खुशदीप सहगल यानि मैं...इनसान हूं...सुख में खुश और दुख में दुखी भी होता हूं...शांत रहने की कोशिश करता हूं लेकिन कभी-कभार गुस्सा भी आ जाता है...पंजाबी ख़ून का असर है या कुछ और...कह नहीं सकता...ब्लॉग पर भी कभी किसी की बात चुभती है तो प्रतिक्रिया दे देता हूं...
लेकिन फिर सोचता हूं कि मैं अपना गुरुदेव समीर लाल जी समीर को मानता हूं...उन्हें फॉलो करता हूं...फिर सागर जैसे उनके गहरे किंतु शांत स्वभाव से कोई सीख क्यों नहीं लेता...इसका मतलब मेरी शिष्यता में कोई खोट है...कोई नापसंद का चटका लगाता है तो मैं पोस्ट लिख मारता हूं...किसी दूसरे की पोस्ट पर कोई वर्तनी सुधार बताता है तो मैं पोस्ट के मूल उद्देश्य की दुहाई देने लगता हूं...समीर जी का शिष्य होते हुए भी क्यों करता हूं मैं ऐसा...
इस रहस्य को मैंने कल सुलझा लिया...
आपने देखा होगा कि अब एक रुपये के नीचे के सिक्के कहीं नहीं मिलते...अब एक, दो या पांच रुपये के सिक्के ही दिखते हैं...वॉलेट हल्का रखने के लिए मुझे जो भी सिक्के मिलते हैं, उन्हें मैं घर में एक बॉक्स में डाल देता हूं...एक दिन सुबह दूध लेने मार्केट गया...स्टोर वाले के पास सौ का नोट तोड़ कर वापस देने के लिए छोटे नोट नहीं थे...स्टोर वाले ने मुझे बीस रुपये के सिक्के वापस कर दिए...मैंने ट्रैक सूट पहना हुआ था...वॉलेट भी पास नहीं था...इसलिए वो सिक्के मैंने ट्राउजर्स की जेब में ही रख लिए...अब घर वापस आ रहा था तो सुबह सुबह की शांति में जेब में खनक रहे सिक्कों की आवाज़ बहुत तेज़ लग रही थी...इस आवाज़ से ही मुझे वो जवाब मिल गया जो मैं समीर जी की प्रकृति को समझने के लिए शिद्दत से जानना चाह रहा था...क्या आप बता सकते हैं क्या था वो जवाब....चलिए मैं ही बता देता हूं...
सिक्कों का मूल्य कम होता है, इसलिए ज़्यादा बजते हैं...नोट का मूल्य ज़्यादा होता है, इसलिए उसमें आवाज़ नहीं होती...समीर जी भी अब उस मकाम तक पहुंच गए हैं, जिसे अनमोल कहा जा सकता है...अनंत का भी कोई मूल्य लगा सकता है क्या...वो बस शांत होता है...आप भी सुनिए...समीर लाल, द साउंड ऑफ साइलेंस...
समीर लाल, द साउंड ऑफ साइलेंस...खुशदीप
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गुरुवार, मई 13, 2010
THE POST OF THE DAY..............
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया समझाइश !! जियो, खुशदीप भाई जियो दिल खुश कर दिया आज तो !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचार जी. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही!
जवाब देंहटाएंमैं पहले भी कह चुका हूँ कि
मौन की अपनी भाषा होती है
सुन्दर विचार.. खरी बात..
जवाब देंहटाएंसुन्दर उपमा! बडो का बडप्पन इसी को कह्ते हैं
जवाब देंहटाएंमौन की भाषा बहुत जबर्दस्त होती है।
जवाब देंहटाएंआपके इस उदाहरण से मैं सहमत हूं... जरा पूछ लीजिए संजयदत्त के निकटतम और मुलायम सिंह की पार्टी में शामिल उनकी मंडली सहमत है भी या नहीं। भाई लोग मानने को तैयार ही नहीं है कि वक्त उनकी करतूतों के चलते उन्हें परिदृश्य से गायब कर देने पर तुला हुआ है। सचमुच करतूतें ही इतिहास के पन्नों पर धूल जमा देती है।
जवाब देंहटाएंसच.......
जवाब देंहटाएंबड़े बड़ाई न करें...बड़े न बोलें बोल...
जवाब देंहटाएंरहिमन हीरा कब कहे. लाख टका मेरा मोल...
कुल मिलाकर पूरा मामला सिर्फ हिन्दी ब्लागिंग के चरित्र को समझने का है...यहां समाज और परिवार की तरह ही प्रतिक्रियाएं आती हैं।
जवाब देंहटाएंमज़ेदार है ये सब। गंभीर नहीं होने का ...
silence से बड़ा अभिव्यक्ति का साधन और कोई नहीं.
