जिसे आप पसंद करते हैं उसके बारे में सार्वजनिक तौर पर अपने विचार प्रकट करना रस्से पर संतुलन बनाने के समान होता है...शिष्य या चाटुकार, कोई भी तमगा आपके माथे पर चस्पा हो सकता है...समीर लाल जी पर लिखना मुश्किल है तो अनूप शुक्ल जी पर लिखना और भी ज़्यादा मुश्किल है...वो भी मेरे जैसे अनाड़ी के लिए...
मैंने जब ब्लॉगिंग शुरू की थी तो अनूप जी और समीर जी के रिश्ते मेरे लिए किसी पहेली से कम नहीं थे...मैंने एक पोस्ट भी लिखी थी...ब्लॉगिंग की काला पत्थर... इसमें समीर जी ने एक टिप्पणी के माध्यम से विस्तार से अनूप जी के साथ अपने रिश्तों के बारे में बताया था...समीर जी ने अनूप जी को प्रोस (गद्य) में अपना गुरु बताया था...समीर जी को मैंने अपने ब्लांगिग के पहले दिन से ही गुरुदेव मान रखा है...अब समीर जी ने अनूप जी को अपना गुरु बताया तो अनूप जी मेरे लिए महागुरुदेव हो गए...उस पोस्ट के बाद दोनों के रिश्तों को लेकर मेरे मन में जो भी आशंकाएं थीं, समाप्त हो गईं...
लेकिन अब फिर एक बार दोनों को लेकर ब्लॉगवुड में महाभारत मचा हुआ है...ये सुनामी इलाहाबाद के संगम तट से आई है...कल मैंने समीर जी की प्रकृति पर वो लिखा था, जैसा कि मैं उनके बारे में सोचता हूं...आज महागुरुदेव अनूप शुक्ल की बारी है...मेरी नज़र में अनूप जी ब्लॉगवुड के कैटेलिस्ट (उत्प्रेरक) हैं...कैमिस्ट्री में मैंने पढ़ा था कि किसी भी रासायनिक क्रिया को तेज़ करने के लिए कैटेलिस्ट की आवश्यकता होती है...कैटेलिस्ट दो प्रकार के होते हैं पॉज़िटिव और नेगेटिव...पॉज़िटिव रासायनिक क्रिया को तेज़ करते हैं तो नेगेटिव धीमा...अनूप जी में ये दोनों ही गुण हैं...अब इसे मौज कहिए या कुछ और अनूप जी कभी ब्लॉगवुड को नीरस नहीं होने देते...
अनूप जी ने इस साल के शुरू में अचानक नोएडा मेरे घर आकर मुझे सुखद आश्चर्य दिया था
आप दाल बिना तड़के लगे खाए तो आपको कैसा स्वाद आएगा...ब्लॉगवुड में तड़के के लिए अनूप जी के पास मसालों का विशाल भंडार है...अब इन मसालों से लैस होकर अनूप जी जब भी अपने लेखन का कौशल दिखाते हैं, वो बस कमाल ही होता है...अब तड़के में किसी को तीखी मिर्च भी लग सकती है...इसमें अनूप जी का क्या कसूर...
समीर जी का अनूप जी के साथ पुराना साथ रहा है, इसलिए वो अनूप जी के लेखन की पाक-कला से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं...लेकिन मेरे जैसे नौसिखिए दो गुरुओं की जुगलबंदी के कुछ और ही निहितार्थ निकालने लगते हैं...बेहतर है हम दोनों के संबंधों की चिंता दोनों पर ही छोड़ दें...
वैसे अनूप जी को लेकर न जाने क्यों एक महात्मा जी से उनकी तुलना करने का मन कर रहा है...महात्मा जी का किस्सा आप भी पढ़िए...
