किसानों से जुड़े मुद्दे पर बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी और बादल परिवार की सरपरस्ती वाली पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने बगावत का बिगुल बजा दिया है...गुरुवार रात को बादल परिवार की बहू और इस पार्टी की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया....वे खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रही थीं...इस्तीफा मंजूर हो गया है और कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को इस मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है...
आठ साल पहले का फाइल फोटो- अमेरिका के एक खेत में सड़ते छोटे साइज के प्याज क्योंकि बड़ी रिटेल स्टोर चेन को बड़े साइज के प्याज ही चाहिए होते हैं... |
दरअसल, अकाली दल के
लिए ऐसा करना मजबूरी थी...पंजाब और हरियाणा में किसानों ने आंदोलन छेड़ रखा
है...अकाली दल का कोर वोट बैंक किसानों में ही रहा है...पंजाब में किसान एकजुट हैं
और उन्होंने साफ कर दिया है कि जो केंद्र सरकार के किसानों से जुड़े बिलों का
समर्थन करेगा, उसे गांवों में घुसने भी नहीं दिया जाएगा...100 साल पुरानी पार्टी
पहले ही अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है...2017 विधानसभा चुनाव में ये
पार्टी सिर्फ 15 सीटों पर सिमट गई और पंजाब में दूसरे नंबर पर भी नहीं आ सकी...आम
आदमी पार्टी पंजाब मे मुख्य विपक्षी दल बन गई...
दरअसल, अकाली दल के
पंजाब की सत्ता में रहते हुए 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहब बेअदबी मामले को लेकर
बादलों और उनकी पार्टी को लेकर पंजाब के लोगों में जो गुस्सा था वो 2017 विधानसभा
चुनाव के नतीजों में देखने को मिला....अब किसानों के मुद्दों पर अकाली दल ने
बीजेपी के खिलाफ जो तेवर अपनाए हैं, वो 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव की रणनीति के
तहत ही उठाया कदम है....अकाली दल अब कह रहा है- “हर
किसान अकाली है और हर अकाली किसान है.”
तकनीकी भाषा में
मोदी सरकार के किन अध्यादेशों/बिलों पर विरोध है,
इस पर जाएंगे तो समझना मुश्किल होगा...यही मोदी सरकार की दिक्कत है वो भारत जैसे
कृषि प्रधान देश में किसानों से जुड़े बड़े बड़े फैसले ले रही है लेकिन ये साफ
संदेश नहीं दे पा रही कि उससे किसानों की ज़िंदगी में क्या बदलाव आएगा...किसानों
को तो छोड़ अपने सबसे पुराने सहयोगी दल को ही बीजेपी विश्वास में नहीं ले पाई...
आसान भाषा में बात
करें, इससे पहले तीन अध्यादेश/बिलों के नाम जान
लीजिए जिन पर अकाली दल ने अपना विरोध व्यक्त किया है-
1. किसान उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा)-
The
Farmers Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation)
2. किसान सशक्तीकरण और संरक्षण
The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement
3. अध्यादेश और आवश्यक वस्तु (संशोधन)
The Essential Commodities (Amendment)
इनमें से तीसरा वाला
बिल लोकसभा में पास भी हो चुका है...
मोटे तौर पर किसानों
को जो डर है वो ये है कि उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बंद हो जाएगा, साथ ही मंडी व्यवस्था खत्म हो
जाएगी, जहां वो अपने घरों के पास जाकर अभी तक अपने उत्पाद बेचते रहे हैंं. इसके
अलावा कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग के जरिए देश का पूरा कृषि सिस्टम उन्हें प्राइवेट
सेक्टर के हाथों में जाने का अंदेशा है...ऐसे में किसानों को डर है कि बड़े
प्लेयर्स के आने पर उनकी स्थिति सिर्फ मजदूरों जैसी हो जाएगी...
रिटेल सेक्टर में
एफडीआई और किसानों से सीधी खरीद का मुद्दा कोई नया नहीं है...इसकी शुरुआत यूपीए
सरकार के दौरान ही हो गई थी...मैंने 6 दिसंबर 2012 को इस मुद्दे पर ब्लॉग लिखा
था...उसमें वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ के एक लेख का हवाला दिया था...अमेरिका में जो
कृषि सेक्टर में पहले ही हो चुका है, वैसा ही सब कुछ अब भारत में भी होता दिखे तो
कोई नई बात नहीं...इस मामले में यूपीए और एनडीए की नीतियों में कोई फर्क नहीं
है...प्राइवेट सेक्टर को ही हर चीज में आगे करने पर पूरा जोर है...
पढ़िए 6 दिसंबर 2012
को मैंने देशनामा पर क्या लिखा था, तब कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी और बीजेपी विपक्ष में....
