Good Bye...सबको राम-राम...खुशदीप



कसम खाई है कि कल दिल्ली में हुए प्रोग्राम के बारे में कुछ नहीं लिखूंगा...लिखूंगा क्या,हिंदी ब्लॉगिंग में तो संभवत मेरी ये आखिरी पोस्ट है...आप सब ने जो बीस महीने में मुझे इतना प्यार दिया, उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया...बस और कुछ नहीं कहना...कल के प्रोग्राम पर भड़ास के यशवंत जी की ये रिपोर्टिंग पढ़ लीजिए....

ब्लागरों की जुटान में निशंक के मंचासीन होने को नहीं पचा पाए कई पत्रकार और ब्लागर








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77 टिप्पणियाँ
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  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. खुशदीप जी,
    आप और हम ब्लॉगर हैं। अगर कोई काम हमारे मनमाफिक नहीं हुआ या कुछ गलत हुआ तो हम क्यों खुद को चोट पहुंचायें। आप लिखना जारी रखिये।

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  3. अफ़सोस,खेदजनक. आपकी पीड़ा को समझ सकतें हैं खुशदीप भाई.इतने ब्लोगर्स दूर दूर से आये,सबके साथ ही एक बेरुखा और अपमानजनक सा व्यवहार लगा.गंभीर विचार और सुधार की आवयश्कता ऐसे आयोजनों में.केवल अपने ही प्रचार का माध्यम न बनकर ब्लोगर्स के हित की भी सोचें.और किसी बुलाए गए सम्मानित चीफ गेस्ट का अपमान तो बर्दास्त के बाहर की बात ही है.

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  4. भाई ये तो दुनियादारी है पर कलम की आवाज को रोकना उचित नहीं है ... आप बहुत बढ़िया लिखते हैं और सभी आपको रोचकता के साथ पढ़ते हैं ... आपका इस तरह का निर्णय ब्लॉग पाठकों के हित में नहीं हैं ... कृपया आप ब्लॉग लेखन जारी रखें ... जय हिंद

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  5. ब्लाग चौपाल संजाते हुए आपके ब्लाग पर नजरें पड़ी, इसके बाद यशवंत जी की पोस्ट भी पढ़ी। खुशदीप जी अपने देश में यही सब तो हो रहा है, अगर आप जैसे लिखने वाले ब्लाग जगत से किनारा कर देंगे तो गलत होगा। हमारे मीडिया जगत में वैसे भी ऐसी बातों का विरोध करने वाले बहुत कम लोग हैं। सच्चाई बयान करने वालों की ब्लाग जगत को बहुत ज्यादा जरूरत है। हमने ब्लाग जगत में बहुत गंदगी देखी है, ऐसे में अगर ब्लागार सम्मेलन में एक भ्रष्ट को बिठाया गया को इसमें अचरज नहीं है। अपना देश पूरी तरह से भ्रष्ट हो गया है और हम मीडिया वाले भी लेखन से मुंह मोड़ लेंगे तो ठीक नहीं होगा। हमारी एक सलाह है कि आप अपने लेखन का काम करते रहे और ब्लाग से हमारी तरह टिपप्णी के रास्ते बंद कर देें। वैसे भी हम पत्रकारों को किसी की टिप्पण्णी से ज्यादा सरोकार नहीं रहता है। हमने भी बीच में ब्लाग से किनारा करने का मन बनाया था, पर अब हमने फिर से लिखना प्रारंभ कर दिया है। आप लिखना बंद न करें, हम बस इतना कहना चाहते हैं। आप बेसक ब्लाग जगत में शामिल गंदे लोगों से नाता तोड़ लें, लेकिन जहां तक लेखन का सवाल है उसको बंद करना ठीक नहीं है। हम पिछले दो दिनों से सम्मान पर ही लिख रहे हैं, सम्मान तो वैसे भी बिकाऊं हो गए, सम्मन करवाने वालों को इससे क्या मतलब रहता है कि उनका सम्मान करने वाला कितना बड़ा गुनाहगार है। सम्मान के भूखे तो चोर-डकैतों से भी अपना सम्मान करवा लेंगे।

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  6. फिर तो अच्छा ही हुआ जो मैं जमाने भर के संकट उठाते वहाँ पहुँचने की सोच मन में रखे ही रह गया किन्तु पहुंच नहीं पाया ।
    ये कैसा ब्लागर सम्मेलन हुआ जहाँ नये मेहमान और नई पुस्तकें विमोचन के लिये टपक पडे और हिंदी ब्लागर व ब्लागिंग विधा की उनकी पुस्तकों के लोकार्पण वाली कोई बात आप द्वारा दिखाई जा रही तस्वीर में तो कहीं लेशमात्र भी देखने में नहीं आ रही ।
    इस अनुसार हिन्दी ब्लागिंग और इसके सभी आयोजन अभी गरीब की जोरु वाली स्थिति में ही है ।

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  7. आप इतने कमजोर तो नहीं लगते

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  8. SHANI, SHANTI,SHANTI,SHANTI,SHANTI,


    JAI BABA BANARAS......

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  9. मौन किसी चीज का हल नहीं है !

    पर क्या इन्हे कोई और नहीं मिला पुरस्कार बांटने के लिए .... भ्रस्थ लोगो को ब्लॉगिंग से दूर ही रखा जाए तो बेहतर है
    एक बात और समझ से परे है बिजनौर की साहित्यिक संस्था के पचास वर्ष पूरे होने पर आयोजन दिल्ली मे क्यो किया गया , क्या आयोजन बिजनौर मे नहीं होना चाहिए था ?

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  10. एक ही प्रार्थना है कि लिखते रहिये...

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  11. मैदान छोड़ कर भागना कायरो का काम है
    आप तो एक जिन्दा दिल ब्लोगर है आप ऐसी बातें क्यों कर रहे है

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  12. खुशदीप सहगल जी मेरा ये मानना है की ब्लॉग्गिंग ब्लॉग्गिंग के इस खेल में सभी लोग अपनी मरजी, और अपने शौक से लगे हैं. कोई जुड़े या कटे इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. एक छोटी सी घटना से प्रभावित होकर आपका यूँ मैदान छोड़ना मुझे समझ नहीं आया. आपने इतनी मेहनत से ब्लॉगजगत में अपना एक मुकाम बनाया है उसे त्याग कर आप जा रहे हैं. कहीं पढ़ा था की जाने वाले को रोकना नहीं चाहिए क्योंकि अगर उसका प्रेम सच्चा है तो वो लौट के जरुर आयेगा. मेरी और से आपको भाव भीनी विदाई. आप जहाँ रहें सुखी रहें और यूँ ही अपने कार्यक्षेत्र में भी ऐसी ही उचाईयों को छूते रहें .

