कश्मीर पर कल मेरी पोस्ट पर जिन्होंने भी खुल कर अपनी बात रखी, मैं सभी का दिल से आभारी हूं...यहीं तो इस बहस का उद्देश्य है...ये ठीक है कि हमारी बहस से स्थिति में कोई बदलाव नहीं होने वाला...न ही कश्मीर पर कोई नतीजा निकल आएगा...कश्मीर के मौजूदा हालात पर काबू पाने के लिए भारत सरकार का पूरा अमला टॉप प्रॉयरिटी देने के बावजूद किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा है...तो फिर इस चमत्कार की उम्मीद हमसे कैसे की जा सकती है...ये तो साफ हुआ कि कश्मीर की आग को बुझाने के लिए समाधान को लेकर हम सबकी राय भी बंटी हुई है..ठीक उसी तरह जिस तरह कश्मीर से आर्म्ड फोर्सज़ स्पेशल पावर एक्ट हटाने को लेकर राजनीतिक दल एकमत नहीं है...समझा जा सकता है कि कश्मीर को लेकर राजनीतिक सहमति बनाने के लिए मनमोहन सरकार को कितने पापड़ बेलने पड़ रहे होंगे...
आज राहुल गांधी ने कोलकाता में कहा कि कश्मीर पर युवा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को समर्थन तथा हर संभव मदद देने की ज़रूरत है...लेकिन जब सवाल आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट को हटाने का आया तो राहुल राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी की तरह उसे टाल गए और गेंद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पाले में डाल दी...ये कहकर कि कश्मीर पार्ट टाइम नहीं फुल टाइम समस्या है और आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट जैसे जटिल मुद्दों पर राय देने की स्थिति में नहीं हूं...राहुल बाबा, आप इतने अनजान भी न बनिए...ऐसा कोई मुद्दा नहीं जिस पर आप आजकल बोल न रहे हों...फिर जो मुद्दा इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है, उसे क्यों पीएम का नाम लेकर खूबसूरती से टाल गए...
अभी तक मनमोहन सरकार ने कश्मीर पर एक ही बड़ा फैसला किया है...सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर भेजने का...संभवत रविवार तक प्रतिनिधिमंडल दो दिवसीय दौरे पर जाएगा...एक दिन ये प्रतिनिधिमंडल कश्मीर और एक दिन जम्मू में रहेगा...अब सिर्फ दो दिन में कैसे जम्मू-कश्मीर के हर वर्ग के लोगों तक पहुंच कर कोई निष्कर्ष निकाल लिया जाएगा, ये अपने आप में सोचने वाली बात है...
चलिए अब मैं कल की पोस्ट के पहले सवाल को उठाता हूं...आप सोच कर देखें कि आप आम कश्मीरी नागरिक है, जो धरती की जन्नत पर रहते हुए जेहन्नुम की आग को झेल रहा है...आज के माहौल को देखें तो हमें कश्मीरी नागरिक का नाम लेने पर हाथ में पत्थर उठा कर सिक्योरिटी फोर्सेज को निशाना बनाते किसी युवक का चेहरा नज़र आता है...दरअसल इस युवा को खुद पता नहीं कि वो चाहता क्या है...और वो क्यों इस बेमायनी हिंसा का मोहरा बना हुआ है...इनमें से ज़्यादातर युवा वही हैं जो 1990 के बाद घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही जन्मे और तनाव के माहौल में ही बढ़े हुए...
