पहली बात तो मैं ये साफ़ कर दूं कि ये पोस्ट मुझे कल ही लिखनी थी लेकिन कल किसी समारोह में जाने की वजह से ये मेरे लिए संभव नहीं हो सका...मैं ये भी इंतज़ार कर रहा था कि बबली जी शायद खुद ही कुश की अदालत में अपने खिलाफ चले स्वयंभू मुकदमे की चार्जशीट पर सफाई दे दें...लेकिन बबली जी अपनी अगली पोस्टों के लिए स्नैप्स और शेरो-शायरी ढूंढने में इतनी व्यस्त हैं कि उन्हें ऐसे छोटे मोटे मुकदमों की कोई परवाह नहीं..वैसे भी ये मुकदमा ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में कोई चल रहा है, ये मुकदमा तो चल रहा है जयपुर के कुश के ज़रिए ब्लॉगर्स की अदालत में...
ठीक वैसे ही जैसे नया सीरियल चल रहा है...ये चंदा कानून है...इस अदालत में फैसला पहले सुनाया जाता है, सफाई के लिेए मौका बाद में दिया जाता है...भईया खबर की दुनिया का भी पहला सिद्धांत है कि कोई रिपोर्ट फाइल की जाए तो संबंधित सभी पक्षों का वर्जन भी जान लिया जाए...पर ब्लागर्स के मंच पर खुला खेल फर्रूखाबादी है...न खाता, न बही, जो कुश महाराज कहें, वो सही...मौज को ही मुद्दा बना दें...मुद्दों की मौज बनाने की फिक्र कौन करे...
किसी ने बबली जी वाली कुश जी की पोस्ट पर कमेंट किया है कुशाग्र बुद्धि,आइडिया के खान हो सचमुच...मैं भी इससे पूरी तरह सहमत हूं...कुश जी की इंस्पेक्टर ईगल वाली बुद्धि को मेरा भी लमस्कार (उन्हीं की तर्ज पर)...बबली जी की प्रोफाइल की पंक्ति निकाली...उनका फोटो जू....म किया...फिर 36 कमेंटस (वैसे उस पोस्ट पर और भी ज़्यादा कमेंट्स आए थे) में से... चुन चुन कर मारूंगा वाली... तर्ज पर सिर्फ 14 नाम छांटे...उन महारथियों में एक गरीब मैं भी था...ब्लॉग-शास्त्र में नया रंगरूट होने की वजह से अनजान था कि किसी दूसरी पोस्ट पर कमेंट करने के लिए जाने से पहले कुशजी की अनुमति लेनी होती है...अब खुश कमेंट करने के लिए कुश से अनुमति नहीं लेगा तो और किससे लेगा...ठीक वैसे ही जैसे कालेज में नया दाखिला लेने पर दादा भाइयों से डर कर रहना पडता है...
तो कुश भाई, पहली बात तो ये मैंने आपकी समझ के अनुसार बबली जी की पोस्ट पर जाकर टिप्पणी करने का गुनाह किया...क्या गुनाह किया था... बगैर बबली जी की तारीफ किए फोटो के भाव को देखते हुए पुरानी फिल्म सीमा में रफी साहब के गाए गाने की दो पंक्तियां लिख दी थीं
जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
(अब ये मत कह देना कि मैंने भी उन पंक्तियों में गीतकार का नाम नहीं दिया तो मैंने भी वो गाना चोरी कर लिया, इसलिए मैं भी बंटी हो गया)
रही बात जिन 14 टिप्पणीकारों का आपने चिट्ठे में जिक्र किया, उन्होंने क्यों नहीं अपने-अपने घरों में गीत-गजलों के संग्रह रखे हुए, कहीं कमेंट देना है तो पहले उनसे कन्सल्ट करो...ठोक बजा कर देख लो कि जो पंक्तियां पढी है वो कहीं मरहूम गालिब चचा तो ही नहीं लिख गए...वैसे कुश जी फिर दाद दूंगा आपके सिक्स्थ सेंस को...वाजिदा तब्बसुम जी की पंक्तियों को ऐसे प्रचारित किया जैसे गोया वो गायक जगजीत सिंह ने खुद ही लिखी हो...ये तो भला हो पल्लवी त्रिवेदी जी का जिन्होंने सच बता दिया कि आखिर वो पंक्तियां किसकी थीं...नहीं हमें तो कुश जी ने ये मनवा ही दिया था कि ये पंक्तियां जगजीत सिंह की ही थी...
अब रही बात जिन्होंने बबली जी की पोस्ट पर कमेंट किए वो अपनी बात पर टिके क्यों नहीं ...सफाई की मुद्रा में आपको साक्षात दंडवत क्यों नहीं करें...जैसे एक टिप्पणीकार ने लिखा है बड़े-बड़े बबली जी की पोस्ट पर जाकर साक्षात दंडवत करते दिखाई देते हैं...समीर लाल जी समीर ने शालीन तरीके से अपने कमेंट्स के जरिए समझाने की कोशिश भी कि "एक साथ ३६ लोग आँख नहीं मूंदते. कतई आवश्यक नहीं कि हर रचना के रचनाकार को आप जाने ही या उसे सुना ही हो तो यह भूल अति स्वभाविक है अगर आप किसी के उत्साहवर्धन करने के लिए आगे आते हैं. वरना अपने आप में तो यूँ भी मुदित रहा जा सकता है." समीर जी आंख की मर्यादा रखना जानते हैं, इसलिए उन्होंने उसी तरीके से रिएक्ट किया...
मैंने ब्लॉगवाणी पर और छानने की कोशिश की शायद कोई और जांबाज़ नज़र आ जाए जिसने इस सेंसेटिव मुद्दे पर अपना पक्ष रखने की कोशिश की हो...ऐसे में सिर्फ एक ही दिलेर मिला, हाथ में लठ्ठ लिए अपना ताऊ रामपुरिया...ताऊ ने अपनी पोस्ट में कुछ गजब के सवाल किेए हैं....उन्हें ताऊ की अनुमति से मैं फिर यहां रिपीट करना चाहूंगा...
सवाल न.1... क्या नये लोगों के बारे मे पूरी जानकारी किये बिना उनके चिठ्ठों पर टिप्पणियां नही की जाना चाहिये? जब तक की उनके बारे में पक्की खबर नही लग जाये कि यह आदमी इधर उधर का माल नही ला रहा है? अथवा उनके द्वारा सेल्फ़ डिसकलेमर पोस्ट के नीचे लगाया जाना चाहिये कि यह माल सौ प्रतिशत शुद्ध उनका ही है, यानि खांटी माल है, सिर्फ़ ऐसी ही डिसकलेमर लगी चिठ्ठा पोस्टों पर टिपियाया जाना अलाऊ होगा?
सवाल न.2... जो जिस क्षेत्र का ब्लागर है उसे उसी क्षेत्र मे टिप्पणी करनी चाहिये, मसलन कविता, गजल/शायरी का जानकार ही गजल/शायरी की पोस्ट पर कमेंट कर सकता है. इसी तरह गद्य के जानकार गद्य पोस्टों पर करें?
