नवरात्र चल रहे हैं. गुरुवार 28 सितंबर को
अष्टमी पर कन्या पूजन होना है. लेकिन बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में शनिवार रात
को पुलिस के ‘पुरुष शूरवीरों’ ने एक अलग तरह
का ही ‘कन्या पूजन’ किया, छात्राओं पर
लाठियां बरसा कर. विडंबना देखिए, एक तरफ हज़ारों किलोमीटर दूर संयुक्त
राष्ट्र में सुषमा स्वराज दुर्गा की तरह गरज रही थीं, ठीक उसी वक्त
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर ‘लाठी चलाओ,
बेटी
भगाओ' का ‘पराक्रम’ दिखाया जा रहा
था. ये दृश्य देखकर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की आत्मा भी धन्य हो गई होगी
जिन्होंने 101 साल पहले वसंत पंचमी के दिन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव रखी
थी.
सबसे पहले शनिवार रात को क्या हुआ, इसका
ज़िक्र कर लिया जाए. यहां बीते दो दिन से सुरक्षा की मांग को लेकर छात्राएं बीएचयू
के मुख्य द्वार लंका गेट पर धरना दे रही थीं. उनकी मांग थी कि बीएचयू के कुलपति
गिरीश चंद्र त्रिपाठी खुद धरना स्थल पर आकर उनसे बात करें और सुरक्षा का आश्वासन
दें. कुलपति की ओर से इस मांग पर ध्यान ना दिए जाने की वजह से छात्राओं का आक्रोश
बढ़ता जा रहा था.
बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी |
वहीं, कुलपति महोदय यही ज़ोर देते रहे कि धरना राजनीति से प्रेरित है. ‘द हिन्दू’ की रिपोर्ट के मुताबिक कुलपति ने अखबार
से बातचीत में कहा कि कुछ को छोड़कर सभी धरना देने वाले बाहरी लोग थे. इस धरने का
आयोजन ऐसे वक्त किया गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी दौरे पर थे. कुलपति
के मुताबिक सनसनीखेज़ पुट देने के लिए इससे बेहतर उनके लिए और क्या वक्त हो सकता
था.
जिस तरह की रिपोर्ट आ रही हैं, उनके मुताबिक शनिवार को धरना दे रही
छात्राओं के बीच छात्र भी पहुंच गए. इनमें से कुछ की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से
इनकार नहीं किया जा सकता. कुछ छात्रों की ओर से प्रदर्शनकारी छात्राओं से धरना
समाप्त करने की अपील के साथ ये आश्वासन दिया गया कि वे खुद छात्राओं की सुरक्षा
सुनिश्चित करेंगे. लेकिन छात्राओं का साफ़ कहना था कि जब तक कुलपति उनके बीच आकर
आश्वासन नहीं देंगे, वे धरने
से नहीं उठेंगी. यहां इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह हर स्थिति
का फायदा उठाने के लिए असामाजिक तत्व ताक में रहते हैं, वो यहां भी सक्रिय हो गए. उन्हीं में
से किसी ने एक चारपहिया वाहन को आग़ लगा दी. कुछ मोटरसाइकिलों को फूंकने और पथराव
की भी ख़बर आई. इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया. एक छात्रा के सिर और टांग में
चोट आई. ऐसी भी ख़बर है कि कुछ छात्राओं को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया.
चलिए मान लेते हैं कि असामाजिक तत्वों की वजह
से स्थिति बिगड़ी और पुलिस को छात्राओं पर लाठीचार्ज करना पड़ा. लेकिन ऐसी नौबत
आने ही क्यों दी गई. क्या घिस जाता अगर कुलपति खुद छात्राओं के बीच आकर उनकी बात
सुन लेते. कुलपति ने हठधर्मी रवैया छोड़ सूझ-बूझ से काम लिया होता तो
चिंगारी को शोले बनने से पहले ही बुझाया जा सकता था.
मौजूदा स्थिति विस्फोटक क्यों बनी, इसके पीछे छेड़खानी की एक घटना है.
बताया जा रहा है कि बीएफए सेकेंड इयर की एक छात्रा गुरुवार शाम 6.20 बजे अपने
विभाग से हॉस्टल की ओर जा रही थी. तभी भारत कला भवन के पास पीछे से बाइक पर दो अज्ञात
बदमाश आए और छात्रा से छेड़खानी करने के बाद भाग गए. जिस जगह ये सब हुआ वहां
लाइटिंग की व्यवस्था सही नहीं होने की वजह से अंधेरा था. छात्रा का कहना है कि वो
चिल्लाई, पास ही सुरक्षा
गार्ड खड़े थे लेकिन उसकी मदद के लिए आगे नहीं आए. छात्रा ने हॉस्टल में जाकर अन्य
छात्राओं को सब बताया. इसके बाद हॉस्टल की छात्राओं ने सुरक्षा गार्डों से आकर
पूछा तो उन्होंने महिला विरोधी टिप्पणी की. साथ ही पीड़ित छात्रा को ही नसीहत दी
कि अंधेरे में चलते वक्त उसने सावधानी क्यों नहीं बरती.
