न्यूज़ मायने क्या? दाल में तड़का या तड़के में दाल...खुशदीप


 




29 जुलाई 2021 को आज मैंने फेसबुक पर एक प्रयोग किया. मीडिया में भविष्य देखने वाले युवा मेरे मिशन के साथ जुड़ रहे हैं. ये मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट की बाढ़ से पता चल रहा है.

मैंने उनसे एक सवाल किया कि NEWS के मायने क्या. ये सवाल सिर्फ इन युवाओं तक ही सीमित नहीं था. ये सबके लिए ओपन था. जो दिल से खुद को युवा समझते हैं, वो भी इसका जवाब दे सकते थे.

ये सब कुछ फन की तरह था, इसमें फॉर्मल क्लास जैसी कोई बंदिश नहीं. हर कोई खुल कर अपनी बात रख सकता था.

फेसबुक की इस पोस्ट पर भी आता हूं. अगर प्योर थ्योरी के हिसाब से जाएंगे तो न्यूज़ के बहुत सारे मायने मिल जाएंगे. लेकिन मेरा मकसद थ्योरी नहीं है, कभी रहेगा भी नहीं. मेरी कोशिश प्रैक्टीकल नॉलेज बांटने की है. न्यूज़ की परिभाषा आपको पत्रकारिता से जुड़ी किसी भी किताब में मिल जाएगी. या एक मिसाल देता हूं विश्व के नामी संस्थान ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) के लिए न्यूज़ मिशन के मायने क्या है, दो लाइन में-

जनहित में काम करना, सभी तरह की ऑडियंस को, बिना किसी की तरफ़दारी किए हाई-क्वालिटी  खास आउटपुट और सेवाएं देना जो उन्हें सूचना या जानकारी दे सके, शिक्षित कर सके और उनका मनोरंजन कर सके.

यानि इस काम में वेटेज भी इसी क्रम में था-

1.   सूचित करना (To inform)

2.    शिक्षित करना (To educate)

3.     मनोरंजन करना (To entertain)

 मनोरंजन तीसरे नंबर पर था लेकिन आज हम न्यूज़ की अपने देश में स्थिति देखें तो वही सबसे पहले नज़र आता है. ऐसा भी वक्त रहा कि तीन C’  को ही TRP खींचू न्यूज़ का पर्याय माना जाने लगा-  3 ‘C’  यानि- Crime, Cinema, Cricket.

 दाल में तड़का या तड़के में दाल?

सीधे साधे शब्दों में इन्फॉर्म करने, एडुकेट करने और एंटरटेन करने की जगह न्यूज़ को तड़का लगाए जाने लगा. अब वो तड़का कैसे लगाया जाता है मैं बताने की ज़रूरत नहीं समझता, आप सब जानते हैं.

 इसे ऐसे समझिए कि सादी दाल वैसे स्वास्थ्य के लिए सबसे उत्तम होती है. लेकिन उसमें मसाले और घी का थोड़ा सा छोंक या तड़का लगा दिया जाए तो उसमें स्वाद भी आ जाता है. यहां थोड़े से पर मेरा ज़ोर है क्योंकि उससे दाल के पौष्टिक गुण कुछ हद तक बरकरार रहेंगे. लेकिन अब आप ऐसे समझिए कि दाल में तड़के की जगह तड़के में दाल लगानी शुरू कर दी जाए तो क्या होगा. पौष्टिक गुण तो दूर स्वास्थ्य ही ख़राब होना शुरू हो जाएगा.

अब आता हूं फेसबुक पर किए अपने प्रयोग पर...सबसे ये जानने के लिए कि उनकी नज़र में न्यूज़ के मायने क्या है. इस लिंक पर जाकर आप वहां आए सारे कमेंट्स को पढ़ सकते हैं. बिना किसी फॉर्मेल्टी का पालन किए मज़ेदार संवाद हुआ. किसी ने न्यूज़ की प्रचलित परिभाषा बताई, किसी ने स्टैंडर्ड मीनिंग की तरह NEWS-  NORTH, EAST, WEST,SOUTH बताया. किसी ने 2000 के नोट में चिप’  का हवाला देते हुए मौज भी ली.

