भारत बनाम
न्यूज़ीलैंड, सेमीफाइनल
18 जून 1983, टनब्रिज, वेल्स
भारत बनाम
ज़िम्बाब्वे, ग्रुप मैच
इन दोनों
तारीखों के बीच 36 साल का वक्त गुज़र चुका है. लेकिन
ये दोनों तारीख़ें गवाह है भारतीय क्रिकेट के अहम पड़ावों की. भारतीय क्रिकेट की जब
भी बात की जाएगी तो इन दोनों मैचों को ज़रूर याद किया जाएगा. इन दोनों मैचों में ही भारत की
पारी की शुरुआत बेहद ख़राब हुई. हाल में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ खेले गए मैच में
भारत 5 रन पर तीन विकेट गंवा चुका था. 24 रन पर चौथा विकेट गिरा. वहीं 36 साल पहले ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़
मैच में भारत 17 रन पर पांच विकेट गंवा चुका था.
न्यूज़ीलैंड
के ख़िलाफ़ इस मैच में रविंद्र जडेजा और एमएस धोनी के अथक प्रयासों के बावजूद हम
लक्ष्य तक नहीं पहुंच सके और मैच आखिरकार 18 रन से हार कर वर्ल्ड कप से बाहर हो गए. लेकिन 36 साल पहले ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़
मैच में भारत की ओर से अकेले दम पर एक शख्स ने हार के जबड़े से जीत खींची थी और वो
थे भारत के तत्कालीन युवा कप्तान कपिल देव.
इंग्लैंड
के मानचेस्टर में गुरुवार (10 जुलाई) को वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में न्यूज़ीलैंड से हारने के बाद
सवा अरब से ज़्यादा भारतीयों के दिल टूट गए. उनका सपना
टूट गया कि विराट कोहली को भी 36 साल पहले जैसे कपिल देव
की तरह लॉर्ड्स की गैलरी से वर्ल्ड कप ट्रॉफी के साथ दर्शकों का अभिवादन करते
देखें. कपिल देव ने तब कैसे नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया था, इस कहानी पर आने से पहले थोड़ी बात भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच हुए हालिया
सेमीफाइनल की कर ली जाए.
बारिश की
वजह से ये वनडे सेमीफाइनल दो दिन तक चला. न्यूज़ीलैंड ने 50 ओवर खेलकर 8 विकेट पर 239 रन का स्कोर खड़ा किया. लेकिन भारत की
शुरुआत इतनी ख़राब रही कि आखिर तक नहीं संभल सका. हालत ये थी कि स्कोरबोर्ड पर 5
रन ही टंगे थे कि रोहित शर्मा, केएल राहुल और कप्तान विराट कोहली तीनों ही 1-1-1 रन बना
कर पवेलियन लौट चुके थे.
स्कोर 24
तक ही पहुंचा कि दिनेश कार्तिक भी 6 के निजी स्कोर पर कैच थमा कर चलते बने. अब
विकेट पर ऋषभ पंत का स्थान देने आए आलराउंडर हार्दिक पांड्या. दोनों ने स्कोर 71
रन पहुंचाया. इसी स्कोर पर पंत (32) का विकेट गिरा. स्कोर 71 रन पर 5 विकेट.
पांड्या
का साथ देने अब आए अनुभवी और ‘मिस्टर फिनिशर’ की पहचान रखने वाले विकेटकीपर
महेंद्र सिंह धोनी. धोनी और पांड्या ने स्कोर 92 तक पहुंचाया कि पांड्या भी गैर
जिम्मेदाराना शॉट खेल कर 32 के निजी स्कोर पर आउट. स्कोर 92 रन पर 6 विकेट.
ऐसे में
रविंद्र जडेजा पवेलियन से निकल कर धोनी का साथ देने के लिए पहुंचे. बैटिंग की
पहचान रखने वाली ये आखिरी जोड़ी क्रीज़ पर थी. इसके बाद बोलर्स ही पवेलियन में बचे
थे. लगने लगा कि भारत की पारी अब लंबी
नहीं चलेगी. लेकिन मिस्टर कूल धोनी और जोशीले
सर जडेजा मैदान में थे तो तब भी भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की आस बाक़ी थी.
धोनी ने
संभल संभल कर और जडेजा को समझाते हुए पारी को बढ़ाना शुरू किया. जडेजा ने फिर ताबड़तोड़
न्यूज़ीलैंड की बोलिंग पर प्रहार करने भी शुरू किए. भारतीय फैंस को लगा कि चमत्कार हो सकता है और भारत
फाइनल में पहुंच सकता है.