इसका फ़ायदा यह होगा कि भविष्य मे इस तरह की कवायद करने की जरुरत ही नही पडॆगी. कारण कि हर आदमी के लिये हर क्षेत्र का जानकार होना जरुरी नही है. तो फ़टे मे पांव नही घुसेडने की आदत से बचा जा सकेगा.
सवाल न. 3... क्या आप सोचते हैं कि शादी का लिफ़ाफ़ा नही लौटाना चाहिये? अब आप कहोगे कि ऐसे लोगों को शादी का निमंत्रण ही क्यो देते हो? बात आपकी ठीक है पर यह ऐसी सरकारी शादी है कि सामने वाला बिना बताये आगे से निमंत्रण पत्र (टिप्पणी) डाल जाता है तो उसको क्या करें? क्या ऐसी आई हुई टिप्पणी को लौटा देना (डिलिट) चाहिये?
जिस तरह से यहां टिप्पणी करने वालों की छीछालेदर हुई है उससे तो अब कहीं टिप्पणी भी करने की इच्छा नही हो रही है. क्योंकि वहां टिपियाने वाले अधिकांश टिप्पणीकर्ता गजल/शायरी की विधा से वाकिफ़ भी नही थे और जो इसके जानकार भी थे तो जरुरी नही है कि वो ये जानते ही हों की यह किसकी रचना है? जिन्होने भी टिपण्णीयां की वो एक तरह से प्रोत्साहनात्मक कार्य ही था.
सवाल न. 4... क्या आप समझते हैं कि वरिष्ठों की एक स्क्रींनिग कमेटी होनी चाहिये जिनके पास पोस्ट जमा करा दी जाये और वहां से ओके सर्टीफ़िकेट मिलने के बाद ही पोस्ट पबलिश करने की अनुमति दी जानी चाहिये?
यानि एक स्वयंभू मठाधीशों और स्ट्रिंगरों की कमेटी बना दी जाये जो यह तय करे कि यह माल मौलिक है या नही और इसके बाद ही इसको निर्बाध कमेंट करने की अनुमति दी जाये?
सवाल न. 5... अनसेंसर्ड चिठ्ठों यानि जो आपकी स्क्रिनिंग कमेटी से होकर नही आये उन पर टिप्पणी करने की रोक होनी चाहिये जिससे कि ऐसे चिठ्ठों पर टिप्पणी करके भविष्य मे होने वाली छीछालेदर से बचा जा सके.
सवाल न. 6...क्योंकि अब टिप्पणियां सिर्फ़ स्क्रिनींग कमेटी द्वारा पारित चिठ्ठों पर ही होंगी तो इसे देखते हुये..उडनतश्तरी, सारथी और चिठ्ठाजगत को यह हिदायत दी जाये कि वो लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिप्पणियां देकर नये लोगों को उत्साह वर्धन करने की भ्रामक अपील करना बंद करें, वर्ना उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जायेगी?
सवाल न. 7...क्या किसी की छीछालेदर करने का अधिकार कुछ विशेष व्यक्तियों और उनके चेले चपाटों के पास सीमित कर दिया जाना चाहिये? और मौज लेने का अधिकार भी कंडिका ४ वाली कमेटी के पास सीमित कर दिया जाये? इस अधिकार के चलते कमेटी के अध्यक्ष का निर्धारण भी आसानी से हो जायेगा और सदस्य का आना भी कमेटी पर तय ही रहेगा.
सवाल न. 8...क्या इस व्यवस्था से हम मातृभाषा की ज्यादा और आसानी से सेवा कर पायेंगे?
ये तो रही ताऊ रामपुरिया की बात...
अनूप शुक्ल जी ने कुश जी की ही पोस्ट पर ये बड़ी सार्थक टिप्पणी की है..
"अरे भाई, बबलीजी ने ये थोड़ी कहा कि अपने ब्लाग पर जो कवितायें, शेर शायरी उन्होंने पोस्ट की उनको उन्होंने लिखा भी है... यह तो इसी तरह हुआ जैसे कि सड़क किनारे किसी कार के पास मैं खड़ा हो जाऊं या फ़िर कोई कार चलाता दिखूं तो आप कहो कि मैं उस कार को अपनी बता रहा था... बाद में साबित कर दो कि मैं झूठ बोल रहा था और कार को अपनी बता रहा था...बबलीजी ने रचनायें पोस्ट कीं यह तो कहा नहीं कि वे उनकी हैं...जिन लोगों ने बबलीजी के ब्लाग पर कमेंट किये उन्होंने भी कोई गलत नहीं कहा... पढ़कर अच्छा लगा, बहुत खूब, सुन्दर लिखा है, क्या खूब लिखा है... इससे यह तो नहीं जाहिर होता कि उन्होंने यह मान लिया है कि वे शेर/गजल बबली ने लिखी हैं... इससे सिर्फ़ और सिर्फ़ यह साबित होता है कि पोस्ट बबली ने किया है और लिखने वाले ने अच्छा लिखा है... लिखने वाला कोई भी हो सकता है... किसी दूसरे की गजल बबलीजी ने अपने नाम से लिख दी कहकर उनकी बुराई करना उसी तरह है जिस तरह इंस्पेक्टर मातादीन ने चांद पर अपराधी पकड़े थे..."
मेरा भी यही मानना है कि बबली जी ने कहीं भी अपनी पोस्ट पर ये नहीं कहा कि ये पंक्तियां मेरी हैं...उन्होंने ये भी नहीं कहा कि जो स्नैप उन्होंने पोस्ट पर दिया है उसकी छायाकार वहीं हैं...हां, एक गुनाह बबली जी ने ज़रूर किया है कि पल्लवी त्रिवेदी जी के सच्चाई बताने पर जानबूझ कर उनका कमेंट डिलीट कर दिया...ऐसा उन्होंने क्यूं किया मैं नही जानता...इस पर वो खुद ही सफाई दे दें तो बेहतर...अगर वो खुद सफाई नहीं देतीं तो उन्हें गुनहगार मान लिया जाएगा...चलिए वो गुनहगार हो भी गईं तो क्या उनका कसूर इतना बडा है कि उन्हें सरे पंचायत रूसवा किया जाए...एक नारी के साथ ऐसा बर्ताव हुआ और मातृशक्ति भी चुप रही...क्या मौज की खातिर कहीं तक भी लिबर्टी ले लेना जायज है...मैं जानता हूं कि इस पोस्ट पर मुझे फूल कम पत्थर बहुत ज्यादा आने वाले हैं...लेकिन मैं जिस बात पर स्टैंड ले लेता हूं तो फिर उस पर टिका रहता हूं...मैं वादा करता हं कि मैं अपनी इस पोस्ट से भी कोई टिप्पणी डिलीट नहीं करूंगा बशर्ते कि वो मर्यादा की सीमा न लांघे...
आखिर में कुश भाई आपसे एक निवेदन और...मेरी इस पोस्ट को किसी पोस्ट विशेष पर अपने भाव समझ कर ही लेना...व्यक्तिगत रूप से आप मेरे लिए उतने ही सम्मानित है जितना कि भारत का हर नागरिक...मुद्दों पर बहस होनी चाहिए, मुद्दों को खुन्नस की वजह नहीं बना लेना चाहिए...
