Watch: हवेली भगत सिंह, जंग-ए-आज़ादी का सबसे पवित्र तीर्थ

                                

उस माटी को नमन जिसने भगत सिंह को जन्मा, आज़ादी का तीर्थ है उनकी हवेली; पाकिस्तान के बांगा गांव में भगत सिंह के घर ने संजोई हुई है कई सुनहरी यादें, हवेली के आंगन में अब भी तन कर खड़ा है भगत सिंह का लगाया हुआ बेरी का पेड़

 





नई दिल्ली (5 अक्टूबर)।

दो मुल्क़...एक शख़्स

दोनों मुल्कों के लोगों के लिए हीरो 




शहीद भगत सिंह...भारत मां का वो लाडला जिसे देश में ही नहीं पाकिस्तान में भी लोग हीरो की तरह मान-सम्मान देते हैं. आख़िर क्या था इस नौजवान में जिसने महज 23 साल की उम्र में देश की आज़ादी के लिए हंसते हंसते मौत का फंदा चूम लिया.

यहां हम आपको उस माटी की झलक दिखाने जा रहे हैं जहां 28 सिंतबर 1907 को भगत सिंह ने जन्म लिया. उस समय के लायलपुर और आज पाकिस्तान के फैसलाबाद ज़िले में मौजूद है भगत सिंह की हवेली...फैसलाबाद घंटाघर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर चक 105 बांगा गांव में ये हवेली आज भी भगत सिंह से जुड़ी न जाने कितनी यादें अपने में समाए खड़ी है.

पाकिस्तान के बांगा गांव में हवेली भगत सिंह


गांव की ओर जाने वाले रास्ते से कई किलोमीटर पहले ही लगा भगत सिंह के नाम का होर्डिंग इस बात की तस्दीक कर देता है कि आपके कदम उस मिट्टी पर पड़ने वाले हैं जहां से जन्म लेने वाले एक नौजवान ने छोटी सी उम्र में ही ऐसे बड़े काम किए कि सदियों सदियों ज़माना उनकी शान में तराने गाता रहेगा.

हवेली के रा्स्ते को दिखाता होर्डिंग


बांगा गांव में स्थित मकान के इसी कमरे में भगत सिंह ने जन्म के बाद पहली बार आंखें खोली. भगत सिंह का लगाया बेरी का पेड़ आज भी यहां तन कर खड़ा है. आने वालों से मानों ये कहता कि मुझे उन्हीं हाथों ने इस मिट्टी में लगाया गया था जिन हाथों ने अंग्रेज़ों के गरूर का गला घोंट दिया था.

भगत सिंह का लगाया बेरी का पेड़

यहां रखी तिजोरी, यहां के दरो-दीवार पर लगी एक एक तस्वीर देखने से एक सदी पहले का दौर देखने वालों की आंखों के सामने से फिल्म की रील की तरह गुज़र जाता है. जिस चरखे को भगत सिंह की मां विद्यावती कौर चलाया करती थीं वो आज भी यहां सलामत बीते वक्त की गवाही दे रहा है.

जिस कमरे में भगत सिंह का जन्म हुआ, वहां लगीं तस्वीरें


दरअसल, 1890 में भगत सिंह का परिवार अब भारत के हिस्से वाले पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गांव से लायलपुर आया था और दो कमरों का निर्माण किया. इन्हीं में से एक कमरे में भगत सिंह का जन्म हुआ. 1947 में मुल्क के बंटवारे के बाद भगत सिंह के खानदानी घर और ज़मीन को भारत से मुहाजिर के तौर पर वहां पहुंचे फज्ल कादिर विरक को अलॉट किया गया. उन्हें इस जमीन की सुपुर्दगी ये बता कर की गई कि भगत सिंह के जुड़े होने की वजह से इसकी कितनी अहमियत है. विरक परिवार की ही तीसरी पीढ़ी की नुमाइंदगी करने वाले और पेशे से वकील साकिब विरक बताते हैं कि किस तरह उनका खानदान 74 साल से भगत सिंह की इस विरासत का दिलोजान से सम्मान करता रहा है. भगत सिंह की इस हवेली को 2014 में नेशनल हेरिटेज घोषित करने के बाद फोटो गैलरी में तब्दील कर दिया गया.

भगत सिंह का स्कूल


उस वक्त हवेली और गांव के उस स्कूल को जहां भगत सिंह पढ़ने जाया करते थे, डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेशन ऑफिसर की ओर से रीस्टोर किया गया.

यही है वो ज़मीन जहां से पहली बार भगत सिंह के मुंह से इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा निकला. यही से उगा वो फूल जिसके लिए कहा जा सकता है ज़िंदगी भर गीली लकड़ी की तरह धूंधू कर धुआं देने से कहीं बेहतर है थोड़ी देर के लिए खिलकर अपनी खुशबू पूरे जमाने में बिखेर जाना....


 

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