एक बार महात्मा जी अपने एक शिष्य के साथ भ्रमण के लिए निकले...चलते-चलते शाम हो गई...उन्होंने सोचा, पास के गांव में ही रात को डेरा डाल लेते हैं...आगे की यात्रा पर सुबह निकलेगे...महात्मा ने जैसे ही गांव में प्रवेश किया, लोग उनके पांव छूने लगे...सब महात्मा जी के स्वागत सत्कार में लग गए...रात को बढ़िया खाना...आरामदायक बिस्तर की व्यवस्था...सुबह भी महात्मा जी के प्रस्थान करते वक्त सारा गांव इकट्ठा हो गया...महात्मा जी ने विदाई लेते हुए गांव वालों से कहा...तुम सब यहां से उजड़ जाओ...ये सुनकर महात्मा के शिष्य को बड़ा अजीब लगा...लेकिन वो बोला कुछ नहीं...चुपचाप साथ चलता रहा...फिर शाम हुई...फिर महात्मा ने पास के गांव में चलकर रात बिताने का फैसला किया....महात्मा गांव में घुसे तो देखा कि चौपाल पर जुआ चल रहा है...कोई अपनी पत्नी को पीट रहा है...कोई अपशब्द निकाल रहा है...महात्मा को देखकर भी वो कहने लगे...देखो आ गया ढोंगी बाबा...गांव में किसी ने महात्मा को खाना तो दूर पानी का गिलास तक नहीं पूछा...खैर किसी तरह महात्मा ने शिष्य के साथ उस गांव में रात काटी...सुबह चलने लगे तो एक भी गांव वाला उन्हें विदा करने के लिए नहीं आया...महात्मा ने फिर भी गांव की चौपाल पर जाकर सारे गांव वालों को आशीर्वाद दिया...खुश रहो, सब यहां आबाद रहो...महात्मा ने गांव छोड़ा तो शिष्य पूछ ही बैठा...गुरुदेव ये कहां का न्याय है...सज्जन गांव वालों को आपने उजड़ने की बददुआ दे दी और दुष्ट गांव वालों को आबाद होने की...ये सुनकर महात्मा मुस्कुराए और बोले...सज्जन उजड़ कर जहां भी पहुंचेंगे, उसी जगह को चमन बना देंगे और दुर्जन अपनी जगह छोड़कर चमन में भी पहुंच गए तो उसे नरक बना देंगे...
तो अनूप जी यहाँ महात्मा कैसे बनें ????????????
जवाब देंहटाएं@मिथिलेश
जवाब देंहटाएंकुछ बातें बिटवीन द लाइन्स भी होती हैं, जो लिखी नहीं जातीं...इन्हें उम्र और अनुभव बढ़ने के साथ ही समझा जा सकता है...
जय हिंद...
जय हो महात्मा अनूप फुरसतिया जी की. :)
जवाब देंहटाएंहमें तो महाराज से उजड़ने का आशीर्वाद मिला है..याने सज्जन कहलाये... :)
बात तो ठीक है,पर क्या किसी प्रसंग पर इतनी चर्चा अच्छी है जितनी समीर जी और......।
जवाब देंहटाएं@दिनेश जी,
जवाब देंहटाएंमैंने इसी लिए लिखा है कि अनूप जी और समीर जी के रिश्तों की चिंता उन्हीं पर छोड़ देनी चाहिए...ये दोनों ही ब्लॉगवुड के शिखर पुरुष हैं, सब ऊंच-नीच अच्छी तरह समझते हैं...लेकिन जब इनमें से किसी एक के नाम को लेकर भी कहीं से तीर छोड़ा जाता है तो अंधड़ तो आना लाज़मी होता है...
जय हिंद...
तो उजड़ने का फरमान हो गया इस चमन का बिटवीन द लाईन्स
जवाब देंहटाएंअच्छा मूल्यांकन है।
जवाब देंहटाएंachche sheershak la rahe hain..lekh bhi achcha hai sir...