रिटेल
सेक्टर में एफडीआई (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) पर लोकसभा की मंज़ूरी मिलने से सत्ता
पक्ष फूले नहीं समा रहा....वहीं विपक्ष का कहना है कि आंकड़ों में बेशक उनकी हार
हो गई लेकिन नैतिक तौर पर उनकी जीत हुई...इस चक्कर में दोनों पक्षों के सांसदों को
पूरे देश के सामने टेलीविज़न पर गला साफ़ करने का मौका ज़रूर मिल गया...वालमार्ट
देश में आया तो क्या क्या होगा...सरकारी पक्ष का तर्क था कि किसानों से सीधे खरीद
होगी तो उन्हें फायदा मिलेगा...उपभोक्ताओं को भी सस्ता सामान मिलेगा...मुख्य विपक्षी
पार्टी बीजेपी का तर्क था कि इससे छोटे दुकानदारों का धंधा चौपट हो जाएगा...सबने
बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी की लेकिन इतनी अहम बहस के लिए बिना किसी खास तैयारी
के...काश ये लोग बहस से पहले पी. साईनाथ का ये लेख ही पढ़ लेते...ये लेख अमेरिका
के एक किसान पर आधारित है...अब भारत में जो ये तर्क दे रहे हैं कि छोटे किसानों को
विदेशी स्टोरों के आने से फायदा होगा, उनकी
आंखें इस लेख को पढ़ने के बाद ज़रूर खुल
जानी चाहिए...इस लेख के लिए मेरी ओर से साईनाथ साहब को ज़ोरदार सैल्यूट....
क्रिस पावेलस्की |
मेरे प्याज बड़े हैं, क्या नहीं है?" न्यूयॉर्क सिटी से 60 किलोमीटर बाहर क्रिस पावेलस्की ने हम आगंतुकों के समूह से ये सवाल किया... "क्या आप जानते हैं क्यों?" क्योंकि उपभोक्ताओं की ये मांग है, शायद? शायद बड़े प्याज ग्राहकों की नज़र में जल्दी चढ़ते हैं? पावेलस्की का जवाब था "नहीं "...पावेलस्की के पड़दादा 1903 में पोलेंड से आकर यहां बसे थे...एक सदी से ज़्यादा इसी ज़मीन पर ये परिवार फार्मिंग करता आया है...
पावेलस्की
का कहना है कि आकार रिटेल चेन स्टोर तय करते हैं... "हर चीज़" उनके
फ़रमान के अनुसार होती है... "हर चीज़" में कीमतें भी शामिल
हैं...वालमार्ट, शॉप राइट और दूसरे चेन स्टोर पावेलस्की
जैसे उत्पादित प्याजों को 1.49 डॉलर से लेकर 1.89 डॉलर प्रति पाउंड (करीब 453 ग्राम) में बेचते हैं...लेकिन
पावेलस्की के हिस्से में एक पाउंड प्याज के लिए सिर्फ 17 सेंट (1 डॉलर=100 सेंट) ही आते हैं...ये स्थिति भी
पिछले दो साल से ही बेहतर हुई है...1983 से
2010 के बीच पावेलस्की को एक पाउंड प्याज
के सिर्फ 12 सेंट ही मिलते थे।
पावेलस्की
का कहना है कि खाद, कीटनाशक समेत खेती की हर तरह की लागत
बढ़ी है...अगर कुछ नहीं बढ़ा है तो वो हमें मिलने वाली कीमतें...हमें 50 पाउंड के बोरे के करीब छह डॉलर ही
मिलते हैं...हां इसी दौरान प्याज की रिटेल कीमतों में ज़रूर इज़ाफ़ा हुआ है...फिर पावेलस्की ने सवाल किया
कि क्या कोई खाना पकाता है...हिचकते हुए कुछ हाथ ऊपर खड़े हुए...पावेलस्की ने एक
प्याज हाथ में लेकर कहा कि वो इतना बड़ा
ही प्याज चाहते हैं, क्योंकि वो जानते हैं कि आप खाना बनाते
वक्त इसका आधा हिस्सा ही इस्तेमाल करेंगे...और बचा आधा हिस्सा आप फेंक
दोगे...जितना ज़्यादा आप बर्बाद करोगे, उतना
ही ज़्यादा आप खरीदोगे...स्टोर ये अच्छी तरह जानते हैं...इसलिए यहां बर्बादी
रणनीति है, बाइ-प्रोडक्ट नहीं...