अगर प्रैक्टिकली न्यूज़ की ज़रूरत को देखा जाए तो एक इनसान के मनोवैज्ञानिक तौर पर स्वभाव को समझिए. सबसे पहले उसे अपनी चिंता होती है, फिर परिवार के बाकी सदस्यों की, इसके बाद दोस्तों-अन्य रिश्तेदारों का नंबर आता है. इन सबकी कुशलक्षेम की वो जानकारी रखता है. इसके बाद वो अपने गली-मुहल्ले और शहर के घटनाक्रम को जानना चाहता है. क्योंकि इससे उसका जीवन सीधे तौर पर जुड़ा होता है. फिर उसके लिए ज़िला, प्रदेश, देश, दुनिया की घटनाओं का नंबर आता है. यहां भी उसके जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाली घटनाएं उसकी प्राथमिकता होती है. इसे कोरोनावायरस से जुड़ी महामारी से समझिए. सेकेंड वेव, थर्ड वेव अगर किसी दूसरे देश में भारत से पहले आ रही है तो उससे जुड़ी हर जानकारी पर हमारी नज़र रहेगी. क्योंकि आगे चल कर वो हमें भी प्रभावित करने वाली हैं.

कुल मिलाकर इनसान को सीधे अपने से जुड़ी जानकारियां जानने में सबसे ज़्यादा दिलचस्पी है. इसीलिए अब न्यूज़ का मिज़ाज भी बदल रहा है. अखबार या टीवी पाठकों या दर्शकों को जो ख़बर परोसता है, वहीं उन्हें पढ़ना और देखना-सुनना पड़ता है. लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म ने ये सब कुछ बदल दिया है. अब पाठक या दर्शक अपनी पसंद के अनुसार जो पढ़ना, देखना-सुनना चाहता है वो इंटरनेट पर सब मौजूद है. वो बस अपनी उंगलियों की थोड़ी जुम्बिश से ही अपने मनमाफिक कंटेंट पर पहुंच जाता है. अब उस पर ऐसी बंदिश नहीं है कि उसे जो पढ़ाया जाएगा, दिखाया-सुनाया जाएगा, वही वो देखने को मजबूर होगा. स्मार्टफोन्स, ऐप्स ने पाठक या दर्शक के लिए सब कुछ आसान कर दिया है. यही वजह है कि न्यूज़ का डिजिटल फॉर्मेट जिस तरह दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है, वो कोई और पारम्परिक फॉर्मेट (अखबार, रेडियो, टीवी) नहीं. एडवरटाइजिंग का भी अब सबसे ज्यादा शेयर डिजिटल को ही जा रहा है.

अब आता हूं मेरे लिए न्यूज़ के मायने क्या?

हमारे देश में राजनीति को न्यूज़ का पर्याय माना जाता है. लेकिन मेरी सोच इससे इतर है. इतना ज़रूर है कि प्रदेश-देश में सरकारें कोई अहम फैसला लेती हैं, या चुनाव से जुड़ी ख़बरें तो उसे जानने में आम लोगों की दिलचस्पी होती है क्योंकि वो सीधे तौर पर उनके जीवन से जुड़ी होती हैं. वो ख़बर जितनी पहले ब्रेक होगी, उतना ही उस न्यूज़ देने वाले संस्थान को फायदा होगा. यही बात राजनीतिक दलों और उनसे जुड़े अहम नेताओं के बयानों या इन नेताओं के जीवन से जुड़ी घटनाओं के लिए कही जा सकती है.

लेकिन अगर एक जैसे ही बयान रिपीट किए जाने लगें तो पाठक-दर्शकों की उसमें अधिक दिलचस्पी नहीं रहती. किसी नेता या पार्टी ने नया क्या कहा? अगर कुछ विवादित कहा तो उसके कहने ही क्या?

तो यहां से निकलते हैं NEWS के असल मायने जो इस शब्द के अंदर ही छुपे  हैं. NEWs यानि जो नया है वही ख़बर है. उस जैसा ही पहले हो चुका है तो वो पाठक या दर्शक को इतना अपील नहीं करेगा. मेनस्ट्रीम मीडिया में मैं जिस संस्थान से रिटायर हुआ वहां मैंने ऑफबीट स्टोरीज़ पर सबसे ज़्यादा फोकस किया. ऐसी स्टोरीज को ही दुनिया भर में चुनने पर मेरा ज़ोर रहता था जो यूनीक हों, जिनमें ऐसा कोई पहलू हो जो पहले कभी नहीं हुआ हो. जो पाठक या दर्शक की आंखें चौड़ी करने को मजबूर करे. 