जवाब देंहटाएंजय हो खुशदीप भाई,
जवाब देंहटाएंखाइए तड़के के साथ चटपटी दाल
तेज मिर्च हुई तो होईए निढाल
हमें तो बैदराज ने मना दिया है,
अभी इलाज ले रहे हैं ब्लागोमेनिया का।
आभार
जय हो!खूब मौज ले लिये!! जय हो!!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@Kumar Jaljala said...
जवाब देंहटाएंभाई वाह क्या कमेंट किया है आपने ।
@कुमार ज़लज़ला,
जवाब देंहटाएंअगर आपने वरिष्ठ ब्लॉगर के लिए छिछोरे शब्द का इस्तेमाल नहीं किया होता तो मैं आपकी टिप्पणी ज़रूर छाप देता, वैसे मैं आपकी टिप्पणी का मूल यहां बता देता हूं...आपने लिखा था कि मैं पंजाबी हूं तो मैं आपकी टिप्पणी छाप कर दिखाऊं, साथ ही जवाब दूं कि मैंने अनूप जी के कहने पर आज की पोस्ट क्यों लिखी...साथ ही आपने लिखा कि मैं भाषा की सभ्यता का भाषण न पिलाने लग जाऊं...वैसे ज़लज़ला जी अगर आपने अपनी इस पोस्ट में सिर्फ छिछोरे शब्द का प्रयोग नहीं किया होता तो आपकी टिप्पणी पूरी तरह मर्यादित और आलोचनात्मक थी...पंजाबी हूं इसलिए आपकी बात यहां रखकर दिखा रहा हूं...पंजाबी हूं, इसलिए सबसे पहले बड़ों का मान करना भी सीखा है...रही बात अनूप जी के कहने पर लिखने की बात तो आप भी समीर जी और अनूप जी जैसा कुछ करके दिखाओ तो फिर आपके कहने पर भी पोस्ट लिख दूंगा...
जय हिंद...
खुशदीप भाई, आपके इस लेख (द्वय) को कहते हैं - "गैरजरूरी और अतार्किक विवाद" में संतुलन साधने की नायाब कला… :) :)
जवाब देंहटाएंखुशदीप साहब,
जवाब देंहटाएंआप तो बुरा मान गए. क्या है कि जब आदमी संतुलन बिठाने की जुगत में रहता है तो नाराज हो ही जाता है. मैंने कहा था न मैं लौटकर आऊंगा सो आ गया.
वैसे मैंनै सुना है कि आप मीडिया से जुड़े है लेकिन मेरा मकसद तो हल हो गया.मैंने तो अनूप शुक्ला को एक ही बार छिछोरा लिखा था. आपने तो दो-दो बार कोड़ करके यह बता दिया कि उन्हें अमुक ने छिछोरा कहा था. पंजाबी होने का जिक्र मैंने इसलिए किया था क्योंकि कल आपने मेरी टिप्पणी को हटाकर पंजाबीपन का परिचय नहीं दिया था.आज भी थोड़ी देर के लिए दिया और फिर टिप्पणी हटा दी. आपने खुलकर तो यह मान ही लिया है कि आपने अनूप शुक्ला के कहने पर यह पोस्ट लिखी है साथ ही आपने यह भी बताया है कि यदि मैं अनूप शुक्ला और समीरलाल जैसा बन जाऊंगा तो आप मेरे ऊपर भी पोस्ट लगा देंगे. लगा देंगे...
लगा देंगे... नहीं साहब आपने टिप्पणी के तौर पर मेरे ऊपर छोटी सी पोस्ट लगा ही दी. आपका शुक्रिया जनाब.
अब बड़ी पोस्ट के लिए तो मैं सिर्फ समीरलाल ही बनने की इच्छा रखना चाहूंगा. अनूप शुक्ला जैसा......... (खाली स्थान) शब्द अपने हिसाब से भर लीजिएगा क्योंकि मैं फिर कुछ लिख दूंगा तो आपको बुरा लग जाएगा. वैसे भी आप मीडिया वाले है जल्दी ही बुरा मान जाते हैं. जो कुछ कहते हैं वह भगवान के श्रीमुख से होता है.