कुश भाई बिना मांगे अगले स्टिंग आपरेशन के लिए आइडिया और दे देता हूं...अब उन्हें पकड़ो जिनकी पोस्ट पर जाकर बबली जी ने टिप्पणियां दी है...शुरुआत मुझसे ही करो क्योंकि मेरी कई पोस्ट पर बबली जी की टिप्पणियां आई हुई हैं...
पहले कुश ने कहा, खुश ने सुना
अब खुश ने कहा, ये कुश की मर्जी है वो सुने या न सुने ...
लेकिन जब फिर कुश कहेगा, तो खुश उसे ज़रूर सुनेगा...
उफ...इतनी लंबी पोस्ट...देख कर मैं खुद ही डर गया...नहीं जानता कि आप इसे कैसे झेलेंगे...अरे बाबा इतने पंच्स के बाद भी स्लॉग ओवर की कसर है क्या...नहीं, नहीं मानते तो लो भईया छोटा सा...
स्लॉग ओवर
दिल तो है दिल किसी पर भी आ सकता है...तो जनाब एक मुर्गी और सुअर के नैन लड़े...आंखों ही आंखों में इशारा हुआ...बात किस तक आ गई...दोनों ने किस लिया...किस लेते ही दोनों दुनिया को अलविदा कह गए...मुर्गी स्वाइन फ्लू से मर गई और सुअर बर्ड फ्लू से....(इसे कहते हैं किस ऑफ डेथ)
खुशदीप जी
जवाब देंहटाएंसबके विरोध दर्ज करने के अपने अपने तरीके हैं. मेरा इतना लिख देना भी मेरे स्वभाव के विपरीत ही था वरना मैं ऐसे मसलों पर मौन साधना ही पसंद करता हूँ.
बबली एपिसोड निश्चित ही एक बेहद दुखद और अफसोसजनक वाकिया था.
इसी जाल जगत में कितनी ही जगह गालिब, मीर और जाने कितने शायरों के कलाम लोग नित छाप रहे हैं बिना नाम दिए. निश्चित ही रचनाकार का नाम देना एक बहुत स्वस्थ परंपरा है. किन्तु निन्दनीय है कि किसी और की रचना को अपनी बता कर छापना.
इसी ब्लॉगजगत में मेरी खुद की रचना में शॆर में से मेरा नाम ’समीर’ हटाकर ’लेले’ बनाकर किन्हीं लेले साहब ने छाप लिया.
http://ramrotiaaloo.blogspot.com/2008/11/blog-post.html
बाद में बताने पर सस्ता शेर ने क्रेडिट तो जोड़ दिया लेकिन रचना में अब भी समीर की जगह लेले ही है और जिस साईट से ये लाया गया है, वहाँ अब भी उन्हीं साहब के नाम से दर्ज है.
मशहूर गीतकार राकेश खण्डेलवाल जी के गीत कितनी ही बार कितने ही लोग छाप चुके हैं पूछे जाने पर जबाब भी नहीं देते. हरकीरत जी गजल छापी गई. झगड़ा मचा. निशांत जी की जेन बोध कथायें दूसरे ब्लॉग से उनके छापने के पाँच मिनट के अन्दर नियमित छापी गईं.
कभी भी किसी को इस तरह से ’चिट्ठाचर्चा’ जैसे सार्वजनिक मंच पर लाकर मय तस्वीर जलील नहीं किया गया आज तक.
रही उनके ब्लॉग पर डाली गई फोटूओं की तो ऐसे तो हजारों ब्लॉग हैं, मेरा भी है..जो गुगल से तस्वीरें उठाकर रचना के लिए उपयुक्त पाकर लगाते हैं. कभी साभार गुगल लिखते हैं, कभी रह भी जाता है.
कितने ही ब्लॉग्स पर ऐसे भीषण काण्ड रचना चोरी को लेकर मचे हैं. पूरा ब्लॉगजगत जुटा उनके ब्लॉग्स पर विरोध और समर्थन दर्ज करने किन्तु वो उस विवाद और ब्लॉग तक सीमित रहा. हाँ, चिट्ठाचर्चा मंच पर उस पोस्ट और चोरी की चर्चा हुई जरुर किन्तु पूरी तस्वीर, नाम, और सबूतों के साथ बिना मौका दिये इस तरह किसी को भी जलील करते कभी नहीं देखा मैने अपनी हिन्दी ब्लॉगिंग के जीवन काल में.
साथ ही मात्र कुछ ही टिप्पणीकारों की टिप्पणी लगाना जबकि ३६ से ज्यादा उपलब्ध थीं, प्रस्तुतिकरण के उद्देश्य पर संदेह पैदा करवाता है.
आपने विरोध दर्ज किया, यह आपका तरीका है. सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ.
बस, मुझे और कुछ नहीं कहना. सब अपने हिसाब से लिख रहे हैं. अपने हिसाब से बातें रख रहे हैं. यह उनका अधिकार क्षेत्र है. किन्तु निश्चित ही इस तरह की बातें तकलीफ देती हैं और ब्लॉगजगत की लम्बी यात्रा के लिए हितकर नहीं हैं.
-समीर लाल
-हाँ, आपका स्लॉग ओवर पुनः मस्त रहा. :)
अपने नियमित लेखन पर ध्यान दें. आपमें असीम संभावनायें हैं. समाज है तो विवाद तो होते रहेंगे.
खुशजी आप से सहमत हैं अरे कोई बबलीजी ने किसी के बागड़ में घुस कर यह थोड़े ही कहा कि बाड़ा मेरा है, अरे वो तो केवल खड़ी थीं लोगों ने कहा बाड़ा बहुत अच्छा है, यह तो एक मानवीय स्वाभाविक पहलू है कि लोग अच्छी चीज को अच्छा कहकर तारीफ़ करते हैं और जिसकी तारीफ़ की जा रही होती है तो उसे भी अच्छा लगने लगता है और गलती से कमेंट डिलीट कर दी जाती है या जान बूझकर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है पर इससे किसी को भी किसी की अस्मिता पर ऐसे पत्थर फ़ेंकने का अधिकार किसने दे दिया। एक तो बबलीजी ने इतनी अच्छी गजल से रुबरु करवाया वो देखो कितने लोगों ने पहली बार पढ़ी, मैंने भी, फ़िर भी उन्हें सरेआम रुसवा किया जा रहा है, जे तो गलत बात है ठाकुर कि अब तुम किसी बंटी के पीछे पड़ गये अरे तुम क्या इस ब्लॉगजंगल के गब्बर सिंह हो जो तुम किसी के भी पीछे पड़ कर उसे परेशान करो।
जवाब देंहटाएंअपने अपने कहने और समझने के अंदाज हैं भैये। कुश की टिप्पणी का स्वर मूलत: उन लोगों से मौज लेने का था जो लोग लगातार टिपियाते जा रहे हैं! उनकी अपनी सीमायें होती हैं! सबको सब कुछ याद नहीं रहता। बबली के लिये भी कुश ने अपनी तरफ़ से इशारा किया। बाकी लोगों ने अपनी प्रतिक्रियायें दी। बाकी तो जिसका लिखा सार्थक होगा वही याद रखा जायेगा। ई सब स्टिंग और उसका प्रति स्टिंग कहीं नजर नहीं आयेगा।
जवाब देंहटाएंअब मुद्दा गंभीर हो गया है -कुछ सवाल मेरे भी हैं -
जवाब देंहटाएं१- कुछ लोगों के संकेत हैं की बबली का इंगित ब्लॉग एक क्षद्म्नामी का ब्लॉग है !
