Praggnanandhaa: बहन के कार्टून्स क्रेज़ ने बनाया शतरंज का शाह

प्रगनानंदा- ट्विटर

शतरंज बादशाह मैगनस कार्लसन को मात देने वाले भारत के प्रगनानंदा दुनिया के सबसे युवा खिलाड़ी, 2018 में बने थे ग्रैंडमास्टर, तब ऐसा करने वाले दुनिया के वे दूसरे सबसे युवा प्लेयर थे,प्रगनानंदा की बहन का कार्टून्स शौक छुड़ाने के लिए माता-पिता ने चेस खिलाना शुरू किया



नई दिल्ली (23 फरवरी)। 

भारत के ग्रैंड मास्टर रमेश बाबू प्रगनानंदा ने महज़ सोलह साल की उम्र में दुनिया के नंबर एक शतरंज खिलाड़ी को मात देकर हर भारतीय का सीना चौड़ा कर दिया. छोटे होते कैसे तीन साल बड़ी बहन वैशाली रमेश बाबू के कार्टून्स के शौक ने प्राग को आगे चलकर शतरंज का शाह बना दिया. इस पर स्टोरी में आगे बात करेंगे. 

प्रगनानंदा को पांच बार के वर्ल्ड चेस चैंपियन विश्वनाथन आनंद  और मास्टर ब्लास्टर क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर समेत तमाम जानीमानी हस्तियों ने बधाई दी है.

 




प्रगनानंदा ने अपने से पंद्रह साल बड़े मैगनस कार्लसन को ऑनलाइन रैपिड चैस कंपीटिशन एयरथिंग्स मास्टर्स के आठवें राउंड में शिकस्त दी. नार्वे के इस शतरंज के बादशाह को मात देने वाले प्रगनानंदा दुनिया के सबसे युवा यानि कम उम्र वाले खिलाड़ी हैं. 

प्रगनानंदा  इसके अलावा 2018 में ग्रैंडमास्टर का टाइटल हासिल कर चुके हैं. वे ये टाइटल पाने वाले का दुनिया के पांचवें सबसे युवा शख्स हैं. प्रगनानंदा  ने जब ये टाइटल पाया था तब वो भारत के सबसे युवा और दुनिया के दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बनने वाले खिलाड़ी थे. अब प्रगनानंदा  से कम उम्र में ग्रैंडमास्टर बनने वालों में अभिमन्यु मिश्रा, गुकेश जी, सर्जी कार्जाकिन, और जावोकिर सिंदाररोव्ट का शुमार होता है.

प्रगनानंदा जब 7 साल के ही थे तो 2013 में वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप अंडर 8 का टाइटल अपने नाम कर लिया था. यानि इतनी सी उम्र में ही वो FIDE मास्टर बन गए. इसे ग्रैंडमास्टर और इंटरनेशनल मास्टर के बाद तीसरा सबसे बड़ा टाइटल माना जाता है. 2016 में प्राग 10 साल, 10 महीने और 19 दिन के थे तो इंटरनेशनल मास्टर खिताब हासिल कर लिया. दो साल बाद 2018 में प्रगनानंदा ग के नाम के आगे ग्रैंडमास्टर लग गया. उस वक्त प्रगनानंदा  जिन्हें अपना रोल माडल मानते हैं उन्हीं विश्वनाथन ने चेन्नई में अपने घर बुलाकर उनका हौसला बढ़ाया था.

2018 में अपने रोल मॉडल विश्वनाथन आनंद के साथ प्रगनानंदा -फाइल 


प्रगनानंदा  के कोच आरबी रमेश के मुताबिक वो सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रहते हैं. कोच का कहना है इससे वो खुद पर लोगों की ओर से नज़र रखे जाने के दबाव से मुक्त रहते हैं. कोच और दोस्त प्रगनानंदा को प्रागु  नाम से बुलाते हैं. 

अब आते हैं मेन बात पर छोटी सी उम्र में ही प्रगनानंदा पर शतरंज का शौक कैसे चढ़ा. प्रगनानंदा जब तीन साल के थे तो उनकी बड़ी बहन वैशाली को टीवी पर कार्टून्स शो देखने का बहुत शौक था. ये आदत छुड़वाने के इरादे से उनके माता-पिता ने वैशाली की शतरंज में दिलचस्पी जगाना शुरू किया. बहन को शतरंज खेलते देख प्रगनानंदा ने भी वैसा ही करना शुरू कर दिया. दोनों भाई-बहन के शतरंज को लेकर छोटी उम्र में ही लगाव और आपस में खेलने ने आज दोनों को ही शतरंज में बड़ा नाम बना दिया. उन्नीस साल की वैशाली भी वीमन ग्रैंडमास्टर हैं. 

प्रगनानंदा के पिता रमेश बाबू और नागालक्ष्मी अपने दोनों बच्चों की शतरंज में उपलब्धि से बहुत खुश हैं. वो कहते हैं इससे भी ज्यादा अहम बात ये है कि दोनों बच्चों को इस खेल में बहुत आनंद आता है. रमेश बाबू पोलियो दिव्यांग हैं और बैंक कर्मचारी हैं. वे अपनी पत्नी नागालक्ष्मी को बच्चों की सफलता के लिए श्रेय देते है जो हर टूर्नामेंट में दोनों बच्चों के साथ जाती है और उनका पूरा ख्याल रखती है.

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