स्कोर 208
पर पहुंचा कि जडेजा 77 रन की शानदार पारी (59 गेंद, 4 चौके, 4
छक्के) खेलने के बाद न्यूज़ीलैंड के कप्तान विलियमसन को कैच थमा कर आउट हो गए. ये
48वें ओवर की 5 वीं गेंद थी. इसके बाद 13 गेंद ही बची थी. अब भी भारत से जीत 32 रन
दूर थी. सबको उम्मीद थी कि धोनी का पराक्रम ही अब भारत के लिए मैच जिता सकता है.
लेकिन भारत का स्कोर 216 रन तक ही पहुंचा कि गुप्टिल के शानदार थ्रो ने धोनी को रन
आउट कर दिया. धोनी ने 72 गेंद खेल कर एक चौके और एक छक्के के साथ 50 रन बनाए. धोनी
के आउट होते ही भारत की पारी का अंत होने में देर नहीं लगी. 49.3 ओवर में भारत 221
रन बनाकर आल आउट हो गया. साथ ही 18 रन से हार कर फाइनल की जगह घर वापसी का टिकट
कटा बैठा.
ये तो रही
मौजूदा वर्ल्ड कप की बात. आइए अब चलते हैं अतीत में झांकते हुए 36 साल पहले
इंग्लैंड में ही हुए तीसरे वर्ल्ड कप की ओर. ये वो दौर था जब वेस्ट इंडीज़ को
क्रिकेट में चुनौती देने वाला कोई नहीं था. 1975 और 1979 में हुए पहले और दूसरे
वर्ल्ड कप में वेस्ट इंडीज़ ने ही ट्रॉफी पर विजेता के तौर पर अपना नाम लिखाया था.
इन दोनों वर्ल्ड कप में भारत का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और ऐसी कोई बात नहीं जिसे
भारतीय क्रिकेट फैंस याद रख पाते.
1983 में
तीसरे वर्ल्ड कप में खेलने के लिए भारतीय टीम इंग्लैंड पहुंची तो सभी उन्हें
सिर्फ़ सैलानियों की तरह ले रहे थे. टूर्नामेंट शुरू होने से पहले किसी को उम्मीद
नहीं थी कि भारत इसमें कोई विशेष प्रदर्शन दिखा सके. लेकिन तब 24 वर्षीय कप्तान
कपिल देव के दिल में कुछ और ही चल रहा था. तब शक्तिशाली वेस्ट इंडीज़ को भारत ने
ग्रुप मैच में हराया तो उम्मीद जगी कि टीम इंडिया सैलानियों की तरह नहीं बल्कि सच
में क्रिकेट खेलने आई है.
उस
टूर्नामेंट में ज़िम्बाब्वे की नौसीखिया टीम भी हिस्सा ले रही थी. सब को उम्मीद थी
कि ज़िम्बाब्वे को भारत आसानी से मात दे देगा और सेमीफाइनल की ओर कदम बढ़ाएगा. लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर
था. 18 जून 1983 को टनब्रिज वेल्स में भारत और ज़िम्बाब्वे एक दूसरे के ख़िलाफ़
मैदान में उतरे.
भारत ने
पहले बैटिंग करना शुरू किया. सुनील गावस्कर और कृष्णमाचारी श्रीकांत ओपनिंग करने
आए. गावस्कर भारत की पारी की दूसरी ही गेंद पर बिना खाते खोले एलबीडब्लू आउट होकर
पवेलियन वापस. स्कोर शून्य पर 1 विकेट. तब मोहिंदर अमरनाथ श्रीकांत का साथ देने आए. स्कोर 6
तक पहुंचा, श्रीकांत भी अपना खाता खोले बिना
कैच थमा कर आउट...स्कोर- 6 रन पर 2 विकेट. इसी स्कोर पर ही अमरनाथ भी 5 रन बनाकर
कैच आउट. स्कोर- 6 रन पर 3 विकेट.
