रॉकेट इंजीनियरिंग एक्सपर्ट एस सोमनाथ ISRO के नए चेयरमैन, 58 साल के सोमनाथ का कार्यकाल तीन साल का होगा, संकेत दिए- अभी तक स्पेस प्रोग्राम ISRO तक ही सीमित, औरों का जुड़ना संभव,स्पेस डेवलपमेंट बजट बढ़ाने की ज़रूरत, सरकारी धन ही काफ़ी नहीं
नई दिल्ली (13 जनवरी)।
रॉकेट इंजीनियरिंग
के महारथी एस सोमनाथ को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानि इसरो का नया चेयरमैन
चुना गया है. सोमनाथ भारत के सबसे शक्तिशाली स्पेस राकेट के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट
को लीड कर चुके हैं. इसरो के मौजूदा चेयरमैन के सिवन 14 जनवरी को अपना एक्सटेंडेड
टर्म पूरा कर रहे हैं. सोमनाथ का इसरो चेयरमैन के तौर पर टर्म तीन साल का होगा. इससे
पहले वे 22 जनवरी 2018 से लेकर अब तक तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के
डायरेक्टर का पद संभाल रहे थे।
केंद्र सरकार ने
सोमनाथ को स्पेस डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी और स्पेस कमीशन के चेयरमैन के तौर पर
नियुक्त किया है.
सोमनाथ को भारत के
सबसे ताकतवर स्पेस रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 लॉन्चर के डेवलपमेंट वाले वैज्ञानिकों
में गिना जाता है। अपने करियर की शुरुआत में उन्होंने पोलर सैटेलाइट लॉन्चिंग
व्हीकल (पीएसएलवी) के विकास कार्यों में भी अहम भूमिका निभाई थी.
सोमनाथ हाई प्रैशर
वाले सेमी-क्रायोजेनिक इंजन के विकास कार्यों का भी हिस्सा रह चुके हैं।
चंद्रयान-2 के लैंडर के इंजन को विकसित करने और जीसैट-9 में लगे इलेक्ट्रिक
प्रोपल्शन सिस्टम की उड़ान को सफल बनाना भी उनकी उपलब्धियों में शामिल रहा है। सोमनाथ ने सैटेलाइट लॉन्चिंग के लिए दुनियाभर में पसंद किए जाने वाले पीएसएलवी के
इंटिग्रेशन डिजाइन को तैयार करने में अहम योगदान दिया है।
डॉ सोमनाथ ने नियुक्ति
के बाद कहा कि नई टेक्नोलॉजी पर जोर दिए जाने की ज़रूरत है. भारतीय अंतरिक्ष
क्षेत्र को निजी कंपनियों के कारोबार के लिए अवसर दिलाने के वास्ते विकसित करने की
जरूरत है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ISRO
तक ही सीमित है, लेकिन सरकार अब चाहती है कि इस क्षेत्र में नए लोग
आएं. सोमनाथ ने अंतरिक्ष बजट को मौजूदा 15,000-16,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर
20,000-50,000 करोड़ रुपये से अधिक किए जाने की आवश्यकता जताई. लेकिन अंतरिक्ष बजट
में बढोतरी केवल सरकारी धन या समर्थन से नहीं हो सकती है. जैसे दूरसंचार और हवाई
यात्रा जैसे क्षेत्रों में जो बदलाव हुए, वहीं बदलाव यहां भी
होना चाहिए. इससे रोजगार के अधिक अवसर पैदा होंगे और रिसर्च एंड डेवेलपमेंट बढ़
सकता है.” सोमनाथ ने साफ किया कि इसका ये मतलब नहीं है कि इसरो का निजीकरण किया जा
रहा है.