मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर देश के एकमात्र खिलाड़ी हुए हैं जिन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारत रत्न से नवाज़ा गया है. अभी तक 48 विभूतियों को भारत रत्न मिल चुका है. इस सूची को जब भी देखता हूं तो एक बात सबसे ज़्यादा कचोटती है और वो है दद्दा का नाम इसमें न होना. दद्दा बोले तो मेजर ध्यानचंद. हॉकी के वो जादूगर जिनके पास गेंद आती थी तो बस उन्हीं की स्टिक से चिपक कर रह जाती थी. देखने वाले हैरान होते थे कि कहीं उनकी स्टिक में गेंद को चिपकाने वाला चुम्बक तो फिट नहीं है. सवाल है कि 1928 से भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग की पटकथा लिखने वाले दद्दा का योगदान क्या कहीं से भी सचिन तेंदुलकर से कम है? फिर उन्हें भारत रत्न देने में इतनी देर क्यों, ये सवाल देश में अब तक जितने भी राजनीतिक कर्णधार हुए हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए. उन्हें भारत रत्न पाने वाले भारत के पहले खिलाड़ी होने का गौरव क्यों नहीं दिया गया, जिसके कि वो पूरे हक़दार थे.
1936 बर्लिन ओलिम्पिक्स में एक्शन के दौरान दद्दा ध्यानचंद |
सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने का एलान यूपीए-2 सरकार के आखिरी वर्ष में लिया गया था. तब सचिन तेंदुलकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायर हुए थे और उनके लिए देश में भावनाओं का सैलाब उमड़ा हुआ था. यूपीए-2 सरकार ने सचिन को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने में देर नहीं लगाई. अब यहां भी श्रेय लेने की होड़ थी या युवाओं में सचिन के क्रेज को चुनाव में भुनाने की कोशिश, कहा नहीं जा सकता. बेहतर यही रहता कि तभी साथ ही मेजर ध्यानचंद को भी भारत-रत्न देने का एलान किया जाता. उनके नाम ये पहले ही हो गया होता तो वो सर्वोच्च नागरिक सम्मान हासिल करने वाले देश के पहले खिलाड़ी होते.
खैर कल की बात छोड़िए. आते हैं आज पर...
टोक्यो ओलिम्पिक्स 2020 में भारतीय पुरुष हॉकी टीम के
ब्रान्ज जीतने और महिलाओं की टीम के चौथे नंबर पर रहने से एक बार फिर ये कथित ‘राष्ट्रीय
खेल’ सुर्खियों में है. इस
ओलम्पिक्स में भारतीय हॉकी टीमों की तैयारी के लिए सबसे बड़ा श्रेय ओडिशा के
मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को दिया जाना चाहिए. उन्होंने तब दोनों टीमों को स्पॉन्सर
किया जब इसके लिए कोई सामने नहीं आ रहा था.
इस ओलिम्पिक्स के बाद एक और घटनाक्रम हुआ. केंद्र
सरकार ने खेलों के लिए दिए जाने वाले देश के सबसे बड़े पुरस्कार का नाम ‘राजीव
गांधी खेल रत्न’ से बदल कर दद्दा मेजर ध्यानचंद
के नाम पर कर दिया. अच्छी बात है. मैं इन सवालों में नहीं जाना चाहता कि ये कदम
उठाने के पीछे कितनी राजनीति है और कितनी दद्दा के प्रति सद्भावना. लेकिन अब यक्ष
प्रश्न है कि दद्दा को भारत रत्न देने का एलान कब किया जाएगा. क्या ये एलान 29
अगस्त को दद्दा की 116 वीं जयंती पर हो जाएगा?
अगर
ऐसा होता है तो मैं इस सरकार को सबसे पहले बधाई देने वालों में से एक होऊंगा. कहने
वाले इस एलान को अगले साल होने वाले यूपी चुनाव की राजनीति से जोड़ कर भी देख सकते
हैं. लेकिन दद्दा का सम्मान इस तरह की राजनीति से कहीं ज़्यादा ऊंचा है. जो काम वर्ष
1954 से यानि 67 साल से अटका हुआ है वो अब हो जाना चाहिए. देश में भारत रत्न दिए
जाने की शुरुआत 2 जनवरी 1954 को हुई थी. तब डॉ. सर्वपल्ली
राधाकृष्णन, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमण को देश का
सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया था.
