कैसे ब्लॉगर हो आप, PSPO भी नहीं जानते...खुशदीप

टीवी पर अक्सर ओरिएंट पंखों की एक एड देखने को मिल जाती थी जिसमें उनकी बड़ी खिल्ली उडाई जाती थी जो PSPO के बारे में नहीं जानते...PSPO यानि पीक स्पीड परफॉरमेंस आउटपुट...ये एड कम्पेन इतना हिट हुआ था कि अगर कोई कुछ नहीं जानता था तो लोग तकिया कलाम की तरह इस्तेमाल करने लगे थे कि हॉ, ये PSPO भी नहीं जानता...ऐसा ही कुछ हाल ब्लॉगवुड के ज्ञानी-ध्यानियों की पोस्ट पढ़कर मेरा भी हो जाता है...




...अंग्रेज़ी मिश्रित हिंदी ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है कि अपन के पास बगले झांकने के सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता...सही है जनाब ब्लॉगिंग का क्या मज़ा, जब तक पोस्ट में दो-चार ऐसे करारे शब्द न डाले जाएं कि पढ़ने वाले कहने को मजबूर न हो जाएं...हाय, हम PSPO भी नहीं जानते....अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो लानत है हमारे ज्ञानी होने पर...ऐसा नहीं करेंगे तो घाट पर बकरियों के साथ पानी पीते अपने लेखन के शेर को अलग कैसे दिखा पाएंगे...

खैर इससे पहले कि ये पढ़ते-पढ़ते आप सबका मेरा गला घोटने का मन करने लगे, मैं उस शब्द पर आता हूं जिसने मुझे ये सोचने को मजबूर कर दिया कि मैं PSPO भी नहीं जानता...ये शब्द था घेटो (GHETTO)...माफी चाहूंगा, पहले कभी सुना नहीं था, इसलिए पता नहीं वर्तनी सही भी लिख पा रहा हूं या नहीं...तो जनाब घेटो शब्द का इस्तेमाल ब्लॉगर मीट या संगठन के लिए किया गया था...नया सा लगा, मतलब नहीं जानता था इसलिए सही शाब्दिक अर्थ जानने के लिए डिक्शनरी खोल कर बैठ गया...जो अर्थ मिले वो ये थे...अलग-थलग किए गए लोगों की बस्ती....या द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले चाहरदीवारी से घिरी यहूदियों की बस्ती...

पहली बार दिव्य-ज्ञान हुआ कि अगर अजय कुमार झा जैसा घर फूंक तमाशा देखने वाला कोई नेक बंदा मिलने-मिलाने की महफिल में प्यार से बुलाता है तो वो घेटो बना रहा होता है...या अविनाश वाचस्पति जैसा ब्लॉगरों का भला चाहकर खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाला कोई सज्जन घर पर चाय के लिए किसी को बुलाता है तो अपने घेटो का भूमि-पूजन कराने की सोच रहा होता है...अब जो घेटो शब्द का इस्तेमाल कर निशाना साध रहे हैं वो बेचारे सही तो कह रहे हैं...अजय कुमार झा या अविनाश वाचस्पति अलग-थलग प्रजाति का ही तो प्रतिनिधित्व करते हैं...हां, बड़ी संख्या में मूर्खों का जमावड़ा ज़रूर इन दोनों की पोस्ट का इंतज़ार करता रहता है...

खैर, आज नहीं तो कल, ये सभी मूर्ख झक मार कर हमारी पोस्ट ही पढ़ने आएंगे...और जाएंगे कहां....भई अजय कुमार झा तो संवेदनशील जीव हैं, उन्हें विद्वतता के कोड़ों से ताने मार-मार कर इतना परेशान कर दो कि या तो वो टंकी पर ही चढ़े रहें या वो अच्छे-अच्छे विषयों पर लेखन भूलकर बस हमारे सवालों के जवाब देने में ही उलझे रहें....अविनाश वाचस्पति जी ज़रूर जीवट वाले लगते हैं...इसलिए उन पर गुटबाज़ी को बढ़ावा देने सरीखे बाण चलाकर घायल किया जाए...बस उन्हें ऐसा कर दिया जाए कि उनकी कलम से कविता के सिवा और कुछ निकले ही नहीं...