२- मतलब कोई और परदे के पीछे से प्रेत लेखन में लगा है !
३ -नारी ब्लॉग पर पुरुषों का एक सहज आकर्षण होता ही है -ज्यादा लोग जाते ही हैं वहां
इसमें अन्यथा कुछ भी नहीं है .
४-मगर ब्लॉग पर पहुँच कर रचना को लक्ष्यकर टिप्पणियाँ दी जाती हैं -यह टिप्पणीकार का
अपना विशेषाधिकार है ! वाहवाही प्रोत्साहन के लिए होती है !
५-यह जरूरी नहीं की किसी को आज तक के सभी नामी गिरामी साहित्यकारों की रचनाएं
याद हों या उन्हें उसने पहले देखा पढ़ा हो !
६-व्यक्तिगत पत्रों में मुझी पर कुछ लोगों ने आरोप लगाया है की बबली और मुझमें
संवेदनशील विचार विनिमय चल रहा है -( वाहियात बात ! ) खुदा का करम है की
मेरी टिप्पणी विवादित पोस्ट पर नहीं है अन्यथा वह १५वी चयनित टिप्पणी होती !
७-बबली ये जो भी हों का खाना खजाना ब्लॉग पाक शास्त्र पर एक बढियां ब्लॉग है !
८-बबली जी मौन क्यों हैं ?
मुझे अगली टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा !
जवाब देंहटाएंअनुप शुक्ला का कमेंट देखा।
जवाब देंहटाएंबबली सिर्फ एक मोहरा हैं।
असल निशाना कोई और है।
अनूप यह बात जानते हैं, उनके लिखे स्टेटमेन्ट के मुताबिक।
यह एक गुट के द्वारा प्रायोजित षणयंत्र है।
आप समझ गये होंगे की इस गुट का सरगना कौन है।
कुश एक कठपुतली है इस गुट की।
जैसा गुट चाहता है, वैसा वो कर रहा है।
उसे माफ कर दिज्ये।
उसे खुद नहीं मालूम की वो क्या कर रहा है और किन लोगों के चुंगल में फंसा हुआ है।
यह हिन्दी और इस ब्लोगजगत के लिये दुर्भागयपूर्न बात है।
राजेश स्वार्थी की टिप्पणी से हमें कौनौ एतराज नहीं है न कोई कष्ट क्योंकि जिसकी जितनी अकल होती है उतनी बात करता है। आप खाली ये देख लो भैये कि ये स्वार्थीजी इत्ते स्वार्थी हैं अपनी बात कहने के लिये कि फ़र्जी ब्लाग बनाकर पिले पड़े हैं। एक अनामी ब्लागर का इतना शानदार कमेंट छप रहा है इससे अच्छा तो अपना माडरेशन खोल लेव भैया। कम से कम आपको माडरेशन का कष्ट तो न उठाना पड़ेगा भैया खुशदीप!
जवाब देंहटाएंअनूपजी, मैं पहले ही वादा कर चुका हूं, जब तक किसी टिप्पणी में शब्दों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं होगा, मैं टिप्पणी नहीं हटाऊंगा...रही बात छदमनामी टिप्पणीकार की, तो कुशजी की पोस्ट पर... तीखी बात...नाम से अनामी टिप्पणीकार मेरी शान में कसीदे भांज चुका है...वहां किसी ने टिप्पणी हटाने की सलाह नहीं दी...अब तीर कमान से निकल चुका है...कुछ को घायल तो होने दीजिए...मैं खुद तो इसके लिए बिल्कुल तैयार हूं...
जवाब देंहटाएंबेहद गंभीर मसला।
जवाब देंहटाएंब्लॉगानुभावों के ब्लॉग पर, अनामियों या अनजानों की टिप्पणियाँ, व्यक्ति विशेष की खिल्लियाँ उड़ाती मौज़ूद हैं। जब वहाँ स्वीकार्य हैं तो यहाँ क्यों नहीं।
मैं सोचता था, ताऊ के ब्लॉग कैरेक्टर काल्पनिक हैं।
बी एस पाबला
गुट से लेकर गुट की बात है। तीखी बात तो उनके गुट का है। उसे हटाने की सलाह मत दिज्ये। आज राजेश स्वार्थी उनके गुट से अलग हो गया तो खटकता है। मेरी पैदाईश भी उन्हीं की है जिसे किसी और के खिलाफ कभी उनहोने तैय्यार किया था। अब उन्हे याद नही रहा।
जवाब देंहटाएंराई को पहाड़ बनाने की बात है जी. इन बातों से आगे बढ़िए. अच्छा लिखिए. अच्छा पढ़िये. अच्छा कमेन्ट दीजिये. वैसे तो विवाद जाने-अनजाने हो ही जाते हैं लेकिन कोशिश यही रहनी चाहिए कि जितने कम हों, उतना ही अच्छा.
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी..अच्छा होता यदि आप अपनी इस पोस्ट के साथ कुश जी की और बबली जी की उक्त पोस्ट का लिंक भी लगा देते।मेरे ख्याल से मेरे जैसे कुछ अन्य ब्लॉगर बन्धुओं को भी शायद इस किस्से के बारे में कुछ मालुम नहीं होगा।अत: बिना कुछ जाने मैँ इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं समझता।
जवाब देंहटाएंवैसे मेरी राय में हम सभी ब्लॉगरों को बिना किसी प्रकार के विवाद में पड़ते हुए अपना कार्य करते रहना चाहिए क्योंकि व्यर्थ के विवाद किसी अच्छी चीज़ को जन्म नहीं देते बल्कि इनके जरिए हम अपनी ऊर्जा...अपना संयम...अपना समय का ह्रास करते हैँ....
मैंने पहले ही चेताया था, ऐसी बात उछाल कर पॉलिटिक्स को बढावा दिया जा रहा है... एक बार फिर आपकी मंशा साफ़ भी होगी लेकिन हो जायेगा...
जवाब देंहटाएंपहली कमेन्ट यानि आपके गुरुदेव (सर समीर लाल ) से पूर्णतः सहमत है यह बन्दा
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंराजीव भाई, आपने अच्छा ध्यान दिलाया, जिस चर्चा पर प्रतिचर्चा हो रही है, उसका लिंक मुझे अपनी पोस्ट में ही देना चाहिए था...वो भूल मैं यहां सुधार कर कुशजी की उस पोस्ट का लिंक दे रहा हूं-
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.com/2009/09/blog-post_16.html
वैसे कुशजी की चिट्ठाचर्चा वाली ये पोस्ट...कौन है आज का ब्लॉगर ऑफ द डे.... ब्लॉगवाणी में पिछले 7 दिन में पढ़ी जाने वाली पोस्ट के कॉलम में जाए तो ऊपर से तीसरी या चौथी पोस्ट वही है...
