परिंदे भी नही रहते पराये आशियाने में,
हमने जिंदगी गुजार दी किराये के मकानों में...
हर इनसान की ख्वाहिश होती है उसके सिर पर खुद की छत हो...महानगरीय
जीवन में ज़मीन के टुकड़े की चाहत पूरी करने के लिए आप का धनकुबेर होना ज़रूरी है...अगर
ऐसा नहीं है तो आप पूरी जमापूंजी झोंक कर, बैंकों से लोन का जोड़तोड़ कर बहुमंजिली
इमारतों में टू या थ्री बीएचके फ्लैट अपने परिवार के लिए जुटा लेते हैं तो आप बहुत
खुशकिस्मत हैं...
इसी सिलसिले में बात दिल्ली से सटे नोएडा (न्यू ओखला इंडस्ट्रियल
डवलपमेंट अथॉरिटी) की...नोएडा यानि यूपी का विकास की दौड़ में सबसे चमचमाता
शहर...कहने को ही ये शहर यूपी का है...लेकिन एक्सप्रेसवे, भव्य मॉल्स आदि में
दिल्ली को भी मात देता है...मेट्रो की वजह से नोएडा की पूरे एनसीआर में आसान
कनेक्टिविटी है...सत्तर के दशक के मध्य में नोएडा को बसाने की कल्पना की गई थी तो
जैसे कि नाम से जाहिर है यूपी सरकार इसे सूबे का अग्रणी इंडस्ट्रियल हब बनाना चाहती थी...1975
में नोएडा की स्थापना के बाद से यमुना में बहुत सारा पानी बह चुका है...बीते 42
साल में इंडस्ट्रियल हब का मूल विचार तो कहीं पीछे रह गया, हां रिहाइश के लिए नोएडा
लोगों की पहली पसंद बन गया...यही वजह है कि लीज़ पर होने के बावजूद ज़मीन के दाम जिस
तरह नोएडा में बढ़े, वैसी मिसाल देश के चंद शहरों में ही मिलती है...
कई साल पहले तक नोएडा अथॉरिटी की ओर से खुद प्लॉट्स और फ्लैट्स के लिए
लॉटरी के जरिए आवंटन होता था...वो आवंटन भी धांधली और भाई-भतीजावाद से अछूता नहीं
होता था...लेकिन तब अच्छी किस्मत वाले आम आदमियों के नाम भी फ्लैट्स आदि निकल
ही आते थे....नोएडा अथॉरिटी की ओर से आवासीय योजनाएं लाने का सिलसिला पिछले कई
वर्षों से बंद है...इक्कीसवीं सदी शुरू होने के साथ ही प्राइवेट बिल्डर्स की गिद्ध नज़र नोएडा के आसपास खाली किंतु बेशकीमती ज़मीन पर पड़नी शुरू हो गई थी....भ्रष्ट
अधिकारियों का साथ इन्हें मिला तो इन्होंने अपने पंख आसमान तक फैलाना शुरू कर
दिया...फिर भला यूपी सरकार में बैठे बड़े नेता बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे
कैसे रहते...लोगों के सामने विकास का झुनझुना बजाते हुए एक्सप्रेसवे जैसी योजनाओं
के ख़ाक़े खींचे जाने लगे...लेकिन असली मकसद था प्राइवेट बिल्डर्स और प्लानर्स के
साथ मिलकर एक्सप्रेसवे के आसपास की ज़मीन पर कब्ज़ा जमाना...
इस सदी के पहले दशक में यूपी की पूर्ववर्ती सरकारोंं के रहते बिल्डर्स के लिए ऐसी योजनाएं लाई गईं जिसमें बहुत सस्ते दामों पर उन्हें ज़मीन आवंटित की गई जिससे कि वो रेसीडेंशियल प्रोजेक्ट्स ला कर अपनी जेबें भर सकें...दिलचस्प बात ये है कि इन बिल्डर्स को ज़मीन इस आसान शर्त पर आवंटित की गई कि वो 8-10 साल में कीमत का भुगतान सुविधाजनक किस्तों में कर सकते हैं...ऐसी योजनाएं तो प्राइवेट बिल्डर्स के हाथ सोने की ख़ान लगने जैसा था...हींग लगे ना फिटकरी वाली तर्ज पर इन बिल्डर्स ने ज़मीन का आवंटन अपने नाम होते ही अख़बारों और टीवी में रिहाइशी योजनाओं के लिए लुभावने विज्ञापन देना शुरू कर दिया...नोएडा में जहां घर खरीदना आम आदमी के लिए बनाना मुश्किल था, उन्हें सब्ज़बाग़ दिखाए जाने लगे कि उनके सपनों का आशियाना 2-3 साल में बनाकर उसकी चाबी उनके हाथ में सौंप दी जाएगी...
यहां प्राइवेट बिल्डर्स पर कोई चेक एंड बैलेंस नहीं था...सरकार से
कौड़ियों के दाम मिली ज़मीन के लिए रिहाइशी फ्लैट्स
के नाम पर लोगों से मोटा पैसा
हाथोंहाथ वसूला जाने लगा...बैंकों के साथ मिलकर इस तरह की स्कीम्स लाई गईं कि लोग
बैंकों के कर्जदार बनकर इन बिल्डर्स की तिजोरियां भरने लगें...सिर्फ इस आस में कि
जल्द ही उनका अपना आशियाना नोएडा में होगा...