जनाब इस तरह कोई भला होता है ब्लॉगिंग का जिस तरह अजय कुमार झा और अविनाश वाचस्पति ने सीधा-सच्चा सोच लिया था...इसके लिए तो क्रांतिकारी ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका की ज़रुरत होती है...अब ये झा या वाचस्पति जैसे प्राणी क्या जानें कि ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका क्या होता है...PSPO जो नहीं जानते...हमसे पूछो हम बताते हैं...अरे ये वो हथियार हैं जिनके दम पर मिखाइल गोर्बाच्योव ने अस्सी के दशक के मध्य में इस्तेमाल कर सोवियत यूनियन की तस्वीर बदल कर वो रूस बनाया था जिसे आज हम देखते हैं...ये एक दो लंच या टी मीटिंग से कहीं क्रांतियां आती है...अब आपमें से विद्वानों को छोड़कर सीधे-साधे ब्लॉगर चकराने लगे होंगे कि ये ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका क्या बला होती हैं...ये दोनों बलाएं घेटो के ही बड़े भाई बहन है...ग्लास्नोस्त का मतलब है खुलापन और पेरेस्त्रोइका का मतलब है वो अभियान जिसके तहत रूस की आर्थिक और राजनीतिक पॉलिसी को नया रूप दिया गया था...अब तो आप भी मानेंगे न ब्लॉगिंग को ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका का झंडा उठाने वाले की ज़रूरत है न कि अजय कुमार झा और अविनाश वाचस्पति जैसे लोगों कि जिनके बारे में कहा जा सकता है...आई मौज फकीर की, दिया झोंपड़ा फूंक...

भई और किसी को हुआ हो या न हो मैं ज़रूर PSPO जान गया हूं...कबीर जी का दोहा ही आज से अपने लिए बदल रहा हूं....

ज्ञानी जो देखन मैं चला, ज्ञानी न मिलया कोए,

जो मन खोजा आपना, तो मुझसे ज्ञानी न कोए...



(डिस्क्लेमर...होली की तरंग में लिखी गई पोस्ट है, अन्यथा न लें)

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38 टिप्पणियाँ
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  1. ऐसा लग रहा है सभी ब्लॉगर होली के रंग में रंग गए है.........सभी ब्लॉग पर होली के रंग खिले हुए है.....जब पढना शुरू किया तो लगा आज भैया ने कोई serious पोस्ट लिखी है ....धीरे धीरे पता लगा आपके ब्लॉग पर भी होली खिल रही है......होली मुबारक......

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  2. वाह ब्लागपर खूब रंग छिडक रहे हो मगर ये बात तो सच कही है
    अलग-थलग किए गए लोगों की बस्ती----- वाह डिक्शनरी मे भी ब्लागिन्ग का अर्थ कुछ इस तरह से है---- वो वेब् साईट जिस पर किसी लचीली अभिवयक्ति का संकलन होता है।
    तो सब को कहने दो जो कहते हैं। जब कोई काम करता है अलोचना तभी होती है जब कोई कुछ करेगा ही नही तो अलोचना किस की होगी। इस लिये जब आपकी आलोचना हो तो समझो आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं इस लिये अजय जी और अविनाश जी को अलोचना दिल से नही लगानी चाहिये। ये बात मै अपने अनुभव से कह रही हूँ मैने भी यहँ एक मंच बना रखा है सो जानती हूँ क्या मुश्किलें होती हैं मगर आप सही रास्ते पर चल रहे हैं तो डर कैसा। होली की बहुत बहुत शुभकामनायें आशीर्वाद्