बबली जी की पोस्ट का लिंक ये है-
http://seawave-babli.blogspot.com/2009/09/blog-post_13.html#links
खुशदीप जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने लिंक मुहैय्या करवा दिए...पोस्ट को भी पढ लिया है लेकिन वो कहते हैँ ना कि...
जवाब देंहटाएंहम बोलेगा तो बोलोगे(सब बोलेंगे) कि बोलता है...
अत: मौन धारणा करना ही उचित है...
शायद मेरा अगला व्यंग्य इसी बारे में होगा...आमीन
.
जवाब देंहटाएं.
.
"मेरा भी यही मानना है कि बबली जी ने कहीं भी अपनी पोस्ट पर ये नहीं कहा कि ये पंक्तियां मेरी हैं...उन्होंने ये भी नहीं कहा कि जो स्नैप उन्होंने पोस्ट पर दिया है उसकी छायाकार वहीं हैं...हां, एक गुनाह बबली जी ने ज़रूर किया है कि पल्लवी त्रिवेदी जी के सच्चाई बताने पर जानबूझ कर उनका कमेंट डिलीट कर दिया...ऐसा उन्होंने क्यूं किया मैं नही जानता...इस पर वो खुद ही सफाई दे दें तो बेहतर...अगर वो खुद सफाई नहीं देतीं तो उन्हें गुनहगार मान लिया जाएगा...चलिए वो गुनहगार हो भी गईं तो क्या उनका कसूर इतना बडा है कि उन्हें सरे पंचायत रूसवा किया जाए...एक नारी के साथ ऐसा बर्ताव हुआ और मातृशक्ति भी चुप रही...क्या मौज की खातिर कहीं तक भी लिबर्टी ले लेना जायज है..."
खुशदीप जी,
१-बिना मुद्दे को जाने-समझे बचाव मत कीजिये किसी का, काफी लम्बे अर्से से वह ब्लॉग चल रहा था, टिप्पणी कार ब्लॉगर की ही रचना समझ कर टिपियाते थे, कभी कभी तो वे उनको चार लाइनों से आगे भी कुछ लिखने का अनुरोध करते थे, और ब्लॉगर ने कभी भी नहीं कहा कि मैं दूसरों की रचनायें पढ़वाती हूं।
२-जानबूझ कर पल्लवी त्रिवेदी का कमेंट हटाना किस ओर इशारा करता है।
३-ब्लॉगर का नारी होना क्यों हाईलाइट कर रहे हैं, क्या नारी को चोरी की इजाजत देने के पक्ष में हैं?
"मेरा भी यही मानना है कि बबली जी ने कहीं भी अपनी पोस्ट पर ये नहीं कहा कि ये पंक्तियां मेरी हैं.."
इसका मतलब तो यह हुआ कि जिस पोस्ट में ब्लॉगर ऐसा न लिखे,उसमें उसे किसी का भी लिखा बिना क्रेडिट दिये छापने की आजादी है।
"मैं जानता हूं कि इस पोस्ट पर मुझे फूल कम पत्थर बहुत ज्यादा आने वाले हैं...लेकिन मैं जिस बात पर स्टैंड ले लेता हूं तो फिर उस पर टिका रहता हूं..."
अगर इतना रिजिड स्टैंड है आपका तो संवाद की गुंजाइश कहां है?
धन्यवाद।
लगता है, ब्लोगिंग जगत पर कलियुग का प्रभाव आने लगा है. वैसे ये तो होना ही था क्योंकि जिस तेजी से ब्लोगर्स और लेखन सामग्री बढ़ रही है, उजूल फजूल भी, एक दिन ये ब्लोगिंग का गुब्बारा फूट सकता है. वैसे किसी भी चीज़ की अति तो खराब ही होती है.
जवाब देंहटाएंब्लोग्स पर व्यक्तिगत टिप्पणियां ठीक नहीं.
मैं तो पहले भी कह चूका हूँ, किस के पास फालतू टाइम है जाया करने के लिए.
इसलिए मुद्दों पर बहस की जाये तो ब्लोगिंग सार्थक रहे.
खुशदीप भाई, कहाँ से इतनी बातें ढूँढ लाते हो.
अमां यार कुछ समय बीबी बच्चों के लिए भी निकल लिया करो.
लो भैया, आखिर आपने भी मोडेरेशन लगा ही दिया. यही ठीक है. क्यों बेकार लफड़ों में पड़ना है.
जवाब देंहटाएंबबली जी ने सिर्फ हिन्दी को बढावा दिया है और हां उन्होंने कभी नहीं कहा है कि यह मेरे रचना है , हां ये भी नहीं कहा है कि यह उनकी रचना नहीं है . लेकिन हम सभी सिर्फ उनकी मनोभावनाओं को समझते है न कि उनकी लिखी रचना पर कमेन्ट करने से पहले ढेर सारे और आपरेशन करतेहै
जवाब देंहटाएंखुश भाई
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा कोई आवाज़ तो उठा रहा है वरना यहाँ पर तो लोग बेशर्मी से सब देखते रहते है.. ख़ुशी हुई जानकार कि आपमें अपनी बात कहने का दम है.. खासकर आपकी ये बात अच्छी लगी कि आपने मेरी एक पोस्ट पर एतराज जताया न कि मुझ पर.. बस इसी चीज़ की जरुरत है हिंदी ब्लोगिंग को.. लोग ब्लोगर से ऊपर उठकर पोस्ट को देखे ठीक वैसे ही जैसे बबली जी के इतने पुराने ब्लॉग पर कभी कुछ नहीं कहा मैंने पर उनकी इस पोस्ट पर पल्लवी त्रिवेदी, शरद कोकस और एक अन्य व्यक्ति जिनका मैं नाम भूल रहा हु कि टिप्पणिया डिलीट कर दी गयी.. बस मैंने उस पोस्ट को एक चर्चाकार की हैसियत से चर्चा में सम्मिलित किया यदि बिना सबूत के लिखता तो क्या कोई वकील मुझसे सबूत नहीं मांगता..?
फिर भी खुश भाई आपके लगाये आरोपों से मुझे कोई दुःख नहीं हुआ बल्कि ख़ुशी हुई कि किसी में तो अपने नाम से अपनी बात रखने की हिम्मत है वरना राजेश स्वार्थी या तीखी बात जैसे आई डी भी तो बनते ही है.. उम्मीद है आप बहुत आगे जायेंगे ब्लोगिंग में..
@ताऊ जी की टिप्पणिया
यदि वाकई ये टिप्पणिया ताऊ जी ने की है तो मैं आश्चर्यचकित हूँ.. ! पूर्णत आश्चर्यचकित..!
@समीर जी
परमाणू परीक्षण के असफल होने के लिए मैं भी क्षमाप्रार्थी हूँ. :)
आगे से ध्यान रखूँगा कि सही विस्फोट हो. :)
अंत में
जिनके ब्लॉग पर जितनी ज्यादा टिप्पणिया आती है.. मैं समझता हूँ उनकी जिम्मेदारी भी उतनी ही बनती है.. आप अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते तब जबकि आप कई लोगो के चहेते है..
हम भी सोच रहे है "तुम इतना जो मुस्करा रहे हो लगाये ."...फिलहाल इसके लिरिक्स ढूंढ रहे है गूगल में .....फॉर दी टाइम बीइंग गुलाल का गाना ही लगा रहे है ......
