कर्नाटक की कोलार गोल्ड फील्ड्स-KGF का इतिहास जानिए, कैसे सोना उगलने वाली खदान खंडहर में तब्दील, अच्छे दिन लौटने का इंतज़ार, अब भी हो सकता है ढेरों सोना, 2001 से यहां भारत गोल्ड माइन्स ने बंद किया सोने की खुदाई का काम
नई दिल्ली (6 अप्रैल)।
केजीएफ-2 फिल्म के साथ ही केजीएफ यानि कोलार गोल्ड फील्ड्स का नाम बहुत सुर्खियों में है. आखिर क्या है इस खदान की कहानी जिसने 121 साल में 900 टन सोना उगला. और अब ये खंडहर बनी खदान इस इंतज़ार में है कि कब उसके फिर सुनहरे दिन लौटेंगे. जानकारों के मुताबिक अब भी इस खदान में बहुत सारा सोना छुपा हो सकता है.
थोड़ा आपको केजीएफ यानि कोलार गोल्ड फील्ड्स के बारे में भी बता दें, कर्नाटक के दक्षिण कोलार ज़िले की रोबर्टसनपेट तहसील में ये खदान मौजूद है. बैंगलोर से चेन्नई जाने एक्सप्रेसवे पर 100 किलोमीटर की दूरी पर केजीएफ टाउनशिप है. द क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक 1871 में न्यूज़ीलैंड से भारत आए ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने पहले कहीं कोलार में सोने की मौजूदगी के बारे में पढ़ रखा था. इसी विषय पर पढ़ते-पढ़ते लेवेली के हाथों ब्रिटिश सरकार के लेफ़्टिनेंट जॉन वॉरेन का एक पुराना आर्टिकल लगा.
जॉन वारेन फाइल |
लेवेली को मिली जानकारी के अनुसार, 1799 की श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेज़ों ने टीपू सुल्तान को मारने के बाद कोलार और आस-पास के इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था.उसके कुछ समय बाद, अंग्रेज़ों ने यह ज़मीन मैसूर राज्य को दे दी, पर कोलार की ज़मीन सर्वे के लिए उन्होंने अपने पास ही रख ली. वारेन ने सोने के बारे में जानकारी देने वालों गांव वालों को इनाम देने का एलान किया. इस एलान के कुछ दिन बाद, एक बैलगाड़ी में कुछ ग्रामीण वॉरेन के पास आए. उस बैलगाड़ी में कोलार इलाक़े की मिट्टी लगी हुई थी. गांववालों ने वॉरेन के सामने मिट्टी धोकर हटाई, तो उसमें सोने के पार्टिकल पाए गए. वॉरेन की इस रिपोर्ट के बाद, 1804 से 1860 के बीच इस इलाक़े में काफ़ी रिसर्च और सर्वे हुए, लेकिन अंग्रेज़ी सरकार को उससे कुछ नहीं मिला. कोई फ़ायदा होने के बजाय इस शोध के चलते कइयों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. उसके बाद वहां होने वाली खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
बहरहाल, 1871 में वॉरेन की रिपोर्ट पढ़कर लेवेली के मन में कोलार को लेकर दिलचस्पी जगी. लेवेली ने बैलगाड़ी में बैठकर बेंगलुरू से कोलार की 100 किलोमीटर की दूरी तय की. वहां पर क़रीब दो साल तक शोध करने के बाद 1873 में लेवेली ने मैसूर के महाराज से उस जगह पर खुदाई करने की इजाज़त मांगी.लेवेली ने कोलार क्षेत्र में 20 साल तक खुदाई करने का लाइसेंस प्राप्त किया. उसके बाद 1875 में साइट पर काम करना शुरू किया.
फाइल |
केजीएफ़ की खानों में पहले रोशनी का इंतज़ाम मशालों और मिट्टी के तेल से जलने वाले लालटेन से होता था. लेकिन ये प्रयास नाकाफ़ी था. इसलिए वहां बिजली का उपयोग करने का निर्णय लिया गया.
इस तरह केजीएफ़ बिजली पाने वाला भारत का पहला शहर बन गया. इसका नतीजा यह हुआ कि 1902 आते-आते केजीएफ़ भारत का 95 फ़ीसदी सोना निकालने लगा. हाल यह हुआ कि 1905 में सोने की खुदाई के मामले में भारत दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गया. केजीएफ़ में सोना मिलने के बाद वहां की सूरत ही बदल गई. उस समय की ब्रिटिश सरकार के अधिकारी और इंजीनियर वहां अपने घर बनाने लगे.
केजीएफ क्लब हाउस |
लोगों को वहां का माहौल बहुत पसंद आने लगा, क्योंकि वो जगह ठंडी थी. वहां जिस तरह से ब्रिटिश अंदाज़ में घरों का निर्माण हुआ, उससे देखकर उसे छोटा इंग्लैंड ही कहा जाने लगा. देश को जब आज़ादी मिली, तो भारत सरकार ने इस जगह को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. उसके क़रीब एक दशक बाद 1956 में इस खान का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. केजीएफ़ में खनन 121 सालों से भी अधिक समय तक चला. साल 2001 तक वहां खुदाई होती रही. एक रिपोर्ट के अनुसार, उन 121 सालों में वहां की खदान से 900 टन से भी अधिक सोना निकाला गया. बाद में सोना बहुत कम और लागत बहुत ज्यादा होने की वजह से सोने की खुदाई का काम कम होता गया. ऐसी स्थिति आई कि 2001 में भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने वहां सोने की खुदाई बंद करने का निर्णय लिया. उसके बाद वो जगह एक खंडहर बन गई.खनन बंद होने के बाद के 15 सालों तक केजीएफ़ में सब कुछ ठप्प पड़ा रहा. हालांकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में उस जगह फिर से काम शुरू करने का संकेत दिया. कहा जाता है कि केजीएफ़ की खानों में अभी भी काफ़ी सोना पड़ा है. केंद्र सरकार ने 2016 में केजीएफ़ को फिर से ज़िंदा करने के लिए नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने का एलान किया. हालांकि अभी तक साफ नहीं हो पाया कि घोषणा के आगे क्या होने जा रहा है