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  3. वर्ष के पहले हफ़्ते में मैंने गलत तो नहीं कहा था,
    कि अक्सर तुम मेरी सोच को स्वर दे ही देते हो,
    सो मैं आलसी हो गया हूँ । लिखना ऊखना कुछ नहीं बस बैठे बैठे टिप्पणियाँ फ़ेंकते रहो ।
    इस पोस्ट ने एक बार फिर तसल्ली दी है,
    मैंनें मसिजीवी की वह पोस्ट पढ़ी तो थी, टिप्पणी देकर उनकी टी.आर.पी. बढ़ाना नहीं चाहा । मुझ सा अहमी कोय, सो मैं स्वयँ ही अहँवादियों से बचता हूँ ।
    GHETTO; इसका अपने साथियों के सँदर्भ में प्रयोग किया जाना मुझे भी नागवार गुज़रा । मूलतः स्पैनिश से उपजा यह शब्द नाज़ीयों ने अपना लिया क्योंकि यह परिभाषित करता था कि A slum inhabitated by minority group isolated due to social or economic pressures. ज़ाहिर है कि नाज़ी इसे जिस सँदर्भ में उपयोग किया करते थे वह तिरस्कारात्मक ही था ।
    इस शब्द ने अमरीका तक की यात्रा में अपना चरित्र और भी मुखर किया । आज भी यह अपने तिरस्कारात्मक चरित्र को ही जी रहा है ।
    हड़काऊ तर्ज़ पर यदि मात्र फ़ैशन के तौर पर इसे उछाला जाता है, तो भी कौन कहता है कि फासीवाद मर चुका है, या कि शब्दों में जान नहीं होती ?
    तुस्सी साणूँ दिल खुश कित्ता खुशदीपे !

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. आई मौज फकीर की, दिया झोंपड़ा फूंक...

    maza aa gaya HOLIII MUBAAAARAK

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  6. भैया....होली का यह सुरूर बहुत बढ़िया लगा.....

    मैं गोरखपुर जा रहा हूँ..... इसलिए जल्दी में यह कमेन्ट लिखा है....

    आपको फोन करता हूँ इत्मीनान से....

    जय हिंद....

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  7. भेद भाव को भूलकर , सब मीठी बोलो बोली
    जेम्स, जावेद , श्याम और संता , सब मिलकर खेलो होली।

    इतनी अंग्रेजी तो हमको भी नहीं आती भाई। इसलिए ही तो मस्त हैं।

    होली की शुभकामनायें।

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  8. PSPO यानी आलोचना
    आलोचना मतलब आलू चना नहीं
    आलोचना मतलब भला
    ?

    भला उसका
    लाभ जिसका
    मैं तो इसमें से
    रंग ले के खिसका।

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  9. अजय कुमार झा या अविनाश वाचस्पति अलग-थलग प्रजाति का ही तो प्रतिनिधित्व करते हैं'

    अच्छा होता अगर
    आप इनकी प्रजातियों का भी उल्लेख कर देते
    कही 1411 वाली प्रजाति तो नहीं है इनकी

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  10. बढ़िया अभिव्यक्ति. बधाई
    मैं निशब्द हूँ.
    संवेदनशील रचना. मुबारक हो :)
    NICE

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  11. लगता है इस बार होली अपने रंग मे सबको भिगो ही देगी कोई भी नही बचेगा…………………होली मुबारक ।

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  12. खुशदीप भाई,
    ये घेटो की व्याख्या खूब कर दी। डाक्टर अमर जी ने उसे विस्तार दे दिया। हम तो चकरा गए। हम तो उसे घोंटे पढ़ रहे थे। सो इधर घोंटे जा रहे थे। अब बस घोंट चुके हैं, छनने वाली है। कुल्हड़ तैयार हैं, जल्दी जल्दी मुकाम पर पहुँच जाएँ। खत्म हो जाएगी तो दूसरी पारी तक इंतजार करना होगा।

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  13. आप सभी को ईद-मिलादुन-नबी और होली की ढेरों शुभ-कामनाएं!!
    इस मौके पर होरी खेलूं कहकर बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ें.

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  14. बढ़िया विवेचन...होली की ढेरों शुभकामनाएं

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  15. खुश दीप भाई अब क्या कहे... भाई हम तो चक्करा ही जाते है, जब देखते है कि आज टांग खीचो ओर गुंडो/गुंडियो का राज ब्लांग पर भी रंग दिखाने लगा है...अजय कुमार झा, अविनाश वाचस्पति,जी मस्त रहे, बस यही कहुंगा इन के पास प्यार है जो बांट रहे है, ओर जिन के पास नही है वो तो नफ़रत ही बांटे गे...
    आप ने बहुत सुंदर लिखा
    होली की आप को ओर आप के परिवार को बहुत बहुत बधाई

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  16. होली की तरंग मे सच ही निकलता है .आखिर सच की जीत हुइ थी होली पर

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  17. खुशदीप भाई !

