कल मैंने पोस्ट लिखी थी आंखों का भ्रम...उसमें लिखा था कोई भी बात हो जब तक सारे तथ्यों का पता न हो, नतीजा निकालने की जल्दी नहीं करनी चाहिए...फिर न जाने क्यों आखिर में ये लाइन भी लिख दी थी कि ब्लॉगवुड में आजकल जिस तरह का माहौल दिख रहा है, उसमें ये चिंतन और भी अहम हो जाता है...
और रात को आफिस से आया तो ब्लॉगवाणी पर जिस पोस्ट पर जाकर सबसे पहली नज़र टिकी वो थी भाई शेर सिंह (जिन्हें आप सब ललित शर्मा के नाम से जानते हैं) का ब्लॉगिंग को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कहने का ऐलान...मुझे मस्तमौला कहा जाता है...चाहता तो आज भी ललित जी को टंकी से जोड़कर गुदगुदाने वाले अंदाज़ में ब्लॉगिंग न छोड़ने की अपील कर सकता था...लेकिन मैं ऐसा करूंगा नहीं...ब्लॉगवुड में ऐसा कुछ हो रहा है जिसे देखकर अब मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर भी डर के मारे बाहर आने से कतराने लगा है...दरअसल मेरा सवाल ललित भाई से नहीं है कि उन्होंने अचानक ये फैसला क्यों किया...आज मेरा सवाल खुद खुशदीप सहगल से है कि वो ब्लॉगिंग क्यों कर रहा है...ललित भाई तो सुलझे हुए मैच्योर इनसान है...अपना भला बुरा अच्छी तरह समझते हैं...अगर उन्होंने बैठे-बिठाए ब्लॉगिंग छोड़ने का फैसला किया तो इसके पीछे ज़रूर कोई न कोई गहरी चोट होगी...ये वजह पूछ कर मैं उनकी निजता में दखल भी नहीं देना चाहता...लेकिन उनकी एक बात जिसे भाई अविनाश वाचस्पति ने अपनी पोस्ट में दोहराया भी कि एक दिन तो ब्लॉगिंग को छोड़कर सभी को जाना है...इस सवाल ने मुझे कचोट कर रख दिया है...क्या एक दिन मैं भी...
देर सबेर हो भी सकता है कि मेरा मन भी उचाट हो जाए या मैं जीविका से जु़ड़े कार्यों में इतना व्यस्त हो जाऊं कि न चाहते हुए भी मुझे ब्लॉगिंग को राम-राम कहनी पड़े...ब्लॉगिंग में आए-दिन की उठा-पटक देख कर मन खिन्न ज़रूर है लेकिन अभी ऐसी स्थिति भी नहीं कि ब्लॉगिंग के लिए लैपटॉप को ताला लगा दूं...हां ये ज़रूर हो सकता है कि अपनी सक्रियता घटा दूं...अभी जो रोज़ एक पोस्ट डालकर आप सबको पकाता हूं, आगे से हफ्ते में एक-दो बार ही ब्लॉग पर आपका सिर खाऊं..लेकिन ऐसा करने से पहले कुछ सवाल ज़रूर उठाना चाहता हूं...अगर हो सके तो आप भी अपने मन की बात इन सवालों के ज़रिए ढूंढने की कोशिश कीजिएगा...
हम ब्लॉगिंग क्यों कर रहे हैं...
जहां तक मेरा सवाल है मैं तो सिर्फ और सिर्फ आत्मसंतु्ष्टि के लिए ऐसा कर रहा हूं...रोज़ पोस्ट लिख कर मैं कोई तीर नहीं मार रहा बल्कि अपना ही दिन भर का तनाव दूर भगाता हूं...हौसला अफ़जाई के लिए आपकी जो टिप्पणियां आती हैं, वो मेरे लिए टॉनिक का का काम करती हैं...और अगर कोई समझता है कि ब्लॉग में कलमतोड़ लेखन के ज़रिए हम समाज को बदल डालेंगे तो ये फिलहाल मुंगेरी लाल के हसीन सपने से ज़्यादा कुछ नहीं लगता...
क्या हम स्कूल के बच्चे हैं...
मैं देख रहा हूं कि जिस तरह स्कूल के बच्चों में टॉप आने के लिए होड़ लगी रहती है, वैसी ही एक अंधी दौड़ ब्लॉगवुड में भी है...स्कूल के बच्चों की तरह ही हममें ईर्ष्या भाव, ग्रुप बनाकर एक दूसरे की टांग खिंचाई करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है...हम ये चिंता छोड़कर कि हमें क्या लिखना है, ये नज़र ज़्यादा रखते हैं कि दूसरा क्या लिख रहा है...और यही सारी समस्या की ज़़ड़ है...