कश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है...उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...कश्मीर में भी जो पैसे वाले हैं या राजनीतिक तौर पर ताकतवर हैं उन्होंने अपने बच्चों को या तो दिल्ली या विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रखा है...रोना यहां भी गरीब का ही है...उसी का बच्चा निठल्ला बैठे होने की वजह से अलगाववादियों के झांसे में आकर पत्थर उठा लेता है और गला फाड़ कर आज़ादी-आज़ादी चिल्लाने लगता है...इस खेल के लिए उसे बाकायदा पैसे भी मिलते हैं...ये पैसा सरहद पार से ही अलगाववादियों में अपने गुर्गों तक पहुंचाया जाता है...अब ऐसे बच्चों के बारे में आप क्या कहते हैं...इन्हें सही तालीम के ज़रिए देश की मुख्य धारा में लाया जाए या इन्हें भी कल का हार्डकोर टेररिस्ट बनने के लिए हालात के भरोसे छोड़ दिया जाए...
जब तक हम सहते रहेंगे कुछ नहीं होगा ......जितना अपने पास है अगर उसको भी खोना है तो और बात है नहीं तो अब केवल बातों से कुछ नहीं होने वाला ! मैं सेना के अधिकारों में किसी भी तरह की कटौती के खिलाफ हूँ ! एक २१ -२२ साल का युवा सेन्य अधिकारी जब कश्मीर भेजा जाता है पोस्टिंग पर तब अगर उसके हाथ बाँध दिए गए हो तो वह क्या करेगा वहाँ ?? खुद को बचाने की सोचेगा या कश्मीर को ?? नेताओ के अधिकारों में कटौती क्यों ना करी जाए ?? यह सब किया धरा तो इन का ही है !
जवाब देंहटाएंजय हिंद !!
आपने नवयुवाओं के लिए परामर्श मांगा है। वहाँ से 15 वर्ष के ऊपर के किशोरों को देश के अन्य प्रांतों में नि:शुल्क शिक्षा हेतु भेज देना चाहिए। 20 वर्ष के ऊपर के युवाओं को भी अन्य प्रांतों में रोजगार उपलब्ध कराने चाहिए। शिक्षा और रोजगार के कारण हो सकता है कि इनके माता-पिता सहमति दे दें और ये युवा भी भारतीयता में विश्वास प्रकट करने लगें।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी से पूर्णता सहमत हूँ
हटाएंइन्हें सही तालीम के ज़रिए देश की मुख्य धारा में लाया जाए । अजित गुप्ता जी की बात से सहमत हूँ। इनके लिये देश के प्रति प्रेम ,इनके मन मे जो विरोध हैं उन्हें शान्त करने के लिये सच्चाई और स्थिति से अवगत भी के लिये मोटिवेशनल कैंप भी लगाये जायें। कुछ लोग गुमराह होने से बच जायेंगे। येकाम नेताओं से नही करवाया जाना चाहिये बल्कि समाज सेवी संस्थाओं दुआरा हो। बेशक आपकी इस पोस्ट से आज स्थिती नही बदलेगी मगर कोई कभी इससे प्रेरना ले सकता है। बढिया प्रयास है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी से पूर्णता सहमत हूँ
हटाएंकश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है.
जवाब देंहटाएंiski jimmewari sanjukt bharat ke netaon ka hai...
aur in netaon se niptane ke sahi tarike chiplunkarji bhai ke blog par hai......
pranam
बहुत बढ़िया सामयिक लेख ! कश्मीर की बेहद चिंतनीय स्थिति है खुशदीप भाई ! युवाओं को देश से जोड़ने के समस्त उपाय करने चाहिए ! कश्मीर को हम सब की मदद चाहिए !
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी से पूर्णता सहमत हूँ
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"आज के माहौल को देखें तो हमें कश्मीरी नागरिक का नाम लेने पर हाथ में पत्थर उठा कर सिक्योरिटी फोर्सेज को निशाना बनाते किसी युवक का चेहरा नज़र आता है...दरअसल इस युवा को खुद पता नहीं कि वो चाहता क्या है...और वो क्यों इस बेमायनी हिंसा का मोहरा बना हुआ है...इनमें से ज़्यादातर युवा वही हैं जो 1990 के बाद घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही जन्मे और तनाव के माहौल में ही बढ़े हुए...
