पत्रकारिता में भविष्य देख रहे कई युवा छात्र मुझसे स्क्रिप्ट राइटिंग के बारे में सवाल कर रहे हैं कि कैसे इसमें बेहतर हुआ जा सकता है. इस पर मेरा कहना है कि वो जितना आम बोलचाल की भाषा में लिखने का प्रयास करेंगे, उतनी ही उनकी कॉपी बेहतर होगी. उन्हें ऐसा समझना चाहिए कि उनका लिखा हुआ पढ़ने-देखने-सुनने वाला कोई भी हो सकता है. पीएचडी स्कॉलर से लेकर बहुत कम पढ़ा लिखा शख्स भी. इसलिए वो क्लिष्ट और बहुत ही साहित्यिक भाषा का इस्तेमाल करेंगे तो वो पीएचडी स्कॉलर को तो समझ आ जाएगा लेकिन कम पढ़े लिखे शख्स के सिर से गुज़र जाएगा. इसलिए आपके शब्दों का चयन ऐसा होना चाहिए जो हर किसी को आसानी से समझ में आ जाए.
(Indian Constitution and Political System भारतीय संविधान और राजव्यवस्था के फेसबुक पेज से साभार)
युवा साथी इसके लिए ‘किस्सागोई’ से बहुत कुछ सीख सकते हैं. लखनऊ के किसी किस्सागो को सुनिए वो कैसे किस्से सुनाता है. कैसे सुनने वाले को बांध कर रख लेता है. ऐसा ही कुछ आपकी लिखी कॉपी में भी होना चाहिए. पढ़ने वाला पढ़ना शुरू करे तो आखिर तक बिना अटके पढ़ता ही चला जाए. अगर ये फ्लो बीच में कहीं नहीं टूटता तो आपकी कॉपी सार्थक है. अगर ऐसा नहीं होता तो आपको कॉपी पर और मेहनत करने की ज़रूरत है. जितना आप वाक्यों की लंबाई को छोटा रखेंगे, उतनी आपकी कॉपी समझने में आसान रहेगी.
इसी बात को भारत के संविधान और देश में सबसे ज्यादा बोली
जाने वाली भाषा की मिसाल देकर और साफ़ करता हूं.
भारत में सबसे ज्यादा आबादी ऐसे लोगों की है जिनकी पहली
बोली हिन्दी है. 2011 जनसंख्या आंकड़ों के मुताबिक भारत में ऐसे हिन्दीभाषियों की
आबादी 43.63 प्रतिशत है. ये आंकड़ा 57.09 प्रतिशत तक बढ़ जाता है अगर इसमें ऐसे लोगों
को भी गिन लिया जाए जो दूसरी या तीसरी भाषा के तौर पर हिन्दी का इस्तेमाल करते
हैं.
इसकी तुलना में अगर अंग्रेज़ी की मातृभाषा के तौर पर बात
की जाए तो देश में 2011 में ऐसे लोगों की संख्या महज़ 0.02 प्रतिशत है. लेकिन
दूसरी और तीसरी भाषा के तौर पर अंग्रेज़ी को इस्तेमाल करने वाले लोगों को देखा जाए
तो ये आंकड़ा बढ़ कर 10.67 प्रतिशत हो जाता है. हिन्दी के बाद भारत में दूसरे नंबर
पर बोली जाने वाली मातृभाषा बांग्ला है. देश में पहली भाषा के तौर पर बांग्ला
बोलने वाले 8.03 प्रतिशत लोग हैं. लेकिन दूसरी-तीसरी भाषा के तौर बांग्ला इस्तेमाल
करने वालों को मिला लिया जाए तो ये आंकड़ा 8.85 प्रतिशत तक ही पहुंचता है.
ये
तो हो गई देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीन भाषाओं की बात.
इसके
बाद बात करते हैं, देश के संविधान की. वो संविधान जो देश के हर नागरिक के लिए
सर्वोपरि है. अंग्रेज़ी में तैयार इस संविधान का हिन्दी में अनुवाद ऐसा होना चाहिए
जो हर हिन्दीभाषी के आसानी से समझ में आ जाए.
लेकिन क्या ऐसा है?
संविधान की प्रस्तावना (Preamble) को ही देखिए-
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा
उसके समस्त नागरिकों को:
न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और
अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए,
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को
अंगीकृत, अधिनियमित और
आत्मार्पित करते हैं।"
अब दिल पर हाथ रखकर बताइए कि हिन्दी जिसकी आम बोलचाल की
भाषा है, उसे संविधान की इस क्लिष्ट प्रस्तावना को पढ़ कर कितना समझ आता होगा. वो
इन कठिन शब्दों से संविधान की मूल भावना को कितना ज़ेहन में बिठा पाता होगा. क्या
कोशिश नहीं होनी चाहिए कि इस संविधान को आसान भाषा में देश के नागरिकों तक
पहुंचाया जाए. संविधान की प्रस्तावना में जो मुश्किल शब्द
हैं, उन्हें आसान किया जाए.