पोस्टों की चर्चा का महत्व क्या है...
सात महीने में मैंने जो अनुभव लिया है, उसमें मुझे लगता है (हो सकता है मैं गलत हूं) कि ब्लॉगवुड में सबसे ज़्यादा वैमनस्य फैलाने के लिए ये चर्चा वाली पोस्टें ही ज़िम्मेदार है...अगर कोई चर्चाकार पूरी ईमानदारी और समर्पण भाव के साथ भी चर्चा करता है तो फेवरिटिस्म के आरोपों से बच नहीं सकता...इन चर्चाओं का सबसे ज़्यादा जो महत्व मुझे नज़र आता है वो ये है कि ये किसी भी ब्लॉगर की चिट्ठाजगत के सक्रियता क्रमांक को सुधारने में उत्प्रेरक का काम करती हैं...और इसी चक्कर में सारा गुलगपाड़ा होता है...मेरा सवाल है कि जब एग्रीगेटर मौजूद हैं तो फिर इन चर्चाओं की ज़रूरत ही कहां है...एग्रीगेटर खुद ही स्क्रॉल के ज़रिए ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करते कि 24 घंटे की सभी पोस्टों के लिंक रोटेशन के आधार पर आते रहें...रेंटिंग का कोई सर्वमान्य फार्मूला निकालकर हर पोस्ट की रैटिंग की जाती रहे...इससे खुद-ब-खुद अच्छे लिंक हर पाठक को मिलते रहेंगे...
संवादहीनता की बीमारी
मेरा अपना मानना है कि ज़्यादातर गलतफहमी की वजह संवादहीनता होती है...अगर आपको किसी से कोई शिकायत है तो उसे सार्वजनिक मंच पर लाने की जगह पहले उस शख्स से दिल खोल कर बात करनी चाहिए...मेरा दावा है कि अगर ऐसा होता है तो आधे से ज़्यादा झगड़े तो स्वत ही खत्म हो जाएंगे...अरे बात करने में क्या जाता है...अपना गुबार निकाल दीजिए...दूसरे की व्यथा सुनिए...यही अपने आप में हर मर्ज की दवा है...
नियम-कायदे न होना
ब्लॉगिंग वैसे भी खुला खेल फर्रूखाबादी है...कोई नियम नहीं, कोई कायदा नहीं...सब अपनी मर्जी के मालिक...लेकिन ये प्रवृत्ति कहीं न कहीं निरंकुशता को भी जन्म दे रही है...क्या वरिष्ठ ब्लॉगरजन इस दिशा में कोई पहल नहीं कर सकते...पत्रकारिता में कोई किसी पर डंडा नहीं चलाता, फिर भी हर पत्रकार पत्रकारिता धर्म से जु़ड़ी बातों का पालन करता है...मसलन बच्चों और महिलाओं से जुड़ी कोई नेगेटिव पोस्ट है तो उनकी पहचान छुपाई जाएगी...चेहरे ब्लर कर दिए जाएंगे...दूसरों के धर्म पर सवाल उठाने वाली रिपोर्टिंग से परहेज किया जाएगा, बिना पुष्टि या तथ्यों की पड़ताल के कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जाएगी...अगर शिकायत या आरोप वाली कोई बात है तो दूसरी पार्टी से बात कर उसका वर्जन भी लिया जाएगा...दोनों वर्जन आने के बाद ही रिपोर्ट प्रकाशित या प्रसारित की जाएगी...लेकिन ब्लॉगिंग में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है...जिसे चाहे गरिया दो, जो चाहे शब्द लिख दो...कोई नहीं डरता...लेकिन ऐसा करने वाले एक बार साइबर क्राइम के चपेटे में आ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे...इसलिए अच्छा है कि हम ही समझ जाएं...
वरिष्ठ ब्लॉगरजन आचार-संहिता बनाएं...
ब्लॉगवुड में ऐसे कई निर्विवाद और वरिष्ठ ब्लॉगरजन है जिनका हर कोई सम्मान करता है...ये आपस में तय करके ब्लॉगिंग के लिए कोई आचार-संहिता बनाएं...ब्लॉगिंग को साफ सुथरे और सुचारू रूप से चलाने के लिए हर ब्लॉगर के लिए उस आचार-संहिता का पालन करना ज़रूरी हो...अगर किसी ब्ल़ॉगर को कोई शिकायत हो तो पहले इन्हीं वरिष्ठ ब्लॉगरजन के मंडल के पास ही दर्ज कराए...और अगर कोई ब्लॉगर इन नियमों का पालन नहीं करता तो उसके खिलाफ एक्शन लेने का अधिकार भी इसी मंडल के पास रिज़र्व हो...
