मैं दो दिन से इंतज़ार कर रहा था कि हिंदी ब्लॉग जगत में अन्ना हज़ारे के मुंबई के एमएमआरडीए मैदान के मंच से दिए एक बयान पर कोई प्रतिक्रिया होगी...खास तौर पर रचना जी के नारी ब्लॉग पर...लेकिन कोई हलचल नहीं हुई...अन्ना ने कहा था कि बांझ औरत प्रसूता की वेदना को क्या समझेगी...
अन्ना का इशारा संभवतया कांग्रेस और केंद्र सरकार की संवेदनहीनता की ओर ही था...राष्ट्रकवि प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने अन्ना हज़ारे के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है...अन्ना ने बेशक उपमा देने के लिए इस वाक्य का इस्तेमाल किया लेकिन मितुल के मुताबिक अन्ना का ये बयान महिलाओं का अपमान करने वाला है...उनका कहना है कि भारत में आज भी बच्चा पैदा करने में अक्षम महिलाओं से भेदभाव होता है...उनको मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडित किया जाता है...जब अन्ना हजारे सार्वजनिक मंच से ऎसे बयान देते हैं तो बच्चा पैदा करने में अक्षम महिलाओं को प्रताड़ित करने वालों का दुस्साहस बढ़ता है....
अन्ना निश्चल हो सकते हैं...मुहावरा चुनने में गलती कर सकते हैं...लेकिन जिसे आप गलत समझते हैं उसके लिए बांझ का उदाहरण क्यों....ऐसा ही बयान मध्य प्रदेश के बीजेपी मुखिया प्रभात झा भी इसी महीने की सात तारीख को दे चुके हैं...उन्होंने कांग्रेस को बांझ पार्टी बताते हुए कहा था कि ये ईमानदार नेताओं को जन्म नहीं दे सकती...
इन दोनों महानुभावों से मेरी एक प्रार्थना है कि आप कांग्रेस को बेशक कैसे भी लताड़ें लेकिन किसी नारी के दिल को चोट पहुंचाने वाले शब्दों से ज़रूर बचें...नारी की ममता इस बात की मोहताज़ नहीं होती कि उसकी अपनी कोख से ही बच्चा जन्म लें...मदर टेरेसा पूरी दुनिया के लिए मदर थी...क्या उन्हें दीन-दुखियों के दर्द को समझने के लिए प्रसूति वेदना जानने की ज़रूरत पड़ी...यहां मुझे सुष्मिता सेन के एक बयान की भी याद आ रही है...बिना शादी किए एक बच्ची को गोद लेने वाली सुष्मिता सेन ने एक बार पूछे जाने पर कहा था कि मां होने के लिए अपना ही बच्चा होना जरूरी नहीं है...
ब्लॉग जगत इस मुद्दे पर क्या राय रखता है....
...मितुल प्रदीप... |
अन्ना का इशारा संभवतया कांग्रेस और केंद्र सरकार की संवेदनहीनता की ओर ही था...राष्ट्रकवि प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने अन्ना हज़ारे के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है...अन्ना ने बेशक उपमा देने के लिए इस वाक्य का इस्तेमाल किया लेकिन मितुल के मुताबिक अन्ना का ये बयान महिलाओं का अपमान करने वाला है...उनका कहना है कि भारत में आज भी बच्चा पैदा करने में अक्षम महिलाओं से भेदभाव होता है...उनको मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडित किया जाता है...जब अन्ना हजारे सार्वजनिक मंच से ऎसे बयान देते हैं तो बच्चा पैदा करने में अक्षम महिलाओं को प्रताड़ित करने वालों का दुस्साहस बढ़ता है....
प्रभात झा |
इन दोनों महानुभावों से मेरी एक प्रार्थना है कि आप कांग्रेस को बेशक कैसे भी लताड़ें लेकिन किसी नारी के दिल को चोट पहुंचाने वाले शब्दों से ज़रूर बचें...नारी की ममता इस बात की मोहताज़ नहीं होती कि उसकी अपनी कोख से ही बच्चा जन्म लें...मदर टेरेसा पूरी दुनिया के लिए मदर थी...क्या उन्हें दीन-दुखियों के दर्द को समझने के लिए प्रसूति वेदना जानने की ज़रूरत पड़ी...यहां मुझे सुष्मिता सेन के एक बयान की भी याद आ रही है...बिना शादी किए एक बच्ची को गोद लेने वाली सुष्मिता सेन ने एक बार पूछे जाने पर कहा था कि मां होने के लिए अपना ही बच्चा होना जरूरी नहीं है...