कश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है...उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...कश्मीर में भी जो पैसे वाले हैं या राजनीतिक तौर पर ताकतवर हैं उन्होंने अपने बच्चों को या तो दिल्ली या विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रखा है...रोना यहां भी गरीब का ही है..."
आदरणीय खुशदीप जी,
फिर वही थोथी भावुकता...वही धृतराष्ट्र-गांधारी की दिव्य दॄष्टि...
न यह युवा मोहरा है... न बेमकसद ही... न दिग्भ्रमित ही...न उसे उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...गरीब और अमीर का सवाल भी नहीं उसके सामने...
जिस तरह ईद के बाद एक चैनल की धर्मग्रंथ का निरादर होने की खबर दिखाने के बाद पूरे कश्मीर में हिंसा की लहर चली, उस से तो सभी की आंखें खुल जानी चाहिये...
यह सब हमारे देश के टुकड़े कर या तो पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं या धर्म आधारित नया इस्लामी मुल्क बनाना चाहते हैं...सुनियोजित साजिश है यह...और इसका मूल कट्टरपंथी इस्लाम में है...यह एक कठोर हकीकत है!
कश्मीर का आम आदमी भारत के किसी भी राज्य के आम आदमी से बेहतर जीवन यापन करता है...यह आप कभी भी जाकर स्वयं देख सकते हैं...
यह देखिये दो माह पहले ब्लॉगवुड में अवतरित यह गुमराह(???) कश्मीरी युवा कैसी उम्दा,निष्पक्ष व सकारात्मक सोच (???)... रखता है!
मेरे इस कमेंट पर भी कुछ कहने का आग्रह करूंगा पाठकों से व आपसे भी...
आभार!
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"आज के माहौल को देखें तो हमें कश्मीरी नागरिक का नाम लेने पर हाथ में पत्थर उठा कर सिक्योरिटी फोर्सेज को निशाना बनाते किसी युवक का चेहरा नज़र आता है...दरअसल इस युवा को खुद पता नहीं कि वो चाहता क्या है...और वो क्यों इस बेमायनी हिंसा का मोहरा बना हुआ है...इनमें से ज़्यादातर युवा वही हैं जो 1990 के बाद घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही जन्मे और तनाव के माहौल में ही बढ़े हुए...
कश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है...उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...कश्मीर में भी जो पैसे वाले हैं या राजनीतिक तौर पर ताकतवर हैं उन्होंने अपने बच्चों को या तो दिल्ली या विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रखा है...रोना यहां भी गरीब का ही है..."
आदरणीय खुशदीप जी,
फिर वही थोथी भावुकता...वही धृतराष्ट्र-गांधारी की दिव्य दॄष्टि...
न यह युवा मोहरा है... न बेमकसद ही... न दिग्भ्रमित ही...न उसे उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...गरीब और अमीर का सवाल भी नहीं उसके सामने...
जिस तरह ईद के बाद एक चैनल की धर्मग्रंथ का निरादर होने की खबर दिखाने के बाद पूरे कश्मीर में हिंसा की लहर चली, उस से तो सभी की आंखें खुल जानी चाहिये...
यह सब हमारे देश के टुकड़े कर या तो पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं या धर्म आधारित नया इस्लामी मुल्क बनाना चाहते हैं...सुनियोजित साजिश है यह...और इसका मूल कट्टरपंथी इस्लाम में है...यह एक कठोर हकीकत है!
कश्मीर का आम आदमी भारत के किसी भी राज्य के आम आदमी से बेहतर जीवन यापन करता है...यह आप कभी भी जाकर स्वयं देख सकते हैं...
यह देखिये दो माह पहले ब्लॉगवुड में अवतरित यह गुमराह(???) कश्मीरी युवा कैसी उम्दा,निष्पक्ष व सकारात्मक सोच (???)... रखता है!
मेरे इस कमेंट पर भी कुछ कहने का आग्रह करूंगा पाठकों से व आपसे भी...
आभार!