ये मात्र मेरे विचार हैं, ज़रूरी नहीं आप सब इनसे सहमत हों...लेकिन कोई भी समाज तभी समाज बनता है जब नियम कायदों से चलता है...बेलगाम रहने पर तो जंगलराज ही रहता है...जैसा कि आजकल हिंदी ब्लॉगिंग में दिखने भी लगा है...मैं सवाल करता हूं कि अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वैसे ही टंटे कम हैं जो हम ब्लॉगिंग में भी उन्हें ही पाल लें...
अंत में ललित भाई से आग्रह करूंगा, जिस वजह या शख्स की वजह से भी आपने ये फैसला किया, उसके साथ एक बार दिल खोल कर अपनी बात ज़रूर कर लें...हो सकता है दोनों ओर से गुबार निकल जाएं और सारी गलतफहमियां दूर हो जाएं...एक छोटे भाई के कहने से ललित भाई ऐसा करके तो देखिए...फिर उसके बाद जो भी आप फैसला करें, हम सबको स्वीकार होगा...ब्लॉगिंग रहे न रहे, हमारे आपस में जो संबंध बने हैं वो तो तमाम उम्र बने ही रहेंगे...
एक गाने की चंद लाइनों से पोस्ट को खत्म करता हूं...
इन उम्र से लंबी सड़कों को, हमने तो खत्म होते देखा नहीं...
जीने की वजह तो कोई नहीं, जीने का बहाना ढूंढता है,
एक अकेला इस शहर में आबोदाना ढूंढता है, आशियाना ढूंढता है...
ढूंढता है...
हम ब्लॉगिंग क्यों कर रहे हैं...खुशदीप
35
शनिवार, अप्रैल 10, 2010
हम सब में जो आत्म उत्कंठा का अतिरेक है,वही ब्लागिंग से जुडने और यहाँ टिके रहने का आधार है... लेकिन यदि वास्तव में हम निज भाषा की संवृ्द्धि के लिए कुछ करना चाहते है तो उसके लिए कम से कम गंभीर तो होना ही होगा....वर्ना तो ये फालतू की ब्लाँ ब्लाँ यूँ ही चलती रहेगी।
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन
सोने जा ही रहा था कि बस वापस रुक गया आपको देख कर , पी डी सही कह रहें हैं . आज़ कल कुंठित ब्लागिंग सर चढ के राकिंग कर रही है
अब क्या कहें किसी किसी को लोग ही डाय जेस्ट नहीं हो पा रहे हैं
durust farmaya big B..
जवाब देंहटाएंस्व विवेक से संयमित निर्णय लेना चाहिये. सभी पढ़े लिखे हैं. किसको समझाने जायें. समझाने वाले से समझने वाले ज्यादा होशियार हैं सो कह सुन कर बात नहीं बनेगी. कहीं पढ़ा था:
जवाब देंहटाएंसंपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं,
सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैं
निवेदन एक मात्र रास्ता है. अगर कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो खराब तो मत करो-यही एक बड़ा योगदान होगा.
किसी का मजाक उड़ा देना, उसके प्रयासों की सार्वजनिक खिल्ली उड़ाना, किसी को बेवजह हल्की सी भूल पर हड़का कर खुद को महत्वपूर्ण और अकलमंद साबित करने की कोशिशें बहुत दीर्घगामी नहीं होती.
मेरे ख्याल से इनसे विचलित न हो लोगों को अपना काम चुपचाप करते रहना चाहिये यदि भावना ईमानदार है.
आज मसला ताजा है, गरम है- ऐसे में कुछ भी कहना मात्र एक दिशा की सोच उत्पन्न करेगा.
शांति से विचारने के मसले हैं, समझाने के नहीं.
अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वैसे ही टंटे कम हैं जो हम ब्लॉगिंग में भी उन्हें ही पाल लें....
जवाब देंहटाएंसहमत ...
खुशनुमा बना रहे हिंदी ब्लोगिंग का यह मौसम ...
ब्लॉगर्स को और क्या चाहिए ...!!
"आपकी विवेचना से सहमत हूँ!"