ब्लॉग जगत इस मुद्दे पर क्या राय रखता है....
नीयत जो भी रही हो ..शब्द तो गलत थे ही.
जवाब देंहटाएंबांझ औरत प्रसूता की वेदना को क्या समझेगी... खुशदीप भाई अन्ना के इस व्यान या मुहाबरे से किसी भी नारी के सम्मान को ठेस नही पहुचती, ओर ना ही किसी नारी का अपमान होता हे, यह तो एक मुहावरा मात्र हे, हम ने कई फ़िल्मो मे, कहानी किस्सो मे ओर हकीकत मे देखा हे जब किसी का बच्चा नालयक निकलता हे, गुंडा बदमाश निकलता हे, जुआरी शराबी निकलता हे बेटी बद चलन निकलती हे तो अक्सर सुनाने मे आता हे उस दुखी मां के मुंह से काश मै इस से *बांझ ही रहती तो अच्छी थी,बाकी सब की अपनी अपनी राय....
जवाब देंहटाएंयह एक मुहावरा है, जो सहानुभूति, स्वानुभूति और समानुभूति के तर्क जैसा है ।
जवाब देंहटाएंरही बात मान बन सकने व न बन सकने वाली स्त्री में अंतर की, तो यह मुहावरा स्त्री स्त्री में अंतर नहीं अपितु प्रसव की घटना से गुजरने और न गुजरने की स्थिति से जुड़ा है। जैसे, हृदयाघात वाला व्यक्ति ही उस कष्ट को जानता है जिसे हुआ हो। इसमें हाय तौबा मचाने की कोई बात नहीं दीखती।
Raj Bhatiya ji ke comment se sahmat
जवाब देंहटाएंआप की एक अभिन्न ब्लॉग मित्र हैं जो आज कल ब्लॉग लेखन में उतना सक्रिय नहीं हैं उनकी एक पोस्ट आयी थी
जवाब देंहटाएंजिस पर मैने कमेन्ट दिया था जो मैने अपने ब्लॉग पर सहेज दिया हैं क्युकी उनकी पोस्ट पर कमेन्ट दिखने बंद है .
here is the link
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html
उस पोस्ट पर
here is the link
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html#comment-form
आप की क़ोई आपत्ति नहीं याद पड़ती ????? ना ही मेरे कमेन्ट की तारीफ में आप का क़ोई कमेन्ट .
ख़ैर आते हैं अन्ना की बात पर और ब्लॉग जगत की "नारी " की चुप्पी पर कारण सहज हैं ये वक्तव्य एक पुरुष का हैं और सारे पुरुष जैसे राज भाटिया एक स्वर में इसके समर्थन में खड़े हैं और रहेगे जैसे उस पोस्ट पर थे जो आप की मित्र की थी , वो महिला हो कर ये सब कह सकती थी और इस ब्लॉग जगत में समर्थन भी पा सकती थी . तारीफ़ भी और नारी ब्लॉग पर अगर सही भी लिख दिया जाये तो मुझे आप जैसे सहज ब्लॉगर भी "विघ्नसंतोषी" की उपाधि से नवाजते हैं .
here is the link
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2010/11/blog-post_9611.html?showComment=1290494506029#c4501753229830411178
आज के अखबार में एक और खबर हैं ऐसी ही एक पुलिस अधिकारी ने कहा हैं की महिला के कपड़े रेप का कारण हैं और चिदम्बरम ने तुरंत उस ब्यान को ख़ारिज किया हैं , वो भी चाहते हो इंतज़ार कर सकते थे की कब महिला आयोग जागेगा .