भारत के
स्कोर में 3 रन और जुड़े और संदीप पाटिल भी 1 रन के निजी स्कोर पर चलते बने. स्कोर
9 रन पर 4 विकेट. संयोग की बात है कि भारत की पारी शुरू होने के कुछ ही देर बाद
कपिल देव नहाने चले गए थे. उन्हें बॉथरूम के बाहर से ही बताया जा रहा था कि ये भी
आउट, वो भी आउट. कपिल हड़बड़ाहट में
बॉथरूम से निकले और जल्दी से पैड्स पहनकर क्रीज़ पर पहुंचे.
भारत का
सारा टॉप आर्डर पवेलियन वापस हो चुका था. सिर्फ खालिस बैट्समैन की पहचान रखने वाले
यशपाल शर्मा क्रीज़ पर कपिल के साथ थे. 17 रन तक स्कोर पहुंचा तो यशपाल भी 9 के
निजी स्कोर पर पवेलियन लौट गए. 17 रन पर पांच विकेट के स्कोर के साथ लगने लगा कि
भारत का वर्ल्ड कप में आगे बढ़ने का रास्ता यहीं ख़त्म हो जाएगा. साथ ही ये ख़तरा
भी कहीं भारत न्यूनतम स्कोर का रिकॉर्ड ही ना बना दे.
लेकिन मैच
के इसी मोड़ से शुरू हुई वो कहानी जिसे वर्ल्ड कप क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी वन
मैन फाइट कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं...
भारत के
17 रन के स्कोर पर कपिल के साथ दूसरे छोर पर साथ देने के लिए अब खड़े थे रोज़र
बिन्नी. कपिल ने जहां अपने शाट्स लेना शुरू किया वहीं बिन्नी संभल कर खेलते हुए
साथ दे रहे थे. दोनों ने 60 रन साथ जोड़े. लेकिन 77 के स्कोर पर रोज़र बिन्नी भी
22 के निजी स्कोर पर आउट हो गए. स्कोर 77 रन पर 6 विकेट.
बिन्नी का
स्थान लेने आए रवि शास्त्री. लेकिन ये क्या 1 रन ही और जुड़ा कि शास्त्री भी 1 रन
के निजी स्कोर पर आउट. स्कोर अब 78 रन पर 7 विकेट.
अब ये
चिंता होने लगी कि भारत 100 रन का स्कोर पार करेगा या नहीं. लेकिन कपिल देव इस सब
से अविचलित वन मैन आर्मी की तरह मैदान में डटे थे. अब मदन लाल कप्तान का साथ देने
आए. पवेलियन में अब विकेट कीपर सैयद किरमानी और बोलर बलविंदर सिंह संधू ही बचे थे.
कपिल और
मदन स्कोर को 110 तक ले गए. लेकिन मदन भी 17 के निजी स्कोर पर कैच थमा कर
चलते बने. स्कोर 110 पर 8 विकेट. इसके बाद विकेटकीपर किरमानी मैदान में उतरे.
इसके बाद
जो हुआ वो सब कुछ सपने सरीखा ही था. कपिल शाट्स भी लेते रहे और साथ ही किरमानी को
शील्ड भी करते रहे. जब भारत की पारी के 60 ओवर ख़त्म हुए तो बोर्ड पर भारत का
स्कोर था. 8 विकेट पर 266 रन. जैसे भारत की पारी शुरू हुई थी तो इतने स्कोर तक
पहुंच पाने की किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी.
भारत की
पारी के 60 ओवर पूरे होने पर कपिल देव का निजी स्कोर था- 175 रन नॉट आउट. इसके लिए
उन्होंने कुल 138 गेंद (23 ओवर) खेलीं. कपिल ने इस पारी में 16 चौके और 6 छक्के
लगाए. दूसरे छोर पर कपिल देव का शानदार
साथ देने वाले किरमानी 56 गेंद पर 24 रन बनाकर नॉट आउट पवेलियन लौटे.
फिर भारत
ने ज़िम्बाब्वे का 235 रन पर ही 57 ओवर में पुलिंदा बांध कर मैच 31 रन से जीत लिया
और सेमीफाइनल में पहुंचने का रास्ता आसान किया. बोलिंग में जहां कपिल ने बेस्ट
इकॉनमी के साथ 11 ओवर में सिर्फ़ 32 रन खर्च कर एक विकेट लिया वहीं फील्डिंग में
भी दो कैच लिए.
कपिल देव
क्यों कपिल देव थे, उनकी इस ऐतिहासिक पारी ने पूरी दुनिया को दिखा दिया.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
शानदार
जवाब देंहटाएंAfsos ki is match ki recording upalabdh hi nahi hai
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