Watch: जानिए कौन थे सरदार उधम सिंह

जलियांवाला बाग के ज़ुल्म का 21 साल बाद लंदन में बदला लेकर लिया दम, भारत की आज़ादी के इतिहास का गोल्डन पन्ना जिसके बारे में लोगों को कम जानकारी, जन्म पर शेर सिंह नाम रखा गया था, बचपन में ही माता-पिता और भाई को खोया


नई दिल्ली (15 अक्टूबर)।

13 अप्रैल 1919, बैसाखी, अमृतसर

जलियांवाला बाग नरसंहार, सैकड़ों लोगों की मौत

अंग्रेज़ों के इस जुल्म को अपनी आंखों से देखने वाला 18 साल का किशोर शेर सिंह...वो शेर सिंह जिसको आज हर भारतीय शहीद उधम सिंह के तौर पर याद करता है. इस किशोर ने तभी जलियांवाला बाग़ की मिट्टी उठाकर माथे से लगाई और कसम ली कि वो एक न एक दिन इस जुल्म का बदला ज़रूर लेगा. फिर उधम सिंह को 21 साल लग गए, लेकिन उसने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर ही दम लिया. ये कहानी बताने से पहले आइए जानते हैं उधम सिंह के बचपन के बारे में...

26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम में रेलवे चौकीदार सरदार तेहल सिंह के घर पर बच्चे का जन्म हुआ, नाम रखा गया शेर सिंह. बहुत छोटी उम्र में ही माता-पिता का साया सिर से उठ गया. शेर सिंह को फिर भाई मुख्ता सिंह के साथ अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय पहुंचा दिया गया. अनाथालय में ही शेर सिंह को नया नाम उधम सिंह मिला.1917 में भाई मुख्ता सिंह उर्फ़ साधु सिंह भी दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया. अनाथालय में ही रहते हुए 1918 उधम सिंह ने मैट्रिक का इम्तिहान पास किया.

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर में लोगों में त्योहार का जोश था. काफी संख्या में लोग गोल्डन टेम्पल में माथा टेकने के बाद आसपास की जगहों पर घूम रहे थे. जलियांवाला बाग़ भी ऐसी ही जगह थी. वहां उस दिन कांग्रेस की ओर से विरोध सभा हो रही थी. दरअसल रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के दो नेताओं- सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों ने अरेस्ट कर लिया था. लोग दोनों की गिरफ्तारी के खिलाफ शांति से प्रोटेस्ट करने के लिए वहां जमा थे.  उसी वक्त वहां ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर बंदूकों से लैस सैनिकों के साथ आ धमका. डायर ने बिना कोई वार्निंग सीधे लोगों पर फायर का आर्डर दिया. बाग से निकलने का एक ही गेट था जिसे डायर ने बंद करा दिया था. जलियांवाला बाग में उस वक्त छोटे बच्चों के साथ कई महिलाएं भी मौजूद थीं. लेकिन डायर ने किसी की परवाह नहीं की. गोलियों की बरसात में सैकड़ों लोगों की जान चली गई. कई लोगों ने कुएं में कूद कर जान बचाने की कोशिश की. कुआं भी लाशों से भर गया.



निहत्थे लोगों पर इस जुल्म से नौजवान उधम सिंह का खून खौल उठा. उधम सिंह ने तभी कसम खा ली थी कि जब तक इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार जनरल डायर और पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ ड्वायर को सबक नहीं सिखा लूंगा, चैन से नहीं बैठूंगा. फिर उधम ने क्रांतिकारियों के साथ जुड़ने का फैसला किया. उधम सिंह 1924 में गदर पार्टी से जुड़े जो विदेश में क्रांतिकारियों के जरिए मूवमेंट चला रही थी. उधम सिंह ने चंदा जुटाने के लिए कई देशों का दौरा किया. 1927 में वो स्वदेश वापस आए तो उनके उन्हें बिना लाइसेंसी हथियार और गदर पार्टी का लिट्रेचर रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उधम सिंह को पांच साल जेल की सज़ा हुई. इसी दौरान इंग्लैंड के समरसेट में 23 जुलाई 1927 को जनरल डायर की बीमारी की वजह से मौत हो गई. ये सुनकर उधम सिंह को मलाल हुआ, इसके बाद उन्होंने प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए पूरा ध्यान जलियांवाला बाग के लिए दूसरे सबसे बड़े खलनायक माइकल ओ ड्वायर पर लगाने का फैसला किया. 1931 में उधम सिंह रिहा हुए. ये वही साल था जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी. 

1931 में उधम सिंह रिहा हुए तो उनके हर मूवमेंट पर पंजाब पुलिस की पैनी नजर थी. उधम इससे बचने के लिए कश्मीर चले गए. वहां उन्हें एक बार भगत सिंह का हाथ में पोट्रेट लिए भी एक विरोध प्रदर्शन करते देखा गया. उधम फिर क्रांतिकारियों की मदद से पहले जर्मनी और 1934 में लंदन पहुंचने में कामयाब रहे. वहां वो नौकरी करने लगे. साथ ही वो माइकल ओ ड्वायर के बारे में सारी जानकारी जुटाने लगे. 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में आयोजित एक बैठक को संबोधित करना था. ये बैठक ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और सेंट्रल सोसाइटी की ओर से बुलाई गई थी. उधम सिंह एक किताब को अंदर से काटकर उसमें रिवॉल्वर छुपा कर साथ ले गए. वहां उधम सिंह सभा के ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगे. जैसे ही सभा खत्म हुई और ओ ड्वायर ने चलना शुरू किया, उधम सिंह ने दो बार फायर किया. ओ ड्वायर ने मौके पर दम तोड़ दिया. प्रतिज्ञा पूरी होने के बाद उधम सिंह ने भागने की कोशिश नहीं की, वहीं पुलिस को सरेंडर कर दिया.

मुकदमे के बाद उधम सिंह को दोषी ठहराया गया और 4 जून 1940 को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. इसके 7 साल बाद ही वो लम्हा भी आया जब अंग्रेज़ों को भारत छोड़कर जाना पड़ा और देश ने आज़ादी की सांस ली. देश के आज़ाद होने के बाद भी उधम सिंह के अवशेष लंदन में ही रखे गए. उधम सिंह को फांसी दिए जाने के 34 साल बाद 1974 में शहादत की ये अनमोल धरोहर भारत को वापस की.

जब भी भारत की आज़ादी के इतिहास का जिक्र किया जाएगा, शहीद उधम सिंह का नाम भी पूरे मान सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा.

आज़ादी के इस जांबाज़ मतवाले का नाम शुजीत सरकार की बनाई फिल्म सरदार उधम को लेकर फिर सुर्खियों में हैं. इस फिल्म में नेशनल अवार्ड विनर विक्की कौशल ने सरदार उधम का किरदार निभाया है. पहले ये किरदार इरफ़ान ख़ान निभाने वाले थे लेकिन उनके कैंसर से निधन के बाद विक्की कौशल को ये रोल मिला.शुजीत का कहना है कि उधम सिंह के बारे में पंजाब के बाहर लोगों को कम ही उनके बारे में जानकारी है. इस फिल्म से उनकी शख्सीयत से लोगों को सही तरह से रू-ब-रू होने का मौका मिलेगा.


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