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"आज के माहौल को देखें तो हमें कश्मीरी नागरिक का नाम लेने पर हाथ में पत्थर उठा कर सिक्योरिटी फोर्सेज को निशाना बनाते किसी युवक का चेहरा नज़र आता है...दरअसल इस युवा को खुद पता नहीं कि वो चाहता क्या है...और वो क्यों इस बेमायनी हिंसा का मोहरा बना हुआ है...इनमें से ज़्यादातर युवा वही हैं जो 1990 के बाद घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही जन्मे और तनाव के माहौल में ही बढ़े हुए...
कश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है...उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...कश्मीर में भी जो पैसे वाले हैं या राजनीतिक तौर पर ताकतवर हैं उन्होंने अपने बच्चों को या तो दिल्ली या विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रखा है...रोना यहां भी गरीब का ही है..."
आदरणीय खुशदीप जी,
फिर वही थोथी भावुकता...वही धृतराष्ट्र-गांधारी की दिव्य दॄष्टि...
न यह युवा मोहरा है... न बेमकसद ही... न दिग्भ्रमित ही...न उसे उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...गरीब और अमीर का सवाल भी नहीं उसके सामने...
जिस तरह ईद के बाद एक चैनल की धर्मग्रंथ का निरादर होने की खबर दिखाने के बाद पूरे कश्मीर में हिंसा की लहर चली, उस से तो सभी की आंखें खुल जानी चाहिये...
यह सब हमारे देश के टुकड़े कर या तो पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं या धर्म आधारित नया इस्लामी मुल्क बनाना चाहते हैं...सुनियोजित साजिश है यह...और इसका मूल कट्टरपंथी इस्लाम में है...यह एक कठोर हकीकत है!
कश्मीर का आम आदमी भारत के किसी भी राज्य के आम आदमी से बेहतर जीवन यापन करता है...यह आप कभी भी जाकर स्वयं देख सकते हैं...
यह देखिये दो माह पहले ब्लॉगवुड में अवतरित यह गुमराह(???) कश्मीरी युवा कैसी उम्दा,निष्पक्ष व सकारात्मक सोच (???)... रखता है!
मेरे इस कमेंट पर भी कुछ कहने का आग्रह करूंगा पाठकों से व आपसे भी...
आभार!
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खुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंआपने कहा - "…राहुल बाबा, आप इतने अनजान भी न बनिए...ऐसा कोई मुद्दा नहीं जिस पर आप आजकल बोल न रहे हों..."
मेरे लिये वाकई यह खबर है कि राहुल गाँधी देश के मुख्य मुद्दों पर बोल रहे हैं…। आज कश्मीर फ़ुलटाइम समस्या बता रहे हैं, कल नक्सलवाद को और परसों महंगाई को फ़ुलटाइम समस्या बताएंगे… लेकिन ये नहीं बतायेंगे कि यह सब समस्याएं उनके दादा-नाना-दादी-बाप-माँ की ही देन हैं…
रही कश्मीर की बात - हल एक ही है…
1) धारा 370 हटाकर कश्मीरी पण्डितों और भूतपूर्व सैनिकों को हथियार सहित वहाँ जबरन बसाया जाये…
2) सेना को सीमा पर लगाकर घुसपैठ को पूरी तरह समाप्त किया जाये,
3) अलगाववादी नेताओं को कन्याकुमारी की जेल में रखा जाए…
4) जम्मू-लद्दाख क्षेत्र को कश्मीर से अलग करके देखा जाये और उसी अनुरूप नीतियाँ बनाई जायें…
