राष्ट्रीय बहस का मुद्दा क्या होना चाहिए? गोरखपुर, फर्रूखाबाद के अस्पतालों में बच्चों की
बड़ी संख्या में मौतें (ऑक्सीजन की कमी नहीं होने का सरकारी तर्क मान भी लिया जाए तो
भी स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली तो है), मुंबई में बारिश के दौरान खुले मेनहोल में
गिरने से नामचीन डॉक्टर की मौत, दिल्ली के गाजीपुर में कूड़े का पहाड़ ढहने से दो
राहगीरों की मौत, दिल्ली के सीवरों में उतरने से मजदूरों की आए दिन मौतें, मकान के
सपने के नाम पर बड़े बिल्डर्स की ओर से आम लोगों का अरबों डकार जाना आदि...
ये सारे मुद्दे मानवीय संवेदनाओं को झंझोड़ने की क्षमता बेशक रखते हों लेकिन इनमें
चटखारे लायक मसाला नहीं है...जिस तरह के नए इंडिया में हम रह रहे हैं, इसमें किसान,
बेरोज़गारी और महंगाई तो वैसे ही बिल्कुल आउटडेटेड हैं...
टीआरपी शास्त्र अजीब शह है...डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह रोहतक जेल में बंद ‘हनी, हनी’ कर रहा है...बिलख रहा है कि
उसके हर मर्ज़ की दवा उसकी मुंहबोली हनीप्रीत को उसके पास भिजवा दो...हनीप्रीत डेराप्रमुख
की जितनी ज़रूरत है, उतनी ही बड़ी ज़रूरत टीआरपी के लिए भी है...ऐसा रहस्य, ग्लैमर और भला कहां मिल सकता है...गुरमीत के आलीशान आशियाने...नाजायज़ संबंधों को
लेकर नित नए फ़साने...चुन चुन कर निकाले जा रहे पुराने वीडियो...गुरमीत की वाहियात
फिल्मों की बेहूदगियां, इस वक्त सब कुछ हॉट केक की तरह बिक रहा है...
हनीप्रीत टीआरपी के चार्ट में इस वक्त सबसे ऊपर है...हाइड्रोजन बम के टेस्ट का
दावा करने वाले उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग उन को भी हनीप्रीत ने पीछे
धकेल रखा है...चीन और पाकिस्तान से युद्धोन्माद, गाय, तीन तलाक जैसे एवरग्रीन
मुद्दे भी फिलहाल हनीप्रीत के आगे पानी मांग रहे हैं...नोटबंदी और जीएसटी की तो
बिसात ही क्या है...
हनीप्रीत के इस हल्ले के दौरान ही देश में एक घटना और घटी...तमिलनाडु के सुदूर
अरियालुर में...वहां बीते शुक्रवार को 17 साल की बच्ची एस. अनीता ने खुद ही मौत को
गले लगा लिया...क्यों ऐसा किया अनीता ने?
बारहवीं में कुल 1200 में से 1176 अंक लाकर भी
अनीता का डॉक्टर बनने का सपना चकनाचूर हो गया था...पिछले साल तक अनीता इतने नंबर लाई होती तो एमबीबीएस के लिए
तमिलनाडु में किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में उसकी सीट पक्की होती...सुप्रीम
कोर्ट के आदेश के बाद 2016 से पूरे देश में NEET (नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेस
टेस्ट) में प्रदर्शन के आधार पर छात्र-छात्राओं को मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश
मिलता है...पिछले साल तमिलनाडु NEET से नहीं जुड़ा था लेकिन 2017 से वो भी देश के अन्य राज्यों
की तरह इस व्यवस्था का हिस्सा बन गया है...
अनीता को इस साल आयोजित NEET में कुल 720 में से सिर्फ़ 86 ही अंक मिल सके...ज़ाहिर
है इस पर उसे किसी भी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिल सकती थी... अनीता ने इसी हताशा में खुदकुशी कर ली...अब अनीता की मौत ने पूरे तमिलनाडु को
उद्वेलित कर रखा है...यहां ये सवाल उठ सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में मेडिकल
कॉलेजों में प्रवेश के लिए एकरूपता लाने के वास्ते NEET की व्यवस्था की है तो उसे
चुनौती देने की गुंजाइश ही कहा हैं...बिल्कुल जायज़ सवाल है...
हनीप्रीत के शोर में अनीता की खुदकुशी राष्ट्रीय बहस का मुद्दा नहीं बन सकी...मेरा मानना है कि इसे बनना चाहिए था...ये किसी एक अनीता या एक राज्य
तमिलनाडु का सवाल नहीं, देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था से जुड़ा है...वो शिक्षा
व्यवस्था जिस पर हमारे नौनिहालों के भविष्य के साथ ये भी तय होना है कि आने वाला
भारत कैसा होगा...
NEET परीक्षा का आयोजन सेंट्रल
बोर्ड ऑफ सेकेंडरी बोर्ड (CBSE) की ओर से किया जाता है...तमिलनाडु समेत कई राज्यों के स्कूली
बोर्ड के छात्र-छात्राओं ने राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल प्रवेश परीक्षा कराए जाने का
पुरज़ोर विरोध किया...उनका कहना था कि ये प्रवेश परीक्षा सेंट्रल बोर्ड के सिलेबस
पर होती है, जो कि उस सिलेबस से बहुत अलग है जिसे वे पढ़ते हैं...ये मुद्दा अनीता
जैसे ग्रामीण अंचल और आर्थिक-सामाजिक विकास की दृष्टि से पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने
वाले विद्यार्थियों के लिए बहुत अहम था...उनकी ना तो प्राइवेट महंगी कोचिंग तक
पहुंच है और ना ही उन्हें किसी तरह का और कोई प्रोत्साहन मिलता है...