पुरुष की गलत ब्यान बाज़ी के खिलाफ पोस्ट लिखी नहीं की "नारी " पुरुष विरोधी हो गयी . अभी ३ कमेन्ट हैं और २ आप के विचारो के खिलाफ हैं जो की "पुरुष" के कमेन्ट हैं , वो "पुरुष " जो अन्ना में भी सहज रूप से बैठा हैं .
इन सब बेहूदी बातो का विरोध नारी ब्लॉग पर बंद हो गया हैं क्युकी नारी ब्लॉग पर मोरल पुलिसिंग बंद कर दी वो मोरल पुलिसिंग जो सदियों से पुरुष नारी की करता हैं
आप ने माना की ब्लॉग जगत की "नारी " का विरोध सही होता हैं इसके लिये थैंक्स , हाँ कह सकते हैं देर आये दुरुस्त आये .
इन सब बेहूदी बातो का विरोध नारी ब्लॉग पर बंद हो गया हैं क्युकी नारी ब्लॉग पर मोरल पुलिसिंग बंद कर दी वो मोरल पुलिसिंग जो सदियों से पुरुष नारी की करता हैं
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.com/2011/07/blog-post.html?showComment=1309833183852#c2455880452900030253
नारी ब्लॉग यानी ब्लॉग जगत के सो कोल्ड “पुरुष” के खिलाफ मोरल पोलिसिंग . तीन साल में ही दम निकल गया पुरुष समाज का मोरल पोलिसिंग से और मेरे देश की बेटियाँ , बहुये , माँ सदियों से इस मोरल पोलिसिंग को बर्दाश्त कर रही हैं . सोचिये , अपने अन्दर झांकिये कैसा लगता हैं उन सब को जब उन्हे ये समझाया जाता हैं , ये ये मत करो क्युकी तुम नारी हो . ये मत पहनो ये पहनो क्युकी ये भारतीये संस्कृति हैं . उनकी सहनशीलता को उनकी कमजोरी मान लेना क्या पौरुष हैं ????
उल्ट दिया मैने वो यहाँ और देखती रही की किस प्रकार से मुझे संबोधन दिये जाते रहे . सोचिये ना जाने कितने ऐसे ही संबोधन आप के घरो में मौजूद आपकी बेटियाँ , पत्निया और माँ आप को “मन ” से अपने “मन ” में देती हैं . कहीं पढ़ा था अगर हर स्त्री एक दम सच बोलने लगे तो ये दुनिया पुरुषो के लिये नरक हो जाए .
all links are related khushdeep hence they are there have a look and introspect please
सच कहा आपने, यह शब्द मानसिक वेदना अधिक देता है, तुलना के लिये अन्य शब्द प्रयोग में लाये जा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकिसी को भी निशाना बनाना हो तो कुछ भी बहाना बनाया जा सकता है। वैसे समाज में इतने शब्द और इतने मुहावरे प्रचलित हैं कि उन्हें ध्यान से देखा जाए तो वे आपत्तिजनक हैं। क्या ऐसा ही एक शब्द "नामर्द" प्रचलित नहीं है? या फिर हमने चूड़िया नहीं पहनी हैं आदि आदि।
जवाब देंहटाएंपोस्ट के बारे में कुछ नहीं कहूँगा... लेकिन मैं यह जानता हूँ कि कुछ लोगों को बिना मतलब में लात खाने आदत पैदाईशी होती है... हर इंसान अपनी अपनी समझ से... और अपने हिसाब से लिखता है.... या बोलता है...जिसका जो लेवल होगा वही लिखेगा और बोलेगा... और कमज़ोर और नालायक इंसान हमेशा दूसरों की खामियां निकालेगा..... और अपने विचार ...आई मीन थॉट्स .... दूसरों पर ज़बरदस्ती थोपेगा... कि ... ले बे! मैं जो कह रहा हूँ या कह रही हूँ वही सही है. हर इंसान अपने कर्मों के हसाब से गालियाँ खाता है और प्यार पाता है... बेहतर यही होता है... कि हम खुद को सही रखें.... और अगर हम गलत हैं भी या कोई ऐसा विचार है भी तो उसे बिना मतलब में यहाँ वहां शेयर ना करें.. इज्ज़त कम होती हैं... वैसे भी कहा जाता है कि... मूर्खों से बहस नहीं करनी चाहिए...
