मेरे एक मित्र हैं रविकांत द्विवेदी...उन्होंने अपने मित्र डॉ संजय कुमार की लेखनी से मेरा परिचय कराया...संजय सेवा भारत संगठन के डायरेक्टर हैं....ये संगठन महिला श्रमिकों के सशक्तिकरण की दिशा में काम कर रहा है...संजय ने एक लेख में ये मुद्दा उठाया है कि भारत को विश्व के विकास का इंजन बनाने के लिए सबसे पहले क्या करना ज़रूरी है...उसी लेख के कुछ अहम बिंदुओं को यहां पेश कर रहा हूं...
संजय का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली में सत्ता संभालने के बाद ही विश्व में भारत की छवि को मज़बूत करने में जुटे हैं...कूटनीति को धार देकर कोशिश यही है कि विदेशी राजनयिक और कारोबारी भारत को संभावनाओं का देश मानने लगें...ज़ाहिर है ऐसा होगा तो भारत में निवेश बढ़ेगा...लेकिन दूसरी तरफ़ संजय का ये भी कहना है कि बाहर से राजनयिकों और कारोबारियों के समर्थन का ये अर्थ नहीं कि उनके देशों के नागरिक भी वैसा ही सोचते हों...संजय के मुताबिक यदि भारत को विकास की दृष्टि से वाकई विश्व गुरु बनना है तो उसे पहले तमाम देशों के नागरिकों का दिल भी जीतना होगा...
संजय ने इस दिशा में भारत की हाल की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया है जिससे विदेशी नागरिकों में अच्छा संदेश नहीं गया है...जैसे कि...
पिछले कुछ वर्षो में विदेशी सैलानियों एवं विद्यार्थियों के साथ भारत में जिस प्रकार का अशोभनीय व्यवहार किया गया है वह वसुधैव कुटुम्बकम की परंपरा का हिस्सा नहीं है...इससे हमारे देश की साख़ को धक्का लगा है...देश की राजधानी दिल्ली में अफ़्रीकी युवक की हत्या के बाद इसकी गूंज कॉन्गो में सुनाई दी...वहां भारतीय मूल के लोगों पर हमले के साथ भारतीय दूतावास पर हिंसक विरोध हुआ...साथ ही भारतीय व्यापारियों को दुकानें बंद रखने को कहा गया....यहीं नहीं तमाम अफ़्रीकी देशों ने भारत में रहने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षा की मांग की...साथ ही अफ्रीकी विद्यार्थयों को भारत आने से मना करने की बात की...बता दें कि भारत में अफ्रीकी देशों के लगभग 25,000 छात्र हर वर्ष पढ़ने के लिए आते हैं... ये पूरा प्रकरण सहिष्णु भारत की गरिमा को चोट पहुंचाने वाला रहा...
निचोड़ यही कि वैश्वीकरण के युग में विदेशियों को अपने देश में सुरक्षा की समुचित गारंटी नहीं दे पाना कितना भारी हो सकता है...ये भारत को विश्व के विकास का इंजन बनाने की राह में चुनौतीपूर्ण हो सकता है...
संजय के मुताबिक भारत में जिस प्रकार विदेशियों के प्रति दृष्टिकोण रखा जाता है...जिस प्रकार से विदेशियों के साथ व्यवहार किया जाता है वह सिर्फ पीड़ादायक ही नहीं, देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए खतरनाक भी है...विदेशियों में भी हम रंग-भेद करने से नहीं चूकते...अफ्रीकी देशों के नागरिकों के साथ भिन्न व्यवहार होता रहा है जो हाल के दिनों में काफी बढ़ गया...कॉन्गो के युवक ओलिविया को पीट-पीट कर मार देने की घटना रंग-भेद की मानसिकता एवं विदेशियों के साथ बदसलूकी का चरम उदाहरण है...इसका अर्थ कतई नहीं कि गौर वर्ण विदेशियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं होता...2014 में डेनिश महिला के साथ दुष्कर्म के अलावा छेड़खानी और लूटपाट की कई घटनाएं भी सुर्खियों में रहीं...
ऐसी घटनाएं हीं नहीं निर्भया और हालिया बुलंदशहर हाईवे रेप जैसे जघन्य अपराधों से भी विश्व के दूसरे देशों में गलत संदेश जाता है...इसका सीधा असर देश के पर्यटन पर पड़ता है...विदेशी सैलानी भारत आने से कतराने लगते हैं.. निर्भया गैंग रेप के बाद ही भारत आने वाले विदेशी सैलानियों में 35 फीसदी की कमी आ गयी थी... पर्यटन का हमारे देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में करीब 6.3 फीसदी की हिस्सेदारी रही है...संगठित नौकरियों के कुल भागीदारी का लगभग 10 फीसदी इस क्षेत्र में कार्य करते हैं जो की लगभग 2 करोड़ लोगों के रोज़गार का ज़रिया है... इसके अलावा भी बड़ी संख्या में असंगठित रोज़गार जैसे फोटोग्राफर्स, गाइड आदि पर्यटन से जुड़े हुए हैं...आर्थिक नुकसानों का अनुमान तो आंकड़ों से जान जा सकता है लेकिन विश्व भर में विदेशियों के मन में भारत की जो छवि बिगड़ती है उसका आंकड़ा नहीं मिल पाता...