जवाब देंहटाएंजिसकी मर्जी हो हिंदी में अपने आप एडजस्ट कर लेगा ......
Oh Ri Duniya, Oh Ri Duniya, Aye Duniya
Aye Surmayee Aankhein Ke Pyaalo Ki Duniya Oh Duniya
Surmayee Aankhein Ke Pyaalo Ki Duniya Oh Duniya
(Satrangi Rango Gulalo Ki Duniya Oh Duniya) - 2
Alsaayi Sejo Ke Phoolon Ki Duniya Oh Duniya Re
Angdaayi Tode Kabootar Ki Duniya Oh Duniya Re
Aye Karwat Le Soyi Haqeeqat Ki Duniya Oh Duniya
Deewani Hoti Tabiyat Ki Duniya Oh Duniya
Khwahish Mein Lipti Zaroorat Ki Duniya Oh Duniya Re
Heyyy Insaan Ke Sapno Ki Niyat Ki Duniya Oh Duniya
Oh Ri Duniya, Oh Ri Duniya, Oh Ro Duniya, Oh Ri Duniya
(Yeh Duniya Agar Mil Bhi Jaaye To Kya Hai?) - 3
[ Duniya Oh Duniya Song Lyrics @ http://www.Omasti101.com ]
Mamta Ki Bikhri Kahani Ki Duniya Oh Duniya
Behno Ki Siski Jawani Ki Duniya Oh Duniya
Aadam Ke Hawaas Rishte Ki Duniya Oh Duniya Re
Heyyy Shayar Ke Pheenke Labzo Ki Duniya Oh Duniya
Ooooo…Oooo…Hoooo….Hooo…Ooooooooo…
(Gaalib Ke Maumin Ke Khawabo Ki Duniya
Majazo Ke Un Inqalabo Ki Duniya) - 2
Faize Firako Sahir Umakhdum Meel Ki Zoku Kitabo Ki Duniya
(Yeh Duniya Agar Mil Bhi Jaaye To Kya Hai?) - 3
(Palchin Mein Baaten Chali Jaati Hai Hai) - 2
Reh Jaata Hai Jo Sawera Wo Dhoondhe
Jalta Makaan Mein Basera Wo Dhoondhe
Jaisi Bachi Hai Waisi Ki Waisi, Bacha Lo Yeh Duniya
Apna Samajh Ke Apno Ki Jaisi Utha Lo Yeh Duniya
Chitput Si Baaton Mein Jalne Lagegi, Sambhalo Yeh Duniya
Katpit Ke Raaton Mein Palne Lagegi, Sambhalo Yeh Duniya
Oh Ri Duniya, Oh Ri Duniya, Wo Kahen Hai Ki Duniya
Yeh Itni Nahi Hai Sitaaro Se Aage Jahan Aur Bhi Hai
Yeh Hum Hi Nahi Hai, Wahan Aur Bhi Hai
Hamari Hare K Baat Hoti Wahin Hai
Hume Aitraaz Nahi Hai Kahin Bhi
Wo Aayi Zamil Pe Sahi Hai
Magar Falsafa Yeh Bigad Jaata Hai Jo
Wo Kehte Hai Aalim Yeh Kehta Wahan Ishwar Hai
Faazil Yeh Kehta Wahan Allah Hai
Kabur Yeh Kehta Wahan Issa Hai
Manzil Yeh Kehti Tab Insaan Se Ki
Tumhari Hai Tum Hi Sambhalo Yeh Duniya
Yeh Ujde Hue Chand Baasi Charago
Tumhare Yeh Kale Iraado Ki Duniya
Ohh Ri Duniya, Oh Ri Duniya Hoo Ri Duniya
कुश भाई, आपने इस कमेंट से मुझे अपना मुरीद बना लिया...ऐसी ही स्वस्थ परंपरा की मेरी कामना थी...आपने मेरी भावना को सही परिप्रेक्ष्य में लिया, इसके लिए आपको जितना साधुवाद दिया जाए वो कम है. आप मेरी इस बात से तो समर्थन करेंगे कि दिल में जो बात हो, या आपको कुछ खटक रहा हो...तो खुलकर दुनिया के सामने रख देना चाहिए...चलिए कहते हैं न कि हर चीज के पीछे कुछ न कुछ अच्छाई छुपी होती है....सभी ने अपना गुबार निकाल लिया...अंत भला तो सब भला...बस एक कमी रह गई कि बबली जी खुद भी अपनी बात रख देती...बबली जी से इतना ही कहना चाहूंगा कि गलती किस इंसान से नहीं होती...अगर ऐसा न हो तो दुनिया में सारे भगवान ही न दिखाई दें...बड़प्पन इसीमें है कि अगर हमसे कुछ गलती हो, और हमें बाद में इसका एहसास हो तो खुलकर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए...अन्यथा लोग भूल तो जाते हैं लेकिन ग्रंथी बनी रहती है...अब मेरी सबसे यही प्रार्थना है कि इस इपिसोड को यही खत्म कर दे तो अच्छा है....
जवाब देंहटाएंकुश भाई एक बात और, अम्मा यार अपनी चिट्ठा चर्चाओं से इस नाचीज को ब्लैक आउट मत कर देना...वैसे इजाजत हो तो बबली जी की नई पोस्ट पर टिप्पणी कराऊँ...अरे भाई इसे भी सीरियसली मत ले लेना बस सेंस ऑफ ह्यूमर है...
o.k. coach match khatam karta hai... game over...
जवाब देंहटाएंThank God!
डॉक्टर दरल सर, मैं कभी अपने ब्लॉग पर मोडेरेशन नहीं लगाता, अगर मेरी पिछली एक पोस्ट पर एक सज्जन ने गाली के साथ टिप्पणी न की होती...मैं तो बर्दाश्त कर लेता लेकिन मेरे ब्लॉग को पढ़ने में किसी को असहजता न हो, मैंने वो टिप्पणी डिलीट कर दी...पहले तो मेरे हाथ-पैर ही फूल गए थे कि कमेंट को कैसे हटाऊं...फिर थो़ड़ी कोशिश के बाद मो़डरेशन की सैटिंग तक पहुंच ही गया...मैं चाहूं तो उस सज्जन का नाम ले सकता हूं जिन्होंने मर्यादा की सीमा से बाहर जाकर टिप्पणी की थी, लेकिन कुछ मामलों में आंखों की शर्म बनी रहनी देनी चाहिए...डंके की चोट के साथ कह सकता हूं, ये पाठ मैंने अपने गुरुदेव समीर लाल जी समीर को पढ़ते-पढ़ते ही सीखा है...और दरल सर, आपने जो घर के लिए ज़्यादा वक्त देने की नेक सलाह दी है वो मेरे सिर-माथे पर...अपने को व्यवस्थित करने की पूरी कोशिश करूंगा...ऐसी सलाह मुझे दरल सर से ही मिल सकती थी...लेकिन आपका कोई शुक्रिया नहीं....क्यों नहीं ये आप मुझ से भी ज़्यादा अच्छी तरह समझते हैं....