जवाब देंहटाएंजब तक अपनी गलती न हो किसी बात पर ध्यान न दें,अपना काम करते रहें......अब यहाँ " एक कान से सुनो -- दूसरे से निकाल दो " तो काम नहीं करेगा इसलिए------" एक आँख से पढो -- दूसरी को बन्द रखो..............
जवाब देंहटाएंएक उपाय ये भी हो सकता है कि ---अपना ब्लोग क्लब बनाएं ----जिनकी लेखनी हमें पढ्नी है उसे ही शामिल करे अपने क्लब में.....छोड्कर जाना तो समस्या का हल नहीं है......
अपनी बात कहने का स्थान है ब्लागीरी। अब कुछ न कहना चाहें तो कोई जबर्दस्ती तो नहीं कर सकता न?
जवाब देंहटाएंजब तक मैं (आजाद)था और मेरे दोस्त भी (आजाद) थे तब तक हम लोग रोज रातको खाना खाने के बाद अपने अपने घर से निकलते थे और कालोनी के चौक पर आकार खड़े हो जाते थे । फिर हम बारह- साढ़े बारह बजे तक वहीँ चोक पर खड़े होकर विभिन्न मसलों पर बातें करते रहते थे। सभी तरह के मसलों पर विचार विमर्श होता था। हासपरिहास भी होता था । टांग खिचाई भी होती थी। कभी कभी जब हमारा हो हल्ला जयादा हो जाता था तो कालोनी का कोई बड़ा बुड़ा हमें आकार डाट दिया करता थे की क्यों शोर कर रहे हो। हम शांत हो जाते पर हमारा कालोनी के चौक पर मिलाने जुलने का क्रम तब तक जारी रहा जब तक हम सभी दोस्तों को रात्रि में करने के लिए ज्यादा बेहतर कार्य नहीं मिला। आज जब मैं रात में खाना खाने के बाद ब्लोग्वानी या चिट्ठाजगत पर लोग इन करता हूँ तो मुझे लगता है की मैं दुबारा उस वक्त में पहुच गया हूँ जब हम चौक पर खड़े होते थे । यहाँ भी तरह तरह के विचार मिलते है । अपनी बात कहने का मौका मिलता है। लोगों की टिका टिपण्णी भी मिलती है। अच्छा लगता है। मैं दिल से चाहता हूँ ये सब इसी तरह से चलता रहे, हाँ जब शोर शराबा बढ जाये तो कोई बड़ा बुडा आकार टोक दे । हमें सही रस्ते पर ले आये। आपके सुझावों से सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंबड़ा कमजोर है आदमी, अभी लाखों है उसमें कमी। यह गाना याद आ गया। हम छुइमुई क्यों हैं? ऐसे देश में पैदा हुए हैं जहाँ पग-पग पर संघर्ष हैं और हम छोटी सी बात पर ही मैदान छोड़कर भाग जाते हैं। इसी कारण लोगों का हौसला बढ़ता है कि दूसरों को मजबूर करें कि वो मैदान छोड़ दे। महिलाओं की तरह मजबूत बनना सीखो। हम तो पैदा होने के साथ ही गरल पान करती हैं, हम तो कहीं नही भागती? यहाँ की रूसा-रूसी देखकर कभी मन होता है अपनी कहानी लिखने का। यदि ये सारे लोग मेरी परिस्थिति में रहते तो क्या करते? मुझे समझ नहीं आता कि अरे भाई सबके अपने विचार हैं यदि किसी ने आपकी पोस्ट पर असहमति प्रगट कर दी तो इसमें इतना नाराज होने की क्या आवश्यकता है? क्या हमेशा ही आपकी पोस्ट अच्छी होगा? क्या उसके विपरीत हमारे विचार नहीं हो सकते? ऐसी कितनी ही बाते हैं। बस इतना ही कहूंगी कि भागना किसी भी समस्या का हल नहीं है और ना नाराज होना ही। यह ब्लाग जगत है, यहाँ सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है। आपको विशेष आपत्ति है तो आप उससे व्यक्तिगत रूप से बात कर लें। लेकिन पलायन को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
जवाब देंहटाएंतुरंत कुछ नही कहुंगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ब्लाग लिखने मे निरन्तरता और अधिकता भी कई लोगो से मनभेद करा देती है . आपकी लोकप्रियता बढती देख कुंठित लोग एक काकस बना लेते है . और परिस्थिति ऎसी बना दी जाती है कि रण छोड देना पडता है .