    आपकी इस पोस्ट ने सोचने को मजबूर कर दिया है, बहुत बढ़िया व्यंग्य और विवेचना की है आपने ! उपरोक्त पोस्ट मैंने भी पढ़ी है और साथ ही उक्त दोनों मीटिंग में मैं खुद शामिल था ! घेटो प्रकरण में कोई अपनी शान में गुस्ताखी न समझ ले इसलिए प्रतिक्रिया नहीं दी थी ! इस पूरे घटनाक्रम में मुझे केवल आत्म मुग्धता का भाव ही लगता है जिनमें वरिष्ठ ब्लागर जी रहे हैं और अपना खुद का पुराना घेटो बनाये हुए हैं और किसी भी हालत में परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं ! इनमें से कईयों का मैं खुद आदर करता हूँ और इसका कारण उनके प्रभामंडल से प्रभावित होना नहीं बल्कि शुरुआत के दिनों में, उनके ब्लाग्स को पढ़ कर ली गयी समझ, के कारण कृतज्ञता का भाव है ! यह लोग आज भी ब्लाग युग को १०० ब्लागर का ब्लाग और अपने को उनका सर्वेसर्वा मानने का नशा नहीं छोड़ पा रहे हैं ! मैं ब्लाग जगत के लेखन को उतना उत्कृष्ट नहीं मानता मगर जिनके पास अच्छे विचार हैं, उनको पढ़ आनंद का अनुभव तो होता ही है !
    कुछ दिन से मन में बड़ी खिन्नता पैदा हुई है ख़ास तौर पर जब नवजवानों को भड़का कर किसी भी नए प्रयास की बेईज्ज़ती कराने का प्रयत्न किया जाता है !

    हाल में ही अविनाश वाचस्पति ने एक संगठन बनाने की इच्छा जाहिर की, इसमें हम लोग ने वहां उपस्थित होने के बावजूद समर्थन अथवा विरोध कुछ नहीं किया क्योंकि यह केवल अविनाश का ही विचार था और इसको आगे बढ़ने का कार्य भी सिर्फ उनका ही होगा , हाँ अगर वे उसे कार्यरूप में परिणित कर पाते हैं तो स्वेच्छिक योगदान हम लोग भी देंगे ! जिस तरह से शैशव अवस्था में ही इस संस्था का भूर्णनाश किया जा रहा है, उसे देख कर आश्चर्य ही होता है कि हम कैसे लोगों के मध्य काम कर रहे हैं ! कोई भी भारतीय अपना संगठन बना और चला सकता है , भारतीय क़ानून में इसकी पूरी इजाज़त है, मगर इस कार्य में , अपनी अपनी पीठ पर, अपने नायकों का नाम लिखे, कुछ नासमझ बच्चों का उपयोग करना अत्यंत आपत्तिजनक है , इसका विरोध होना चाहिए !

    मेरी समस्त ब्लागर साथियों से करबद्ध प्रार्थना है कि होली पर कीचड न उछाल कर शुद्ध पानी का प्रयोग करें तो फलस्वरूप बहती हुई शीतल हवा से माहौल खुशनुमा हो जायेगा ! आशा है गुरुजन ध्यान देंगे जिनका मैं दिल से आदर करता हूँ और अगर ऐसा न किया तो समझ लें कि वगावत हो चुकी !( फिल्म मुग़ले आज़म)

    होली और मिलाद उन नबी की आपको शुभकामनायें !

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  18. खुशदीप भाई, आपकी बातें सही हैं लेकिन संदर्भ सही नहीं है।

    आप मसिजीवी की पोस्ट फ़िर से देखिये! जिनके नाम लिये आपने उनसे किसी भी तरह यह पोस्ट संबंधित नहीं है। बाकी किसी बात का मतलब आप कुछ भी निकाल सकते हैं!

    अगर बात मात्र होली के मजे जैसी है तब तो कोई बात ही नहीं!

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  19. महागुरुदेव अनूप शुक्ल जी,
    सबसे पहले तो आपको और परिवार के सभी सदस्यों को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं...

