Source: Grab from a video shared by Anupam Kher |
नई दिल्ली (29
अगस्त)।
देश भक्ति या मुल्क से मुहब्बत के गीत को लेकर एक दिलचस्प वाक़या देखने को मिला.
‘आओ बच्चों
तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से
तिलक करो, ये धरती है बलिदान की’- ये गाना फिल्म जागृति
(1954) के लिए कवि प्रदीप ने लिखा और गाया था. इसे कम्पोज़ हेमन्त कुमार ने किया
था. जागृति फिल्म की कॉपी करके ही पाकिस्तान में 1958 में फिल्म बेदारी बनाई गई.
इस फिल्म में जागृति की धुनों को भी हू-ब-हू उठा लिया गया. जैसे कि आओ बच्चों
तुमको सैर कराएं पाकिस्तान की, इसकी ख़ातिर हमने
दी कुर्बानी लाखों जान की. जब ये पता चला कि ये फिल्म भारतीय फिल्म की नकल
करके बनाई गई है तो इस पर पाकिस्तान में बैन लगा दिया गया. लेकिन इसके गाने
पाकिस्तान में अभी तक मशहूर हैं.
इसी चक्कर में जानेमाने अभिनेता अनुपम खेर से एक चूक हो गई. उन्होंने एक
गांव में बच्चों को टीन-कनस्तर और कबाड़ के साथ ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं’ की धुन
बजाते देखा तो बहुत प्रभावित हुए और उस वीडियो को ट्वीट भी किया.
Source: Pakistani Singer Shehzad Roy Twitter Handle |
Sir @AnupamPKher Thanks for sharing the video I shared a few days back. You say that these talented kids are from Bharat, a humble correction, these kids are in fact from Hunza, Pakistan. I am in touch with them and have sent them all the musical instruments they need. https://t.co/KBxzEIFBvV
— Shehzad Roy (@ShehzadRoy) August 27, 2021
इस पर अनुपम खेर
ने जवाब में ग़लती की ओर ध्यान दिलाने के लिए शहज़ाद का शुक्रिया जताया. अनुपम खेर
ने ये भी लिखा कि उन्हें वीडियो बहुत पसंद आया था. उन्होंने बच्चों के लिए काम
करने पर शहज़ाद को शुभकामनाएं भी दीं.
Dear @ShehzadRoy ! I stand corrected my friend. I loved the video. Keep up the great work you are doing with these kids!! Love and prayers always!! 🙏 https://t.co/bQ3IChURAS
— Anupam Kher (@AnupamPKher) August 27, 2021
पाकिस्तान के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ शोएब अख्त़र ने अनुपम खेर और शहज़ाद के बीच हुए संवाद की तारीफ़ की. शोएब ने ट्वीट में लिखा कि "ये सबक है कि चीज़ों को ख़राब मोड़ देने से कैसे बचा जा सकता है. शहज़ाद ने अच्छी तरह बात को रखा और अनुपम खेर ने अच्छी तरह से उसे लिया. इससे दोनों देशों के बच्चे सीख सकते हैं."
A little tutorial of how NOT to make things ugly. Nicely explained @ShehzadRoy & nicely taken @AnupamPKher . Something kids from both countries can learn from. https://t.co/DhLQoV8OhD
— Shoaib Akhtar (@shoaib100mph) August 28, 2021
खैर ये तो रही इस
संवाद की बात. लेकिन हमने हाल-फिलहाल में देखा है कि देशभक्ति के कुछ ऐसे गाने हैं
जो एक मुल्क में हिट होते हैं, तो दूसरे मुल्क
में भी वो लोकप्रिय होते हैं. जैसे कि बॉलिवुड की फिल्म केसरी (2019) के लिए मनोज
मुंतज़िर का लिखा खूबसूरत गीत- ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’ बहुत पसंद किया गया.
इसी गाने को पाकिस्तान में बलूच गायक वहाब अली बुगती भी गाते दिखाई दिए.