"दिल जीतना", "विश्वास हासिल करना" जैसी बातें फ़र्जी, और भावुकता भरी बकवास हैं। किसी सैनिक के परिवार से पूछकर देखिए कि वह दिल्ली में बैठे "दलालों" को कैसी गालियाँ देता है… कल ही NDTV ने कश्मीर के "भटके हुए युवाओं" के इंटरव्यू दिखाये और उनके लिए सहानुभूति पैदा करने की भरपूर को्शिश की, लेकिन किसी सैनिक का इंटरव्यू नहीं दिखाया कि उनकी परि्स्थिति कैसी है…
आपकी टिप्पणी से पूर्णता सहमत हूँ
हटाएंअगर हमें ये लगता है कि हम कश्मीरी पंडितों को पुनर्स्थापित करके या आक्रोशित कश्मीरी अवाम को डरा धमका के या सुनहरे भविष्य के सपने दिखा के शांत कर देंगे तो ये एक दिवा स्वप्न से अधिक और कुछ भी नहीं. ऐसा नहीं कि कोई राजनेता कश्मीर समस्या का हल नहीं चाहता.. बस फर्क यही है कि वो सही हल नहीं खोज पा रहे. जितना जहर कश्मीर में फ़ैल चुका है और जिस तरह से हम हर रोज अपने जितने सैनिकों को गँवा रहे हैं उसे देखकर तो यही ठीक लगता है कि कश्मीर का वह टुकड़ा कश्मीरियों को ही दे दिया जाए.. क्योंकि ना तो वो पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं ना भारत के साथ. अब हमारे लिए भी कश्मीर बचाना वैसा हो गया है जैसे 'गंगू तेली पाले हाथी'
जवाब देंहटाएंजितनी सुविधाएं और रकम हम उन्हें देते हैं या उस पर खर्च करते हैं उससे आधी भी भारत के किसी अन्य राज्य को दें तो कुछ ही सालों में वो विकसित प्रदेश बन जाए..
जवाब देंहटाएंसही तालीम ?
क्या हैं, या क्या हो सकती है, इसे परिभाषित करें ।
सही तालीम ?
किसको, नेतृत्व को.. नीति-नियँताओं को... बुद्धिजीवियों को.. या भटके हुये नवज़वानों को ?
जरा इन्हें चिन्हित तो करें ।
सही तालीम ?
नेतृत्व को.. जो देश की अँदरूनी मसले हल करने से पहले अँतर्राष्ट्रीय सहानुभूति की फ़िक्र में दुबला हुआ जाता है ।
सही तालीम ?
बुद्धिजीवियों को.. जो समय की सीढ़ियों को उल्टा चढ़ कर इसे 1948 की स्थिति में बहाल देखना चाहते हैं ।
सही तालीम ?
नीति-नियँताओं को... जो हर मसले का हल पैकेज़ बाँटने में और उसकी खुरचन खुद खाने में यकीन रखते हैं । अब तो कश्मीर की राजनैतिक पार्टियों का चुनावी ऎज़ेन्डा ही यह होता है कि, कौन कितना पैकेज़ लायेगा ।
सही तालीम ?
भटके हुये नवज़वानों को, जिन्हें यह समझने का हमने पूरा मौका दिया है, कि दिल्ली उनकी दुश्मन है, और सेना केवल उनके सफाये के लिये ही है ।
आइये पहले इनको सुलझा लें, फिर हल की सोचते हैं
रहा सेना को विशेषाधिकार दिये जाने का मसला.. तो इसे ख़त्म किया जाना चाहिये... और इसके साथ ही कश्मीर का स्पेशल स्टेटस भी तत्काल खत्म कर देना चाहिये । वह स्पेशल स्टेटस की आड़ में भरपूर आग भड़काते रहें, और सेना अपने विशेषाधिकार के चलते इस आग पर अधिक से अधिक पानी उलीचती चले ।
बात कुछ जम नहीं रही है ।
आपकी टिप्पणी से पूर्णता सहमत हूँ
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"आज के माहौल को देखें तो हमें कश्मीरी नागरिक का नाम लेने पर हाथ में पत्थर उठा कर सिक्योरिटी फोर्सेज को निशाना बनाते किसी युवक का चेहरा नज़र आता है...दरअसल इस युवा को खुद पता नहीं कि वो चाहता क्या है...और वो क्यों इस बेमायनी हिंसा का मोहरा बना हुआ है...इनमें से ज़्यादातर युवा वही हैं जो 1990 के बाद घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही जन्मे और तनाव के माहौल में ही बढ़े हुए...