वैसे आपने पंजाबी के एक शेर कवि अवतार सिंह पाश के बारे में सुना तो होगा ही। तो खुशदीप साहब पाश कह गए हैं-बीच का रास्ता नहीं होता.सही आदमी या तो आर होता या पार. बीच में रहने वाले को हम लोग ठीक नहीं मानते. वैसे भी थोड़ा इधर और थोड़ा उधर सरकारी दफ्तरों में होता है.. आप तो समझिए..। यदि गर्मी के दिनों में कोई आदमी हमारे यहां स्वेटर पहनकर आ धमकेगा तो क्या हम भी उसके साथ स्वेटर पहनकर धूप तापने लगेंगे। शुक्ल साहब अपने काम से नोएडा गए थे. यह बात उन्होंने मुझे बताई थी. इसी बीच उन्होंने सोच लिया कि चलो खुशदीप साहब से मिल लिया जाए.. क्या इसे चौकाना कहते हैं। यदि यही चौकाना है तो मैं दो घंटे में आपके दफ्तर में पहुंचकर चौका सकता हूं।
मुझे लगता है कि अब आपको इस टिप्पणी को रखने में कोई दिक्कत नहीं होगी.
महात्मा बुद्ध का प्रेरक प्रसंग शिष्य आनन्द के साथ
जवाब देंहटाएंजिसमें उन्होंने अच्छे लोगों को दुनिया में फैलने का और बुरे लोगों को एक ही जगह पर आबाद रहने का आशिर्वाद दिया।
आपका हार्दिक धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें
और हां.. नाराज मत होइगा क्योंकि आप दिल से बहुत अच्छे है यह बात मैं निजी तौर पर जानता हूं. एक बार आपने मेरी भी सहायता की है. उसी सहायता का स्मरण करते हुए मैं आपसे सिर्फ निवेदन कर रहा हूं.
जवाब देंहटाएंमिथिलेश भाई जी की टिप्पणी के लिये
जवाब देंहटाएंआदरणीय खुशदीप जी का प्रत्युत्तर हमारे लिये बहुत सार्थक है। मिथिलेश भाई को इन लाईनों को बार-बार पढना चाहिये।
प्रणाम
@कुमार ज़लज़ला,
जवाब देंहटाएंये हुई न बात....अमा यार एक बात तो बताओ कहीं पॉलिटिक्स वगैरहा में तो नहीं हो...छोड़ो मज़ाक कर रहा हूं...मुझे ठंडे दिमाग से एक बात का जवाब देना...क्या कोई आदमी इस दुनिया में परफेक्ट है...अगर ऐसा होता तो सचिन तेंदुलकर ज़ीरो पर आउट क्यों होते, अमिताभ बच्चन अजूबा, जादूगर जैसी सुपर फ्लॉप फिल्में क्यों देते...हर आदमी के अप्स एंड डाउन्स् होते हैं...अगर वो सही कुछ करता है तो उसकी प्रशंसा करो, अगर गलत करता है तो उसकी खिंचाई करो...अगर वो गलत कर रहा है, और आप तब भी उसकी प्रशंसा कर रहे हैं तो माफ़ कीजिए जनाब आप उसका भला नहीं कर रहे, उसकी जड़ें खोदने का काम करते हैं...
अब एक सवाल का और जवाब दो, मुझे अमिताभ बच्चन भी पसंद हैं, और शत्रुघ्न सिन्हा भी...लेकिन शायद ये दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते...अब नहीं करते तो नही करते, ये उनकी प्रॉब्लम है...लेकिन उनकी प्रॉब्लम के चलते मैं अपना चरित्र क्यों छोड़ूं...मैं तो यहीं चाहता हूं कि दोनों को जल्दी ही किसी फिल्म में एक साथ देखूं...गाते हुए...बने चाहे दुश्मन हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा...काश ऐसा हो...आमीन...