जवाब देंहटाएंइतनी लम्बी मूंछ वाले इतने भावुक ह्रदय भी हो सकते हैं ??? आम आदमी विश्वास नहीं करेगा ! मैंने आपको अधिक तो नहीं पढ़ा है ललित भाई मगर अंदाज़ा है की आप अच्छे इंसान हैं ! ब्लाग जगत के आभासी संसार में हर इंसान की एक दुनिया बन जाती है, उसे छोड़ कर जाना जमा नहीं , यहाँ वैसे ही अच्छों की कमी है !
जवाब देंहटाएंमेरा अनुरोध है कि आप लिखना भले ही कम कर दें ...अपने कामों में ध्यान दें और जब समय मिले तभी लिखें ...जिससे यह मूंछ वाला जनरल हमें दिखता तो रहे ! आपके फैसले का कारण मुझे नहीं मालूम मगर मेरे एक तीर से बचो
"पलायन वादी को कायर भी कहा जाता "
आपका अपना
सतीश सक्सेना
हिन्दी ब्लोगिंग शुरू करना आसान है किन्तु इसमें बने रहना बहुत बड़े दिल गुर्दे का काम है। बहुत सारी चोटें मिलती हैं बेगानों से भी और अपनों से भी। लोग अकारण ही दो अभिन्न लोगों को भिन्न करने का प्रयास करने लगते हैं और सुप्रयास सफल हो या न हो किन्तु कुप्रयास तो सफल ही होता है।
जवाब देंहटाएंहमें तो एक ही गाना याद आता है -
जवाब देंहटाएंसजन रे झूठ मत बोलो,
खुदा के पास जाना है,
न हाथी है न घोड़ा है,
वहाँ पैदल ही जाना है।
अकेले जाना है।
मेरे ख्याल से हम ब्लॉगिंग "स्वान्तः सुखाय" कर रहे हैं. प्रकारान्तर से इससे हिन्दी का प्रचार-प्रसार भी हो रहा है. इसलिये किसी के कहने न कहने से फ़र्क नहीं पड़ना चाहिये. फिर भी संवेदनशील लोग आहत हो जाते हैं कभी-कभी किसी के व्यवहार से.
जवाब देंहटाएंनेट के सम्बन्ध!
जवाब देंहटाएंएक क्लिक में शुरू
एक केलिक में बन्द!
आज की पोस्ट विचारणीय है.....पर इंसान की फितरत होती है अपनी प्रशंसा सुनना....आपका ये सुझाव बहुत अच्छा है की रोटेशन में सब पोस्ट के लिंक्स आते रहें...केवल जो ज्यादा पढ़े हुए हों वही हॉट पर ना बने रहें....
जवाब देंहटाएंकभी कभी मन दुर्बल हो जाता है...पर इसका इलाज पलायन नहीं है...अपनी सारी उर्जा को समेट फिर से प्रयास करने से ही शांति मिलती है....
काफी बातें कहीं आपने इस पोस्ट में...
जवाब देंहटाएंऔर मैं हर एक से सहमत हूँ..
अपने दायरे को पहचानना खुद का काम है..
हजारों पोस्ट हर दिन होते हैं..
अब पुलिस की तरह डंडा लेकर तो घूम नहीं सकते उन सब ब्लॉग को भी पकड़ना जिनपे बातें आपत्तिजनक हों..
हम सबको खुद ही को शिक्षित करना होगा...
@ माननीया अजितजी ने मार्के की बात लिखी है ...किसी के हर काम से सभी खुश हो ...ये जरुरी नहीं है ...ऐसे में पलायन कत्तई उचित नहीं है ...!!
जवाब देंहटाएंपलायन वाद से बचना चाहिए......
जवाब देंहटाएंललित भाई के प्रकरण में प्रयास जारी हैं...अभी कुछ नहीं कह सकता...लेकिन हो सकता है आपको जल्दी ही अच्छी खबर मिले...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
इसका एक मात्र उपाय है रचनात्मक लेखन की ओर प्रवृत होना । और सभी को धीरे धीरे इस ओर बढना होगा ,वरना इस तरह तो निराशा ही जन्म लेगी और सृजन का सुख न मिलने की स्थिति में पलायनवाद जन्म लेगा ।
जवाब देंहटाएंआपका ये सुझाव बहुत अच्छा है की रोटेशन में सब पोस्ट के लिंक्स आते रहें...केवल जो ज्यादा पढ़े हुए हों वही हॉट पर ना बने रहें...............मै भी आपके इन ही विचारों से सहमत हूँ ताकि कोई भी अपने को उपेक्षित महसूस ना करे और स्वस्थ विचारों का आदान प्रदान हो सके।
जवाब देंहटाएंखुशदीप सर, आपकी बात बिल्कुल ठीक लग रही है। हम विचारों की असहमति को, दूसरे की प्रसिद्धि को सहज नहीं ले पाते हैं। उसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद कैसे, यही चीज हमें सबसे ज्यादा परेशान करती है और फ़िर आपस में अविश्वास, संवादहीनता दूरी बढ़ा देती हैं।
जवाब देंहटाएंवैसे अपने अनुभव तो यहां अच्छे ही रहे हैं, किस्मत अच्छी है न?
