दिल्ली जैसे पंजाब में भी कांग्रेस को हाशिए पर सिमटा देगी AAP? यूपी में मुलायम-माया, बिहार में लालू-नीतीश के उदय के बाद आज तक नहीं उठी कांग्रेस, तमिलनाडु में 54 साल से कभी DMK तो कभी AIADMK के पास सत्ता, दीवार पर लिखी इबारत को पढ़े कांग्रेस, सीधी फाइट वाले राज्यों तक ही क्यों ताक़त सिमटी?
नई दिल्ली (18 मार्च)।
कांग्रेस की दशा पर चिंतन को बढ़ाते हुए अगली कड़ी पेश है...
इस देश में किसी राज्य में पहली गैर कांग्रेस सरकार 1957 में केरल में बनी...केरल में ईएमएस नंबूदरीपाद पहले सीएम बने...केरल का गठन ही 1956 में हुआ था...1957 में विधानसभा चुनाव हुआ तो 126 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 43 और सीपीआई को 60 सीट मिलीं, इस तरह सीपीआई 4 सीट से बहुमत से दूर रही लेकिन उसने 5 निर्दलीयों के सपोर्ट से सरकार बना ली...
लेकिन भारत में कांग्रेस के अलावा कोई पार्टी अपने बूते पर किसी राज्य में सबसे पहली बार बहुमत हासिल करने में सफल रही थी तो वो थी 1967 में तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कषगम यानि डीएमके...तब एन अन्नादुरै तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने थे…तब से 54 साल बीत गए, कांग्रेस कभी अकेले बूते पर तमिलनाडु में सरकार नहीं बना सकी...ऐसा क्यों हुआ क्योंकि तमिलनाडु में तीसरी शक्ति के तौर पर डीएमके में ही दोफाड़ कर एमजी रामचंद्रन ने अलग एआईडीएमके बना ली....यानि राज्य में तीसरा मज़बूत क्षत्रप भी आ गया...ऐसे में पिछले 54 साल से तमिलनाडु में कभी डीएमके या एआईडीएमके ही सत्ता में आते रहे...कांग्रेस अगर सत्ता में आई भी तो किसी पार्टी की पिछलग्गू जूनियर पार्टनर के तौर पर...
कहने का तात्पर्य ये है कि जिस राज्य में भी तीसरी या उससे ज़्यादा दमदार राजनीतिक शक्तियों का उदय होता गया, वहां कांग्रेस का अपने बूते सरकार बनाना नामुकिन होता गया...हां जहां जहां जिस जिस राज्य में कांग्रेस के अलावा एक और ही पार्टी मज़बूत थी वहां कांग्रेस ज़रूर अपने बूते सत्ता में अंदर-बाहर होती रही...
मसलन, बंगाल को लीजिए, ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के उभरने पर कांग्रेस का आधार कैसे सिमटता गया कहने की ज़रूरत नहीं...
उत्तर प्रदेश में माया-मुलायम, बिहार में लालू-नीतीश, आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम-वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना में टीआरएस, झारखंड में जेएमएम, ओडिशा में बीजू जनता दल या हाल फिलहाल में दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के तौर पर लोगों को राजनीतिक विकल्प मिला तो कांग्रेस का राजधानी से डब्बा कैसे गोल हुआ ये सबने देखा...
हां राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में ज़रूर कांग्रेस सत्ता में आती रही क्योंकि यहां उसकी बीजेपी से (पंजाब में बादल) सीधी फाइट रही, कोई तीसरा सशक्त राजनीतिक प्लेयर यहां कभी नहीं रहा...
अब पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने विकल्प दिया तो वहां की जनता ने पार्टी के मुखिया के गैर पंजाबी होते हुए भी उसे हाथों हाथ लिया और उसे प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता की कुंजी सौंप दी...तो क्या अब कांग्रेस का पंजाब की सत्ता में भी कभी लौटना मुश्किल हो जाएगा, जैसा दिल्ली में हो रहा है या अन्य उन राज्यों में हो रहा है जहां तीसरे राजनीतिक विकल्प लोगों के सामने मौजूद हैं...
कांग्रेस नेतृत्व को दीवार पर लिखी इबारत पढ़ने की सख़्त ज़रूरत है वरना गांधी जी का कांग्रेस को ख़त्म करने का विचार इस देश की जनता खुद-ब-खुद पूरा करती ही जा रही है...हारे को हरि नाम...
इति श्री