जवाब देंहटाएं(यह कमेन्ट अब आपकी पोस्ट के ऊपर ही है....)
आज मेरी छुट्टी है.... थोडा फुरसत में हूँ....
जवाब देंहटाएंसत्य तो सत्य ही है...उम्मीद करता हूँ की मुहावरे पर मारकाट करने वाली मितुल प्रदीप जी ने वक्तव्य देने के अलावा भी कुछ सार्थक किया हो महिलाओं के स्वाभिमान के लिए...
जवाब देंहटाएंपोस्ट के बारे में कुछ नहीं कहूँगा...
जवाब देंहटाएं(यह कमेन्ट अब आपकी पोस्ट के ऊपर ही है....)
some people are always confused and it shows when they express
have a look http://swapnamanjusha.blogspot.com/2009/11/blog-post_29.html
इतना शोर क्योँ ऐसी तो कोई बात् नही है सबसे पहले आपत्ति हो तो उन गालियों पर होनी चाहिये जिसमे स्त्री का निरादर है मगर उन पर कोई आपत्ति नही उठाता और यहाँ तो सिर्फ़ मुहावरे का प्रयोग किया गयाहै वो भी एक संदर्भ मे ना कि स्त्री का अपमान करने की दिशा मे फिर भी इतना हल्ला………हद है ये तो…………इससे ज्यादा ज्यादा अपमान तो रोज हर गली चौराहे और घरो मे होता है नारी का……………तब भी सभी नारियाँ चुप रहती हैं तब क्यो नही शोर मचता……………इतना ही कहा जा सकता है यहाँ लोगो को बेमतलब बात का बतंगड बनाने की आदत बन गयी है वरना जो बात जरूरी है उस तरफ़ सबका ध्यान जाता मगर हम खाली बैठे हैं तो कुछ और नही तो ये ही सही वाला काम करने लगते हैं मगर जीवन का सार्थक उपयोग करना नही जानते जिसकी वजह से ही आज देश का ये हाल है।
जवाब देंहटाएंअन्ना के बयान पर 'नारी' चुप क्यों...खुशदीप
जवाब देंहटाएंनारी ब्लॉग से जुड़े लोग सर्वव्यापी भी तो नहीं हैं कि हर जगह हुई घटना को देख/सुन लेंगे और प्रतिक्रिया करेंगे। :)
@ Rachna G,
जवाब देंहटाएंआप लिंक दे कर जिस लेडी की बात कर रहीं हैं ... उसका एक अपना अलग मुकाम है... एक अलग इज्ज़त है... और उसका लिंक देकर अप खुद की ही इमेज खराब कर रही हैं. और उसको छू पाना भी यहाँ ब्लॉग जगत की महिलाओं में दम नहीं है.
कृपया सिर्फ मुद्दे पर ही अपनी बात रखी जाए...किसी और ब्लॉगर के नाम का न ज़िक्र किया जाए...जो ब्लॉगर अब ब्लॉगिंग से दूर हैं और अपनी बात रखने के लिए नहीं आ सकते, उनका उल्लेख करना सही नहीं है...मेरे लिए सभी ब्लॉगरों का सम्मान सबसे ऊपर है...कृपया ऐसी कोई बात न की जाए जिससे मुझे मज़बूरन टिप्पणियों को हटाना पड़ जाए...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
मुझे तो ऐसा कुछ गलत लगा नहीं अन्ना के बयान पर, क्यूँकि अन्ना गाँव में रहते हैं और ब्लॉग जगत मानसिक रूप से परिपक्व है तो शायद उनको गलत लगता हो, परिवेश के हिसाब से बात को गलत नहीं समझना चाहिये, जैसे अन्ना प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री नहीं कहते हैं और बात बात में ग्राम सभा का उदाहरण देते हैं। हमें मान करना चाहिये कि एक गाँव से वरिष्ठ व्यक्ति ने देश की जनता में जागृति पैदा की।
जवाब देंहटाएंमुहावरे अनेक हैं,असली बात मकसद की है.