पावेलस्की
के मुताबिक पीले प्याज के लिए सामान्यतया
दो इंच या उससे थोड़ा बड़ा ही आकार चलता है...जबकि तीन दशक पहले एक इंच के आसपास
ही मानक आकार माना जाता था...पावेलस्की के अनुसार छोटे किसान वालमार्ट के साथ
मोल-भाव नहीं कर सकते...इसी वजह से उनके खेतों के पास छोटे प्याज़ों के पहाड़
सड़ते मिल जाते हैं...
पावेलस्की
का कहना है कि सिर्फ चेनस्टोर ही छोटे किसानों के हितों के खिलाफ काम नहीं
करते...बाढ़ और आइरीन तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की भी मार उन्हें सहनी पड़ती
है...पावेलस्की को 2009 में फसल नष्ट होने से एक लाख पंद्रह
हज़ार डॉलर का नुकसान हुआ था...लेकिन उन्हें फसल बीमे से सिर्फ छह हज़ार डॉलर की
भरपाई हुई...जबकि बीमे के प्रीमियम पर ही उनके दस हज़ार डॉलर जेब से खर्च हुए
थे...
पूरा
कृषिगत ढ़ांचा और नीतियां पिछले कुछ दशकों में छोटे किसानों के खिलाफ होती गई
हैं....पावेलस्की खुद कम्युनिकेशन्स स्टडीज़ में पोस्ट ग्रेजुएट हैं...उनके
पड़दादा ने जब अमेरिका में पहली बार कदम रखा था तो उनकी जेब में सिर्फ पांच डॉलर
थे...आज उऩका पडपोता तीन लाख बीस हज़ार डॉलर का कर्ज़दार है...अमेरिकी कृषि का
पूरा ढ़ाचा छोटे किसानों की जगह कारपोरेट सेक्टर के हित साधने वाला है...
पावेलस्की
की पत्नी एक स्कूल में असिस्टेंट लाइब्रेरियन हैं...वो इसलिए ये नौकरी करती हैं कि
परिवार को आर्थिक सहारा मिलता रहे...पावेलस्की के मुताबिक पिछले साल उन्होंने पचास
एकड़ के फार्म पर कृषि लागत पर एक लाख साठ हज़़ार डॉलर खर्च किए और बदले में
उन्हें दो लाख डॉलर मिले....यानी चालीस हज़ार डॉलर की कमाई पर उन्हें टैक्स देना
पड़ा...इससे दोबारा निवेश के लिए उनके पास बहुत कम बचा...
एसोसिएटेड
प्रेस की 2001 में कराई एक जांच से सामने आया था कि सार्वजनिक पैसा सबसे ज़्यादा
कहां जाता है...जबकि तब हालात काफ़ी अलग थे, लेकिन तब भी कारपोरेट जगत और बहुत अमीर कंपनियों की
पकड़ बहुत मज़बूत थी...एसोसिएटेड प्रेस ने
अमेरिकी कृषि विभाग के दो करोड बीस लाख चेकों की जांच की तो उनमें से 63 फीसदी रकम इस क्षेत्र के सिर्फ दस
बड़े खिलाड़यों को ही मिली...डेविड रॉकफेलर, टेड
टर्नर, स्कॉटी पिपेन जैसे धनकुबेरों को भी
उनके फार्म्स के लिए सब्सिडी मिली... पी. साईनाथ
क्या
यही होने जा रहा है अब भारत में भी....
भारत में अभी शुरुआत है , आने वाला समय भयावह होने जा रहा है ! उन्हें अपना आखिरी समय शानदार चाहिए !
जवाब देंहटाएंअभी से क्यों छलक आये, तुम्हारी आँख में आंसू ?
जवाब देंहटाएंहजूर अब रोने भी ना दोगे क्या?
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंग़र आंसू आंख में आए तो खुद पोछना, दूसरे पोछने आए तो सौदा करेंगे...
हटाएंजय हिन्द
शुक्रिया अनीता सैनी जी...
जवाब देंहटाएंजय हिन्द
वाह! बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंसमयपरक विचारोत्तेजक लेख।
जवाब देंहटाएंसटीक सार्थक।
उपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंउपयोगी और ज्ञानवर्धक आलेख।
जवाब देंहटाएंबिलकुल वही होगा ,
जवाब देंहटाएंव्यापारियों ने उनका साथ दिया था , आप चाहते हो सरकार बदले में कुछ न करे !
किसान बिसान से क्या , उनके पास कोई कमी नहीं , कभी भी जाओगे भूखे बापस नहीं आ सकते उनके घर से , वे इतने संपन्न हैं , रोटी दाल खूब है उनके पास और उन्हें क्या चाहिए !
इलेक्शन में भी काम आते हैं जब चाहेंगे धमका के अंगूठा लगवा लेंगे !
ऐसे लेख न छापा करो महाराज ,
ढंग से रहना सीखो !
उपयोगी पोस्ट है। https://www.indiasprint.com
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