कुछ कहना शुरू करूं उससे पहले चलिए थोड़ा अतीत में चलते हैं...1971 से
पहले की स्थिति में...उस वक्त बांग्लादेश अस्तित्व में नहीं आया था...तब ये
क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान के रूप में जाना जाता था...उस वक्त पाकिस्तान की फौज इस
क्षेत्र के मूल बाशिंदों (बांग्लाभाषियों) पर ऐसा क़हर बरपा रही थी कि शैतान भी
शर्मिंदा हो जाएं...हत्याएं, बलात्कार, यातनाएं यानि मानवता के प्रति ऐसा कौन सा
अपराध नहीं था जो पाकिस्तानी फौजियों की ओर से नहीं किया जा रहा था...उस दोजख से
बचने के लिए लाखों की संख्या में लोग सरहद पार कर पनाह लेने भारत आ गए...इनमें
हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, आदिवासी सभी शामिल थे...सब को भारत में शरण मिली...यही
नहीं भारत ने फौज भेज कर ना सिर्फ मुक्तिवाहिनी की मदद की बल्कि पाकिस्तान को
करारी शिकस्त दे कर बांग्लादेश को आज़ाद कराया...
अब यहां एक स्थिति की कल्पना कीजिए...अगर भारत उस वक्त दखल नहीं देता और
आंखें मूंदे रहता? जितने
शरणार्थी इस पार आ रहे थे उन्हें जबरन वापस भेजता रहता तो क्या होता...क्या ये
शरणागत आए लोगों को दोबारा मौत के कुएं में धकेलने जैसा नहीं होता...
चलिए अब वर्तमान में लौटते हैं...म्यांमार की बात करते हैं जिसे पहले बर्मा
कहा जाता था...वहां की स्थिति भी विस्फोटक है...वहां रोहिंग्या मुसलमानों पर फौज
की ओर से बरपाए जा रहे ज़ुल्मों की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है...म्यांमार
में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी राखिन प्रांत तक सीमित है....दो हफ्ते से वहां
हिंसा का नया भयानक दौर शुरू हुआ है...
बता दें कि इस मुल्क में बरसों से सैनिक हुकूमत (जुंटा) चली आ रही थी...इसी
वजह से शांति नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सांग सू की को कई वर्षों तक हिरासत में
रहना पड़ा...कहने को वहां पिछले एक दशक में लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रकिया की
शुरुआत हुई और आंग सांग सू की को रिहाई मिली...2015 चुनाव में सू की के नेतृत्व
वाली पार्टी को विजय मिली और उनका सत्ता में आने का रास्ता साफ़ हुआ...
मार्च
2016 में सू की ने स्टेट काउंसलर बन कर शासन प्रमुख (डि फैक्टो) की गद्दी संभाली...उस वक्त सू
की ने फौज के साथ सत्ता शेयर करने पर सहमति जताई...इस वादे का मतलब ये था कि
सुरक्षा से जुड़े सभी मंत्रालयों- गृह, रक्षा, सीमा मामलों की कमान फौज के जनरल ही
संभालेंगे... म्यांमार फौज के कमांडर-इन-चीफ़ सीनियर
जनरल मिन ऑन्ग ह्लांग के हाथ में फिलहाल ये सारी ज़िम्मेदारियां हैं...
दरअसल,
म्यांमार में लोकतंत्र बहाली की प्रक्रिया को फौजी हुक्मरानों ने बड़ी रणनीति से अंजाम
दिया था...साल 2008 में फौज के जनरलों ने संविधान का मसौदा तैयार किया तो इसमें
ये साफ तौर पर लिखा गया कि म्यांमार के सभी सुरक्षा बल आर्मी के कंट्रोल में
रहेंगे...ये साफ़ किया गया कि आंतरिक संकट में भी फ़ैसले लेने के अधिकार पुलिस के
पास नहीं फौज के पास रहेंगे...
रोहिंग्या संकट के चलते राखिन प्रांत का पूरा कंट्रोल
भी म्यांमार की फौज के पास है...शुरू शुरू में तो म्यांमार में सू की सरकार ने एक
प्रभावशाली स्टैंड लिया लेकिन जल्द ही ताकतवर सेना इस मुद्दे पर हावी हो गई और
रखाइन को मिलिट्री का ऑपरेशन एरिया घोषित कर दिया गया....
सू की न केवल रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर फौज के
उठाए कदमों पर खामोश रहीं बल्कि उन्होंने अपनी तरफ़ से भी हर सतर्कता बरती...जिससे किसी को
ये ना लगे कि वो रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों का समर्थन कर रही
हैं...उन्होंने फौज को एक तरह से क्लीन चिट देते हुए ये तक कह डाला कि रखाइन में
किसी तरह की नस्ली हिंसा नहीं हो रही...सू की के ख़ामोश रहने की वजह ये भी है कि
उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के लिए सेना का राजनीतिक समर्थन लेते रहना
मजबूरी है...