    रही इस पोस्ट की बात तो मसिजीवी जी इसमें कहां से आ गए...वो तो खुद सात फरवरी को अजय कुमार झा जी की दी हुई पार्टी में आए थे...मैं नहीं जानता कि उन्होंने कोई ऐसी पोस्ट लिखी है जिसमें घेटो शब्द का इस्तेमाल किया गया था...मैंने तो ये पोस्ट खुद झा जी की एक पोस्ट जिसमें उन्होंने टाइटल में ही ये शब्द इस्तेमाल किया था, उसे पढ़ने के बाद लिखी थी...मसिजीवी जी से पार्टी में मिलकर तो मुझे खुद बहुत अच्छा लगा था...उन्हें किसी अन्य कार्यक्रम में जाने की जल्दी थी, इसलिए बहुत कम सानिध्य ही मिला...लेकिन जितना भी मिला, मैं उनके व्यक्तिव से प्रभावित हुआ...

    इस पोस्ट में मसिजीवी जी क्या, मैंने तो सिर्फ अजय कुमार झा और अविनाश वाचस्पति के अलावा किसी का नाम ही नहीं लिया...फिर भी अगर किसी को मेरी कोई बात चुभी तो होली की तरंग मानकर दिल से निकाल दीजिएगा...

    जय हिंद...

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  20. घेटो शब्द तो हमारे लिए भी नया मगर, मगर चुपाई मारे बैठे रहे कि मूर्ख न कहलायें. अब होली में बताने पर चल जायेगा. :)


    हा हा! मजेदार!


    ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
    प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
    पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
    गले लगा लो यार, चलो हम होली खेलें.


    आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

    -समीर लाल ’समीर’

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  21. खुशदीप भाई ,बस इतना कि पढ लिया है और सिर्फ़ इतना और कि इस ब्लोगजगत में सब अपने हैं ...कम से कम मुझे तो यही लगता है ...उम्मीद है कि होली के रंग में बांकी से सभी रंग मलिन होकर बह जाएंगे ...बधाई होली की सबको और आपको भी
    अजय कुमार झा

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  22. खुशदीप भाई,
    चूंकि इस शब्द का हाल के दिनों में प्रयोग मसिजीवी ने ही किया पहले इसलिये उसका जिक्र किया मैंने। अब जब आपने बताया कि उससे आपकी पोस्ट से कोई संबंध नहीं तब कोई बात ही नहीं।

    होली सबको मुबारक !

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  23. बाई दॅ वे, दिल्‍ली के ओखला या जाफराबाद में लोग घेटो इसलिए नहीं बसाते कि उन्‍हें असुविधाएं पसंद हैं या तंग गलियों में रहना उन्‍हें अच्‍छा लगता है वरन इसलिए कि बाकी शहर उनके प्रति या तो उदासीन हैं या उनकी उपेक्षा कर रहा है । इसके आगे.. कोटेशन में कुछ गोल-मोल, और उसके आगे..ये सही है कि ये प्रवृत्ति मूलत: फिजीकल स्पेस की है तथा इसे वर्च्‍युअल पर सीधे सीधे लागू करने के अपने जोखिम हैं। पर ये घालमेल हम हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत में होता ही रहा है एक बार फिर सही। अगर छत्‍तीसगढ़ या किसी और क्षेत्र या समूह के ब्‍लॉगर इस पूरे ब्‍लॉगशहर को पूरा अपना न मानकर अपनी बस्‍ती बसाना चाहते हैं तो इसे कानूनी नुक्‍तेनजर से समझने की कोशिश इस एलियनेशन को और बढ़ाएगी ही इसलिए जरूरी है इसे पूरे ब्‍लॉग शहर की असफलता के रूप में देखे जो कुछ साथियों में इस एलियनेशन के पनपने को रोक नहीं पाई।
    वईसे हमहूँ ज्यादा विद्वान नहीं हैं, इसलिये हम्मैं साल के बारहों महीने औ’ निशि-दिन तरँग में रहने की आदत है । हम काहे होली की दुहाई दें, जी ? भूले हुये लिंक को स्मरण दिलाने का शुक्रिया, अनूप जी । अउर आपहू को हैप्पी होली !