आशा करते हैं कि बड़े बड़प्पन दिखायेंगे और नयों को भी मार्ग दिखाने का महती कार्य करेंगे।
हां बिल्कुल ठीक कहा आपने ये वो सवाल है जो हम सबको ..थोडे थोडे अंतराल पर हम सबको अपने आपसे पूछना चाहिए , खासकर जब इस तरह का संक्रमणकाल चल रहा हो ,
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
आज की पोस्ट बहुत अच्छी... इस बहाने हमें भी यहाँ भाषण झाड़ने का मौका दिया... शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंसंवादहीनता वाकई एक बड़ी कमी है... पर कुछ लोग गोशिप में ज्यादा आनंद उठाते हैं...
मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ या यूँ कहें की इसे महसूस नहीं कर पाता कि यहाँ ग्रुप चलता है या कोई मित्र देश हैं ऐसा कुछ... (की फलाने ने मेरे मित्र के ब्लॉग पर कमेन्ट नहीं की तो मैं भी उसपर नहीं करूँगा, कंटेंट में दम होगा तो लोग कमेन्ट जरुर करेंगे, एक राज़ की और अपनी कमजोरी बताता हूँ (इसे मेरी शेखी बघारना ना समझा जाये) मेरे मेल पर कई ऐसे मेल आते हैं जहाँ लोग कहते हैं आप कमेन्ट नहीं करते, मैं माफ़ी मांगता हूँ जो मुझे प्रभावित नहीं कर पाते (इसे मेरी कम ज्ञान का स्तर ही समझा जाये) मैं उस पर कैसे कुछ कह सकता हूँ ? अपनी बात करूँ तो मैं अपने दुश्मन के घर भी कुछ अच्छा पढने को मिल जाये तो कमेन्ट कर आऊं. (वैसे दुश्मन कोई नहीं है सब हमारे बनाये हुए हदें हैं)
साथ ही अब तक असहमत इस पर भी हूँ कि चर्चा बेकार की चीज़ है... हमारी हदें तय है ऑफिस में ब्लॉग लिस्ट से ही फुर्सत नहीं है ऐसे में आराम से मुझे चर्चा से कुछ बेहतर पढने को मिल जाता है...
यह सब अतिमहत्वकान्षा के कारण होता है... जिसमें जिसकी रूचि हो वो पढ़े, सराहे, उस पर बात करे तो कभी समस्या नहीं होगी... गधे हम लोग है जो फ़ालतू की चीजों को भी हाइप करते हैं... उनका कोई दोष नहीं सबके अपने दूकान चलाने की फंडे हैं...
ज्ञान पिपासु बने रहना सबसे अच्छा होता है...
Shukriya Khushdeep Babu :)
बिल्कुल ठीक .
जवाब देंहटाएंआपकी विवेचना ने खुश कर दिया
जवाब देंहटाएंविचारों का एक दीप जल गया
मक्खन त्आनूं छड कर कित्थे चला गया
ओनू वी बुला लयो।
"क्या वरिष्ठ ब्लॉगरजन इस दिशा में कोई पहल नहीं कर सकते.
जवाब देंहटाएंअगर किसी ब्ल़ॉगर को कोई शिकायत हो तो पहले इन्हीं वरिष्ठ ब्लॉगरजन के मंडल के पास ही दर्ज कराए."
अरे भाई हमें इस सब लफड़े में मत घसीटो! हम तो सीधे-सादे बिना किसी टिप्पणी, चर्चा, पसंद, क्षेत्रीयता के अपनी ब्लौगिंग शांति से कर रहे हैं!
@सागर,
जवाब देंहटाएंमैंने ये कहीं नहीं कहा कि चर्चा बेकार की चीज़ है...मैंने चर्चा के बारे में क्या कहा है...उसे एक बार फिर पढ़ लो...