संप्रभुता (Sovereign) - इस
शब्द का अर्थ है कि भारत न तो किसी अन्य देश के रहमो-करम पर है और न ही किसी और
देश के मातहत (उपनिवेश) है. इसके ऊपर और कोई ताक़त नहीं है और यह अपने अंदरूनी और
बाहरी मामलों को देखने और निपटाने के लिए आज़ाद है.
समाजवादी (Socialist)- समाजवादी
शब्द से मतलब है कि देश का ऐसा ढांचा (Welfare
State) जिसमें
उत्पादन के मुख्य संसाधनों, पूंजी, ज़मीन, संपत्ति आदि पर पब्लिकली प्रोपराइटरशिप
या कंट्रोल के साथ बंटवारे में बराबरी का बैलेंस हो.
पंथनिरपेक्ष (Secular)- ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ (Secular State) शब्द का साफ़ तौर पर संविधान में ज़िक्र नहीं किया गया था लेकिन इसमें कोई शक़ नहीं है कि, संविधान के निर्माता ऐसे ही देश को बनाना चाहते थे. इसीलिए आर्टिकल 25 से 28 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) जोड़े गए. हमारे देश में सभी धर्म समान हैं और उन्हें सरकार का समान समर्थन प्राप्त है.
लोकतांत्रिक (Democratic)- संविधान
की प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द के इस्तेमाल में न सिर्फ़ राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र
को भी शामिल किया गया है. बालिगों को वोटिंग का हक़, क़ानून की सुप्रीमेसी, ज्यूडिशिएरी की आज़ादी, भेदभाव के लिए जगह नहीं, ये सभी देश की
गवर्नेस के डेमोक्रेटिक चेहरे की पहचान है.
गणतंत्र (Republic)- दो तरह
की व्यवस्थाओं राजघराने (Kingship) और
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक में से दूसरी वाली को देश के लिए चुना गया. गणराज्य मतलब
लोगों का राज्य.
Government of the people, by the
people, for the people
गणतंत्र
में राज्य प्रमुख हमेशा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिये
चुनकर आता है. गणतंत्र में लोग ही सबसे ऊपर होते हैं और राजनीतिक ताकत किसी एक
व्यक्ति जैसे राजा के हाथ में होने के बजाय लोगों के हाथ में होती हैं.
स्वतंत्रता
(Liberty)- यहाँ स्वतंत्रता का अर्थ नागरिक
स्वतंत्रता से है. इस अधिकार का इस्तेमाल संविधान में लिखी सीमाओं के दायरे में ही
किया जा सकता है.
न्याय (Justice)- भारतीय
संविधान में न्याय शब्द का उल्लेख है. इसके तीन आयाम हैं- सामाजिक न्याय, राजनीतिक न्याय व आर्थिक न्याय.
सामाजिक न्याय का अर्थ है कि इनसान-इनसान के बीच जाति, वर्ण के आधार पर भेदभाव न माना जाए और हर
नागरिक को तरक्की के सही अवसर मुहैया हों. आर्थिक न्याय का अर्थ है कि उत्पादन एवं
वितरण के साधनों का वाज़िब बंटवारा हो और धन संपदा केवल कुछ ही हाथों में ना सिमट
जाए. राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप
से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो, चाहे वह राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश
की बात हो अथवा अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का अधिकार.
बराबरी या
समता (Equality)- समाज के किसी भी वर्ग के लिए स्पेशल
राइट्स की गैर मौजूदगी और बिना किसी भेदभाव के हर शख्स को बराबरी का मौका
बंधुत्व
या भाईचारा (Fraternity) - दो बातें अहम- पहला व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता.
बेसिक ड्यूटी में भी भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने की बात कही गई है.
जब ऊपर संविधान की प्रस्तावना का मर्म हमें समझ आ जाएगा तो हमारे लिए आसान शब्दों में हिन्दी में इसे ऐसे लिखा जाना चाहिए.
हम, भारत के लोगों ने, भारत को मज़बूती से ऐसा देश बनाने का संकल्प लिया है, जो अपने फ़ैसले खुद लेगा, जो सामाजिक व्यवस्था वाला होगा, जो सेकुलर होगा, जहां लोगों का राज होगा, और जो अपने सभी नागरिकों के लिए हर तरह का इंसाफ़ या न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) सुनिश्चित करेगा, जहां लोगों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा (इबादत-अरदास-प्रेयर) की आज़ादी होगी, जहां सभी को दर्जे और अवसर की बराबरी हासिल होगी. जो लोगों के बीच ऐसे भाईचारे को बढ़ावा देगा जो किसी भी शख्स की गरिमा और देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करता हो. हमारी संविधान सभा में 26 नवंबर 1949 की इस तारीख से इस संविधान को हम कबूल करते हैं, क़ानून बनाते हैं और अपने को पेश करते हैं.
(नोट-1976 में, 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत संविधान की
प्रस्तावना में संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था, अदालत ने इस संशोधन को वैध ठहराया था.)
(#Khush_Helpline को मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा मुझसे अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)
Sahi baat
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लेखनी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह आपने लिखना बताया है। स्कूल में पढ़ते समय नागरिक शास्त्र विषय क्लिष्ट भाषा के कारण बहुत कठिन और उबाऊ लगता था। ऐसी सरल हिन्दी होनी चाहिए कि बोलना समझना आसान हो।
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