कश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है...उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...कश्मीर में भी जो पैसे वाले हैं या राजनीतिक तौर पर ताकतवर हैं उन्होंने अपने बच्चों को या तो दिल्ली या विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रखा है...रोना यहां भी गरीब का ही है..."
आदरणीय खुशदीप जी,
फिर वही थोथी भावुकता...वही धृतराष्ट्र-गांधारी की दिव्य दॄष्टि...
न यह युवा मोहरा है... न बेमकसद ही... न दिग्भ्रमित ही...न उसे उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...गरीब और अमीर का सवाल भी नहीं उसके सामने...
जिस तरह ईद के बाद एक चैनल की धर्मग्रंथ का निरादर होने की खबर दिखाने के बाद पूरे कश्मीर में हिंसा की लहर चली, उस से तो सभी की आंखें खुल जानी चाहिये...
यह सब हमारे देश के टुकड़े कर या तो पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं या धर्म आधारित नया इस्लामी मुल्क बनाना चाहते हैं...सुनियोजित साजिश है यह...और इसका मूल कट्टरपंथी इस्लाम में है...यह एक कठोर हकीकत है!
कश्मीर का आम आदमी भारत के किसी भी राज्य के आम आदमी से बेहतर जीवन यापन करता है...यह आप कभी भी जाकर स्वयं देख सकते हैं...
यह देखिये दो माह पहले ब्लॉगवुड में अवतरित यह गुमराह(???) कश्मीरी युवा कैसी उम्दा,निष्पक्ष व सकारात्मक सोच (???)... रखता है!
मेरे इस कमेंट पर भी कुछ कहने का आग्रह करूंगा पाठकों से व आपसे भी...
आभार!
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"आज के माहौल को देखें तो हमें कश्मीरी नागरिक का नाम लेने पर हाथ में पत्थर उठा कर सिक्योरिटी फोर्सेज को निशाना बनाते किसी युवक का चेहरा नज़र आता है...दरअसल इस युवा को खुद पता नहीं कि वो चाहता क्या है...और वो क्यों इस बेमायनी हिंसा का मोहरा बना हुआ है...इनमें से ज़्यादातर युवा वही हैं जो 1990 के बाद घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू होने के बाद ही जन्मे और तनाव के माहौल में ही बढ़े हुए...
कश्मीर का युवा इतना दिग्भ्रमित है कि कभी ये पत्थर उठाता नज़र आता है तो कभी पुलिस में भर्ती की लाइन में लगा नज़र आता है...उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...कश्मीर में भी जो पैसे वाले हैं या राजनीतिक तौर पर ताकतवर हैं उन्होंने अपने बच्चों को या तो दिल्ली या विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रखा है...रोना यहां भी गरीब का ही है..."
आदरणीय खुशदीप जी,
फिर वही थोथी भावुकता...वही धृतराष्ट्र-गांधारी की सी दिव्य दॄष्टि...
न यह युवा मोहरा है... न बेमकसद ही... न दिग्भ्रमित ही...न उसे उसे अपना कल पूरी तरह नाउम्मीदी के अंधकार में डूबा नज़र आता है...गरीब और अमीर का सवाल भी नहीं उसके सामने...
जिस तरह ईद के बाद एक चैनल की धर्मग्रंथ का निरादर होने की खबर दिखाने के बाद पूरे कश्मीर में हिंसा की लहर चली, उस से तो सभी की आंखें खुल जानी चाहिये...
यह सब हमारे देश के टुकड़े कर या तो पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं या धर्म आधारित नया इस्लामी मुल्क बनाना चाहते हैं...सुनियोजित साजिश है यह...और इसका मूल कट्टरपंथी इस्लाम में है...यह एक कठोर हकीकत है!
