मेरठ में सम्मान के दौरान...फोटो क्रेडिट अनुज कौशिक |
मैं
डॉक्टर बनते बनते पत्रकारिता में कैसे आ गया?
युवा
साथियों के साथ मैं मेनस्ट्रीम मीडिया और ब्लॉगिंग का अपना अनुभव बांटना चाहता
हूं. उनसे पत्रकारिता के पेशे की बारिकियों और नफ़े-नुकसान के बारे में संवाद बनाए रखना चाहता हूं. उनकी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए
सभी सवालों का जवाब यथाशक्ति देना चाहता हूं. लेकिन उससे पहले अपने बारे में थोड़ी
वो जानकारी दे दूं जिससे मेरे युवा साथी अभी तक परिचित नहीं हैं.
मैंने
पत्रकारिता के पेशे में बहुत लेट (करीब 31 साल की उम्र में) एंट्री ली. 1994 में
दैनिक जागरण, मेरठ में ट्रेनी बनकर. कॉलेज की पढ़ाई
(बीएससी) मैंने 1983 में ही पूरी कर ली थी. फिर मैंने 1983 से 1994 तक 11 साल क्या
किया? स्कूल-कॉलेज में बायोलॉजी मेरी स्ट्रीम
रही क्योंकि डॉक्टर बनने का सपना था. एक साल मेरा CPMT में सिर्फ दो ऑब्जेक्टिव सवाल के जवाब
गलत रहने से MBBS में दाखिला होने से रह गया और उसी मेरिट
लिस्ट के आधार पर गाजीपुर होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज में BHMS में एडमिशन मिला. लेकिन मैं वहां नहीं
गया. 1985 में मैंने Armed Forces Medical College, Pune में MBBS में दाखिले के लिए ऑल इंडिया एंट्रेंस
एग्जाम के लिखित और इंटरव्यू के आधार पर मेरिट में स्थान बना लिया. पुणे एडमिशन के
लिए पहुंचा लेकिन चश्मा लगाने की वजह से मेडिकल में रिजेक्ट कर दिया गया. बाद में
मैंने रेडियल केरेटोमी ऑपरेशन से चश्मे से छुटकारा पा लिया लेकिन तब तक मेरा
डॉक्टर बनने का सपना कहीं पीछे छूट गया. लेकिन मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं. क्योंकि
होनी में मेरे लिए कुछ और लिखा था.
फोटो- खुशदीप सहगल |
फोटो- खुशदीप सहगल |
देखते ही देखते 27 साल मैंने मेनस्ट्रीम मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल) में बिता दिए. हां, एक बात और मैंने बीबीसी हिन्दी सर्विस, लंदन के लिए दो बार लिखित परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की लेकिन दोनों बार मैं इंटरव्यू नहीं क्लियर कर सका क्योंकि तब रेडियो से ही हिन्दी सर्विस का प्रसारण होता था, इसलिए आवाज़ की परीक्षा भी होती थी. तब मेरे हिन्दी बोलने में कहीं कहीं पंजाबीपन झलक आता था और उर्दू के शब्द बोलने में नुक़्ते का ध्यान नहीं रख पाता था.
ये सब पढ़
कर आपको ज्ञात हो ही गया होगा कि पत्रकारिता में मैंने जो भी सीखा, वो दैनिक जागरण, अमर उजाला,
ज़ी
न्यूज़, न्यूज़ 24 और आज तक जैसे संस्थानों में
काम करते ही सीखा. इसलिए मेरा सारा अनुभव प्रैक्टीकल ज्ञान पर ही आधारित है.
ख़ैर ये
तो रहा मेरा पत्रकारिता का सफ़र. अब बात अगले मिशन की.
युवाओं से
अनुभव बांटने के पीछे मेरा क्या स्वार्थ?
हर बात का
कोई कारण होता है. मेरे इस भावी मिशन के पीछे भी मेरा स्वार्थ है. मुझे अपना ज्ञान
बढ़ाना है. कहते हैं ना ज्ञान बांटने से बढ़ता है,
इसलिए एक
स्वार्थ तो मेरा ये है. दूसरा स्वार्थ ये है कि उम्र के इस पड़ाव पर युवाओं जैसी
ऊर्जा के लिए मुझे युवाओं का साथ चाहिए. ऐसे युवा जो प्रफुल्लित हो, जिनके चेहरे से निराशा न झलकती हो,
जिनमें
स्पोर्ट्समैन स्प्रिट से जीवन की हर चुनौती को हंसते हंसते झेलने का माद्दा हो.
इसके अलावा उनमें सादगी हो, सच्चाई हो. करियर में कुछ भी बनने से पहले उनमें अच्छा इनसान बनने का जज़्बा हो. वो
वैसे परिवेश से न हो जहां बच्चों को कहा जाता है- ‘BE
PRACTICAL, BE SMART’. ये सीधे सीधे उनके लिए मैसेज होता है, ‘BY HOOK OR BY CROOK’ करियर में आगे बढ़ो. ऐसे में मेरा एक आग्रह हैं, जो सही में मेहनत के बल पर अच्छा पत्रकार बनना चाहते हैं, वहीं मेरे ब्लॉग से जुड़ें. अगर कोई सैटिंग-गैटिंग वाली या सिफ़ारिशी
पत्रकारिता करना चाहता है तो उसे मेरे ब्लॉग से निराशा ही हाथ लगेगी, इसलिए उनसे यहीं कहना चाहूंगा कि वो अपना समय यहां व्यर्थ न करें.