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  24. अमर बाबा से सहमत ! अनूप बाबू ध्यान दें !

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  25. खुशदीप जी आपसे तो बच कर रहना पड़ेगा ..... न जाने कब और किस पर रंग उछाल दें पता नहीं .....!!

    बैजा- बैजा कर दित्ती जी तुसीं ते......!!

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  26. होलिया समाचार

    अनूप बाबू
    उड़नतश्‍तरी में रंग भरवाने
    किसी रंग पेट्रोल पम्‍प की तलाश
    में मारे बेमारे फिर रहे हैं
    जिनको मालूम हो बतलाय दें।

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  27. .
    .
    .
    (डिस्क्लेमर...होली की तरंग में लिखी गई टिप्पणी है, अन्यथा न लें)

    खुशदीप जी,

    ज्यादा गहरे न जाते हुऐ,है यह समझ आया
    किसी ने किसी बंधु का, है दिल कहीं दुखाया

    अपने-अपने ब्लॉग के मालिक, सभी हैं जनाब
    क्यों न वहीं ले लिया जाये सारा हिसाब-किताब

    काहे देशनामा को व्यर्थ बीच में आपने उलझाया ?

    होली मुबारक!

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  28. अच्छा अब बात समझ में गई ..घोंटू महराज का कह रहे थे ....वही हम कहें आज सबेरे-सबेरे कौन विद्वता महराज से हमरा फेरा करवा आये हैं आप...
    महा कन्फुसुयाए हुए हैं कि ई विद्वता नाम का प्राणी तो कभी मिला नहीं हमको ना ही हमरा कहियो कौनो चक्कर रहा है उसका साथ...
    जब आप गेटो का बात कह रहे हैं तो है तो पहिले ई बतावल जावे कि हिटलर कौन है..और कहाँ है...और तिरस्कृत यहोदियों का जमावड़ा किसको कहा जा रहा है ...काहे की 'गेटो' उन जेलों को कहा जाता था जहाँ हिटलर ने 'यहूदियों' को ठूस रखा था...
    अगर 'संगठन' जैसे शब्द का पर्यायवाची किसी जाहिल इन्सान को 'गेटो' लगता है तो सबसे पहले वो अपने सामान्य ज्ञान का विस्तार कर ले...जिसने भी यह कहा है...उसके बुद्धि की बहुत बलिहारी क्योंकि वो 'हिटलर' ही हो सकत है और यहाँ हिटलरओं को पनपने नहीं दिया जाएगा...
    ' संगठन' बनाना नहीं पसंद है तो आप सिर्फ़ अपनी नापसंदगी दर्ज कराइए...उसका अपमान आप नहीं कर सकते हैं
    ब्लॉग में ना हिटलर है ना गेटो ...और अगर ऐसा कोई प्लान है तो बताइयेगा....नेस्तनाबूत करने कि खातिर विद्वता की दरकार तब नहीं होगी ...कुचरई की ज़रुरत होगी...और एक बात ...हम सिधन सों सीधे हैं महा बांके हम बाकन सों...

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  29. इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
    ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
    लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
    कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
    के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
    ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
    इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
    (और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)

    होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...

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  30. "भई और किसी को हुआ हो या न हो मैं ज़रूर PSPO जान गया हूं..."

    खुशी की बात है कि आपने जान लिया! हम तो आज तक न तो PSPO का मतलब जान पाये हैं और न ही घेटो का। काश कोई "ब्लोग विद्वान" हिन्दी ब्लोगिंग में प्रयुक्त होने वाले अनोखे, धारदार, मारक शब्दों का एक ऑनलाइन शब्दों का एक शब्दकोश तैयार करने की कृपा करता!

    आपको और सभी ब्लोगर मित्रों को होली की शुभकामनाएँ!

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  31. ये घेटो शब्द टो मैंने भी ब्लॉगजगत में ही पढ़ा था कुछ दिन पहले..गंगा मैय्या जी की कसम... अपनी समझ में तो कछु ना आया था सरकार ...

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  32. क्या " झिकियांग " पोस्ट है भाई
    अब मत पूछना कि ये झिकियांग क्या होता है ..
    हाहाहहाहहाअहहाह्हाहाह्ह्

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