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  13. खुशदीपजी, असल में ब्‍लागर बहुत भावूक किस्‍म का इंसान है। ब्‍लागिंग के सम्‍मेलनों में उसे जाने का उत्‍साह रहता है और स्‍वयं का पैसा और समय खर्च कर वो दूर से आता भी है। लेकिन हम किस बैनर तले जा रहे हैं, आयोजक कौन है, कौन सी संस्‍था है। इस बारे में जानने की ईच्‍छा नहीं रखते। इस कारण यह कार्यक्रम व्‍यक्तिगत प्रकार के हो जाते हैं। इसलिए जब तक विधिवत कोई संस्‍था ऐसे आयोजन ना कराए, सम्मिलित होने की उत्‍सुकता नहीं दिखानी चाहिए। यदि आपको पूर्व में मालूम होता कि आज निशंक आ रहे हैं तो आप नहीं जाते, लेकिन जब आपको कुछ मालूम ही नहीं और वहाँ राजनैतिक रूप दिया कार्यक्रम पाकर आपको असहजता तो होगी ही। इसलिए विधिवत कार्यक्रमों में ही जाने की आदत डालिए। व्‍यक्तिगत मिलने की बात अलग है, वहाँ गए और कुछ लोगों से मिल आए, बस।

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  14. ये भी कोई बात हुई? अब तो और अधिक लिखना चाहिए। इंतजार रहेगा।

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  15. लिखना न छोड़े, आहत के ऊपर साहित्य है।

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  16. आज तो हम भी यही कहेंगे --ओये होए !
    ये भी कोई बात हुई । सम्मान मिला आपको , तालियाँ बजाई हमने , और फिर भी गुस्सा कर रहे हो । अमां हम तो बैक बेंच पर बैठकर भी सबको हंसा कर ही आए ।
    ज़रा द्विवेदी जी की बात पर गौर फरमाइए ।
    और हमारी अगली पोस्ट्स पर भी ।

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  17. खुशदीप जी
    हम सब मे से कोई भी सम्मान का भूखा नही है सभी अपने मन की बातें ब्लोग पर लिखते है जो जैसा महसूस करता है और आपको भी यही करते रहना चाहिये………………आखिर कहां कहां से किनारा करेंगे जहां जायेंगे दुनिया ऐसी ही भरी मिलेगी इसलिये अपने कार्य को अंजाम देते रहिये मौन होकर्……………और फ़िर जैसा उचित लगे वैसा कीजिये चाहे सम्मान मिले ना मिले मगर कर्म नही रुकना चाहिये।

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  18. खुशदीप भाई , आपकी दी हुई लिंक पर ये कमेंट दिया है । और हां ब्लॉगिंग को छोडकर जाने का आपका निर्णय मुझे बिल्कुल मान्य नहीं है ..आज हिंदी ब्लॉगिंग को आपकी जरूरत है ...बेशक आपको हो न हो ..हमें आपकी जरूरत है ..आप कहीं नहीं जाएंगे ..मित्र का आग्रह समझें या भाई का हठ ..

    आदरणीय यशवंत जी ,
    सादर नमस्कार । समझ नहीं आ रहा कि कहां से शुरू करूं । भडास फ़ोर मीडिया , ....नहीं भडास अगैंस्ट ब्लॉगर्स ही लगी मुझे ये पोस्ट । अब बात पहले शीर्षक की ..किसने कब किया बहिष्कार ..हमें तो नहीं दिखा ..खुशदीप भाई पूरे जोश खरोश के साथ पुरस्कार लेते दिखे ...फ़ोटो भी देर सवेर दिख ही जाएगी आपको ..पुण्य प्रसून वाजपेयी जी ने ..कब कहां किया बहिष्कार ??

    आज तक किसी ब्लॉग पोस्ट पर उनकी टिप्पणी तो दिखी नहीं फ़िर बहिष्कार कहां कर दिया । आपने रिपो्र्ट बिंदास बेबाक लिखी इसमें कोई शक नहीं ..एक ब्लॉगर के तेवर के अनुरूप ही । इस कार्यक्रम की , इसकी रूपरेखा की , आने वाले सभी अतिथियों की पूरी जानकारी ..किसे नहीं थी ..पिछले दिनों लगातार पोस्टों में इस बात का जिक्र हो रहा है । हां एक राजनीतिज्ञ के हा्थों पु्रस्कृत होने का दर्द या विरोध समझ में आ सकता है लेकिन मैं हैरान हो जाता हूं कि यही मीडिया खुद इन्हीं नेताओं के आसपास तो मंडराता रहता है ..खुद ही इनकी तस्वीरें खींचता है , साक्षात्कार करता है ..तब विरोध नहीं करता ....।

    अब बात वहां जुटे ब्लॉगर्स की जिनके लिए टिप्पणियों में कहा गया कि वे टीवी में अपनी फ़ोटो देखने के लिए , चाटुकारिता के लिए या शायद फ़ालतू के पुरस्कार लेने के लिए इकट्ठे हो गए थे ...कमाल का अदभुत विश्लेषण किया है लोगों ने वाह वाह ..खैर वहां मिलने वाले ब्लॉगर के बीच होने वाले संवाद उनका आपसी परिचय ये सब बातें उनकी समझ से परे हैं जो महज़ अंदाज़ा लगा रहे हैं । कुछ लोग ऐसे भी थे जो सिर्फ़ आभासी रिश्तों को वास्तविक आभास महसूसने पहुंचे थे ..मगर वे आपको और आपके पाठकों को नहीं दिखाई दिए होंगे ..क्योंकि आपकी पोस्ट की छवियों में ब्लॉगर्स को छोडकर अन्य सभी हैं ..मीडिया मित्र , साहित्यकार , राजनीतिज्ञ सभी हैं । खैर ये हिंदी ब्लॉगिंग और ब्लॉगर्स के लिए क्या नया लेकर आएगा ये तो वक्त ही बताएगा मगर इतना तय है कि ऐसे ही कुछ विवाद दिनोंदिन ब्लॉगर्स को किसी आयोजन में हाथ डालने से हतोत्साहित करते हैं । चलिए अभी तो और भी टिप्पणियां आनी हैं । फ़िलहाल विदा शुक्रिया .,...आपके दर्शन न हो पाए अफ़सोस रहेगा

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  19. .
    .
    .
    आदरणीय खुशदीप जी,

    आप आहत हैं, समझ सकता हूँ, पर यह यों हथियार डाल देना समझ नहीं आया... लड़ाई तो लड़नी ही होगी...

    बाकी अपनी बात मैंने अपनी पोस्ट में कह दी है ।



    ...

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  20. अजय भाई,
    आपके इस प्यार से अभिभूत हूं...कोशिश करूंगा आपका मान रख सकूं, हिंदी ब्लॉगिंग में न सही इंग्लिश ब्लॉगिंग से ही सही...
    सोचा तो यही था कि कल के प्रोग्राम पर कुछ नहीं लिखूंगा...लेकिन आपकी टिप्पणी की वजह से कुछ बातों को साफ करना मेरे लिए बहुत ज़रूरी हो गया है...

    पहली बात मैं अपने सम्मान को वहीं कुर्सी पर छोड़ आया और मोहिंदर जी समेत कुछ और ब्लॉगर्स से निवेदन भी कर आया कि इसे आयोजकों के पास वापस पहुंचा दीजिएगा...

    मुझे नहीं पता था कि सम्मान मुख्यमंत्री निशंक के हाथों बांटे जाएंगे...मेरे लिए उस वक्त धर्मसंकट ये था कि शिकागो से भाई राम त्यागी और दुबई से दिगंबर नासवा जी ने मुझसे व्यक्तिगत तौर पर अपने सम्मान लेने के लिए कहा था...इसलिए उस वक्त सम्मान लेना अपरिहार्य था...वहां निशंक ही नहीं रामदरश मिश्र, प्रभाकर जी, अशोक चक्रधर, विश्वबंधु गुप्ता जैसी विभूतियां भी स्टेज पर मौजूद थीं...स्टेज पर मेरा न जाना उनका भी अपमान होता...