कई राज्यों
में विरोध की वजह से ही NEET का आयोजन कई साल तक टलता रहा था...इसे पहले देशभर में 2012
में शुरू किया जाना था, लेकिन विरोध के चलते ये परीक्षा 2016 से ही अमल में लाई जा
सकी...
तमिलनाडु सरकार ने विधेयक, अध्यादेशों और केंद्र से मंत्रणाओं के कई दौर के
जरिए राज्य को NEET से अलग रखने की कोशिश की लेकिन कुछ कारगर नहीं रहा...इसी संबंध में बीती 22
अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अनीता की ओर से दाखिल याचिका को भी खारिज कर दिया...
अनीता की मौत ने NEET के समर्थकों और विरोधियों के बीच बहस को फिर गर्म कर दिया
है...NEET के समर्थकों का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षा से भ्रष्टाचार और मेडिकल
शिक्षा के बाजारीकरण पर अंकुश लगाया जा सकता है...साथ ही इससे ये भी सुनिश्चित
होता है कि जो योग्य हैं उन्हें ही दाखिला मिले...
दूसरी ओर, NEET के विरोधियों का कहना है कि क्या देश भर में सभी छात्रों को सेंट्रल बोर्ड के एक पाठ्यक्रम के तराजू पर ही तौला जा सकता है...क्या दिल्ली, कोटा जैसे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए और करोड़ों रुपए कूट रहे प्राइवेट कोचिंग इंस्टीट्यूट्स तक सभी छात्रों की पहुंच है...
यहां ये भी बताना ज़रूरी है कि कुछ राज्यों में नेताओं और रसूखदार लोगों के प्राइवेट
कॉलेजों ने भी मेडिकल शिक्षा का बेड़ागर्क किया...भ्रष्टाचार के दम पर इन्होंने
कॉलेजों की मान्यता ली और मोटे पैसे वसूल कर छात्रों को दाखिले दिए...ये भी नहीं
देखा कि वे मेडिकल शिक्षा जैसे हाई प्रोफेशनल स्टैंडर्ड्स की योग्यता रखते भी हैं
या नहीं...
कायदे से ऐसे विषयों पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए...मीडिया को भी हनीप्रीतों
का मोह छोड़ कर मासेज़ तक अपने प्रभाव का सदुपयोग करना चाहिए...मेरा अपना मानना है
कि NEET अच्छी बात है लेकिन साथ ही कुछ सवाल भी हैं-
1. क्या देश के सभी स्कूली बोर्डों को इसके लिए
तैयार कर लिया गया?...क्या सेंट्रल बोर्ड के सिलेबस के आधार पर ही देश के सभी राज्यों के बोर्डों
ने अपने छात्रों को पढ़ाना शुरू कर दिया है?
2. क्या सभी राज्यों के बोर्ड खत्म कर CBSE के सिलेबस को ही देशभर के छात्रों पर लागू किया
जा सकता है? अगर जवाब नहीं है तो
फिर राष्ट्रीय स्तर पर CBSE के आधार पर ही NEET का आयोजन क्यों?
3. ऐसा क्यों होता है कि NEET में बहुत अच्छा स्कोर करने
वाले कई छात्र-छात्राओं का 12वीं की परीक्षा में प्रदर्शन उतने ऊंचे स्तर का नहीं
होता?
4. क्या राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल प्रवेश परीक्षा से देश के
बड़े शहरों में मौजूदगी रखने वाले चंद प्राइवेट कोचिंग इंस्टीट्यूट्स की नहीं बन
आई है...ये एक-एक बच्चे से चार-पांच लाख रुपए की फीस वसूल कर CBSE के सिलेबस के आधार पर ट्रेंड
फैकल्टी से कोचिंग कराते हैं, जिनका पूरा फोकस प्रवेश परीक्षा को क्रैक करना ही
रहता है? क्या ये दूसरे बोर्डों के
सिलेबस पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं से समानता का अवसर नहीं छीनता?
5. क्या सरकार को ये नहीं सोचना चाहिए कि देश के हर
बच्चे को शिक्षा के समान अवसर मिलें?
आख़िर में ये कहना चाहूंगा कि किसी देश के लिए शिक्षा पर किया गया निवेश ही
सबसे अच्छा निवेश होता है...नौनिहालों पर जो आज खर्च किया जाएगा, जैसे कि हम
उन्हें शिक्षित करेंगे, वैसा ही कल का भारत बनेगा...देश को शिक्षा के राष्ट्रीयकरण
की आज सबसे ज्यादा ज़रूरत है...बच्चों की स्क्रीनिंग छोटी उम्र से ही शुरू की जाए कि उऩका रुझान किस
ओर है और बड़े होकर वो किस क्षेत्र में अपनी प्रभावी छाप छोड़ सकते हैं...आज हम
शुरुआत करेंगे तो उसके नतीजे डेढ़-दो दशक बाद देखने को मिलेंगे...
काश ऐसी बहसें होती दिखें...फिलहाल तो हनीप्रीत के किस्सों से
ही फुर्सत नहीं....
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंफिलहाल तो हनीप्रीत के किस्सों से ही फुर्सत नहीं....
जवाब देंहटाएंBAHUT BADHIYAA POSt
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक और तार्किक - देशनामा पढ़ने पर तुरंत यह दो शब्द ज़हन में आते हैं। एक और शब्द है हिम्मत जिसके बिना लेखन ग़ुलामी की ज़ंजीरों से जकड़ा हुआ नज़र आता है। आप मशाल की तरह हैं। जारी रखिए।
जवाब देंहटाएंहमारे देश की मीडिया को भी पता नहीं क्या हो गया हैं? जो दिखाना चाहिए उसे कभी नहीं दिखाते
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