कश्मीर का आम आदमी भारत के किसी भी राज्य के आम आदमी से बेहतर जीवन यापन करता है...यह आप कभी भी जाकर स्वयं देख सकते हैं...
यह देखिये दो माह पहले ब्लॉगवुड में अवतरित यह गुमराह(???) कश्मीरी युवा कैसी उम्दा,निष्पक्ष व सकारात्मक सोच (???)... रखता है!
मेरे इस कमेंट पर भी कुछ कहने का आग्रह करूंगा पाठकों से व आपसे भी...
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इस बात में कोई सक नहीं है की युवाओ को भड़काया जाता है और युवाओ के गर्म खून में उबाल जल्दी आता है अब चाहे इस्लाम के नाम पर उन्हें आतंकवादी बनाया जाये या पत्थर फेकवाया जाये हिन्दुओ के सम्मान के नाम पर वेलनटाइन डे पर तोड़ फोड़ कराइ जाये आरक्षण के नाम पर आत्मदाह कराया जाये कारसेवा के नाम पर किसी विवादित स्थल को तोडा जाये जाती के नाम पर शोर गुल कराया जाये आदि आदि आदि .........| जरुरत इस बात की है की समय रहते इसे ठीक किया जाये नहीं तो ये गन्दगी उनके विचार उनकी सोच बन जाती है और शायद समय निकल चूका है | युवाओ को रोक कर या बहला कर हम इस समस्या को हल नहीं कर सकते है जरुरत तो उस फैक्ट्री को बंद करने की है जो उन हाथो से पत्थर फेकवा रहा है | दुसरे राज्यों में उनको भेजना कोई हल नहीं है फिर समस्या ये है की दूसरी जगहों पे तो कश्मीरी युवाओ को और ही शक की नजर से देखा जाता है उनके प्रति लोगो के क्या विचार है ये हम ब्लॉग जगत में आ रहे विचारो को देखा कर समझ सकते है तो सोचिये की जब उसके साथ देश के दुसरे हिस्सों में ऐसा व्यवहार किया जायेगा तो उसकी ये सोच तो और भी पक्की हो जाएगी की हम भारत के नागरिक नहीं है यहाँ के लोग हमें शक की नजर से देखते है हमें इससे अलग हो कर ही सम्मान मिलेगा |
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी से पूर्णता सहमत हूँ
हटाएंNDTV के जिस कार्यक्रम की बात हो रही है उसमे ये भी दिखाया गया था की कैसे बचारे पुलिस वाले लोगो के पत्थर के शिकार हो रहे है कैसे वो इन सब के बिच फस जाते है कैसे वो छोटे छोटे बंकरो में छुप कर अपनी जन बचाते है है कैसे उनके जान के लाले पड़ जाते है |
जवाब देंहटाएंइसके पहले जब कार्टून को लेकर विवाद हुआ था तो याद है कैसा जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुआ था लोगो की भीड़ देखी थी जरा कोई बताएगा की कितनी गोलिया चली थी उसे रोकने के लिए एक भी नहीं क्योकि वह देश के बाकि हिस्सों में हो रहा है कश्मीर में नहीं | मुंबई में मराठी अस्मिता के नाम पर लोगो को मारा जाता रहा तोड़ फोड़ होती रही कितनी गोलिया चली एक भी नहीं मराठी लोगो पर कितना अत्याचार हो रहा है की राज ने एक सभा में कह दिया की "यदि ऐसे ही मराठी युवको के साथ होता रहा तो एक दिन कोई युवक अलग होने की बात कह दे तो आश्चर्य की बात नहीं है "| कितने दिन जेल में रहे राज उनको उठा कर कश्मीर के किसी जेल में बंद करने की बात क्यों नहीं हुई | सोचिये की किसी आन्दोलन में देश के किसी और हिस्से में इतने लोग पुलिस की गोली के शिकार होते तो शायद अब तक सारकार गिर गई होती |