यहां मैं आपको इसी साल जून में अमेरिका में हुई एक घटना का उदाहरण देकर बताता हूं. मैसाच्युसेट्स के रहने वाले 56 साल के माइकल पैकर्ड जानेमाने गोताखोर हैं. पिछले 40 साल से माइकल जीवों को समुद्र से पकड़कर मार्केट में बेचते हैं. एक सुबह इसी काम के लिए माइकल समुद्र में 35 फीट की गहराई तक गए. तभी उन्हें अचानक लगा कि उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया है. वो हिल भी नहीं पा रहे थे. उन्हें लगा कि मौत अब कुछ ही लम्हे दूर है. उन्होंने परिवार के सदस्यों को याद करना शुरू कर दिया. तभी एक झटके से वो रोशनी में आ गए और फिर उन्होंने ऊपर की ओर तैरना शुरू कर दिया. दरअसल माइकल एक व्हेल के मुंह में 30 सेकेंड बिता कर बाहर समुद्र में आए थे. व्हेल ने पानी के साथ माइकल को बड़े वेग से मुंह से बाहर उगला था. व्हेल का मुंह बहुत चौड़ा होता है और गर्दन संकरी. वहां से किसी मानव का व्हेल के अंदर जाना संभव नहीं होता.

इस न्यूज़ का उदाहरण देने का मकसद सिर्फ यही है कि विश्व में हमने अपने जीवनकाल में इस तरह की घटना पहले कभी नहीं सुनी थी कि एक इनसान व्हेल के मुंह में जाकर सुरक्षित वापस आ गया. अब इस न्यूज़ में यह नया फैक्टर ही इसे विलक्षण बना देता है. दुनिया का चाहे कोई भी कोना हो, वहां रहने वाले इनसान को ये न्यूज़ अचंभित करेगी. यही इसकी सबसे बड़ी न्यूज़ वैल्यू है. कहने का मतलब है कि अगर दुनिया में कहीं भी कुछ अलग घट रहा है तो बाक़ी दुनिया के लोगों की भी उसे जानने में दिलचस्पी रहेगी.

 इसलिए न्यूज़ या NEWS  मतलब जो नया है वही असली मायने में ख़बर है.

(मेरी फेसबुक पोस्ट पर मेरी सोच से मैच खाते न्यूज़ के नवीनता फैक्टर को ऊपर रखते हुए सागर राजावत, भारत भूषण, काजल कुमार और महफूज़ अली ने कमेंट किए.)   

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9 टिप्पणियाँ
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  1. यह सिख ताउम्र साथ रखूंगा।मैंने सच को ही खबर लिखा था।

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  2. मेरे विचार से ये न्यूज नहीं बल्कि न्यूज की एक कैटेगरी में आयेगा।
    ★ आश्चर्यजनक किंतु सत्य की श्रेणी में आयेगा।
    अगर इसे इसी संदर्भ में ले तो लोगों के लिए फिर तो आजकल वायरल वीडियों बड़ी अजीब अजीब हरकतों के साथ आ रहे हैं, विज्ञापन भी कोई कम नहीं।
    ये सब मनोरंजन तो कर सकते हैं, पर समाचार की संतुष्टि कभी नहीं दे सकते।
    नजरिया सबका अपना अपना होता है अतः अपने हिसाब से आप सही है।

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  3. अगर कुछ सत्य नहीं तो वो कूड़ा है...सत्य न्यूज़ की पहली और सबसे अहम शर्त है...एक ग़लत न्यूज़ पूरे संस्थान की वर्षों की साख पर बट्टा लगा देती है...इस तरह के फ़र्ज़ी वायरल मदारी जमूरे के खेल हैं न्यूज़ नहीं...बहरहाल मतांतर ही स्वस्थ लोकतंत्र की सुंदरता है...

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  4. अब आप सचमुच में 'फेकल्‍टी' हो गए हैं। एकदम अकादमिक।

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  5. News could be any information, which directly or indirectly effects our lives

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