चीन की आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस फीमेल न्यूज़ एंकर, WEF के ट्विटर से साभार |
नई दिल्ली (28 अगस्त)।
खुश हेल्पलाइन की शुरुआत के लिए मैं पिछले महीने अपने होम टाउन मेरठ मे था. मीडिया में भविष्य देखने वाले युवा साथियों के साथ यह मेरा पहला सीधा संवाद था. वहां मुझसे तीन लड़कियों ने बात की तो मैंने उनसे पहला सवाल किया कि मीडिया में बहुत कुछ करना होता है, आप तीनों क्या करना चाहती हो? तीनों का एक ही जवाब था- एंकर बनना चाहते हैं.
मेरा फिर उनसे सवाल था कि क्या आपको पता है कि कामयाब एंकर बनने के लिए क्या क्या करना होता है. इस पर उनका भोला सा जवाब था- न्यूज़ रीडिंग.
मैंने फिर उन्हें समझाया कि अगर सिर्फ न्यूज़ पढ़नी ही होती तो चीन अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) से तैयार रोबोट्स तैयार कर चुका है जो स्क्रीन पर किसी इनसान की तरह ही न्यूज़ पढ़ते दिखाई देते हैं. फिर इस काम के लिए इनसान की ज़रूरत ही क्या?
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— Roger Verhoeven (@Rogeliketweety) April 28, 2019
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— El Peeko The Geeko 🦎🧪🎨🪐🛰️ (@peekodesigno) April 25, 2020
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खुश हेल्पलाइन पर फॉर्म भरने वालों में से कई ने एंकर या रिपोर्टर बनने की इच्छा जताई है. यानि वो स्क्रीन पर आकर अपनी प्रतिभा दिखाना चाहते हैं.
एक मीडिया संस्थान में बहुत से लोग काम करते हैं, लेकिन दर्शकों को स्क्रीन पर एंकर्स के चेहरे ही नज़र आते हैं. इसलिए यही लोग मीडिया संस्थान का चेहरा माने जाते हैं. अब इसी से समझ जाइए कि ये कितनी अहम पोजीशन है. यहां प्राइम टाइम एंकर्स बनने के लिए मौका उन्हीं को मिलता है जो अपने को प्रूव कर चुके होते हैं. और जिनकी प्रतिभा को अनुभवी संपादकों की ओर से अच्छी तरह से परखा जा चुका हो.
एक चर्चित एंकर की ग्रोथ को मैंने पिछले 15 साल में अपनी आंखों से देखा है. इसने ट्रेनी की तरह पहली पायदान से शुरुआत की. इसका खुद बाइट्स कटाने के लिए एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग में दौड़ना, मैंने सब अपनी आंखों से देखा. लेकिन उसमें हर चीज़ सीखने की गज़ब ललक थी. उसी ललक, जीतोड़ मेहनत की वजह से उसे देश के टॉप एंकर्स में स्थान बनाने में कामयाबी मिली.
कहने का अर्थ इतना है कि किसी भी काम में रातोंरात कामयाबी नहीं मिल जाती. उसके लिए पसीना बहाना पड़ता है. जैसा कि मैं युवा साथियों से कहता हूं कि पत्रकार बनने के लिए टाइपिंग, अच्छी स्क्रिप्ट राइटिंग, देश-दुनिया के सभी अहम घटनाक्रमों की जानकारी रखना और अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद की दक्षता, चार बुनियादी बातें हैं. यही चारों बातें एंकर पर भी लागू होती हैं.
इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं. कोई एंकर अपना रूटीन बुलेटिन कर रहा है. रूटीन बुलेटिन यानि डेस्क पर न्यूज़ प्रोड्यूसर्स ने पैकेज तैयार करके दिए हैं, और एंकर को हर पैकेज के इंट्रोडक्शन के लिए लिखी तीन-चार लाइनें पढ़ कर सुनानी हैं. ये लाइन्स टेलीप्रॉम्पटर या आटोक्यू पर लिखी रहती हैं जिन्हें एंकर पढ़कर बोलता है. लेकिन मुझे ऐसे एंकर के साथ भी करीब से काम करने का मौका मिला है, उन्हें लिख कर कुछ भी न दिया जाए, वो ऑन द स्पॉट ही सब बोल देते हैं. वो लाइव प्रोग्राम में घंटों नॉन स्टॉप बिना किसी स्क्रिप्ट एंकरिंग कर सकते थे. ये तभी संभव हो सकता है जब आपको विषयों की गूढ़ समझ हो.
अब आप रूटीन बुलेटिन कर रहे हों और उसी दौरान मान लीजिए देश-विदेश में कोई बड़ी अहम घटना (ब्रेकिंग) हो जाती है और घटनास्थल पर लाइव जाना पड़ता है. इस वक्त एंकर की अग्नि परीक्षा होती है. यहां उसका खुद का ज्ञान और प्रेजेंस ऑफ माइंड काम आता है. मान लो तालिबान से ही जुड़ी कोई ख़बर है. अब ऐसे में एंकर को तालिबान के इतिहास-भूगोल की पहले से ही अच्छी जानकारी होगी तो सिचुएशन बढ़िया तरीके से हैंडल होगी. मौके पर मौजूद रिपोर्टर्स और गेस्ट से भी पिन-पाइंट, शार्प, मीनिंगफुल सवाल किए जा सकेंगे. ऐसा नहीं होगा तो एंकर की ओर से दो तीन लाइन्स ही बार-बार रिपीट की जाती रहेंगी.
एंकर्स के पास दिन में अपने एक या दो खास प्रोग्राम करने की भी जिम्मेदारी होती है. अपनी इमेज के लिए सतर्क एंकर इन प्रोग्राम के पूरे प्रोडक्शन पर पैनी नज़र रखते हैं. इसके लिए वो रिसर्च और स्क्रिप्ट राइटिंग भी करते हैं. या किसी प्रोड्यूसर की लिखी स्क्रिप्ट को प्रोडक्शन में जाने से पहले चेक भी करते हैं.
इन सबके अलावा एंकर्स बड़ी घटनाओं की मौके पर जाकर रिपोर्टिंग भी करते हैं. नामचीन लोगों के इंटरव्यू करते हैं. मीडिया संस्थान की ओर से कॉन्क्लेव आदि का आयोजन होता है तो उसे होस्ट भी करते हैं.
ये सब युवा साथियों को ये बताने के मकसद से लिखा कि एंकरिंग स्क्रीन पर सिर्फ चेहरा चमकाना ही नहीं बल्कि इससे बहुत कुछ बढ़कर है. इसके लिए हर दिन अपने ज्ञान को तराशना होता है, प्रोग्राम्स के लिए नए नए आइडिया सुझाने होते हैं. ये कोई ऐसी प्रोफेशनल घुट्टी नहीं है कि एक बार पी ली तो हमेशा के लिए काम हो गया. इसके लिए आपको हर दिन पढ़ाई लिखाई कर ज्ञान बढ़ाना होगा, ठेठ अंदाज़ में कहूं तो रोज कुआं खोदना होगा.
तैयार हैं आप ये सब पापड़ बेलने के लिए तो आपका स्वागत है एंकरिंग की दुनिया में.
और अगर आप सिर्फ़ ग्लैमर के वश में मीडिया में आना चाहते हैं तो मेरे सुझाव से आपको यहां समय व्यर्थ करने की जगह बॉलिवुड या एंटरटेनमेंट टीवी की दुनिया में जगह बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
(#Khush_Helpline को उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)
काफी बेहतर और विस्तार से जानकारी दी है आपने
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई...
जवाब देंहटाएंMai google me "anchor kaise itna first bolte hai" ye khoj raaha tha mujhe ye to mila nahi lekin
जवाब देंहटाएंAapka ye artical mila phir bhi maine pura paheliya . Koi baat nahi kabhi2 yesa hota hai