कश्मीर के युवाओ को दोष देने से पहले हर सुख सुविधा और सहूलियत के साथ जी रहे देश के बाकि हिस्सों के युवाओ के विचार और सोच को सोनिये उनमे बढ़ते अपराध के ग्राफ को देखिये फिर पता चल जायेगा की कश्मीर का कोई युवा क्यों भड़क जाता है क्यों वह जंद पैसो के लिए पत्थर फेकने को राजी हो जाता है | दोष युवाओ को नहीं माहौल और उनको दिशा दिखा रहे लोगो का है चाहे वो कही भी हो |
सोनिये =को सुनिये पढ़े
जवाब देंहटाएंKhushdeep ji,
जवाब देंहटाएंYe sab alagaaw wadio kee harkatei hai, Kasmir ka yuva berozgaar aur anpadh hai. Usko jaisa kahoge woh waisa karega,
PRAVIN SHAH jee aaapki baat se sehmat hu ki ye yuva 1990 ke aatank ke aaspaas pade bade huye hai. Aur yeh digbhramit hai.
Kasmir kaa ek hee solution hai,kee--
Bharat Sarkar ko strong policy apnani padegi, yeh problem soft politics kee wajah se huyi hai.
anshumala jee,
जवाब देंहटाएंAApke vichar strong hain.
Raaj jaiso ko kasmir kee jailo mei band katna chahiye aur, kasmir mei Algawawadio ko Kaala Paani kee sajaa deni chahiye
`.सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर भेजने का...'
जवाब देंहटाएंजब वहां के प्रतिनिधि कुछ नहीं कर पा रहे तो प्रतिनिधिमंडल क्या करेगा? पहले डॊ. अमर जी के सवालों को हल कर लें... फिर सॊंचेंगे:)
हमारीवाणी को और भी अधिक सुविधाजनक और सुचारू बनाने के लिए प्रोग्रामिंग कार्य चल रहा है, जिस कारण आपको कुछ असुविधा हो सकती है। जैसे ही प्रोग्रामिंग कार्य पूरा होगा आपको हमारीवाणी की और से हिंदी और हिंदी ब्लॉगर के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओँ और भारतीय ब्लागर के लिए ढेरों रोचक सुविधाएँ और ब्लॉग्गिंग को प्रोत्साहन के लिए प्रोग्राम नज़र आएँगे। अगर आपको हमारीवाणी.कॉम को प्रयोग करने में असुविधा हो रही हो अथवा आपका कोई सुझाव हो तो आप "हमसे संपर्क करें" पर चटका (click) लगा कर हमसे संपर्क कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंटीम हमारीवाणी
हमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर मे आम नागरिक की तरह जा कर भटके हुये भाईयो से मिले और उन्हे सम्झाये तो माने :)
जवाब देंहटाएंजब तक चिप्लूनकर जी के सुझाव पर तब्ज्जो नही दि जायेगी तब तक कश्मीर का मसला सुलझेगा नही
भाई, इतना सब कुछ पढ़ने के बाद अपने तो दिमाग का भुरकस निकल चुका है। वैसे भी बहुत व्यस्त हूँ। अगले तीन-दिन अंतर्जाल पर गैर हाजिर रहूँगा। अगले सप्ताह फिर मिलते हैं। हाँ इतना कह रहा हूँ कि कश्मीर की बात जारी रहे। हो सके तो इस में किसी तरह कश्मीरियों की शिरकत भी हो। क्यों कि उन के बिना यह मसला हल नहीं किया जा सकता।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी से पूर्णता सहमत हूँ
हटाएं@इस में किसी तरह कश्मीरियों की शिरकत भी हो। क्यों कि उन के बिना यह मसला हल नहीं किया जा सकता
जवाब देंहटाएंये भी अच्छा आइडिया हो सकता है