एक बुज़ुर्ग ट्रेन पर अपने 25 साल के बेटे के साथ यात्रा कर रहे थे...
ट्रेन स्टेशन को छोड़ने के लिए तैयार थी...
सभी यात्री सीटों पर अपना सामान व्यवस्थित करने में लगे थे...
जैसे ही ट्रेन ने चलना शुरू किया, 25 साल के युवक की खुशी, उत्साह देखते ही बना था...
युवक ट्रेन की खिड़की वाली सीट पर बैठ कर बाहर के नज़ारे देखने लगा...
युवक खिड़की से हाथ बाहर निकाल कर बाहर बह रही शीतल हवा का अनुभव करने लगा...
फिर चिल्ला कर बोला...पापा, पापा...देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं...
बेटे की बात सुनकर बुज़ुर्ग मुस्कुराया और हां में सिर हिलाने लगा...
पास बैठे एक दंपति युवक की ये सब हरकतें देख रहे थे...
उन्हें 25 साल के युवक का बच्चे की तरह हरकतें करना बड़ा अजीब लग रहा था...
फिर वो युवक अचानक बोला...पापा.. तालाब में जानवर नहाते कितने अच्छे लग रहे हैं...ऊपर देखो, बादल ट्रेन के साथ चल रहे हैं...
अब ये सब देखते हुए दंपति की बेचैनी बढ़ती जा रही थी....
इस बीच पानी बरसना शुरू हो गया...कुछ बूंदें युवक के हाथ पर भी गिरने लगीं...
पानी के स्पर्श का आनंद युवक के चेहरे पर साफ़ झलक रहा था...
इसी मस्ती में युवक बोला...पापा...बारिश हो रही है, पानी की बूंदे मेरे हाथ को भिगो रही है...पापा, पापा देखो, देखो...
अब दंपति से रहा नहीं गया...पति बुज़ुर्ग से बोला...आप डॉक्टर के पास जाकर अपने बेटे का इलाज क्यों नहीं कराते...
बुज़ुर्ग बोला...जी, हम आज अस्पताल से ही लौट रहे हैं...
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और मेरे बेटा पहली बार ज़िंदगी के सारे रंग देख रहा है...उसे अस्पताल में आंखों की रौशनी का वरदान मिला है...
स्लॉग चिंतन
जब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए...
ब्लॉगवुड में आजकल जिस तरह का माहौल दिख रहा है, उसमें ये चिंतन और भी अहम हो जाता है...
एक खुशी को आसानी से पागलपन समझा जा सकता है। पर इस से खुशी और खुश होने वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता।
जवाब देंहटाएंजब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा।
जवाब देंहटाएं;=)
तो.. मेरा सँदेश तुमने फैला ही दिया ?
सँभवतः इसी हफ़्ते मेरी पट्टी भी खुल जाये !
खुश रहो !
:)
जवाब देंहटाएंachchha sandesh pracharit kiya bhaia aapne.. par ye baat tab bhi samajh nahin aayi thi aur ab bhi nahin ki pahli baar dunia dekhne wale ladke ko kaise pata ki wo talab tha ya nadi? janwar tha ya kuchh aur? :)
बड़ी गहरी बात कह गए जनाब :)
जवाब देंहटाएंलोग समझ जाएँ तो और बड़ी हो जाए और सार्थक भी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ...
सौ सोनार की एक लोहार की...
हाँ नहीं तो...!!
बहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंसौ सोनार की एक लोहार की...
हाँ नहीं तो...!!
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंरंग तो बिखरे पड़े हैं हमी आँखे बन्द रखते हैं और खूबसूरत दुनिया की विविधता को देखने से वंचित रहते हैं.
जब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए...
जवाब देंहटाएं-बिल्कुल जी..सही है लेकिन होता इसका उल्टा ही दिखता है.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंdil ko cho gai
वो तो ठीक है लेकिन आपकी पोस्टों में लाइनें इत्ती दूर-दूर काहे होती हैं जी!
जवाब देंहटाएंदो लाइनों के बीच की दूरी कम करके देखिये!
जवाब देंहटाएं@महागुरुदेव अनूप शुक्ल जी,
जवाब देंहटाएंआपका हुक्म सिर माथे पर...वैसे लोग between the lines भी बहुत कुछ पढ़ लिया करते हैं...
जय हिंद...
मानवीय प्रव्रित्ति है
जवाब देंहटाएंऔर यह मन तीव्र गति से चलता है।
शीघ्र ही किसी निर्णय पर पहुँचना ठीक
नही, इसका अच्छा उदाहरण। पोस्ट बहुत बढिया,
नेत्र दान महा दान, भगवान सभी को
सलामत रखे
पहली बार देखे जिंदगी के रंग ...
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत होते हैं ...किसी भी उम्र में देखे जाएँ ...
तथ्य कई बार भ्रम के आवरण में लिपटे होते हैं ...कि तथ्य और भ्रम में कोई ख़ास अंतर नहीं रह जाता ..!!
sahi hai bina soche samjhe kuch nirnay nahi le to thik hai.