सात महीने में मैंने जो अनुभव लिया है, उसमें मुझे लगता है (हो सकता है मैं गलत हूं) कि ब्लॉगवुड में सबसे ज़्यादा वैमनस्य फैलाने के लिए ये चर्चा वाली पोस्टें ही ज़िम्मेदार है...अगर कोई चर्चाकार पूरी ईमानदारी और समर्पण भाव के साथ भी चर्चा करता है तो फेवरिटिस्म के आरोपों से बच नहीं सकता...इन चर्चाओं का सबसे ज़्यादा जो महत्व मुझे नज़र आता है वो ये है कि ये किसी भी ब्लॉगर की चिट्ठाजगत के सक्रियता क्रमांक को सुधारने में उत्प्रेरक का काम करती हैं...और इसी चक्कर में सारा गुलगपाड़ा होता है...मेरा सवाल है कि जब एग्रीगेटर मौजूद हैं तो फिर इन चर्चाओं की ज़रूरत ही कहां है...एग्रीगेटर खुद ही स्क्रॉल के ज़रिए ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करते कि 24 घंटे की सभी पोस्टों के लिंक रोटेशन के आधार पर आते रहें...रेंटिंग का कोई सर्वमान्य फार्मूला निकालकर हर पोस्ट की रैटिंग की जाती रहे...इससे खुद-ब-खुद अच्छे लिंक हर पाठक को मिलते रहेंगे...
जय हिंद...
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जवाब देंहटाएं.
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आदरणीय खुशदीप जी,
आपको और सबको पढ़ा... अच्छा लगा...
यह है मेरा नजरिया:-
जहां तक मेरा सवाल है मैं तो सिर्फ और सिर्फ आत्मसंतु्ष्टि के लिए ऐसा कर रहा हूं...रोज़ पोस्ट लिख कर मैं कोई तीर नहीं मार रहा बल्कि अपना ही दिन भर का तनाव दूर भगाता हूं...
सहमत, ब्लॉगिंग 'स्वान्त सुखाय:' है और रहेगी, पैसा कमाने की सोचने वाले धीरे-धीरे अपनी कामर्शियल वेबसाईट बनाकर बाहर हो जायेंगे और ब्लॉगर नहीं कहलायेंगे।
और अगर कोई समझता है कि ब्लॉग में कलमतोड़ लेखन के ज़रिए हम समाज को बदल डालेंगे तो ये फिलहाल मुंगेरी लाल के हसीन सपने से ज़्यादा कुछ नहीं लगता...
हो सकता है कि यह सच हो फिर भी दिल को बहलाने की खातिर यह समाज को बदल देने का ख्याल अच्छा तो है ही... वैसे भी किसी भी लक्ष्य को पाने से पहले उसको पाने का सपना देखना जरूरी है... सच हों न हों, सपने देखना छोड़ना नहीं चाहिये!
जिस तरह स्कूल के बच्चों में टॉप आने के लिए होड़ लगी रहती है, वैसी ही एक अंधी दौड़ ब्लॉगवुड में भी है...
और इस दौड़ मे केवल लंगड़े ही दौड़ रहे हैं, समर्थ ब्लॉगर जो ब्लॉगिंग के चरित्र को पहचानता है इस दौड़ में न तो पहले कभी था न होगा!
मेरा अपना मानना है कि ज़्यादातर गलतफहमी की वजह संवादहीनता होती है...अगर आपको किसी से कोई शिकायत है तो उसे सार्वजनिक मंच पर लाने की जगह पहले उस शख्स से दिल खोल कर बात करनी चाहिए...मेरा दावा है कि अगर ऐसा होता है तो आधे से ज़्यादा झगड़े तो स्वत ही खत्म हो जाएंगे...अरे बात करने में क्या जाता है...अपना गुबार निकाल दीजिए...दूसरे की व्यथा सुनिए...यही अपने आप में हर मर्ज की दवा है...
मैं यहाँ पर असहमत हूँ आपसे, ब्लॉगिंग कुछ-कुछ एक लाइव थियेटर सा है... पर्दे के पीछे का संवाद... ई-मेल या फोन के माध्यम से... ही समस्या की जड़ है... जो कुछ कहा-सुना जाये वह दोनों संबंधित पक्षों के ब्लॉग पर ही हो, तो समस्या नहीं रहेगी।
ब्लॉगिंग वैसे भी खुला खेल फर्रूखाबादी है...कोई नियम नहीं, कोई कायदा नहीं...सब अपनी मर्जी के मालिक...लेकिन ये प्रवृत्ति कहीं न कहीं निरंकुशता को भी जन्म दे रही है...