जवाब देंहटाएंसेंस ऑफ़ ह्यूमर समझता हु खुश भाई.. मैंने अपनी चर्चा में इसी का इस्तेमाल किया था पर शायद बात बनी नहीं.. खैर अच्छा है विवादो को जल्दी ख़त्म किया जाना.. और हा मैं भी आपकी इस बात से सहमत हूँ कि जरुरी है अपने मन का गुबार भी निकालना.. बबली जी का, सच बताती टिपण्णी को डिलीट किया जाना खटका तो हमने भी लिख दिया.. अब वे खुद आकर कुछ कहे तो और भी ख़ुशी हो.. आगे, मेरी चिटठा चर्चा में तो अच्छी पोस्ट्स का जिक्र होता ही है.. आपका भी ज़रूर होगा..
जवाब देंहटाएंएक और बार बधाई.. आपके इस इनिशिएटिव के लिए..
वैसे कुश भाई...कुश और खुश नाम से एक साझा ब्लॉग शुरू करें क्या...
जवाब देंहटाएंडॉ अनुराग जी, ये गाना मेरे भी दिल के बहुत करीब है...और सभी ब्लॉगर भाइयों से अनुरोध करूंगा कि यू ट्यूब पर जाकर एक बार सुने ज़रूर...
जवाब देंहटाएंपिछले एक साल के अपने ब्लागजगत के अनुभव से हमने तो सिर्फ ये ही पाया है कि यहाँ बहुत से लोगों का सिर्फ यही प्रयास रहता है कि कैसे अपने ध्यानाकर्षण के लिए नये नये मुद्दों का निर्माण किया जाए......बस एक ही मकसद है कि किस तरह कोई मुद्दा हाथ लगे और उसे उछालकर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जाए...अपनी/अपने ब्लाग की टी.आर.पी बढाई जाए......कोई किसी की शान में कसीदे पढने में लगा हुआ है,किसी को किसी की चाटुकारिता से ही फुर्सत नहीं...... हर रोज नई बहस,लेकिन आज तक किसी बहस को अपने अन्तिम नतीजे पर पहुँचने नहीं देखा...पहुँच भी नहीं सकती,क्योंकि कोई चाहता ही नहीं कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जाए......
जवाब देंहटाएंये सब देखकर तो लगने लगा है कि वाकई हिन्दी ब्लागिंग का भविष्य बहुत ही उज्जवल है:)
कल चिट्ठाकार समूह पर भी इन चीजों की चर्चा थी। फिर मुझे एक मेल मिला कि क्या ग़ालिब की रचना पर कॉपीराइट है?
जवाब देंहटाएंएक तो ग़ालिब की रचनाओं पर कॉपीराइट समाप्त हो गया है। उन का उपयोग कोई भी कर सकता है। केवल उसे अपना नहीं कह सकता। ऐसा बबली ने कहा भी नहीं है। मैं ने पूरा ब्लाग देखा है। वे कुछ चित्र लगाती हैं और कुछ कविता के टुकड़े। वे कहीं ये कहती भी नहीं हैं कि वह चित्र या कविता उन की है। वे सिर्फ दोनों का सामंजस्य प्रस्तुत करती हैं। पर वे ऐसा भी नहीं कहती हैं। उन के ब्लाग का नाम भी गुलदस्ते ए शायरी है। जिस से लगता है कि वे तमाम शायरी को अपने तरीके से सजा कर गुलदस्ते के रुप मे पेश करती हैं। बस उन्हों ने इस की घोषणा नहीं की है। दुनिया में बहुत लोग हैं जो अपनी डायरियों में शायरी कविताएं नोट करते हैं, बीच बीच में चित्र भी चिपकाते हैं, रेखांकन भी करते हैं। कुछ ऐसी ही चीज है उन का यह ब्लाग। यदि ब्लाग की परिभाषा से तौला जाए तो उन का ब्लाग उस पर खरा उतरता है। फर्क यही है कि बबली ने डायरी को सार्वजनिक कर दिया है। लोग टिप्पणी करते हैं और वे उन्हें पढ़ कर आनंदित महसूस करती हैं।
शर्तिया तौर पर बबली ने कोई अपराध तो नहीं ही किया है। कॉपीराइट कानून और आईपीसी की धाराएँ तो मैं देख चुका हूँ। सब से मजेदार बात यह है कि यहाँ ब्लाग जगत में उन के लिए बहुत कुछ कहा जा रहा है और बबली चुप है। लगता है वह इस का भी आनंद ले रही हैं।
शायद मेरे ब्लाग-जीवन का यह पहला ही अवसर है. जो ऐसी परिस्थितियों से दो चार होना पड रहा है.
जवाब देंहटाएंपर कुछ लोग नही जानते कि उनकी एक छोटी सी मजाक भी किसी को हर्ट कर सकती है. और बिना बात का तूफ़ान खडा कर सकती है.
पर यहां सब अपनी मर्जी के मालिक हैं, दूध पीता बच्चा तो यहां पर कोई है नही... तो कोई यह समझे कि कोई किसी को प्रभावित कर सकता है. तो मुश्किल है.
फ़िर भी यह स्थितियां खुशी मनाने की तो कतई नही हैं, इस से कुछ भला होने वाला तो नही है.
@ खुशदीप
ताऊ ने अपनी पोस्ट में कुछ गजब के सवाल किेए हैं....उन्हें ताऊ की अनुमति से मैं फिर यहां रिपीट करना चाहूंगा...
आपने मुझसे कोई अनुमति नही ली है, जैसे की हम गूगल से बिना अनुमति लिये चित्र लगा लेते हैं.:) और वैसे मुझे कोई ऐतराज भी नही है. लगा दिया बहुत अच्छा किया..लिंक भी लगा देते तो हमारे थोडे से रीडर और बढ जाते.:)
@कुश
@ताऊ जी की टिप्पणिया
यदि वाकई ये टिप्पणिया ताऊ जी ने की है तो मैं आश्चर्यचकित हूँ.. ! पूर्णत आश्चर्यचकित..!
भाई कुश, आप तो बिना टिपपणी ही आश्चर्यचकित हो रहे हो? यहां मैने कौन सी टिप्पणी कर रखी है? मुझे तो नही दिख रही है? या परसों रात फ़ोन पर हुई बातचीत के फ़ार्मुले से कोई कर गया और अब मिट भी गई? :) मुझे नही दिखाई दे रही हैं.
आपने फ़िर समीरजी को संबोधित करते हुये लिखा है आगे से ध्यान रखूँगा कि सही विस्फोट हो. :)
इस होने वाले सही विस्फ़ोट के लिये अग्रिम शुभकामनाएं. ईश्वर आपको आपके इरादों मे कामयाब करे.:)
रामराम.
blogprahri.com is coming soon . sab par rakhega nazar . aisa mamle mein hoga mukadma bagair kisi chaukidaar ke bloggers bahut gandh mcha rhe hain . yahan kavita ,geet aur gajal kee chori khule aam hoti hai .
जवाब देंहटाएंab aisa nahi hoga likhne se pahle blogprahri ko suchit karen fir dekhen kaun chori karega ?