जवाब देंहटाएंहम तो पहले सोचेगे, समझेगे और फिर टिप्पणी देगे.
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया , मेरे पढ़े हुए अब तक के लेखों में से सबसे बढ़िया लेख !
जवाब देंहटाएंऔर हाँ खुशदीप भाई
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ...
सच्चा सन्देश देती आज की प्रस्तुति....अच्छी लगी..
जवाब देंहटाएंये टिप्पणियां बीच में गुम हो जाने का संकट लगता है, सभी ब्लॉगर्स के साथ चल रहा है...पोस्ट लिखने के बाद अब तत्काल ब्लॉगवाणी पर नहीं दिखती...पंद्रह-बीस मिनट बाद नज़र आना शुरू होती है...ब्लॉगवाणी को इस दिशा में कुछ करना चाहिए...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
वाकई बहुत सटीक लिखा आपने. पर अपनी भैंस तो वही देखेगी और वही करेगी जो उसकी इछ्छा होगी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सर्वश्रेष्ठ लघुकथा। लेखक को बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हो खुशदीप भाई।
जवाब देंहटाएंभैया.... बहुत सही कहा आपने.... और परम वन्दनीय , आदरणीय... अदा दीदी.... भी सही कह रही हैं..... आज मख्खन गायब है....?
जवाब देंहटाएंजय हिंद....
प्रेरक एवं सार्थक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंजब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए
जवाब देंहटाएंबात तो सही है लेकिन लोगों को अक्ल आए तब ना....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! आशा है इस तरह के दीप एक दिन अन्धकार को जरूर दूर कर देंगे
जवाब देंहटाएंअद्भुत....धन्यवाद खुशदीप सर....
जवाब देंहटाएं"जब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए..."
जवाब देंहटाएंji bilkul
kunwar ji.
मेरे बेटा पहली बार ज़िंदगी के सारे रंग देख रहा है...उसे अस्पताल में आंखों की रौशनी का वरदान मिला है...
जवाब देंहटाएंBahut kuch kah rahi hai ye post na kahte huye bhi .
सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंइस खुशी का अहसास तो वो ही समझ सकता है जिस पर बीती हो………………बहुत सुन्दर सन्देश्।
जवाब देंहटाएंचन्द शब्दों में ही बहुत महीन सत्य कह डाला आपने....अति उत्तम!
जवाब देंहटाएंकौन कहता है कि गहरी बातों को बहुत कम में नहीं कहा जा सकता । मुझे तो लगता है कि अक्सर गहरी बातें यूं हीं निकल जाती हैं और बिटवीन द लाईन्स भी बहुत कुछ कह जाती है । बहुत ही बडी बात ,वो भी शानदार तरीके से कह दी आपने , जाने समझने वालों की आंखें खुलती है या नहीं
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
दिल छू गयी आपकी पोस्ट...अद्भुत...
जवाब देंहटाएंनीरज
सत्य है ये आपके बोलवचन !
जवाब देंहटाएंसही मे अपना फ़ैसला जल्दी ले लेते है लोग किसी भी मामले मे .य हर किसी के मामले मे
जवाब देंहटाएं"जब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए..."
जवाब देंहटाएंमास्टर स्ट्रोक।
जवाब देंहटाएंबेटिकट दुबारा आया हूँ ।
खुशदीप भईये, तुम्हारी आँटी, ताई.. आँटी वगैरह जो भी समझो..
अभी यह पोस्ट पढ़ कर, मेरे पार्श्व में अभिभूत बैठी हैं । मैं धन्य हुआ ।
किसी की हँसी ने और अब तक अनदेखी खुशी ने भावुक कर दिया.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसे 10.04.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
शायद राहत इन्दौरी के शेर हैं ....
जवाब देंहटाएंहर मुश्किल का हल होता है
आज नही तो कल होता है ।
पागल को समझाना कैसा
पागल तो पागल होता है ।
between the lines
जवाब देंहटाएं.
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बहुत कुछ पढ़वा दिया आपने
Maan gaye Guru!
जवाब देंहटाएंभावुक क्षण .......... धन्यवाद सतीश सक्सेना जी का जिन्होंने आपकी पोस्ट का लिंक दिया
जवाब देंहटाएंjab jago tabhi sabara hota hai
जवाब देंहटाएंरंगों को देख पाने के लिए आंखों में रोशनी तो होती है, पर लोग खुली आंखों से देखने में भी कोताही करते हैं.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लघु कथा! सतीश भैया का धन्यवाद जिनके ब्लॉग से लिंक मिला!
जवाब देंहटाएंकथा जीवन के दर्शन को समझा रही है । जल्दी न करो सोचो, समझो फिर बोलो ।
जवाब देंहटाएं"कोई कैसा क्यों है ?" जब तक हम ये न समझलें तब तक उसके प्रति किसी नतीजे पर पहुँचने की कोशिश भी नहीं करना चाहिये.
जवाब देंहटाएंvery good.
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