जवाब देंहटाएंवैसे मुहावरों के प्रयोग में भी बहुत सावधानी
की आवश्यकता है.विशेषकर अन्ना जैसे
लोकप्रिय जन के लिए.
खुशदीप भाई , इस वर्ष मुझे आप ब्लॉग जगत में लाये.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष २०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.
मैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअन्ना ने कहा-‘बांझ औरत प्रसूता की वेदना को क्या समझेगी ?‘
जवाब देंहटाएंअन्ना तो अन्ना हैं।
अन्ना ख़ालिस देहाती आदमी हैं।
वे भी शहरी लोगों की तरह आगा पीछा सोचा किये होते तो बस कर लेते क्रांति ?
किसी पार्टी से मोटा माल पकड़कर वे भी मौज मारते।
जितने लोग सभ्य और सुशील हैं, जो शिक्षा में उनसे ज़्यादा हैं,
वे कर लें आंदोलन !
बांझ औरत प्रसव की पीड़ा नहीं जानती ,
यह सच है और यह भी सच है कि बच्चों को जन्म देने वाली मांएं यह नहीं जानतीं कि बांझ रह जाने वाली औरत की पीड़ा क्या होती है ?
ख़ैर, इस समय अन्ना का मूड बुरी तरह ख़राब है,
वे कांग्रेस को हराने के लिए कमर कस चुके हैं।
कोई दूसरा होता तो इस काम के लिए भी पैसे पकड़ लिए होते किसी से
लेकिन हमारे अन्ना यह काम बिल्कुल मुफ़्त कर देंगे,
बिल्कुल किसी हिंदी ब्लॉगर की तरह।
ब्लॉगर इस या उस पार्टी को हराने के लिए लिख रहा है बिल्कुल मुफ़्त,
जबकि अख़बार और चैनल वाले मोटा माल पकड़ रहे हैं।
कम से कम कोई एग्रीगेटर ही पकड़ ले इनसे कुछ।
आमदनी का मौक़ा है,
ऐसे में अन्ना बनकर काम नहीं चलता,
बस अन्ना को ही अन्ना रहने दो
और ख़ुद मौक़े से लाभ उठाओ।
नया साल आ गया है,
नए मौक़े लेकर आया है,
सबको नव वर्ष की शुभकामनाएं।
जब आपकी बात ध्यान से सुनी जा रही हो,तो आपकी ज़िम्मेवारी बढ़ जाती है। अफ़सोस,कि अपनी खीज निकालते समय,अन्ना को आत्म-स्मरण नहीं रहा। ठीक वैसे ही,जैसे स्वयं आप किसी ब्लॉग का संदर्भ दिए बगैर भी,अपनी बात उतने ही असरदार तरीक़े से चर्चा के लिए रख सकते थे।
जवाब देंहटाएंफिल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों को छोड़ भी दें,तब भी,बहुत पढ़ी-लिखी और ऊंचे ओहदे वाली महिलाओं ने भी स्त्रियों के प्रति सार्वजनिक रूप से बेहद अपमानजनक टिप्पणियां जान-बूझकर की हैं,किंतु वही टिप्पणी पुरुष के करने पर अर्थछाया बदल जाती है।
निस्संतानता एक व्यक्तिगत मामला है और इस स्थिति के प्रति संजीदगी का भाव होना चाहिए ताकि स्त्री केवल संतानोत्पत्ति का माध्यम न दिखे। मगर राजनीति में पिछले कुछ समय से,गैर-जिम्मेदार बयानबाज़ी के प्रति जिस तरह का मज़ाकिया माहौल दिख रहा है,वह हैरत में डालने वाला है। ज़ाहिर है,अधकचरों का मनोबल बढ़ रहा है।
नववर्ष की शुभकामनाएं लीजिए।
शराब पीने वालों को चौराहे पर बांध कर पीटने का बयान देने वाले अन्ना के मुंह से यह बात आश्चर्य करने वाली नही लगी....... पहले भी मैं कई जगह कह चुका हूं और और अब फिर कहता हूं कि रातों रात मिली प्रसिध्दि और जन समर्थन को संभाल पाना आसान नहीं..... अन्ना और उनकी टीम के लिए यह काम असंभव साबित हो रहा है।
