दूध के कलेक्शन सेंटर में एक मोटा और एक छोटा चूहा धमा-चौकड़ी मचा रहे थे...इसी उछल-कूद के दौरान दोनों ताजा दूध के एक टब में जा गिरे...दोनों बाहर निकलने की कोशिश में घंटो तैरते रहे...लेकिन टब की सीधी और फिसलने वाली दीवारें उनकी दुश्मन बनी हुई थीं...मौत निश्चित दिखने लगी...
तैरते-तैरते मोटे चूहे की हिम्मत जवाब दे गई...बचने की कोई उम्मीद ना देखकर वो बुदबुदाया..."जो निश्चित है, उसके ख़िलाफ़ लड़ना बेकार है...मैं तैरना छोड़ रहा हूं"...ये सुनकर छोटा चूहा ज़ोर से बोला..."तैरते रहो...तैरते रहो"...छोटा चूहा अब भी टब के गोल चक्कर काटता जा रहा था...ये देखकर मोटा चूहा थोड़ी देर और तैरा और फिर रुक कर बोला..."छोटे भाई, कोई फ़ायदा नहीं...बहुत हो चुका...हमें अब मौत को गले लगा लेना चाहिए"...
अब बस छोटा चूहा ही तैर रहा था...वो अपने से बोला..."कोशिश छोड़ना तो निश्चित मौत है...मैं तैरता रहूंगा"...दो घंटे और बीत गए...आखिर छोटा चूहा भी थक कर चूर हो चुका था...पैर उठाना भी चाह रहा था तो उठ नहीं रहे थे...ऐसे जैसे कि उन्हें लकवा मार गया हो...लेकिन फिर उसके ज़ेहन में मोटे चूहे का हश्र कौंधा...उसने फिर पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ना शुरू किया..कुछ देर और उसके तैरने से दूध में लहरें उठती रहीं...फ़िर एक वक्त ऐसा भी आया कि छोटा चूहा भी निढाल हो गया...उसे लगा कि अब वो डूबने वाला है...लेकिन ये क्या उसे अपने पैरों के नीचे कुछ ठोस महसूस हुआ...ये ठोस और कुछ नहीं बल्कि मक्खन का एक बड़ा टुकड़ा था...वही मक्खन, जो चूहे के तैरते-तैरते दूध के मंथन से बना था...थोड़ी देर बाद छोटा चूहा आज़ादी की छलांग लगा कर दूध के टब से बाहर था....
जागो, उठो और लक्ष्य पूरा होने तक मत रुको....स्वामी विवेकानंद
प्रचलित अंग्रेज़ी बोधकथा का अनुवाद पढ़ लिया अब ये मेरा सबसे ज़्यादा पसंदीदा गीत भी सुन लीजिए...
तैरते-तैरते मोटे चूहे की हिम्मत जवाब दे गई...बचने की कोई उम्मीद ना देखकर वो बुदबुदाया..."जो निश्चित है, उसके ख़िलाफ़ लड़ना बेकार है...मैं तैरना छोड़ रहा हूं"...ये सुनकर छोटा चूहा ज़ोर से बोला..."तैरते रहो...तैरते रहो"...छोटा चूहा अब भी टब के गोल चक्कर काटता जा रहा था...ये देखकर मोटा चूहा थोड़ी देर और तैरा और फिर रुक कर बोला..."छोटे भाई, कोई फ़ायदा नहीं...बहुत हो चुका...हमें अब मौत को गले लगा लेना चाहिए"...
अब बस छोटा चूहा ही तैर रहा था...वो अपने से बोला..."कोशिश छोड़ना तो निश्चित मौत है...मैं तैरता रहूंगा"...दो घंटे और बीत गए...आखिर छोटा चूहा भी थक कर चूर हो चुका था...पैर उठाना भी चाह रहा था तो उठ नहीं रहे थे...ऐसे जैसे कि उन्हें लकवा मार गया हो...लेकिन फिर उसके ज़ेहन में मोटे चूहे का हश्र कौंधा...उसने फिर पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ना शुरू किया..कुछ देर और उसके तैरने से दूध में लहरें उठती रहीं...फ़िर एक वक्त ऐसा भी आया कि छोटा चूहा भी निढाल हो गया...उसे लगा कि अब वो डूबने वाला है...लेकिन ये क्या उसे अपने पैरों के नीचे कुछ ठोस महसूस हुआ...ये ठोस और कुछ नहीं बल्कि मक्खन का एक बड़ा टुकड़ा था...वही मक्खन, जो चूहे के तैरते-तैरते दूध के मंथन से बना था...थोड़ी देर बाद छोटा चूहा आज़ादी की छलांग लगा कर दूध के टब से बाहर था....
जागो, उठो और लक्ष्य पूरा होने तक मत रुको....स्वामी विवेकानंद
प्रचलित अंग्रेज़ी बोधकथा का अनुवाद पढ़ लिया अब ये मेरा सबसे ज़्यादा पसंदीदा गीत भी सुन लीजिए...
सुन्दर .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
जवाब देंहटाएंआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
ये वो सच है अगर जीवन में उतार लिया जाए तो जीवन सार्थक हो जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेऱणादायक। जीवन में खुद से हार मानना जीवन को त्याग देना है.
जवाब देंहटाएंजीवन चलने का नाम
जवाब देंहटाएंअच्छा बताया।
जवाब देंहटाएंअंत तक चलना है ....
जवाब देंहटाएंab haar kaise maane ... :-)
जवाब देंहटाएंइक रास्ता है जिन्दगी..
जवाब देंहटाएंकथा भी प्रेरणास्पद और विवेकानन्द का स्मरण भी श्रेष्ठ। गीत सुन रहे हैं।
जवाब देंहटाएंवाह ! सही कहा , प्रयास करते रहने से ही सफलता मिलती है।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने, हाथ पाँव चलाने से वातावरण बदलने लगता है।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंअनेक समस्याओं के पिंजरे में कैद भागने को बेताब हैं लेकिन कमरतोड़ मंहगाई ने हमें मोटा चूहा बना दिया है और हम शनै शनै डूब रहे हैं । फिर भी कोशिश करते है उपवास रख कर पतला चूहा बनने की .. ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कथा । आभार ।
सी पी बुद्धिराजा