छात्राओं ने इस प्रकरण की चीफ प्रॉक्टर और
वॉर्डन से शिकायत की. कुल मिलाकर सभी का रवैया दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने
की जगह पीड़ित छात्रा को ही कटघरे में खड़ा करने वाला रहा. मसलन देर से क्यों
हॉस्टल से निकलती हो. कपड़े कैसे पहनती हो. यहां बता दे कि घटना के वक्त छात्रा ने
सलवार सूट पहन रखा था. पहनावे पर सवाल उठाना वाकई विचित्र है. सुरक्षा व्यवस्था को
मज़बूत करने की जगह पीड़ित से सवाल करना अपने आप में ही कैसी मानसिकता का प्रतीक
है, समझा जा सकता
है.
चीफ प्रॉक्टर और वॉर्डन से निराशा मिलने के बाद
छात्राओं ने भी तय कर लिया कि कुलपति उनके बीच आकर उनकी बात सुने और दोषियों के
ख़िलाफ़ कार्रवाई करें. कुलपति ने छात्राओं की इस मांग पर कान धरना गवारा नहीं
समझा. कहने को कुलपति ने शिक्षकों का एक प्रतिनिधिमंडल छात्राओं के बीच भेजा.
कुलपति धरना स्थल पर नहीं पहुंचे लेकिन त्रिवेणी हॉस्टल जाकर छात्राओं से बात करनी
चाही. इस पर वहां मौजूद छात्राओं ने कहा कि जो भी बात होगी मुख्य धरना स्थल पर
सबसे सामने होगी. छात्राओं के ये कहने पर कुलपति भड़क गए. इस पर छात्राओं ने भी
हंगामा कर दिया. आखिरकार कुलपति को वहां से जाना पड़ा.
अब यहां ये भी गौर कर लिया जाए कि आखिर
प्रदर्शनकारी छात्राएं कुलपति से मांग ही क्या रही थीं- छात्राओं के लिए 24 घंटे
सुरक्षा, कोताही बरतने वाले सुरक्षाकर्मियों को जवाबदेह बनाना,
महिला सुरक्षाकर्मियों की तैनाती, हॉस्टल आने-जाने के मार्ग पर माकूल लाइटिंग व्यवस्था और यूनिवर्सिटी
परिसर में सीसीटीवी कैमरे.
बताइए इनमें से ऐसी कौन सी मांगें हैं जो 800 करोड़ रुपए के बजट वाली यूनिवर्सिटी पूरी नहीं कर सकती. कुलपति महोदय इसी बात पर अड़े रहे कि पीड़ित छात्रा लिखित में आकर पहले उन्हें शिकायत करे, उसी के बाद वो दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे. मान लीजिए कि कुलपति या किसी शिक्षक की बेटी के साथ ऐसी घटना हो जाती तो भी क्या उनका रवैया ऐसा ही रहता. कुलपति विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं के लिए पितातुल्य होता है, कुलपति से सभी विशेष तौर पर हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं के लिए संरक्षक की भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है.
गिरीश चंद्र त्रिपाठी की कुलपति पद पर नियुक्ति 14 नवंबर 2014 को हुई. उसके बाद से ही उनके नाम के साथ कई विवाद जुड़ चुके हैं. जैसे कि परिसर में स्थित 40 साल पुरानी कलात्मक प्रतिमा को अश्लील बता कर पहले कपड़े पहनवा देना और फिर विरोध पर उन्हें हटवाना, 24 घंटे लाइब्रेरी खोलने की मांग करने वाले छात्रों पर लाठीचार्ज, नक्सल समर्थक बता कर प्रोफेसर संदीप पांडेय की बर्खास्तगी (जिसे बाद में हाईकोर्ट ने अपने आदेश से रद्द कर दिया) आदि.
बताइए इनमें से ऐसी कौन सी मांगें हैं जो 800 करोड़ रुपए के बजट वाली यूनिवर्सिटी पूरी नहीं कर सकती. कुलपति महोदय इसी बात पर अड़े रहे कि पीड़ित छात्रा लिखित में आकर पहले उन्हें शिकायत करे, उसी के बाद वो दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे. मान लीजिए कि कुलपति या किसी शिक्षक की बेटी के साथ ऐसी घटना हो जाती तो भी क्या उनका रवैया ऐसा ही रहता. कुलपति विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं के लिए पितातुल्य होता है, कुलपति से सभी विशेष तौर पर हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं के लिए संरक्षक की भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है.