यह निरंकुशता ही तो USP है ब्लॉगिंग का... कोई नियम नहीं कोई कायदा नहीं... सीधे दिल से...अपनी मर्जी के मालिक आप खुद...यह एक व्यक्ति के दिमाग में उमड़ते-घुमड़ते विचारों की अभिव्यक्ति है... यही वह कारण है जो मुझे ब्लॉगिंग मे बनाये हुऐ है।
ब्लॉगवुड में ऐसे कई निर्विवाद और वरिष्ठ ब्लॉगरजन है जिनका हर कोई सम्मान करता है...ये आपस में तय करके ब्लॉगिंग के लिए कोई आचार-संहिता बनाएं...ब्लॉगिंग को साफ सुथरे और सुचारू रूप से चलाने के लिए हर ब्लॉगर के लिए उस आचार-संहिता का पालन करना ज़रूरी हो...
मुझे वरिष्ठ तो दिखते हैं पर निर्विवाद कोई नहीं... आखिर आपने सुना ही होगा... "Only a Whore can keep each & everyone happy"... क्षमा करें पर ऐसा कोई आदमी जिसने किसी बात पर कोई स्टैंड लिया ही नहीं आज तक... वह क्या कोई आचार-संहिता बनायेगा?... और कोई क्यों उसे मानेगा ?... वैसे भी Virtual thought space एक आने वाले कल का विचार है और इसके नियम आज नहीं बनाये जा सकते... थोड़ा समय और रूकिये फिर देखियेगा अपने आप ही सब कुछ ठीक हो जायेगा... हिन्दी ब्लॉगिंग अभी अपने शैशव में है... इसीलिये ऐसा संकट सा लग रहा है आपको... पर ठीक हो जायेगा सब... विश्वास रखिये!
लेकिन कोई भी समाज तभी समाज बनता है जब नियम कायदों से चलता है...बेलगाम रहने पर तो जंगलराज ही रहता है...जैसा कि आजकल हिंदी ब्लॉगिंग में दिखने भी लगा है...
समाज के कायदों से चल तो रहा है प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया... कितना निराश करते हैं दोनों... ब्लॉगिंग का बेलगाम चरित्र ही तो उसकी ताकत है... जहाँ एक अदना सा 'मैं' ओसामा से लेकर ओबामा तक... किसी को नहीं छोड़ता... यही तो चार्म है ब्लॉगिंग का... यहाँ कोई 'HOLY COW' न है, न होगा और न ही होना चाहिये!
मैं सवाल करता हूं कि अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वैसे ही टंटे कम हैं जो हम ब्लॉगिंग में भी उन्हें ही पाल लें...
ऊपर आदरणीय सतीश सक्सेना जी ने कहा है कि "पलायन वादी को कायर भी कहा जाता है"... तो टंटे से बच कर निकलना भी तो एक तरह का पलायन ही है... अगर पलायन वादी ही हैं तो ब्लॉगर बनें ही क्यों... आखिर जिन्दा रहने के लिये जरूरी चीज तो नहीं ही है यह?
आभार!
अब तो ब्लोगिंग पर एक थीसिस की सख्त ज़रुरत है।
जवाब देंहटाएंमामला बड़ा गंभीर बनता जा रहा है।
इतने सीरियस क्यों होते हो यार ?
जिंदगी हो या ब्लोगिंग --आचार व्यवहार तो सही होना ही चाहिए ।
सचमुच. बहुत सच्ची बातें लिखने के लिये आभार, बधाई भी.
जवाब देंहटाएंमैं इस बात से सहमत नहीं हूँ..की चुपचाप आत्माभिव्यक्ति करो..अपनी पीठ थपथपाओ और बैठ जाओ....ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है...इससे बहुत कुछ किया जा सकता है...दुनिया में , समाज में, परिवार में...इसकी शक्ति को पहचाना जाए और सामर्थ्य के अनुसार इसका उपयोग किया जाए.....हम बहुत कुछ कर सकते हैं....
जवाब देंहटाएंचुप=चाप ब्लॉग्गिंग करने की बात कह कर वरिष्ठ ब्लोग्गेर्स अपनी जिम्मेवारी से नहीं भाग सकते हैं...उनको इसमें लगना ही होगा, अचार-संहिता बनानी ही होगी....मार्गदर्शन करना ही होगा...इस मौके को हाथ से जाने देना क्रिमिनल है...हम अपने बच्चों से क्या कहेंगे की हमलोग इतने नालायक थे....
वरिष्ठ जनों को ये कहना बंद करना होगा की मुसीबत से दूर रहो....
मुसीबत से लड़ो और उसे ठीक करो ये सही होगा...
आपका आभार....