देखो भई मुझे तो आपकी पोस्ट व उसपर की गई टिप्पणियों से कुछ ख़ास समझ नहीं आया सिवाय इसके कि पढ़े-लिखे लोगों में कहीं कोई झगड़ा हो गया लगता है... अलबत्ता मुझे तो बस एक ही बात समझ आई कि इस पेज पर अगर कोई सबसे बढि़या चीज़ है तो वह है 'स्लॉग ओवर'...बहुत सुंदर. बांटने के लिए आभार. खुशवंत सिंह दूसरों के चुटकुले बेच-बेच कर ही इतना प्रसिद्ध हो गए...
जवाब देंहटाएंभाईचारा पसंद आया :)
जवाब देंहटाएंचलो खुश दीप जी मामला अपने आने से पहले ही सेट हो गया। अरे सभी अपने अपने काम मे लगे रहो जिसे अच्छा लगता है कम्मेन्ट दे जिसे नहीं लगता न दे। अब हम जैसे अनजान तो कमेन्ट दे दे कर ही ब्लाग चला रहे हैं वर्ना अब तक नामो निशान न होता। सब से पहले अपना ब्लाग खोलते हैं जो टिप्पणी हमे आयी होती है उस ब्लाग पर जाना अपना परम धरम समझते हैं उसके बाद बाकी लोग। अब अगर बबली जी हमारे यहाँ आती हैं तो अपना भी तो फर्ज़ है वहाँ जाने का। दुनियादारी भी कोई चीज़ है कि नहीं। हम कोई एन्साईक्लोपीडिया तो है नहीं कि सब याद हो कौन सी रचना किस ने लिखी इस लिये जो अच्छी लगी उसकी तारीफ कर दी बसेअब इस उमर मे याद भी नहीं रहता कि किस ने कब क्या कहा । लेकिन कुश जी ने क्या कहा पढा भी था मगर ये मुया कम्प्यूट्हर सही नहीं चल रहा इसके चक्कर मे सब भूल गयी। वैसे अभी जाते हैं वहाँ भी। फिर भी इतना जरूर कहूँगी कि किसी को शरेआम इस तरह नंगा करना सही नहीं है उसे मेल करके कहा जा सकता है। खैर सब गियानी ध्यानी हैं ।कुछ भी कह कर सकते हैं धन्यवाद स्लाग ओवर बहुत बडिया है शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंO re duniya geet ke chahne valon ke liye.. :)
जवाब देंहटाएंhttp://prashant7aug.blogspot.com/2009/05/blog-post_14.html
चलो अच्छा हुआ कि पटाक्षेप जल्दी हो गया...
जवाब देंहटाएंमुद्दा उठा, स्वस्थ परंपरा से इस प्रकरण को यहीं खत्म भी कर दिया गया तो अच्छा ही है ।
जवाब देंहटाएंकुछ टिप्पणीकारों ने अपनी प्रतिक्रियायें दी और कुछ ने मौन धारण करना ही उचित समझा ।
इसके लिए आप सभी को जितना भी साधुवाद दिया जाए वो कम है ।
आप सभी अच्छा लिखिए, अच्छा पढ़ने को दीजिए, अच्छा कमेन्ट ले लीजिये.................
शुभकामनायें..............
और हाँ !
किस ऑफ डेथ.........
हा हा हा....
खुशदीप जी, यह सब हमने भी पढ़ा, अब चलते हैं।
जवाब देंहटाएंकोई नई बात मेरे पास नहीं है।
ये कौप सा विवाद है कि विवाद की जड़ के लिंक तक न दिए हों.... पाठकों से उम्मीद कि वो खुक कलपना करें और विवाद में शामिल हों। ये ब्लॉग जगत कर विवाद मर्यादा के प्रतिकूल बात हुई.;)
जवाब देंहटाएंके डी भाई, मोडरेशन लगाना सर्वथा उचित है. आपने सही कहा, ये ब्लॉग और ब्लॉग रीडर्स , दोनों की पवित्रता बनाये रखने के लिए ज़रूरी है.
जवाब देंहटाएंपर आपने दराल को दरल बना दिया. ये कन्फ्यूजन अक्सर होता रहता है. दरअसल, टाइटल में नाम को हिंदी में कैसे लिखा जाये, ये पता ही नहीं चल पा रहा है.
और हाँ, एक दिन टीचर्स डे मनाते हैं, जॉनी भाई के साथ. कैसा रहेगा.
मसिजीवी भाई, कौन न मर जाए आपकी सादगी पर...रामायण खत्म हो गई और आप पूछ रहे हो राम कौन थे...वैसे जो सवाल आपने किया, वैसा ही सवाल राजीव तनेजा जी ने भी किया था...और मैंने अपनी भूल सुधारते हुए इसी पोस्ट पर अपनी एक टिप्पणी के माध्यम से दोनों लिंक दे दिए थे...एक बार फिर वो लिंक दे रहा हूं...
जवाब देंहटाएंकुशजी की पोस्ट का लिंक
http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/09/blog-post_16.html
बबली जी की पोस्ट का लिंक
http://seawave-babli.blogspot.com/2009/09/blog-post_13.html#links
और हां, वो एड तो आपने देखी ही होगी...दोबारा मत पूछना कि हम क्लोरोमिंट क्यों खाते हैं...
दराल सर, दराल को दरल करने की मेरी धृष्टता के लिए मैं नहीं पत्रकार भाई रवीश कुमार ज़िम्मेदार हैं...उन्होंने आपकी ट्रैफिक वाली पोस्ट को लेकर दैनिक हिंदुस्तान में जो कमेंट्री की उसमें आपको डॉ टी एस दरल ही बताया था...पहले तो मैं नाम को लेकर चकराया...फिर सोचा अनुभव में रवीश भाई मुझसे कहीं आगे हैं...वो गलती कोई कर सकते हैं...झट से मैंने मान लिया कि मैं डॉक्टर साहब के नाम का उच्चारण गलत कर रहा था...इसी के चलते मुझसे ये खता हुई...एक बात और, यकीन मानिए जब मैंने दरल टाइप किया था तो टीचर्स मेरे आसपास कहीं नहीं थी...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंइस गाढ़े वक्त में ब्रॉडबैन्ड वालों ने मेरा बड़ा साथ दिया,
मेरा नेट मौन रहा, मोबाइल पर थोड़ा बहुत जो भी देख पाया, बस वही ।
वैसे खुशदीप जी, आपको कुश को समझने में वक्त लग सकता है, क्योंकि वह स्वयँ ही एक खूबसूरत ख़्याल हैं ।
उनका स्टिंग गलत नहीं था, न ही किसी को बेपर्दा करने की नीयत थी ।
इस चर्चा को टीप कर पोस्ट ठेलने की प्रवृति और प्रोफ़ाइल के अनुसार टिप्पणी ठेलने पर प्रश्नचिन्ह के रूप में लिया जाना चाहिये था ।
अनूप सर चाहे कुछ भी कह लें... या भले ही ग़ालिब साहब का कॉपीराइट हो न हो.. पर पल्लवी की टिप्पणी की डिलीट कर दिये जाने को यदि सँदेह का लाभ दे भी दिया जाये, तब भी यह प्रकरण एक महत्वाकाँक्षी सँदेश तो दे ही रहा है ! आमीन !
thik hai.
जवाब देंहटाएं