गिरीश चंद्र त्रिपाठी की कुलपति पद पर नियुक्ति 14 नवंबर 2014 को हुई. उसके बाद से ही उनके नाम के साथ कई विवाद जुड़ चुके हैं. जैसे कि परिसर में स्थित 40 साल पुरानी कलात्मक प्रतिमा को अश्लील बता कर पहले कपड़े पहनवा देना और फिर विरोध पर उन्हें हटवाना, 24 घंटे लाइब्रेरी खोलने की मांग करने वाले छात्रों पर लाठीचार्ज, नक्सल समर्थक बता कर प्रोफेसर संदीप पांडेय की बर्खास्तगी (जिसे बाद में हाईकोर्ट ने अपने आदेश से रद्द कर दिया) आदि.
छात्राओं की ओर से बीएचयू प्रशासन पर लैंगिक
भेदभाव की शिकायतें पहले से ही आती रही हैं. सुप्रीम कोर्ट में इसी साल एक याचिका
दाखिल की जो अभी तक लंबित है. याचिका में कहा गया है कि वो रात 8 बजे के बाद
हॉस्टल नहीं छोड़ सकतीं इसलिए वो लाइब्रेरी भी नहीं जा सकतीं. लाइब्रेरी रात 10
बजे तक खुलती है, इसलिए
8 बजे के बाद छात्र तो वहां जा सकते हैं लेकिन छात्राएं नहीं. छात्राओं को हॉस्टल
के कमरों में वाई-फाई लगाने की अनुमति नहीं है. यहीं नहीं छात्राओं को हॉस्टल में
नॉन वेज खाने की इजाजत नहीं है. ना ही वो रात 10 बजे के बाद मोबाइल पर किसी से बात
कर सकती है. छात्राओं को पहनावे संबंधी भी कई तरह के निर्देश हैं. बता दें कि इन
सभी नियमों को कुलपति का अनुमोदन प्राप्त है.
इस घटना को छोड़ भी दिया जाए तो बीएचयू में
पिछले कुछ महीनों से ही माहौल खराब चल रहा है. छेड़खानी की घटनाएं बढ़ रही हैं.
प्रोफेसरों तक को धमकियों का सामना करना पड़ता है. हालात कैसे चिंताजनक है ये वही
की प्रीति कुसुम की इस फेसबुक पोस्ट में पढ़िए. पढ़ कर ही सिर शर्म से झुक जाता है
कि कुछ शैतान किस तरह खिड़कियों के पास आकर अश्लील हरकतें करते हैं.
और तो और वाराणसी के डीएम तक का मानना है कि
लंका थाने की पुलिस का अधिकतर टाइम बीएचयू के टंटे निपटाने में ही निकल जाता है.
जब भी विवाद होते हैं, बहुत कम ही होता है कि कुलपति मौके पर पहुंच कर
स्थिति को बेकाबू होने से बचाते हैं.
बीएचयू की स्थिति पर यहां के प्रशासन की ओर से
तर्क दिए जाते हैं कि विश्वविद्यालय की छवि को खराब करने की साज़िश चल रही है.
राजनीति को इसकी वजह बताया जाता है. सुरक्षा जैसी जायज़ मांग करने वाली लड़कियों
पर ही आरोप लगा दिए जाते हैं कि वो गलत लोगों के इशारों पर काम कर रही है. ये कुछ
कुछ वैसा ही है जैसे कि जेएनयू प्रकरण के दौरान हुआ था. जेएनयू के छात्र-छात्राओं
की छवि गलत पेंट करने के लिए एक नेता महोदय तो वहां इस्तेमाल कंडोम का भी आकंड़ा
गिनाने लगे थे, जैसे कि खुद उन्होंने उनकी गिनती की हो. ज़रूरत
इस वक्त विश्वविद्यालयों में ऐसा माहौल बनाए रखने की है जिससे कि छात्र वहां पढ़ाई
और शोध को शांति से अंजाम दे सकें. देश में जिन गिने-चुने विश्वविद्यालयों की
गुणवत्ता को लेकर साख है, उन्हें इस तरह के प्रकरणों से बट्टा
नहीं लगने देना चाहिए. युवा शक्ति कैसे देश की राजनीति की दशा और दिशा बदल सकती है
ये हमने सत्तर के दशक में जेपी आंदोलन के दौरान भी देखा और हाल ही में निर्भया से
हुई दरिंदगी से उपजे जनाक्रोश के दौरान भी.
बीएचयू में 23 सितंबर की रात का वीडियो-
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जरूरी और बेहतरीन पोस्ट।
जवाब देंहटाएंदिनांक 26/09/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
माक्षले का बेबाक विवरण । अच्छी पोस्ट ।
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