जय हिंद...
आज आपने लाईनों के बीच जगह छोड़ी ही नहीं है
जवाब देंहटाएंRBL कैसे हो?
दुनिया चाहे उनको जैसा कहे, यह सब अपने विवेक पर निर्भर है कि कोई उनको कैसे लेता है... जिस दिन वो आपसे मिले उसी दिन वे मुझसे, श्रीश पाठक प्रखर से और अमरेन्द्र त्रिपाठी (जो उपलब्ध नहीं थे) से JNU में भी मिलने आये... इस पर उन्होंने एक पोस्ट भी लिखी थी जो उनके ब्लॉग पर मौजूद भी है... वो शाम याद रह गयी.. चूँकि मैं भी उनका बहुत बड़ा फैन हूँ इसलिए मिलने के कई घंटे बाद भी यकीन पर पाना बहुत मुश्किल था और जिस हालत में में उनसे मिला था कुछ कम ही लोगों के लिए वैसे मिल सकता था... सर्द मौसम कि वो मुलाक़ात अब भी गर्माहट और मुस्कान दे रही है... साथ ही मैं खुशनसीब भी मानता हूँ कि वो मेरे जलेबी और काले अक्षर जैसी लेखन को पसंद भी करते हैं...
जवाब देंहटाएंघटिया पोस्ट, खोखले चापलूसी, इज्ज़त का दिखावा, कमेन्ट पाने कि चाहत के लिए भिडाये गए तिकड़मों के बीच अगर कोई व्यंग लेखन और ज्ञान उनसे सीखना चाहे तो वहां अथाह समंदर है... ब्लॉग पर स्तरीय व्यंग सिर्फ दो ही लिखते हैं अनूप शुक्ल और शेफाली पांडे....
उनकी मानसिक तरलता, माहौल को हल्का बनाये रखने कि कला, छोटी-छोटी बातों से बड़े निष्कर्ष का मैं कायल हूँ.
और देखिएगा वो इसे भी मौज लेना ही समझेंगे :)
@सागर,
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर स्तरीय व्यंग सिर्फ दो ही लिखते हैं अनूप शुक्ल और शेफाली पांडे....
शेफ़ाली पांडे के बारे में तो मैं सहमत हूं। अपने बारे में यही कहना चाहता हूं कि तुम्हारे अंदर चिरकुट लेखन को पसंद करने की अद्भुत क्षमता है! काश कुछ रुचि सुधार सकते। :)
अब क्यों ना कोई और बात कर ली जाये .................... क्यों क्या ख्याल है ??
जवाब देंहटाएंजय हिंद !!
@ अनूप सर,
जवाब देंहटाएं"तुम्हारे अंदर चिरकुट लेखन को पसंद करने की अद्भुत क्षमता है!"
शुक्रिया सर, आपको भी मेरे चिरकुट लेखन को पसंद करने की अद्भुत क्षमता है. रही रूचि की बात तो यह जाते-जाते ही जाएगी... वरना खुशवंत सिंह जैसा जीना भी क्या बुरा है :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
यहाँ भी वही !