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक, मौन शुद्धता का प्रतीक है !
जवाब देंहटाएंभाई समीर जी ब्लागजगत के अनमोल रतन ही है ..... धन्यवाद्.
जवाब देंहटाएंसमीर लाल पर हिन्दी ब्लॉगरों को नाज है!
जवाब देंहटाएंमौन की भाषा बहुत जबर्दस्त होती है।
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपकी समझदारी पर हमें नाज़ है...समीर जी फलदार पेड़ हैं इसलिए हमेशा झुके रहते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
yahi to samir ji ki khoobi hai jo unhein sabse alag karti hai.
जवाब देंहटाएंअजीतजी से पूरी सहमति
जवाब देंहटाएंमामला अगंभीर व मनोरंजक है।
बहुत बढिया बात कही जी आपने
जवाब देंहटाएंमौन में असली वजन होता है, और जिनकी कीमत कम होती है वो ज्यादा शोर करते हैं।
प्रणाम
एक कहावत नया-नया ड्राईवर ज्यादा भौंपू बजाता है।
जवाब देंहटाएंकिसी को भी कुछ भी कह रहे हैं।
लगता है कि झगडने के लिये ही आते हैं और टिप्पणी करते हैं।
प्रणाम
बिलकुल सही बात कही है....कहा भी गया है कि..
जवाब देंहटाएंओछा चना बाजे घना ..
बहुत खूब बहुत ह्ही बढिया .....सच में ही मौन की आवाज बहुत ही प्रभावकारी होती है ।
जवाब देंहटाएंहीरा तहां न खोलिए जहां कुंजरन की हाट
जवाब देंहटाएंअपनी गठरी बांध के,लगिए अपनी बाट
जय हिंद
Jai ho.....Lalit bhai ne theek farmaya....
जवाब देंहटाएंरूसी भाषा में एक कहावत है " मल्चानीये जोलता " yani " मौन सोने (गोल्ड)के सामान है " अनमोल ..
जवाब देंहटाएंगुरु शिष्य , दोनों पर हमें नाज़ है ।
जवाब देंहटाएंआपका उदाहरण भी सही है।
fully agree with you sir :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@कूप कृष्ण और कुमार ज़लज़ला,
जवाब देंहटाएंबेनामी करके टिप्पणी करने का ये मतलब नहीं होता कि किसी को भी अपशब्द कहने की छूट मिल जाती...अगर शब्दों की मर्यादा को लांघा न जाए तो मुझे बेनामियों की टिप्पणी से भी परहेज़ नहीं है...लेकिन अनूप जी और ज्ञानदत्त जी जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर्स के लिए मैं अपशब्द बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकता...ये दोनों तो खैर मेरे लिए सम्मानित है, मैं किसी और ब्लॉगर के लिए भी अपने ब्लॉग पर अपशब्द बर्दाश्त नहीं करूंगा...आलोचना अगर मर्यादा में न हो तो वो सिर्फ भड़ास और कचरा ही होती है...और कचरे की जगह कूड़ादान ही होती है...एक बात और मैं मॉडरेशन का प्रयोग नहीं करता सिर्फ इसलिए कि मुझे आप सब पर भरोसा है...इसलिए मेरे भरोसे को मत तोड़िए और मुझे भी न चाहते हुए मॉडरेशन शुरू कर देना पड़े...ये दो टिप्पणियां मेरे आफिस में होने की वजह से कुछ देर के लिए ब्लॉग पर रह गईं, इसके लिए मैं अनूप जी और ज्ञानदत्त जी से माफ़ी चाहता हूं...
जय हिंद...
:(
जवाब देंहटाएं?
जवाब देंहटाएंअई.. शाबास्स !
खरा कहने का अँदाज़ निराला !
वाह ब्लॉग की दुनिया! दूर जाने के बाद भी आज भी कितने क़रीब हैं डॉ अमर, अलबेला जी और अविनाश जी
हटाएंबड़े बड़ाई न करें...बड़े न बोलें बोल...
जवाब देंहटाएंरहिमन हीरा कब कहे. लाख टका मेरा मोल...
आभार इतने सारे स्नेह का. :)
जवाब देंहटाएंaaj fir khoob khush ho liye :)
जवाब देंहटाएंदादा दादा हैं सचमुच। अद्वितीय। लव यू ,लव यू दादा!
जवाब देंहटाएंदादा दादा हैं सचमुच। अद्वितीय। लव यू ,लव यू दादा!
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