2018 में मेघना
गुलजार की बनाई फिल्म ‘राजी’ में उनके पिता गुलजार का लिखा एक गाना था- ‘ऐ वतन,
वतन मेरे आबाद रहे तू, मैं जहां रहूं
जहां में याद रहे तू’. फिल्म में सीक्वेंस ऐसा था कि पाकिस्तान के नेशनल डे के लिए
टीचर्स की ओर से सिखाए इस गीत को बच्चे गाते हैं. गीत ऐसा है,
इसे कहीं भी गाया जा सकता है, क्योंकि इसमें
किसी मुल्क़ का नाम नहीं है.
अब जैसे फिल्म ‘काबुलीवाला’ (1961) के गीत को देखिए- ए मेरे प्यारे वतन, ए मेरे बिछड़े चमन, तुझ पे दिल कुर्बान. भारत में हम बचपन से ही इस गीत को गुनगुनाते आए हैं. दरअसल हिन्दी फिल्म ‘काबुलीवाला’ गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की 1892 में लिखी कहानी पर आधारित थी. इसमें बलराज साहनी ने काबुल से कलकत्ता आकर ड्राई फ्रूट्स बेचने वाले पठान रहमत का लीड रोल निभाया था. रहमत को कलकत्ता में चार साल की एक बच्ची में खुद की बेटी का अक़्स नज़र आता है.
बलराज साहनी पर
फिल्माया काबुलीवाला का गीत अमर हो गया. प्रेम धवन के लिखे इस गीत को सलिल चौधरी
ने कम्पोज किया और मन्ना डे ने अपनी आवाज़ से इसमें रूह भर दी. ज़ाहिर है इस फिल्म
में एक पठान के अपने मुल्क़ अफ़गानिस्तान से बिछड़ने का दर्द कुछ इस तरह से ज़ुबां
पर आया था-
ऐ मेरे प्यारे
वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन,
तुझ पे दिल कुर्बान
तू ही मेरी आरजू,
तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी जान
चूम लूँ मैं उस
ज़ुबां को जिसपे आये तेरा नाम
सब से प्यारी
सुबह तेरी, सब से रंगीं तेरी शाम
और कभी नन्ही सी
बेटी बनके याद आता है तू
जितना याद आता है
मुझको उतना तड़पाता है तू
छोड़कर तेरी ज़मीन को दूर आ पहुचे हैं हम
फिर भी है यही
तमन्ना तेरे जर्रों की कसम
हम जहाँ पैदा
हुये उस जगह ही निकले दम
अपने मुल्क़ की
कसक क्या होती है ये उनसे पूछनी चाहिए जिन्हें अपने कामकाज के लिए मुल्क़ से बाहर
रहना पड़ता है. विदेश में जो भारतीय रहते हैं,
वही सही ढंग से जान सकते हैं, अपनी जड़ों से
दूर रहने का दर्द.
“You
can take an Indian out of India, but you can never take India out of an Indian”
ऐसा ही कुछ अब
अफ़गानिस्तान के बाशिंदों के लिए भी कहा जा सकता है,
जिन्हें वहां के हालात की वजह से अपने मुल्क़ से दूर होना पड़ रहा है.
हालात रहने न होने के लायक होने की वजह से ही कोई इनसान अपनी मिट्टी को छोड़ने का
फ़ैसला लेने के लिए मजबूर होता है.
(#Khush_Helpline को उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)
kafi badhiya jaankari. aapke is blog par ab hindi me tippni kyon nahi hoti hai sir.
जवाब देंहटाएंकाफी बढ़िया जानकारी। आपके इस ब्लॉग पर अब हिंदी में टिप्पणी क्यों नहीं होती है सर. यह हिंदी की टिप्पणी व्हाट्सअप पर लिखकर यहाँ पर पेस्ट कर रहा हूँ. ब्लॉग हिंदी का है तो टिप्पणी हिंदी में लिखने की सुविधा यहीं पर मिलनी चाहिए।
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