जवाब देंहटाएंफिर वही बात याद आ गई --यहाँ सब ज्ञानी हैं । यहाँ किसको ज्ञान बांटिये ।
अनूप शुक्ल जी को मैंने ज्यादा नहीं पढ़ा लेकिन उनका दबदबा तो है , ब्लॉग जगत में ।
@@@सोहिल भईया कई सालो से समझने का प्रयास निरन्तर जारी है , पर कमबख्त समझ ही नहीं पा रहा , खुशदीप भईया की बात सही है ।
जवाब देंहटाएं@@
लेकिन खुशदीप भईया एक बात जो मुझे समझ नहीं आई कि जिस दिंन से ये विवाद शुरु हुआ आपके गुरु अनुप शुक्ल जी के खिलाफ बहुत सारीं पोस्ट आयी जिनमे उन्हे बहुत बुरा भला कहा गया , उन पोस्टों पर आपके गुरु जी नदारद ही दिखें और आपकी पोस्ट निगाहें बिछायें बैठें है , ये बात कुछ समझ नहीं आयी ।
कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन
जवाब देंहटाएंपुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है- समीरलाल समीर। चुनाव अधिकारी थे ज्ञानदत्त पांडे। श्री पांडे पर काफी गंभीर आरोप लगे फलस्वरूप वे समीरलाल समीर को प्रमाण पत्र दिए बगैर अज्ञातवाश में चले गए हैं। अब श्रेष्ठ ब्लागरिन का चुनाव होना है। आपको पांच विकल्प दिए जा रहे हैं। कृपया अपनी पसन्द के हिसाब से इनका चयन करें। महिला वोटरों को सबसे पहले वोट डालने का अवसर मिलेगा। पुरूष वोटर भी अपने कीमती मत का उपयोग कर सकेंगे.
1-फिरदौस
2- रचना
3 वंदना
4. संगीता पुरी
5.अल्पना वर्मा
6 शैल मंजूषा
कबिरा इस संसार में भांति भांति के ब्लॉगर।
जवाब देंहटाएंकैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहै राम.....
जवाब देंहटाएंग़ज़ल
जवाब देंहटाएंआदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा ख़ुदा देगा ।
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा ।
ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रूला देगा ।
हमसे पूछो दोस्त क्या सिला देगा
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा ।
इश्क़ का ज़हर पी लिया ‘फ़ाक़िर‘
अब मसीहा भी क्या दवा देगा ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/hell-n-heaven-in-holy-scriptures.html
कुमार ज़लज़ला,
जवाब देंहटाएंयार जो भी हो तुम हो पहुंची हुई चीज़, अभी एक बखेड़ा ही शांत नहीं हुआ है कि तुम ये महिलाओं में श्रेष्ठ ब्लॉगर चुनने का शोशा और ले आए हो...अरे चुनना ही होगा तो महिलाओं को अलग क्यों किया जाएगा भला...क्या पुरुषों और महिलाओं को मिलाकर कोई महिला श्रेष्ठ ब्लॉगर नहीं हो सकती....मुझे लगता है वाकई पॉलिटिक्स की ब्रीड से कोई न कोई नाता ज़रूर है...
जय हिंद...
@मिथिलेश दुबे
जवाब देंहटाएंतुम्हारी टिप्पणी से समझ नहीं आ रहा कि मेरी बात को सही बता रहे हो या इसी असमंजस में हो कि मेरी बात सही है या नहीं...
एक करेक्शन और करो...मेरे गुरु अनूप शुक्ल जी नहीं है, समीर जी हैं...अनूप शुक्ल महागुरुदेव हैं...उन्होंने किसी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करी और मेरी पोस्ट पर ही नज़रे बिछाए बैठे हैं...तो बकौल कुमार ज़लज़ला अनूप जी ने ही पोस्ट मुझसे लिखवाई है तो फिर वो क्यों एक तरह से अपनी ही पोस्ट पर ही नज़रें इनायत नहीं करेंगे...अनूप जी, डॉ अमर कुमार जी, ये वो शिखर पुरुष हैं जिनकी बहुत कम पोस्टों पर ही टिप्पणियां देखने को मिलती हैं...मैं सौभाग्यशाली हूं, यदाकदा मुझे इनका टिप्पणियों के रूप में स्नेह मिलता रहता है...