फोटो भारत सरकार की वेबसाइट से साभार |
भारत सरकार की एक वेबसाइट के मुताबिक अब देश
में भारत-रत्न हासिल करने वाले विभूतियों की सूची नीचे देखिए. इस सूची में 45 ही
नाम है. जबकि 2019 में नानाजी देशमुख, भूपेन हजारिका और प्रणब मुखर्जी को भी भारत
रत्न मिल चुका है. इसके अलावा एक और चीज़ इस सूची में खटक रही है. अटल बिहारी वाजपेयी का निधन 16 अगस्त 2018 को हो चुका है जिसका उल्लेख इस सूची में नहीं दिखता. ताज्जुब है कि इस वेबसाइट में भारत रत्न वाली सूची को कब से अपडेट नहीं किया गया है. यानि सरकारी बाबुओं के काम करने और उन्हें मॉनीटर
करने वालों की अपनी रफ्तार है.
knowindia.gov.in/वेबसाइट से साभार |
46. नानाजी देशमुख (1915-2010) 2019
47
भूपेन हजारिका (1926-2011) 2019
48
प्रणब मुखर्जी (1935- 2020) 2019
इस सूची में अर्थशास्त्री डॉ अमर्त्य सेन, रसायन
वैज्ञानिक सीएनआर राव और क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को छोड़ कर अब और कोई इस दुनिया
में नहीं है. भगवान इन तीनों को लंबी उम्र दे. किसी पुरस्कार को किसी शख्स को उसके
होश-हवास रहते ही दिया जाना चाहिए. जिससे कि वो उस अनुभूति को सही तरीके से जी
सके. हमारे देश में किसी शख्स की प्रतिभा को पहचानने और उसे यथोचित सम्मान देने
में इतनी देर क्यों लगती है. मुझे याद है कि अभिनेता प्राण को दादा साहेब फाल्के
पुरस्कार से तब सम्मानित किया गया जब वो खुद इसे लेने के लिए शारीरिक और मानसिक
स्थिति में ही नहीं थे. उन्हें घर जाकर ही ये सम्मान दिया गया था.
बहरहाल, अब उसी सवाल पर लौटता हूं कि भारत रत्न
पाने वाली विभूतियों की सूची में हम कब मेजर ध्यानचंद का नाम देख पाएंगे. क्या इसी
29 अगस्त को, या उससे पहले, या अभी भी ये फ़ैसला लटका रहेगा.
कौन थे दद्दा ध्यानचंद?
ध्यानचंद
गाथा 1928 एम्सटर्डम ओलिम्पिक्स से शुरू हुई. तब भारत ने फाइनल में नीदरलैंड्स को
3-0 से हरा कर हॉकी का पहला गोल्ड अपने नाम किया. 1932 में लॉस एंजिल्स ओलिम्पिक्स
में फाइनल में अमेरिका को 24-1 से रौंद डाला था. फिर 1936 बर्लिन ओलिम्पिक्स में
भारत ने जर्मनी की 8-1 से दुर्गति की. इन तीनों ओलिम्पिक्स में ध्यानचंद दद्दा ने
12 मैच खेले और 33 बार विरोधी टीमों के गोलपोस्ट को खड़काया.
दद्दा के साथ जुड़े कुछ किस्से
ये बता दें कि दद्दा जिन दिनों हॉकी
खेलते थे, उन दिनों आज की तरह मैदान में एस्ट्रो टर्फ नहीं होता था. तब मैच मैदान
की सामान्य जमीन पर ही होते थे जो समतल नहीं बल्कि कई जगह उबड़-खाबड़ होती थी. उस
ज़मीन पर भी गेंद पर कंट्रोल रखने में दद्दा को महारत हासिल थी. कहा जाता है कि एक
बार उनकी हॉकी स्टिक को भी तोड़ कर देखा गया कि कहीं उसमें चुम्बक तो नहीं.
1936
में बर्लिन ओलिम्पिक्स के दौरान जर्मनी के तानाशाह शासक अडल्फ हिटलर ने ध्यानचंद के
खेल से मुरीद होकर उन्हें जर्मनी की नागरिकता और अपनी सेना में कर्नल के पद की
पेशकश की थी. लेकिन हिटलर ने अपने लिए अपना देश सबसे पहले होने की बात कह कर हिटलर
के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.
दद्दा का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ. उनका निधन 74 साल की उम्र में 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ. 29 अगस्त 2012 से उनकी जयंती के दिन को हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है.
दद्दा
के लिए मेरे दिल में विशेष सम्मान है, उनके नाम ने अप्रत्यक्ष तौर पर करीब ढाई दशक
पहले मुझ जैसे नौसिखिए को कैसे पत्रकारिता में अपना पैर जमाने में मदद की थी, उसका
ज़िक्र अगली पोस्ट में करूंगा.
#दद्दा_को_भारतरत्न_दो
#BharatRatna4Dhyanchand
(खुश हेल्पलाइन को मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा मुझसे अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)
Mera bhi manna hai ki unhe Bharat Ratna unke jeevan me hi mil jana chahiye tha
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसामायिक विश्लेषण
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