढारकर भी राज कपूर को कुछ न कुछ देने पर अड़े रहे. आखिर उन्होंने चेम्बूर में कुछ ज़मीन का टुकड़ा राज कपूर के नाम कर दिया.  

 

24 साल की उम्र में ही राज कपूर ने फिल्म आग़ में अभिनय के साथ निर्माण और निर्देशन की जिम्मेदारी भी संभाली. ये फिल्म कुछ ख़ास नहीं चली. मगर 1949 में आई 'बरसात' ने नाम और पैसा दोनों कमाया जिसने आर के फिल्म्स को खड़ा होने में मदद की. इस फ़िल्म के बाद ही राज कपूर ने भालजी पेंढारकर की ओर से चेम्बूर में दी गई ज़मीन पर आरके स्टूडियो खड़ा किया. आरके फिल्म्स का लोगो भी बरसात फिल्म के एक सीन से लिया गया जिसमें राज कपूर बाएं हाथ में वायलिन लिए खड़े थे और दाएं हाथ से उन्होंने पीछे की तरफ गिरती नर्गिस को संभाल रखा था. 


Source: Timeless Indian Melodies Facebook Page 


इसके बाद राज कपूर ने आर के फिल्म्स के बैनर तले 'आवारा' (1951
),  'श्री 420' (1955), जागते रहो (1956), 'संगम' (1964), 'मेरा नाम जोकर' (1970), 'बॉबी' (1973), 'सत्यम शिवम सुंदरम' (1978), 'प्रेम रोग' (1982) और 'राम तेरी गंगा मैली'(1985) जैसी फिल्मों का निर्देशन कर जो इतिहास कायम किया, उसके बारे में अधिक कहने की ज़रूरत नहीं. इनके अलावा भी उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण किया और बाहर के बैनर्स की कई फिल्मों में अभिनय भी किया. 'श्री 420' के लिए राज कपूर को बेस्ट हिन्दी फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.

 

2 जून 1988 को राज कपूर का दिल्ली में निधन हुआ. उससे एक महीना पहले ही उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भारत सरकार ने नवाज़ा था. राज कपूर के निधन के बाद भी आर के फिल्म्स के बैनर तले उनके बेटों (रणधीर, ऋषि, राजीव) ने कई फिल्मों का निर्माण किया, लेकिन इस बैनर का वो रूतबा नहीं लौट सका जो राज कपूर की वजह से जाना जाता था. धीरे धीरे आर के स्टूडियो नेपथ्य में जाता गया. फिर 2017 में स्टूडियो में लगी भीषण आग़ ने राज कपूर की कई निशानियों को खाक़ कर दिया. आखिरकार 2019 में चेम्बूर स्थित आर के स्टूडियो को गोदरेज प्रॉपर्टीज को बहुमंजिली इमारत खड़ी करने के लिए बेच दिया गया. इस तरह 'THE SHOW MUST GO ON'  कहने वाले राज कपूर के शो पर पर्दा गिर गया.


कल खेल में हम हो न हो,

गर्दिश में तारे रहेंगे सदा,

 भूलेंगे हम, भूलोगे तुम, 

पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा ...


(#Khush_Helpline को मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा मुझसे अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)

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