युवा
साथियों से कहना चाहूंगा कि तनाव और दबाव दूर रखने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप
उसी काम को अपना करियर बनाएं, जिसमें आपको सबसे अधिक खुशी और आत्मसंतोष
मिलता हो.
It is very simple to be happy but it is
very difficult to be simple... Gurudev Rabindranath Tagore
मन की
खुशी बहुत जरूरी है. मुझे क्रिएटिव राइटिंग में शुरू से सबसे अधिक आनंद मिलता रहा
है तो ऊपर वाले ने पत्रकारिता को मेरे जीवनयापन का ज़रिया बनाया. ब्लॉगिंग से पहचान दिलाई.
फोटो- खुशदीप सहगल |
फोटो- खुशदीप सहगल |
युवा
साथियों को एक होम वर्क देता हूं, मैंने 16 अगस्त 2009 को देशनामा पर पहली
पोस्ट लिखी थी- कलाम से सीखो शाहरुख़. मैं शुरू में हर पोस्ट के आखिर में पाठकों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए एक स्लॉग ओवर देता था,
इन स्लॉग
ओवर्स को पढ़ने के लिए देशनामा पर 2009 से 2011 तक लिखी मेरी पोस्ट्स पर जरूर
जाएं. खुद को लाइट और सिम्पल रखने के लिए सेंस ऑफ ह्यूमर जीवन के हर मोड़ पर बहुत
काम आता है.
मेरे साथ
जुड़ने के लिए शुरुआत कैसे करें?
आप मेरे
साथ ब्लॉग, फेसबुक,
ट्विटर
किसी भी माध्यम से जुड़ सकते हैं. अभी मैं शुरुआत कर रहा हूं, अकेला हूं, सिस्टम धीरे-धीरे विकसित होगा. इरादा
नेक़ है, इसलिए विश्वास है कि रास्ते भी बनते चले
जाएंगे. सोशल मीडिया के जितने भी प्लेटफॉर्म्स हैं,
फ्री
टेक्नोलॉजी उपलब्ध हैं, उनका लाभ लेने की कोशिश की जाएगी.
बस आपकी
बात मेरे तक और मेरी बात आप तक पहुंचनी चाहिए.
मुझे कुछ
वॉट्सऐप ब्रॉडकास्ट बनाने होंगे जिनसे आप तक देशनामा की हर नई बात पहुंचती रहे.
देशनामा से जुड़ने वाले हर साथी को जल्दी ही एक यूनिक खुश_हेल्पलाइन नंबर
अलॉट किया जाएगा, जिससे उसका डेटाबेस तैयार किया जा सके.
इसके लिए सॉफ्टवेयर तैयार होने के साथ ही आपको जानकारी दूंगा. फिलहाल एक्सपेरिमेंट
के तौर पर जो भी देशनामा के इस मिशन से लाभ उठाना चाहता है, वो ट्विटर पर @deshnama फॉलो करके जुड़ जाए. फेसबुक पर फ्रेंड्स
लिस्ट 5,000 तक ही सीमित रहती है. ट्विटर पर ऐसी बाध्यता नहीं है.
कोई मुझसे
सवाल पूछना चाहता है तो देशनामा पर इस ब्लॉग पोस्ट के कमेंट बॉक्स में पूछ सकता
है. ट्विटर पर मैसेज के जरिए भी पूछ सकता है. फिलहाल फेसबुक और फोन पर आपकी
जिज्ञासा शांत नहीं कर सकूंगा.
अभी मैं
हर रविवार की रात को इस मिशन से जुड़ी पोस्ट देशनामा पर अपलोड करूंगा. भविष्य में
ऐसे सम-सामयिक विषयों पर भी लिखने की कोशिश करूंगा जिससे कि वो सब्जेक्ट आपको आसान
भाषा में समझ आ सके और वर्क-प्लेस पर आपकी मदद करे.
आज के लिए
इतना ही, अब अगले रविवार को मिलते हैं...
चलते-चलते
24 जुलाई 2021 को गुरु पूर्णिमा के दिन मेरे जन्मस्थान मेरठ में युवा साथियों के
साथ ‘The Joy Of Sharing’ मिशन की शुरुआत का वीडियो देखिए...
(वी़डियो- खुशदीप सहगल)
स्लॉग ओवर तो कमाल होते थे। आज भी कई बातें याद है।
जवाब देंहटाएंआप से बहुत सीखेंगे । अभी तो थोड़ा लिखते है और विषय से भटक जाते है। ब्लॉग के समय से आप लोगो से बहुत सीखा। आगे भी सीखेंगे।
ज्जे बात 👍
जवाब देंहटाएंदिलचस्प जानना रहा
जवाब देंहटाएंह्म भी गायक बनते बनते पत्रकारिता में आ गए. हमारी भी कहानी बिल्कुल आप जैसी है. बस आप पहले से काफी पढ़ें-लिखें थें और हम काफी कम पढ़े लिखें थें.
जवाब देंहटाएंआपके इस मिशन से हम युवाओं को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा सर। अगले रविवार का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएं