मेरठ कार्यक्रम में स्पीच के दौरान मैं |
24 जुलाई 2021, शनिवार को मैंने मेरठ के कार्यक्रम में अपनी बात इसी वाक्य से शुरू की.
आप जिस शहर में जन्मे, शिक्षा ली, उसे कभी दिल से अलग नहीं कर पाते, चाहे दुनिया में कहीं भी चले जाओ. मेरठ से मेरा लगाव भी ऐसा ही है. बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के पूर्व पत्रकार स्वर्गीय जसविंदर सिंह की जन्मभूमि भी मेरठ है, जिन्हें मैं रोल मॉडल मानते हुए पत्रकारिता की दुनिया में आया.
मेरठ कार्यक्रम के दौरान अपनी बात कहते- फोटो आभार- अनुज कौशिक |
मेरठ कार्यक्रम के दौरान श्रोतागण- फोटो आभार- अनुज कौशिक |
संयोग से शनिवार को ही गुरु पूर्णिमा का दिन था. मैंने सोच कर ऐसा नहीं किया लेकिन इसी दिन मेरठ में युवा साथियों से मिलने का कार्यक्रम भी तय हो गया. इसके लिए मैं शुक्रिया अदा करना चाहता हूं मेरठ में अमर उजाला में मेरे वरिष्ठ सहयोगी रहे बड़े भाई पुष्पेंद्र शर्मा को. बहुत शॉर्ट नोटिस पर उन्होंने सारी व्यवस्था की. शनिवार और रविवार को मेरठ में लॉकडाउन की वजह से आयोजन को लेकर थोड़ी शंका थी लेकिन पुष्पेंद्र भाई ने सब कुछ बहुत अच्छी तरह होने में सूत्रधार का रोल अदा किया.
मेरठ कार्यक्रम के दौरान श्रोतागण- फोटो आभार- अनुज कौशिक |
मैं इस मौके पर मेरठ के ओलिविया होटल के युवा प्रोपराइटर अभिजीत का भी आभार जताना चाहता हूं, जिन्होंने बहुत शॉर्ट नोटिस के बावजूद वेन्यू उपलब्ध कराया. साथ ही वहां मौजूद रहे हर शख्स का बहुत अच्छी तरह ध्यान रखा.
व्यवस्था में मेरे स्कूल के दोस्त अमित नागर ने भी पुष्पेंद्र भाई का सहयोग किया. बहरहाल, एक बजे का टाइम दिया गया था. पहले बूंदा-बांदी और फिर तेज़ बारिश ने समां और बांध दिया. खैर मैं एक बजे तक वेन्यू पहुंचा. देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि हॉल की अधिकतर सीटें तब तक भर चुकीं थीं और लोगों का आना जाना जारी था.
मेरठ कार्यक्रम में सम्मान- फोटो आभार- अनुज कौशिक |
जीआईसी (राजकीय इंटर कॉलेज), मेरठ में मेरे साथ पढ़े रजनीश मित्तल, डॉ दीपक थापन, सीए अनुज गोयल के अलावा मेरठ के जानेमाने पैथोलॉजिस्ट डॉ कपिल सेठ ने अपने व्यस्त शेड्यूल के बावजूद वहां पहुंच कर मेरा मनोबल बढ़ाया. डॉ कपिल सेठ से सीखना चाहिए कि इतनी ऊंची जगह पर पहुंचने के बाद भी इंसानियत की मिसाल कैसे बना रहा जा सकता है. अमर उजाला में मेरे सीनियर रहे श्रीकांत अस्थाना को वहां देखकर बहुत अच्छा लगा. मेरठ में एक चौथाई सदी पहले के मेरे सहयोगी अभिषेक शर्मा और फोटो जर्नलिस्ट अनुज कौशिक (चीकू भाई) से मिलना भी हर्षित करने वाला था. इसके अलावा मेरठ में मीडिया के कई नए-पुराने साथी भी वहां मौजूद रहे.
मेरठ कार्यक्रम के दौरान श्रोतागण- फोटो आभार- अनुज कौशिक |
कार्यक्रम में एक और शख्स की उपस्थिति बहुत अहम रही. वो हैं मुजफ्फरनगर के प्रसिद्ध यूट्यूबर हर्ष कुमार. हम दोनों ने कभी अमर उजाला में साथ काम किया था. प्रिंट मीडिया के कई बड़े संस्थानों को अपनी सेवाएं दे चुके हर्ष से सीखना चाहिए कि आज के तकनीकी युग में नौकरी किए बिना भी स्वावलंबी रहा जा सकता है. सम-सामयिक विषयों पर कंटेंट तैयार करने वाले हर्ष ने अपने संबोधन में बताया कि उनके यूट्यूब चैनल के ढाई लाख से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं. अमिताभ बच्चन भी इस चैनल को फॉलो करते हैं. हर्ष ने इस अवसर पर अपनी सक्सेस स्टोरी को शेयर किया.
मेरठ कार्यक्रम के दौरान यूट्यूबर हर्ष कुमार का सम्मान- फोटो आभार- अनुज कौशिक |
लेकिन मेरठ जिस उद्देश्य से मैं गया था, अब आते हैं उन युवा साथियों पर. सबसे पहले मैंने उनसे ही अलग बैठ कर बात की. इनमें तीन लड़कियों ने बताया कि वो एंकर बनना चाहती हैं. मैंने उन्हें बताया कि सफल एंकर बनने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है. उसका काम टीपी पर ख़बरें पढ़ने का ही नहीं होता, उसे किस तरह देश-दुनिया के तमाम विषयों की जानकारी रखने के साथ हर वक्त अपने को अपडेट रखना होता है. उनके कुछ सवाल थे जिनके मैंने जवाब दिए. बाकी उनसे कहा कि जब मेरा ऑनलाइन सिस्टम तैयार हो जाएगा तो वो उससे जुड़ जाएं, वहां उनकी हर जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश की जाएगी.
इसके बाद मैंने मंच से अपने संबोधन में जो कहा, उसका पांच लाइन में निचोड़ ये था.
1--यूपीएससी परीक्षा
देने वाले अभ्यर्थियों को इम्तिहान की तैयारी के दौरान ही सामान्य अध्ययन के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है,
लेकिन एक पत्रकार को हर दिन अपने को दुनिया भर में हो रहे घटनाक्रमों से अवगत रखना
होता है.
2. -अगर आप किसी
संस्थान में कार्यरत हैं तो वहां की पॉलिसी, नियम कायदों को मानिए. अगर आपका इरादा
‘क्रांति’ लाने का है तो पहले संस्थान से इस्तीफा दीजिए. अपना अलग माध्यम खड़ा कीजिए,
वहां से वो सब कहिए जो आप कहना चाहते हैं. लेकिन संस्थान के बैनर तले ऐसा करना
अनुचित है.
3. -अच्छे पत्रकार को
अपनी स्टोरी शुरू से आखिर तक यानि रॉ इनपुट से लेकर एंड प्रेजेंटेशन तक ओन (Own) करनी चाहिए. जैसा कि एक अच्छा शेफ अपनी डिश के साथ करता है.
4. -अच्छे बॉसेज वही
हो सकते हैं जिन्हें अपने स्टाफ के हर सदस्य की क्षमताओं की पहचान हो. उसी हिसाब
से प्लसपाइंट्स को उभार कर बेहतर काम लिया जा सके.
5. -युवावस्था में ही
मीडिया में कैसे बड़े मकाम तक पहुंचा जा सकता है, इसके लिए कड़ी मेहनत ही एक
रास्ता है और कोई शार्ट कट नहीं है. इसके लिए मैंने युवा साथियों को आजतक/इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डायरेक्टर और मेरे बॉस रहे
राहुल कंवल का हवाला दिया.
कार्यक्रम में शरद व्यास, मनोज
वार्ष्णेय से मिलने के अलावा वरिष्ठ पत्रकार निर्मल गुप्ता जी को भी सुनने का मौका
मिला. आज के शोर शराबे वाली पत्रकारिता से इतर कैसे शालीन और सौम्य तरीके से अपनी
बात रखी जा सकती है, ये कोई निर्मल जी से सीखे.
कुल मिला कर बहुत ही खुशनुमा दोपहर गुजरी. उसके बाद लज़ीज़ लंच ने और आत्मा तृप्त कर दी. शुक्रिया '1857 की क्रांति की ज़मीन' मेरठ इतना कुछ देने के लिए. लव यू हमेशा...
बाक़ी मिशन की जानकारी देने वाली जिस पोस्ट का वादा कर रखा है वो आपको 26 जुलाई सोमवार को यहीं इसी ब्लॉग पर पढ़ने को मिलेगी.
मैं नहीं पहुंच सका, इसका अफसोस है।
जवाब देंहटाएंकोई बात नहीं सलीम भाई, सिलसिला शुरू हो गया है,फिर कभी सही...
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकल्पना मनोरमा जी क्षमा चाहता हूं आपकी टिप्पणी ग़लती से मुझ से हट गई है...कृपया दोबारा डाल दीजिए...
जवाब देंहटाएंमजा आ गया। आपकी हिम्मत की दाद देता हूं। इतने लंबे लंबे पोस्ट लिख लेते हैं। मैंने तो कई बरस पहले बंद कर दिया।
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