    अब सुनिए आयोजकों ने मुझे किस तरह मिसगाइड किया...प्रोग्राम सीधे-सीधे दो भागों में बांटा गया था- पहला भाग हिंदी साहित्य निकेतन, किताबों का विमोचन, ब्लॉगरों को सम्मान इत्यादि...ये कार्यक्रम शाम चार से साढ़े छह बजे तक चलना था...छह से साढ़े छह बजे अल्पाहार का कार्यक्रम तय किया गया...उसके बाद साढ़े छह से आठ बजे तक देश को जागरूक करने में न्यू मीडिया की भूमिका पर संगोष्ठी होनी थी...फिर नाटिका और उसके बाद भोजन...

    मुझसे रविंद्र प्रभात जी ने व्यक्तिगत तौर पर आग्रह किया था कि मैं पुण्य प्रसून वाजपेयी जी को कार्यक्रम के दूसरे भाग में मुख्य अतिथि बनने के लिए आग्रह करें...मैंने उनके कहने पर अपनी तरफ से कोशिश की...ये पुण्य प्रसून जी का बड़प्पन है कि वो सिर्फ मेरे कहने पर तैयार हो गए...लेकिन जब मैंने प्रोग्राम में देखा कि सात बजे तक भी कार्यक्रम का पहला हिस्सा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा तो मैंने पुण्य जी को एसएमएस कर आग्रह किया कि थोड़ा लेट आइएगा...लेकिन कार्यक्रम तब तक मुख्यमंत्री की चाटुकारिता और हिंदी साहित्य निकेतन का निजी प्रोग्राम होकर रह गया था...सच मानिए तो मेरी रूचि सिर्फ कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में ही थी...देश को जागरूक करने में न्यू मीडिया की भूमिका....इस विषय पर पुण्य जी के मुख्य अतिथि की हैसियत से सब ब्लॉगरों और युवा मीडियाकर्मियों के विचार भी जानने को मिलते...

    लेकिन जब सब गुड़-गोबर होता दिखा तो मैं खुद ही शाहनवाज, ललित भाई को लेकर हिंदी भवन के बाहर भागा...तब तक पुण्य प्रसून जी गेट तक आ चुके थे...और वहीं युवा पत्रकारों, ब्लॉगरों से बात कर रहे थे...उन्हें पता चला कि अंदर निशंक जी विराजमान हैं तो उन्होंने वहीं से वापस लौट जाना बेहतर समझा...जब तीर निशाने से निकल चुका था तो अविनाश जी गेट पर आए, वो भी शायद कोई बुला कर लाया...लेकिन तब तक प्रसून जी कार में बैठ चुके थे...उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों के लिए अविनाश जी को टाइम मैनेजमेंट की नसीहत दी और रवाना हो गए...तब तक मेरी स्थिति बहुत विचित्र हो गई थी...मैंने एक मिनट भी वहां और खड़े होना गवारा नहीं समझा...चाहता तो स्टेज पर जाकर ही मुख्यमंत्री के सामने सम्मान लौटा देता...लेकिन ब्लॉगर समुदाय की गरिमा का ध्यान रखकर ऐसा नहीं किया...और घर वापस आ गया...हां एक बात और, मेरी तबीयत कल सुबह से ही खराब थी...घर लौटते लौटते उलटियां भी शुरू हो गई...मनसा वाचा कर्मणा के राकेश कुमार जी इसके गवाह हैं...

    रात तक मन इतना खिन्न हो गया कि क्या हिंदी ब्लॉगिंग भी भ्रष्टाचार की उसी दिशा में आगे नहीं बढ़ चली जिसका कि हम अपनी पोस्ट में जमकर विरोध करते हैं...फिर क्या फायदा है इसमें बने रहने का...

    जय हिंद...

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  21. खुशदीप भाई ब्लॉग लेखन छोड़ने से इस स्तिथि में सुधार होने वाला नहीं...बल्कि इसमें सतत बने रह कर इसके विरुद्ध लिखने में हम सब की भलाई है...आप आहत न हों बल्कि ये सबक लें के ऐसे ब्लोगर सम्मेलनों से खुद को कोसों दूर रखें...और लेखन जारी रखें...अंग्रेजी के ब्लॉग लेखन में ये सब नहीं होता ऐसा मत सोचें...सब जगह एक ही हाल है...भाषा बदलने से लोगों की मानसिकता थोड़े ही बदल जाती है.....

    नीरज

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  22. ”मैं आया , जानकर कि अंदर ब्लागर होंगे लेकिन राजनीतिक भरे हैं...” - ऐसा बहर गेट पर पुण्य प्रसून जी ने हम लोगों से कहा। मुझे भी अफसोस है इसका। फिर थोड़ी चर्चा उन्होंने मुझसे जेएनयू में अन्ना के यत्किंच सकारात्मक-ग्रहण पर की। बढ़िया लगा उनसे मिलकर। वहाँ उनकई बात सुनने को मिलती तो और अच्छा लगता। इसका भी दुख है।

    पर ऐसा विसंगतियों से सीखा जाय और आगे बेहतर की गुंजाइश बनाई जाय, वह बेहतर कि इस तरह ब्लागिंग तजना। माफ कीजियेगा आपका यह निर्णय मुझे बहुत तार्किक नहीं लग रहा, भावुक भले है। आपसे न मिलने का मलाल है, पर आप उसी दौरान टेंस से दिखे , कार की ओर जाते , सो टोका नहीं। उम्मीद है आगे मुलाकात होगी।

    पुनः कहूँगा कि आपका यह निर्णय अस्वीकरणीय है। मैं इसके साथ नहीं।

    निवेदन है बने रहिये तब तक , जब तक हट जाने की कोई सु-तार्किक वजह न हो।

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  23. भड़ासियों ब्‍लॉगर तो पचा गए पर पत्रकारों को जरूर अपच हो गया और उनसे जुड़े ब्‍लॉगर साथियों की हिम्‍मत जवाब दे गई। अभी नुक्‍कड़ से लौट रही हूं देखा कि खुशदीप पुरस्‍कार बनाम सम्‍मान ग्रहण करते हुए खुशी जाहिर कर रहे हैं तो क्‍या यह खुशी जबर्दस्‍ती की है।सब जानते तो हैं कि वे पुण्‍यप्रसून वाजपेई के अधीन काम करते हैं। और पेट का सवाल कई सारे बवाल पैदा कर देता है। किसको मालूम नहीं था क्‍योंकि मैंने खुद कई दिनों से इस आयोजन के निमंत्रण पत्र पर मुख्‍यमंत्री महोदय का नाम प्रकाशित देखा है। उसमें मंत्री जी और वाजपेई जी दोनों का नाम प्रकाशित है। खुशदीप खुशी से पुरस्‍कार ले रहे हैं। फिर एकदम से यकायक यह परिवर्तन क्‍यों आ गया, मतलब राजनीति की दलबदलू प्रवृति के कुछेक ब्‍लॉगर भी हैं। पर मुझे तो यह आयोजन बहुत अच्‍छा लगा है। हां इंटरनेट पर कुछ तकनीकी त्रुटियों के कारण पूरा समारोह नहीं देख पायी हूं पर जितना देखा है उससे तो कहीं नहीं लगा कि ब्‍लॉगरों को उपेक्षित किया गया है। उसमें ब्‍लॉगरों से ही बुलवाया गया है और खूब बुलवाया गया है। यह ब्‍लॉगरों की ही हिम्‍मत है कि वे कार्यक्रम में जुटे रहे हैं और ब्‍लॉगिंगके अन्‍नाभाई और रवीन्‍द्र प्रभात के साथ हम किसी भी सुनामी में जुटे रहेंगे। अशोक चक्रधर जी को सुनना चाहती थी पर जब वे बोले होंगे तब प्रसारण की तकनीक खराब हो गई होगी। ऐसे झंझावातों से हिंदी ब्‍लॉगिंग विकसित ही हो रही है।

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  24. आपके लिखना छोड़ देने से क्या वो स्थिति वापस आ जाएगी कभी नहीं , सब वैसा ही रहेगा दोस्त , इसलिए अपनी कलम को कभी रुकने मत देना हम पहली बार इस सभा में शामिल हुए हमें भी वहां की व्यवस्था इतनी सही नहीं लगी पर हमने इस और ध्यान नहीं दिया वहां जो भी अच्छा लगा उसे समेट कर अपने साथ ले आये |आपकी कलम और खूबसूरती से आगे की और बढेगी इसकी हमे आशा है |
    आगे के लिए शुभकामनायें |

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  25. खुशदीप भाई ,
    हां अब मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं और आपकी मुश्किल और आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं इसलिए फ़िर यही आग्रह कर रहा हूं कि आप कहीं नहीं जाएंगे । बेशक अभी स्वास्थय ठीक नहीं है तो पहले उसका ख्याल रखें लेकिन ब्लॉगिंग ..हिंदी ब्लॉगिंग को अभी आपकी ..आपके तेवरों की बहुत जरूरत है ..समझिए इस गंभीरता को ..अब हमें ब्लॉग बिरादरी और ब्लॉग जमात के लोग कह कर संबोधित किया जा रहा है ...यानि मान लिया गया है कि हम एक हैं ..क्योंकि ब्लॉगर तो हैं ही

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  26. खुशदीप भाई मैं काफी दूर लगभग 1200 किलामीटर की यात्रा करके बिहार से इस कार्यकम में हिस्‍सा लेने आया थाऔर रात को नौ बजे तक डटारहा पूरे काय्रक्रम का साक्षी हूं, वहां उपस्थित होने वाले देश के सभी हिस्‍सो के ब्‍लोगरों के बीच पूरी आत्मियता के साथ विचारों का ऐसा आदान प्रदान मैंने आज तक नहीं देखा। यह हिंदी ब्‍लोगिंग की जबरदस्‍त शक्‍ती को दरशा रहा है। आयोजकों मे हिंदी साहत्यि निकेतन मुखय थाइसलिए उनके 50वां वर्षगांठ के कार्यक्रम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था फिर भी पूरा कार्यक्रम हिंदी ब्‍लोगिंग पर केन्द्रित दिखाई दिया. दो अन्‍य आयोजक अविनाश वाचस्‍पति जी और रविन्‍द्र प्रभात जी ब्‍लोगर वर्ग से थे एक मंच से उद्ाोषित करते हुए हिंदी ब्‍लाेगिंग के विविध आयाम को सामनेला रहे थे वही अविनाश जी मंच के अतिरिक्‍त पूरे सभागार में पूरे कार्यक्रम में लोगों से मिलते जुलते और उनके दर्द को महसूस करते दिखाई गए और वे कह रहे थे कि इस आयोजन की कमियों को अपने ब्‍लोगों पर लिखएिगा ताकि आगे हम सीख सकें और प्रगति करते हुए अच्‍छये आयोजन कर सकें। आप ब्‍लोगिंग छोड़ देंगे तो फिर तो हिंदी ब्‍लोगिंग का बंटाढार हो जाएगा, आप ही तो एक अकेली श‍क्‍ती हैं,, आप गए तो खुशियां चली जांएगी। यह जानने पर की आप बीच में चले गए हैं मुे दोनों आयोजक दर्द में दिखे, वे कई बार आपको फोन मिल रहे थे पर आपसे बात न होने पर बहुत टेंसन में दिखे। आप उनकी भी भावनाओं को महसूस करे और अपना फेसला रोक दें।

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  27. तन्वी जी,
    मैंने स्टेज पर जाने का कारण ऊपर लिखी टिप्पणी में स्पष्ट कर दिया है...

    कार्ड पर क्रार्यक्रम के दो हिस्सों का विभाजन स्पष्ट तौर अंकित था...ये भी स्पष्ट था कि कौन कौन से महानुभाव सम्मानित अतिथि के तौर कौन से कौन से कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे...

    ये भी कार्ड में कहीं नहीं लिखा था कि पुरस्कार मुख्यमंत्री के हाथों बाटें जाएंगे...

    इस सम्मान के बारे में और कुछ जानने के लिए पिछले साल अगस्त में लिखी मेरी इस पोस्ट के लिंक पर भी जाना होगा...
    वर्ष के चर्चित उदीयमान ब्लॉगर

    जय हिंद...

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  28. खुशदीप जी.. जब आपका यह पोस्ट पढ़ा तो मुझे लगा की एक और ब्लोगर टंकी पर चढ गया.. :)
    मगर जब उधर भड़ास फॉर मीडिया से होकर आया तो यही लगा कि अब अगर आप यहाँ से गए तो यह मैदान छोड़ने जैसा ही होगा..

    थोड़ी कड़वी बात - मैं 2006 से हिंदी ब्लोगिंग कर रहा हूँ और लगभग सभी को फोलो कर रहा हूँ कि कहाँ क्या लिखा जा रहा है और क्या बकवास टाईप के विवाद हो रहे हैं.. इस बीच कई लोगों को आते देखा और सदा के लिए जाते भी.. मैं अपनी तरफ से कहूँ तो अगर आप चले जायेंगे तो मैं आपको मिस नहीं करूँगा.. बाकी लोग जो आपको और आगे भी लिखने के लिए बोल रहे हैं, वे भी दो-चार दिन में आपको भूल जायेंगे, अधिक से अधिक उन्हें नाम याद रहेगा कि कोई खुशदीप जी थे.. जो सच में आपको मिस करने वाले लोग हैं वे ताउम्र आपसे मेल से या फोन से या आमने-सामने बने रहेंगे..
    अब यह आपको तय करना है की आप क्या करना चाहते हैं? खुद को "मैदान छोड़ कर भागने वाला" के तौर पर याद किये जाना चाहते हैं या फिर किसी और तौर पर!!

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  29. आप जब ब्लॉग लिखने आये थे तो क्या आप को पता था की यहाँ संगठन भी हैं ? क्या आप को पता था यहाँ गुट भी हैं ? आप ब्लॉग लिखने क्यूँ आये थे ?? आप को पुरूस्कार मिला , आप ने लिया कारण कोई भी था पर लिया तो . जब आप को पहले ही पता था ये एक निजी पार्टी टाईप प्रोग्राम हैं तो आप शुरू से ही वहाँ क्यूँ गए और इस सब का आप के बेचारे ब्लॉग से क्या लेना देना ?? ये इच्छा मृत्युं उसने तो नहीं मांगी .
    मोह भंग आप का हुआ , तो बेहतर तरह से रिपोर्ट देते , सच्चाई सामने लाते जो एक मीडिया कर्मी का फर्ज हैं , पलायन क्यूँ ताकि संबंधो पर आंच ना आये , यही से परिवारवाद का जनम होता हैं और भ्रष्टाचार बढ़ता हैं .
    ब्लॉग पर सच लिख दे लोगो को पता चले की क्या हुआ .
    हो सकता हैं आपकी छवि ब्लॉगजगत में
    विघ्नसंतोषी
    की बना जाए तो क्या हुआ कम से कम आप सच के साथ तो होगे , आत्मा से जब आप का साक्षात्कार होगा तो आप खुद को विजयी महसूसेगे

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  30. आप जब ब्लॉग लिखने आये थे तो क्या आप को पता था की यहाँ संगठन भी हैं ? क्या आप को पता था यहाँ गुट भी हैं ? आप ब्लॉग लिखने क्यूँ आये थे ?? आप को पुरूस्कार मिला , आप ने लिया कारण कोई भी था पर लिया तो . जब आप को पहले ही पता था ये एक निजी पार्टी टाईप प्रोग्राम हैं तो आप शुरू से ही वहाँ क्यूँ गए और इस सब का आप के बेचारे ब्लॉग से क्या लेना देना ?? ये इच्छा मृत्युं उसने तो नहीं मांगी .
    मोह भंग आप का हुआ , तो बेहतर तरह से रिपोर्ट देते , सच्चाई सामने लाते जो एक मीडिया कर्मी का फर्ज हैं , पलायन क्यूँ ताकि संबंधो पर आंच ना आये , यही से परिवारवाद का जनम होता हैं और भ्रष्टाचार बढ़ता हैं .
    ब्लॉग पर सच लिख दे लोगो को पता चले की क्या हुआ .
    हो सकता हैं आपकी छवि ब्लॉगजगत में विघ्नसंतोषी की बना जाए तो क्या हुआ कम से कम आप सच के साथ तो होगे , आत्मा से जब आप का साक्षात्कार होगा तो आप खुद को विजयी महसूसेगे

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  31. मुझे पहले ही शक था, क्योकि जहां यह मत्री शंत्री घुस जाये वहा पबित्रता रह ही नही सकती, लेकिन आप जाओ नही... दुख तो होता हे, लेकिन किसी ओर की गलती की सजा सब भाईयो को देना अच्छा नही, हम फ़िर सब मिलेगे बहुत प्यार ओर सम्मान से.. कल( आज रात) आप की पोस्ट की इंतजार करुंगा.

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  32. @खुशदीप भाई,
    क्या आप बिना लिखे रह सकते हैं??

    नई-नई बातें मस्तिष्क में आती हैं....उनपर विमर्श करने का मन होता है...ब्लॉग्गिंग इसीलिए तो है.

    यहाँ तो मैं एक ब्रेक लेने की सोच रही हूँ...'डूब कर एक काहनी लिखने को.." वो नहीं हो पा रहा...और आप अलविदा की बात कर रहे हैं.

    नाराज़गी अपनी जगह....पर इसके लिए खुद को...और पाठको को सजा देना कहाँ तक उचित है??

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  33. खुशदीप जी
    आप से बहुत बार मिला हूँ, आपके विचार सुने हैं, आप जितने संवेदनशील हैं उतने कृतप्रतिज्ञ भी... मेरे विचार से आपका यह निर्णय संभवतः किन्हीं अन्य शक्तियों द्वारा प्रभावित है, क्योंकि जब आप समारोह में आये थे तो आप ऐसी मनोदशा में नहीं थे... हमें ब्लागिंग पक्ष के हित की तरफ देखना चाहिए...और यदि गलतियाँ होती हैं तो उनके सुधार भी होते हैं... जो हुआ उसे धनात्मक दृष्टिकोण से लें...

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  34. तबीयत का ध्यान रखो.

    फिर स्वस्थ तन और मन से वापस लौटो.

    समझा और समझाया बहुत कुछ जा सकता है मगर पलायन कोई मार्ग नहीं.

    बस, इतना जान लो कि इन्तजार करुँगा.

    जवाब देंहटाएं
  35. .
    खुशदीप भैय्ये, यह तो पलायन हुआ ।
    मैं नहीं समझता कि यह कोई हल है !
    मेरी सोच यह है कि ब्लॉगिंग के मसले
    पर इसे अपदस्थ करने की कुचाल है ।
    मेरी सलाह यही रहती है कि ब्लॉगर
    को अपनी व्यक्तिगत पहचान पर ही
    कायम रहना चाहिये, मँच या सँगठन
    आदि से दूरी बना कर रहना चाहिये !
    यदि कोई उद्देश्यपूर्ण फोरम हो तो उसे
    अपनाया जा सकता है !
    तुम अवश्य ही आहत हुये होगे.. इसके
    ज़ायज़ कारण भी होंगे,,,मैं यही कहूँगा
    "तुम अपना रँज़ोगम, अपनी परेशानी मुझे दे दो"
    पार्सल की प्रतीक्षा में....:)

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  36. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  37. खुशदीप भाई आप बहुत संवेदनशील ब्लोगर हैं और आप जैसे लोगों की ब्लॉग जगत को बहुत जरूरत है ..रही बात कुछ आलोचना प्रत्यालोचना की तो ये हर आयोजन का हिस्सा होता है...लेकिन आप ब्लोगिंग के इतिहाश को एक सूत्र में बांधने का प्रयास करते उस "हिंदी ब्लोगिंग -अभिव्यक्ति की नई क्रांति " किताब को एक बार ध्यान से पढ़ें ,क्या आपको यह प्रयास ब्लोगिंग को सचमुच उचाईयों की ओर ले जाता हुआ नहीं दिख रहा है...? ये अलग बात है की इसमें अभी बहुत सारे ब्लोगिंग के अनमोल मोती जैसे प्रवीन पाण्डेय जी जैसे कई लोगों को भी जोड़ने की जरूरत है...तभी ये ब्लोगिंग का इतिहाश पूरा हो पायेगा...और इसमें आप जैसे सच्ची सोच वाले लोगों के प्रयास व सहयोग की आवश्यकता हमेशा परेगी..इसलिए हिंदी ब्लोगिंग को आप अपनी हार्दिक सेवा कृपा कर जारी रखें...

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  38. खुशदीप जी,
    आपकी निराशा और हताशा कुछ अजीब लगी... ब्लाग लिखने का मतलब ब्लॉगरों की जमात में शामिल होना नहीं होता.. मैं मानता हूं कि ये मंच आपकी डायरी की तरह है... आप जो सोचते हैं, जिंदगी के जिन उतार चढ़ाव और समाज के जिन चेहरों को आप पढ़ते हैं... उसे अभिव्यक्त करने का एक बेहतर ज़रिया है ब्लॉग... जानता हूं कि इस जमात में भी राजनीति, खेमेबाज़ी और ऊल जुलूल लोगों की भरमार है... जो इस आधुनिक माध्यम के ज़रिये भी अपना हित साधते हैं और जिनकी 'रचनात्मकता' और 'सोच' महज दिखावा है... ऐसे लोगों के चक्रव्यूह में फंसा ही क्यों जाए.. मंच का इस्तेमाल अपनी रचनात्मक सुकून के लिए करें तो क्या बुरा है...
    सोचिएगा।
    अतुल सिन्हा

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  39. खुशदीप भाई आपको दिल से चाहने वालों की कमी नहीं.क्या आप उन सभी का दिल तोडेंगे? आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखियेगा और बेशक ब्लोगिंग कुछ कम कर दें पर बंद न कीजियेगा.आपकी ब्लोगिंग सार्थक और समाज हित में रहे यही हम सब की चाहत है.

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  40. khushdeep ji !

    zyada toh kya kahoon, bas itta bhar nivedan hai ki bahut kam log aise hain jinhen main niymit baanchta hoon aur unme aap shaamil hain

    aap bahut achha likhte hain

    kisi doosare ki laaparwaahi ka dand aap apne pathak ko kyon den ?

    baki all is well !