अब मैंने तुम्हारे सवालों का जवाब दे दिया...अब मेरे भी एक सवाल का जवाब दो, आज तुमने कुमार ज़लज़ला के एक कमेंट पर वाह किया...फिर ये संयोग ही रहा कि मेरी पोस्ट या किसी और पोस्ट पर, जहां भी कुमार ज़लज़ला की टिप्पणी दिखी, वहीं तुम्हारी टिप्पणी भी ऊपर-नीचे दिखी...क्या ये भी वैसा ही संयोग है जैसे कि अनूप शुक्ल जी ने कहीं और टिप्पणी न कर सिर्फ मेरी पोस्ट पर ही आकर टिप्पणी की...इसमें दिल पर लगाने वाली कोई बात नहीं, ब्लॉगवुड में ऐसे संयोग होते ही रहते हैं...
जय हिंद...
खुशदीप भैया ये भी अच्छा किया आपने.. हम सब यहाँ किसी व्यक्ति विशेष को नहीं बल्कि विचारों को बढ़ावा देने आये हैं और जो भी अच्छे विचार प्रेषित करेगा उस पर ध्यान देंगे ही.. इससे हिंदी को बढ़ावा मिलना चाहिए और ब्लोगिंग को और कुछ हो ना हो.. कुछ लोग हैं अभी भी जो तमाशे में बहुत मज़ा लेते हैं.. आग लगने पर पानी नहीं पेट्रोल डालने आते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट है खुशदीप.
जवाब देंहटाएंसमीर जी समीर जी हैं.
ज्ञानदत्त जी ज्ञानदत्त जी हैं.
और अनूप जी अनूप जी हैं.
खुशदीप जी बस आप मुझे गलत न समझते हुए सिर्फ इतनी कृपा बनाए रखे कि.. आगे आप समझदार है.
जवाब देंहटाएंबाकी देखते जाइए मैं कैसे मौजा ही मौजा करता हूं. बहुत मौज ले लिया लोगों ने विंग लगाकर.
kyaa kahun khushdeep bhai ab to kuchh bhi kehane me dar lagne laga hai.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है दो शिखर पुरुषों का यह तुलनात्मक अध्ययन अब अपने चरम तक पहुंच चुका है । आगे जाकर जब इस विषय पर कोई पी.एच डी करेगा तो उसके काम आयेगा ।
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी ने चौकस मौज ली है! :)
जवाब देंहटाएंFollow-up comments will be sent to dramar21071@gmail.com
जवाब देंहटाएंमैंनें टिप्पणियों की सदस्यता ले ली है,
इससे अधिक और कर ही क्या सकता हूँ :(
मेरा कद यदि इन दोनों महापुरुषों के कँधे तक भी होता, तो टिप्पणी दे पाता ।
सोच रहा हूँ कि अपनी लकीर अब बढ़ा ही लूँ, बेटर नॉट इन अण्टशण्टात्मक ज्ञानदत्त स्टाइल :)
Follow-up comments will be sent to dramar21071@gmail.com
जवाब देंहटाएंमैंनें टिप्पणियों की सदस्यता ले ली है,
इससे अधिक और कर ही क्या सकता हूँ :(
मेरा कद यदि इन दोनों महापुरुषों के कँधे तक भी होता, तो टिप्पणी दे पाता । सोच रहा हूँ कि अपनी लकीर अब बढ़ा ही लूँ, बेटर नॉट इन अण्टशण्टात्मक ज्ञानदत्त स्टाइल :)
जवाब देंहटाएंअरे हाँ, मैं शिखर पुरुष नहीं,
तुम शिखँडी पुरुष बोलोगे तो भी चलेगा !
विवादों को एक तरफ रख दे तो ....
जवाब देंहटाएंमहात्मा जी का प्रसंग बहुत ही बढ़िया है ...कादम्बिनी जैसी पत्रिकाओं में कई बर पढ़ा है ...महात्मा अपने शिष्यों को प्रेमवश गालियों से संबोधित करते रहे हैं ...मगर इसके पीछे चाह उनकी भलाई की ही होती है ...!