जवाब देंहटाएंअन्ना ने किसी महिला का अपमान करने के इरादे से ये बात नहीं कही इसलिए इस पर इतना क्रोध प्रतिरोध दिखाने की तो जरूरत नहीं हैं लेकिन फिर भी शब्दों का चयन तो गलत ही हैं उन्हें सावधानी बरपनी चाहिए थी.और खुशदीप जी आप लगभग रोज एक पोस्ट डालते हैं सामयिक मुद्दों और घटनाओं पर लेकिन जिस दिन अन्ना ने ये बयान दिया उस दिन अखबार में महिलाओं पर अत्याचार की और भी खबरें छपी होंगी क्या आपने उन सब पर पोस्ट बनाकर उन घटनाओं की निंदा की हैं?नारी ब्लॉग पर महिलाओं के प्रति भेदभाव की पोस्टें आती रहती है उनमें से कईयों पर आपने कोई टिप्पणी नहीं की होगी तो क्या आपसे कारण पूछा जाएँ कि आपने ये रहस्यमयी चुप्पी क्यों ओढ रखी हैं ?आप जिस तरह पूछ रहे हैं वैसे तो मितुल प्रदीप जी से भी पूछा जा सकता हैं कि वे उस समय सामने क्यों नहीं आई जब मेनका गाँधी ने भी मायावती के लिए इसी तरह की बात कही थी.उन्होने तो सचमुच एक महिला का अपमान करने के इरादे से ये बात कही थी लेकिन अन्ना ने ऐसा नहीं किया.
जवाब देंहटाएंमुझे तो ब्लॉगजगत का ये रवैया ही समझ नहीं आता कि महिला चुप क्यों हैं या पुरूष चुप क्यों हैं फिर चाहे ये काम आप करें या रचना जी.आपको यदि कोई मुद्दा नजर आया तो उस पर आप लिखें और बाद में दूसरों की राय से ही उनके बारे में तय करें.नारी ब्लॉग से अब केवल रचना जी ही जुडी हैं और उनकी राय इस विषय पर क्या होगी ये मेरे ख्याल से सबको पता होगा.अब एक व्यक्ति कितने मुद्दों पर लिख सकता है.
फिलहाल आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंआज आपकी पोस्ट की चर्चा की गई है अवश्य पढ़ियेगा... आज की ताज़ा रंगों से सजीनई पुरानी हलचल बूढा मरता है तो मरे हमे क्या?
जवाब देंहटाएंजाके पैर न फ़टे बिवाई, ते का जाने पीर पराई।
जवाब देंहटाएंखुद ही एक ब्लॉग का नाम लेते हैं, एक ब्लोगर का नाम लेते हैं आप, और साथ में दूसरों से ये अपेक्षा करते हैं की वो किसी और का नाम ना ले?? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की कौन अपने हिस्से का जवाब देने आएगा या नहीं, मगर जो बातें नेट पर हैं उसका सन्दर्भ हर जगह आएगा..
जवाब देंहटाएंपहले खुद एक आदर्श स्थिति बनायें, फिर किसी और से उस आदर्श के पालन करने की बात करें.. आप एक समझदार इंसान हैं, कम से कम आपसे ऐसे किसी बेमतलब के सन्दर्भ की उपेक्षा तो मैंने नहीं ही किया था.. इस पोस्ट के शुरुवाती तीन लाइन आप ना भी लिखते तो भी पोस्ट उतना ही सशक्त होता, मगर शायद आप इस विवाद को चाहते ही थे..
baat chahe kisi bhi udeshay se kahi ho par sabd anna ji ne galat use kar liye
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी,
जवाब देंहटाएंकहावत का गलत प्रयोग किया गया है। लेकिन अन्ना खुद क्या जानें कि संतान का सुख क्या होता है?
इस तरह की कहावतों के विरुद्ध नई कहावतें भी प्रचलन में आनी चाहिए।
"बांझ औरत ही जान सकती है कि निपूती होने पर समाज उसे कितना दर्द देता है"।