भले ही 2015 में उनकी पार्टी एक ऐतिहासिक बहुमत से
सत्ता में आई थी लेकिन अप्रैल 2017 के उपचुनाव में उन्हें करारी शिकस्त का सामना
करना पड़ा...अगर सू की खुल कर रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन करतीं तो उनकी
पार्टी का बौद्ध समुदाय के बीच राजनीतिक जनाधार खिसक सकता था...म्यामांर की कुल
आबादी में बौद्धों की 90 फीसदी आबादी है...
सूकी ने बुधवार को तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगान के साथ फोन पर
बातचीत में पहली बार रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर चुप्पी तोड़ी...बता दें कि सू की
पर मिस्र समेत दुनिया भर के देशों से दबाव है कि वे रोहिंग्या मुसलमानों की
हिफ़ाज़त करें...जिस सू की को एशिया की नेल्सन मंडेला कहा जाता था, आज मानवाधिकारों को लेकर उन्हीं की प्रतिष्ठा दांव पर है....
तुर्की के राष्ट्रपति के साथ फोन पर हुई बात के कॉल रिकॉर्ड
के मुताबिक सू की ने कहा- ‘रोहिंग्या संकट को लेकर दुष्प्रचार का बड़ा बर्फ़ का पहाड़ ‘आतंकियों’ को मदद
देने के लिए बांटा जा रहा है...मेरी
सरकार ये सुनिश्चित करने के लिए लड़ रही है कि ‘आतंकवाद’ पूरे राखिन
राज्य में ना फैले’...रोहिंग्या
के अधिकारों के संरक्षण को लेकर सू की ने कहा, ‘हम अच्छी तरह, बहुतों से ज़्यादा, जानते हैं कि मानवाधिकारों और
लोकतांत्रिक संरक्षण से वंचित होने के क्या मायने होते हैं...इसलिए हम सुनिश्चित
करेंगे कि हमारे देश के सभी नागरिक अपने अधिकारों की सुरक्षा पाने के हक़दार हों...साथ
ही साथ ना सिर्फ़ राजनीतिक बल्कि सामाजिक और मानवीय सुरक्षा के अधिकारों तक उनकी
पहुंच हो’...
कहने का मतलब यही है कि सू की की चिंता इस वक्त
रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों की नहीं है...इससे कहीं ज़्यादा उनकी फ़िक्र फौज का साथ पाने के लिए जनरल मिन आंग
ह्लांग को संतुष्ट रखने की है...
संयोग से जिस दिन सू की ने रोहिंग्या मुसलमानों पर चुप्पी तोड़ी उसी दिन
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी म्यामांर में थे...उन्होंने साझा प्रेस
कॉन्फ्रेंस में कहा, 'रखाइन
स्टेट में चरमपंथी हिंसा के चलते खासकर सिक्यॉरिटी फोर्सेज और मासूम जीवन की हानि
को लेकर आपकी चिंताओं के हम भागीदार हैं। चाहे वह बड़ी शांति प्रक्रिया हो या किसी
विशेष मुद्दे को सुलझाने की बात, हम आशा
करते हैं कि सभी ऐसा हल निकलाने की दिशा में काम कर सकते हैं, जिससे
म्यांमार की एकता और भौगौलिक अखंडता का सम्मान करते हुए सभी के लिए शांति, न्याय, सम्मान और
लोकतांत्रिक मूल्य सुनिश्चित हों।'
कूटनीति में एक एक शब्द के मायने होते हैं...इसलिए मोदी ने हर शब्द नाप तौल
कर कहा...सू की हों या मोदी, दोनों में से किसी ने भी खुल कर फौजी दमन का शिकार हो
रहे रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों की हिफ़ाज़त की बात दमदार ढंग से नहीं की...दोनों ने
वही कहा जो म्यांमार में असल पावर सेंटर यानि फौज को सूट करता हो...साथ ही अपने अपने होम
फ्रंट पर बहुसंख्यकवाद की राजनीति को भी साधता हो...
क्रमश:
(अगली कड़ी
में पढ़िएगा रोहिंग्या मुसलमान संकट है क्या, कहां से हुई इसकी शुरुआत?)
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
किसी के बारे में कुछ न जानते हुए बजी इस फोटो ने रोंगटे खड़े कर दिए,कितना दर्द समाया है बेबसी के साथ इस व्यक्ति के चेहरे में,काश कोई इस कदर पीड़ा न भोगे।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइतने कम शब्दों में आप ने इतने जटिल विवाद को सुलझा कर सामने रख दिया।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-09-2017) को "सत्यमेव जयते" (चर्चा अंक 2721) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’नीरजा - हीरोइन ऑफ हाईजैक और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट ने दिल खुश कर दिया ।।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख ।आभार ।
जवाब देंहटाएंतथ्यपूर्ण आलेख
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