    -albela khatri

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  41. खुशदीप जीआपकी ही एक पोस्ट से ली गई पंक्तियाँ है ये ---
    "...यही अपनापन मुझे ब्लॉगजगत में भी शिद्दत के साथ देखने को मिला...दूरियों की वजह से बेशक हम मिल न पाएं लेकिन विचारों से हम हमेशा एक-दूसरे के आसपास रहते हैं..."
    .जो मन कहे वो जरूर लिखिए पर न लिखना..आपका इन्तजार रहेगा..अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए..

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  42. खुशदीप भाई, अपनी सेहत का ख़याल रखिये... बाकी जज़्बात अपनी जगह दुरुस्त हैं...

    गलतियाँ लोगो से हो जाया करती हैं. मानता हूँ की अपनों की गलतियाँ दिल को ज्यादा ठेस पहुंचाती हैं... कोई बात नहीं, थोडा आराम करिए, सब ठीक हो जाएगा.

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  43. में तो अभी नया नया था श्रीमान मगर ये ज्यादा से ज्यादा एक मार्केटिंग इवेंट बन के रह गया..अच्छा हुआ तो प्रयोजको ने अपना स्टार दिखा दिया आगे से ब्लोगेर सावधान हो जाएँगे..ये कौन सी ब्लोगेर मिट हुए..कोई पूछने वाला ही नहीं ब्लोगर को..भीड़ जुटाने का अच्छा जुगाड़ था..
    धन्यवाद् ये है इसी टाइम मेनेजमेंट के चक्कर में मुझे पुण्य प्रसून जी से कुछ बातें एवं अनुत्तरित प्रश्न साझा करने का मौका मिला...कार्यक्रम में जाने की उपलब्धि यही रही..

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  44. आशुतोष,
    यही तो मैं कहना चाह रहा हूं तुम्हे सिर्फ एक दो मिनट ही पुण्य प्रसून जी से बात कर कितना फायदा हुआ...अगर जैसा आयोजकों ने कार्यक्रम निर्धारित किया था कि दूसरे सेशन में देश को जागरूक करने में न्यू मीडिया की भूमिका विषय पर संगोष्ठी होगी...इसमें पुण्य प्रसून जी मुख्य अतिथि की हैसियत से अपने विचार प्रकट करते तो देश-विदेश से आए ब्लॉगरों को कितना अच्छा लगता है...लेकिन चाटुकारिता और निजी हितों की वजह से पूरे प्रोग्राम को एक नेता ने हाईजैक सा कर लिया...और आप अभी भी देखिए कार्यक्रम की जितनी पोस्ट या प्रेस नोट जारी किए जा रहे हैं उसमें भी मुख्यमंत्री का ही शुरू से आखिर तक गुणगान है...

    जय हिंद...

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  45. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  46. महफूज,
    तुझे कितनी बार समझाना पड़ेगा भाषा को हमेशा संयत रखना चाहिए...मैं जानता हूं कि मेरे लिए तू क्या सोचता है...लेकिन भाषा की मर्यादा का पालन हमेशा करना चाहिए...इस टिप्पणी से असंसदीय शब्द जो भी है, उन्हें निकालकर दोबारा टिप्पणी प्रकाशित कर...ये मेरा आदेश है, और मुझे विश्वास है, तू मेरी बात को मानेगा...

    जय हिंद...

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  47. जी.... भैया... दोबारा आता हूँ सोच कर.....


    क्या करूँ.... अपनों के साथ कुछ हो तो गुस्सा आना वाजिब है...

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  48. जीवन के सफ़र में तरह तरह के लोग मिलते हैं... किस किस से भागते फिरोगे दोस्त :)

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  49. एक भविष्यवाणी : खुशदीप जी बहुत जल्द लौट आएंगे।
    सैद्धांतिक आधार : सच्चा ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़ना भी चाहे तो ब्लॉगिंग खुद ही उसे छोड़ने को तैयार नहीं होती।

    रश्मि रविजा जी से सहमत।

    हमने इस पूरे प्रकरण को ब्लॉग जगत के सामने जैसे रखा था यह ठीक वैसे ही घटित हुआ है। इसे आप देख सकते हैं निम्न लिंक पर
    अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging

    और अंत में एक प्यारा सा शेर आप सभी की नज़्र करता हूं

    झील हो, दरिया हो, तालाब हो या झरना हो
    जिस को देखो वही सागर से ख़फ़ा लगता है

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  50. होये वही जो राम रचि राखा ......
    अब आपको पढने के लिये अंग्रेजी सीखनी पडेगी ..मेरे लिये तो बहुत कष्ट्प्रद है अंग्रेजी सीखना .
    आखिरी बात ...........
    ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना

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  51. मेरे विचार से किसी सम्मेलन के कारण हिन्दी चिट्ठाकारी छोड़ने के लिये निर्णय लेना ठीक नहीं।

    यदि सम्मेलन से दुखी हैं तब उस तरह के सम्मेलन में न जांय। लेकिन हिन्दी चिट्ठाकारी छोड़ देना तो ठीक न होगा।


    लिखना जारी रखें।

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  52. अब आरोप प्रत्यारोप का दौर चलेगा ही ,इसमें अपनी ऊर्जा जाया न करके हिन्दी ब्लागिंग को समृद्ध करते रहिये ...
    हर व्यक्ति /समूह के अपने अपने इंटरेस्ट होते हैं ....आप जिस मनोभाव में हैं मैं समझ सकता हूँ ...
    शेख जी यूं महफ़िल छोड़के मत जाईये ,
    अब आ ही गएँ तो दो घूँट पी लीजिये
    बिन पिए लौट जाना बुरी बात है .....

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  53. PD की टिप्पणी को मेरी भी माना जाय।

    बाकि जो कुछ मुझे कहना था इस प्रकरण पर, एक पोस्ट के माध्यम से कह चुका हूं। ये रहा लिंक -

    http://safedghar.blogspot.com/2011/05/v-s.html

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  54. खुश्दीप जी ... मुझे अफ़सोस है आप मेरे पुरूस्कार की खातिर अपने मन का नही कर पाए ...आप रुके रहे .... ये आपका बड़प्पन है ...
    पर मुझे लगता है ऐसी किसी भी ग़लत बात का विरोध व्यवस्था के बीच बने रहते हुवे ही करना ज़रूरी है नही तो जीत उन्ही की है जो ऐसा चाहते हैं ...आप जम कर विरोध करें ... जो ग़लत है वो हमेशा ग़लत ही रहता है और सब आपके साथ हैं ... आपका लिखना सभी को अछा लगता है .. जागरूकता लाता है ... अतः आपसे अनुरोध है की लिखना जारी रखें ...

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  55. जो भी हुआ दुर्भाग्यपूर्ण

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  56. I request you to reconsider your decision...
    Whatsoever happened there, I would not like to discuss, but your decision is hurting me. You have already seen that there are some persons who are more interested in back-stabbing. And, undoubtedly, your decision will help them...

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  57. ुन्मुक्त जी ने सही कहा और मेरा हुक्म है कि कल पोस्ट लगनी चाहिये जो हो गया उससे सबक लें और आगे बढें\ विवाद तो चलते ही रहेंगे। मुझे तो किसी बात की भनक तक नही लगी। खैर कल पोस्ट आनी चाहिये हर हाल मे। आशीर्वाद।

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  58. मेरी प्रतिक्रिया -1

    देवा रे देवा...यहां भी राजनीति...ब्लॉगिंग के शैशव-काल में ही कदम-कदम पर उखाड़-पछाड़ की शतरंज...मोहरे चलाने वाले परदे के पीछे...और मोहरे हैं कि कारतूस की तरह दगे जा रहे हैं...ठीक वैसे ही जैसे कस्बे-गांवों के मेलों में बंदूकों से गुड़िया, मोमबत्ती, सिक्का पर निशाना लगाया जाता है...100 में 99 शाट्स या तो खाली जाते हैं या पीछे चादर की दीवार पर लगे गुब्बारों को शहीद कर आते हैं...

    नागरिक की हैसियत से अपना विज़न रखने का उतना ही अधिकार है जितना कि हमें और आपको...खैर ये तो राजनीति की बातें हैं...जिसमें कोई नीति न हो, वो राजनीति...

    लेकिन ब्लॉगिंग में राजनीति क्यों...हिंदी ब्लॉगिंग ने तो अभी चलना ही सीखा है...दौड़ने के लिए रफ्तार पकड़ने से पहले ही एक-दूसरे की टांग खिंचाई क्यों...क्यों कुछ को महेश बनना पसंद आ रहा है...वो ब्रह्मा-विष्णु बनकर हिंदी ब्लॉगिंग को उस मुकाम तक क्यों नहीं ले जाते, जिसकी वो हकदार है..

    बड़ों को जैसा करते देखते हैं, बच्चे भी वैसा सीखते हैं...ब्लॉगिंग के हम रंगरूट भी अपनी ऊर्जा को रचनात्मक दिशा देने की जगह विध्वंस में ही मौज ढूंढने लगेंगे...छोटा मुंह बड़ी बात होगी...ज़्यादा कुछ नहीं कहूंगा, लेकिन फरियाद पर गौर ज़रूर किया जाए मी-लॉर्ड.

    यह आप ही के लिखे हुए शब्द हैं ना?

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  59. मेरी प्रतिक्रिया -2

    ब्लॉगिंग हमें ड्राइव कर रही हैं या हम ब्लॉगिंग को ड्राइव कर रहे हैं...?

    यह भी आपने ही पूछा था ना ?

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  60. मेरी प्रतिक्रिया - 3

    जब तक दम में दम है, चिठ्ठे ठेलना जारी रहे... ये कामना हर ब्लॉगर साथी के लिए है...वैसे ब्लॉगर कभी रिटायर होने की सोचे भी क्यों...ब्लॉगर्स कभी रिटायर नहीं होते...आखिर क्यों हो रिटायर.

    जब और माई के लाल आसानी से रिटायर होने को तैयार नहीं होते तो ब्लॉगर्स़ क्यों लाए मन में ऐसी बात..

    यह आपने ही लिखा था ना?

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  61. मेरी प्रतिक्रिया -4

    जब आपने ब्लॉगिंग शुरू की तो 15 दिनों के भीतर ही आपको बेस्ट प्रोड्यूसर का अवार्ड मिला, आपने ब्लॉगिंग को धन्यवाद दिया
    आज आपको ब्लॉगिंग में अवार्ड मिला तो ब्लॉगिंग छोड़ कर जा रहे

    ज़रा बताईएगा कि बेस्ट प्रोड्यूसर का अवार्ड आपने किनके हाथों से ग्रहण किया था और वह भ्रष्टाचार जैसे स्केल पर कहाँ खडा है आम नागरिक की नज़रों में

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  62. मेरी प्रतिक्रिया - 5

    'ये ब्लॉगिंग व्लॉगिंग सब बकवास है, फालतू है'
    'ब्लॉगिंग से समाज को क्या फायदा होता है, यह सब तो चोंचले हैं, कोई मतलब नहीं इस पर समय देने से'!

    यही कहा था ना पुण्य प्रसून बाजपेयी जी ने मुझसे, आप तो गवाह रहे हैं!
    क्या यही कहने की कोशिश में आना था उन्हें मंच पर? इस न्यू मीडिया के नाम पर?

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  63. अभी भिलाई वापस पहुंचा हूँ
    आता हूँ कुछ खा-पी कर

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  64. @खुशदीप जी..
    आप वरिष्ठ हैं तो ज्ञान मुझसे बहुत ज्यादा होगा मगर एक श्लोक साझा करना चाहूँगा गीता का..

    हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
    तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ,,
    .
    मुझे लगता नहीं बाकी लोगों की तरह आप चाटुकार हैं.शायद आप में ये गुण नहीं था इसलिए स्थापित होने के बाद भी आप ने निर्णय ले लिया अलविदा कहने का..आप इसे सिर्फ ब्लोगिंग के नजरिये से न देखें..कुछ लोग ब्लोगिंग को बकवास कह कर अपनी दुकान चला लेंगे ..
    शायद आप के अन्दर प्रतिभा है तो वो हिंदी ब्लोगिंग की मुहताज नहीं रहेगी...आप कहीं न कहीं सफल हैं और आगे भी जाएँगे...मगर यदि आप ऐसा करते हैं तो मेरे जैसे व्यक्ति के एक तरफ चाटुकार मिलेंगे जो हिंदी भवन में किलो के भाव मिल गए....और दूसरी तरफ निज स्वार्थ से युक्त एक व्यक्ति..वो होंगे आप ..
    जो जरा सी बात पर रणछोर बनने चले हैं..उसी रणछोर ने गीता का ज्ञान भी दिया है जो आप मुझसे बेहतर जानते होंगे,..
    क्या आप पलायनवादी हो गए हैं ??आप का कोई कर्तव्य नहीं बनता उन लोगों के लिए जो आप के ब्लॉग आ कर अपनी उंगलिया घिस घिस के आप से विचार साझा करते थे??? ....आप की लेखो से कुछ प्रेरणा लेते थे या शायद आप की स्वस्थ आलोचना करते थे..क्या वो खुशदीप सहगल के चाटुकार हैं????
    हिंदी भवन में शयद ४-६ चाटुकार थे जिन्होंने प्रलोभनों के सहायता से कुछ सहयोगी इकट्टा कर लिए..मगर आप अपने कर्तव्य से भागकर उन लोगो को बढ़ावा देते हुए चाटुकारों की नयी पीढ़ी का शंखनाद कर रहें हैं......
    आप ने कहा तो एक तरफ धर्म युद्ध और सत्य के पांचजन्य का शंखनाद किया दूसरी ओर किनारा किये जा रहें हैं...ये सही नहीं है ..आप उन गद्दारों की श्रेणी में नाम मत लिखवाइए...नहीं तो अगले साल हिंदी ब्लोगिंग में राखी सावंत पुरस्कार बाटेंगी सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार का... और चाटुकारों की ब्लॉगर फ़ौज हिजड़ों की तरह ताली बजाएगी..
    अब बस इतना कहूँगा की की इसे छोटे भाई की प्रार्थना या एक ब्लोगर की व्यथा कथा,या एक मित्र की सलाह या अनवर जमाल की चुनौती समझकर लेखनी का ये धर्म युद्ध पुनः शुरू करें...
    ब्लोगिंग के शिखंडी खुद ही किनारे हो जाएँगे.हम सभी आप के साथ हैं और उससे भी ज्यादा हमें आप के साथ की जरुरत है..

    @अनवर भाई: आप की टिपण्णी में मुझे खुशदीप जी के ब्लोगिंग में वापस आने का भय स्पष्ट दिख रहा है..