भारतीय मूल के लोगों को विदेशों में महफूज़ रखने एवं अपनी अंतर्राष्ट्रीय साख़ को संरक्षित रखने के लिए हमें अन्य देशों के नागरिकों को भारत में संपूर्ण सुरक्षित माहौल देना होगा...हमारे शहरों को भौतिक एवं मानसिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय बनाने की ज़रूरत है...इसके लिए हमें सरकार, सामाजिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों एवं नागरिकों के स्तर पर कार्य करने की ज़रूरत है...मसलन
1. कई देश विश्व के लोगों को अपने देश बुलाकर देश के अलग-अलग सामाजिक, राजनितिक एवं आर्थिक मामलों से रु-ब-रु कराते हैं...इससे दूसरे देश के लोगो में मेज़बान देश की जानकारी एवं तालमेल बढ़ती है...अमेरीका के विदेश विभाग का I.V.L.P (इंटरनेशनल विजिटर्स लीडरशिप प्रोग्राम) एक अनूठा उदाहरण है जहां प्रतिवर्ष लगभग 6000 लोगों को दुनिया भर से अमेरिका बुलाया जाता है... इस कार्यक्रम के अंतर्गत सभी भागीदारों को राजनेताओं, शोधकर्ताओं, विद्यार्थयों, सामाजिक संस्थानों एवं नागरिकों से मिलवाया जाता है...भारतीय विदेश मंत्रालय अफ़्रीकी देशों के विकास के लिए खर्च कर रही है और ऐसे में इस तरह के नए कार्यक्रम शुरू करने से भारतीय एवं अफ़्रीकी लोगो के तालमेल के लिए कारगर सिद्ध हो सकता है...
2. विदेश मंत्रालय दक्षिण-दक्षिण सहयोग के तहत भारतीय समाजिक संस्थानों एवं संगठनों के माध्यम से अफ़्रीकी देशों के सामाजिक संगठनों को विकास कार्यों के लिए सक्षम बनाने का कार्य कर रही है... इस कार्यक्रम में 'सेवा' जैसे प्रमुख संगठन सक्रिय है और 'सेवा' ने तो अपने प्रोजेक्ट का नाम भी 'सेतु अफ्रीका' दिया है ताकि भारत और अफ़्रीकी देशों के बीच यह एक दोस्ती का रास्ता दिखा सके...भारत सरकार को ऐसे कार्यक्रमों को ज़्यादा सक्रिय एवं लोकप्रिय करना चाहिए जिससे कि भारत एवं अफ़्रीकी देशों के लोगो के बीच तालमेल बेहतर हो सके...
3. कई देश प्रमुख शहरों में स्थानीय नागरिकों के घर पर मेहमानवाज़ी का कार्यक्रम चलाते हैं जिससे अन्य देशो से आये मेहमान एवं स्थनीय लोग एक-दुसरे के जीवन एवं संस्कृति से अवगत हो पाते हैं...अमेरिका के कई शहरों में यह कार्यक्रम नगर निगम एवं सामाजिक संस्थानें मिलकर चलाते हैं...भारत में भी इस कार्यक्रम को शुरू करने का वक़्त आ गया है जिससे लोगों के बीच रिश्ता कायम करने में मदद मिलेगी...
इसके अलावा विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की रंग-भेद जैसे जटिल समस्यायों का अंत करने में ख़ास भूमिका होनी चाहिए...शैक्षणिक संस्थानों में इन मुद्दों पर विद्यार्थयों को शिक्षित करना चाहिए एवं पाठ्यक्रम में भी डाला जाना चाहिए...ऐसा करने से हमारे बच्चों को अंतर्राष्ट्रीय नागरिकों को समझने योग्य बनाने में काफ़ी मदद मिलेगी...
भारत ज़रूर विश्व के विकास का इंजन बन सकता है लेकिन उसके लिए ईंधन भी उच्च कोटि का इस्तेमाल करना होगा...यह ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं बल्कि देश के हर जागरूक नागरिक की भी है...सब का मिल कर किया गया प्रयास ही भारत के विश्व गुरु बनने के सपने को साकार कर सकेगा...
(डॉ संजय कुमार का संपर्क सूत्र...Sanjaykumar.harvard@gmail.com)