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  65. टिप्पणियों से माजरा समझ में आया. परन्तु गलतियों का सुधार मैदान में रहकर ही संभव है .पलायन तो इसका हल नहीं. हिंदी ब्लोगिंग को आप जैसे लोगों के सख्त जरुरत है. उम्मीद है अपनी जिम्मेदारियों से नहीं हटेंगे आप.

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  66. मैं अभी इस क्षेत्र में नया हूं। ज्‍यादा गणितबाजी नहीं समझता। सिर्फ अपने लिए लिखता हूं। कोई टिपियाये तो ठीक न टिपियाये तो ठीक।
    हां जितना मैंने समझा है उसके अनुसार यह कह सकता हूं कि यहां टांग खिंचाई में कोई कमी नहीं होती। गुटबाजी बनी हुई है , पर मैं खुद को उससे अलग रखने की कोशिश करता हूं।
    अपना लिखता हूं। जिसका पसंद आता है उसका पढता हूं।
    खुशदीप जी आपको कुछ समय से पढने का मौका मिला। आपकी लेखनी वास्‍तव में नैसर्गिक है।
    इसे चंद लोगों की नाराजगी के कारण न बंद करें.... ये तो ऐसा होगा जैसे आप उन लोगों की फिक्र ज्‍यादा करते हैं बनिस्‍बत.... उनके जो आपको पसंद करते हैं।
    आपको लिखा आशुतोष जी का पत्र पढा। और कमेंट पढे।
    आपसे इतनी ही गुजारिश की हमें महरूम न करें अपने कलम से....

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  67. म्याऊ म्याऊ

    काफी कम समय में काफी ब्लोगिंग कर ली है आप ने एक ब्रेक तो आप का बनता ही है दूसरो की न सुनिए कुछ हफ्तों का ब्रेक तो ले ही लीजिये | ब्रेक के बाद आइये तब तक इन विवादों का गुस्सा की शांत हो चूका होगा और नए विचार नए तरीके के विचार भी मन में पनप चुके होंगे | ब्लोगिंग में वापस से आन्नद आने लगेगा |

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  68. भौ भौ -1

    मै बेईमानी और ईमानदारी का पैमाना भी जानना चाहूंगी की कितने और किस तरह के बेईमान के साथ पुरुस्कार लेने और मंच साझा करने से परहेज करना चाहिए और किस तरह के बेईमानो से पुरुस्कार ले कर उसे अपने ब्लॉग पर गर्व से सजाना चाहिए | मुझे तो लगता है बेईमानी में भी लोगो की औकात देखी जाती है यदि बेईमानी करने वाला प्रधानमंत्री है या उसको नाचने वाला कोई है तो उसकी बड़ी बेईमानी को अनदेखा कर देना चाहिए और यदि बेईमान उससे निचे का है तो उसे बेईमान कह दूर भाग जाना चाहिए | यहाँ भी मजेदार बात है दिल्ली का जो बड़का पत्रकार किसी राज्य के मुख्यमंत्री को बेईमान कह पास नहीं जाना चाहता (क्योकि अब उसकी पहुँच तो प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्रियो तक है भाई ) उसी मुख्यमंत्री के आगे पीछे छुटके राज्य स्तर के पत्रकार घूमते रहते है ,ये पिरामिड ऐसे ही निचे तक बना होता है |

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  69. भौ भौ- 2

    हर इन्सान को खुद से पूछना चाहिए और ईमानदारी से खुद को जवाब देना चाहिए की क्या वास्तव में वो खुद इतना ईमानदार है दुसरे बेईमान का बहिष्कार कर सके या उसके हाथो पुरुस्कार लेने से परहेज कर सके मुझे लगता है की यदि कोई इस दर्जे का ईमानदार है तो सबसे पहले वो एक काम करेगा की कोई भी पुरुस्कार लेने से ही इंकार कर देगा | क्योकि की ये बात सभी जानते है की दुनिया में कोई भी पुरुस्कार पूरी ईमानदारी से नहीं बाटे जा सकते है चयन करने वाले की निजी पसंद ना पसंद और रिश्ते उसे प्रभावित जरुर करते है | असली ईमानदारी तो यही है की चाहे सरकारी पुरुस्कार हो या निजी उसे लेने से ही इंकार कीजिये यदि ईमानदार बने रहना है तो निष्पक्ष बने रहना है तो |

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  70. anshumala ji

    बिल्ली की म्याओ एक बार
    कुत्ते की भों भों दो बार
    अब बन्दर की 'खों खों' और
    बकरी की 'मैं मैं' भी और हो जाये
    तो कुछ आये हंसी खुशदीप भाई को.

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  71. गांव वालों एक ही बात गूंज रही है बंदा टंकी पर है :)

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  72. बहुत दिनों से परदे के पीछे था - एक पाठक था ! समय की कमी के चलते (और आलस्य में भी) बस पढ़े जा रहा था , परिचर्चा और लिखने के लिए समय ही नहीं दे पा रहा था, कई बार वापस आने की सोची पर नही लेखनी उठा पाया !

    जब रविन्द्र जी का सन्देश कार्यक्रम के बारे में आया तो खुशदीप भाई का सहारा लिया और जब आज कुछ ब्लॉग पढ़े तो कार्यक्रम के बाद बहुत दुःख और आघात पहुंचा इसलिए कि आप ब्लॉग लिखना छोड़ रहे हैं :( मैं आपके ब्लॉग का एक नियमित पाठक और आपकी लेखनी को पसंद करने वालो में से एक हूँ ! तो आपके इस निर्णय से मुझे दुःख पहुंचना स्वाभाविक था :(

    ब्लोग्गिंग हमारे फक्कडपन और व्यक्तित्व और विचारों का अपने चाहने वालो , पाठकों और आलोचकों के साथ बांटने का एक तरीका है और वो भी आप हिन्दी में लिखते है तो एक तरह से आप हिन्दी को जीवित रखने में भी सहयोग कर रहे हैं जब हर कोई अंग्रेजी के मायाजाल में हिन्दी में व्यक्त करना ही भूल गया है ! कार्यक्रम के आयोजन में समय की पाबन्दी बहुत जरूरी है और ब्लॉग्गिंग जैसे कार्यक्रम में फक्कडपन होना चाहिए पर हम प्रायोजकों और अन्य चीजों के चक्कर में कभी कंभी थोडा भटक जाते हैं , पर फिर भी आप सब लोग , रवींद्र प्रभात , अविनाश जी सब लोग इस आयोजन के लिए बधाई के पात्र है , हिन्दी ब्लोग्गिंग को परिपक्व होना है और इस तरह की गलतियों से सीखने की जरूरत है न कि खिजियाने की !

    पुण्य प्रसून जी की वजह से और कुछ अन्य वजहों से मैं आपका क्षोभ समझ सकता हूँ पर फिर भी पुनः प्रार्थना करूँगा कि आप लिखना न छोडें !

    फिर से सोंचे और जल्दी ही वापस आयें , अपनी सेहत को जल्दी से चुस्त दुरुस्त करके !

    इन्तजार रहेगा पोस्ट का :)

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  73. खुश दीप जी मै नई हूँ किसी को नही जानती --आपसे कुछ दिन हुए मुलाक़ात हुई है --इतनी जल्दी हमारा साथ न छोड़े --आपसे बहुत कुछ सीखना है !

    जवाब देंहटाएं
  74. khushdeep bhaiya..hame to bas itna kahna hai, aapse mila aapki aatmiyata se mugdh ho gaya....!! thanx!! aisa hi pyar banaye rakhna...:)

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  75. एक नई शुरूआत की उम्मीद लिए बैठा हूं- हर स्तर से।

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