2007-2008 के आसपास जेपी ग्रुप जिसे सबसे ज्यादा ज़मीन आवंटित हुई थी
उसने नोएडा से लेकर आगरा तक रिहाइशी योजनाओं की झड़ी लगा दी...इनमें सबसे ड्रीम
प्रोजेक्ट था विशटाउन नोएडा...ये सपनों का टाउन नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे के
दाईं तरफ के अधिकतर हिस्से पर बनना था इसलिए घर के ख्वाहिशमंदों ने आंख-मूंद कर इस
पर दांव लगाया और अपनी सब जमापूंजी लगाकर यहां फ्लैट बुक करा लिए...
2008 दिसंबर
में फ्लैट बुक करने वालों से बाकायदा अलॉटमेंट लैटर में जेपी ग्रुप ने वादा किया
था कि 36 महीने में उनके फ्लैट का पजेशन उन्हें सौंप दिया जाएगा...जो फ्लैट बुक
करा रहे थे वो जेपी ग्रीन्स यानि जेपी ग्रुप का नाम देख रहे थे...उन्हें क्या पता
था कि यही ग्रुप आगे चलकर जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (JAL) और जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (JIL) के चक्रव्यूह में उन्हें उलझा देगा...इस जाल और
जिल के चक्कर ने 32,000 निवेशकों को आज अनिश्चितता के भंवर में फंसा दिया है...JAL
से लोगों ने
कॉन्ट्रेक्ट किया था लेकिन पैसे का भुगतान JIL ले रही थी...JAL आज भी मोटा प्रॉफिट कमाने वाली कंपनी
है...लेकिन JIL आईडीबीआई बैंक का 526 करोड़
का कर्ज़ नहीं चुका पाने की वजह से आज दीवालिया होने के कगार पर है...
इसी मामले (जेपी इन्फ्राटेक इनसॉल्वंसी केस) में नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) की ओर से इन्सॉल्वंसी रेजॉलुशन प्रफेशनल (आईआरपी) के तौर पर चार्टेड अकाउंटेंट अनुज जैन को नियुक्त किया गया है...
इसी मामले (जेपी इन्फ्राटेक इनसॉल्वंसी केस) में नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) की ओर से इन्सॉल्वंसी रेजॉलुशन प्रफेशनल (आईआरपी) के तौर पर चार्टेड अकाउंटेंट अनुज जैन को नियुक्त किया गया है...
10-10 साल इंतज़ार करने के
बाद भी जेपी में बुकिंग कराने वालों के लिए फ्लैट मृग-मरीचिका बने हुए हैं...ऐसी
स्थिति ला दी गई है कि उन्हें 40 लाख से एक करोड़ का भुगतान करने के बावजूद अब
क्लेम करना पड़ रहा है...आईआरपी के पास उन्हें 24 अगस्त तक अपना दावा भेजना है...सबूत
देने पड़ रहे हैं कि कब कब उन्होंने जेपी को भुगतान किया...उसके बाद भी अनिश्चितता
का माहौल है कि कभी उन्हें अपने फ्लैट की चाबी मिलेगी भी या नहीं....इन होमबॉयर्स
को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है...एक तरफ किराए के मकानों में रहने की वजह
से उनकी जेबों में बड़ा सूराख हो रहा है, दूसरी ओर उन्हें बैंक से लिए लोन की मोटी
ईएमआई भी हर महीने बदस्तूर चुकानी पड़ रही है...
यहां हैरानी की बात है कि बैंकों से लोगों ने
जितना कर्ज लिया उसका अधिकतर पैसा 2-3 साल में ही बिल्डर कंपनी के पास पहुंच गया
था...कहने को ये कर्ज कंस्ट्रक्शन लिंक्ड था...यानि जैसे जैसे कंस्ट्रक्शन होता
वैसे वैसे ही बैंक लोन के पैसे का भुगतान बिल्डर को करते...यहां भी आंखों में धूल
झोंकने वाला फॉर्मूला अपनाया गया...ये मिलीभगत के बिना संभव नहीं था...ये इस तरह
था बहुमंजिली इमारत के फ्लोर वाइज़ स्लैब डलने के साथ-साथ बिल्डर को भुगतान
किस्तों के तौर पर मिलता रहे...अब पिलर डालकर इमारतों का ढांचा तो तय 14-16 मंजिल
तक कर दिया गया...इस तरह सारा पैसा झटक लिया गया...लेकिन उसके बाद इन प्रोजेक्ट्स
के निर्माण की रफ्तार इतनी सुस्त कर दी गई कि कछुआ भी शरमा जाए...इसका अंदाज इसी
बात से लगाइए जिन लोगों को 2012 में फ्लैट देने का वादा किया गया था उनके टॉवर अब
भी आधे-अधूरे ही खड़े हैं और वो उन्हें देख देख कर खून के आंसू रो रहे हैं...
सवाल ये कि जब कंस्ट्रक्शन लिंक्ड प्लान थे तो
बैंकों ने भी कैसे आंख मूंद कर लोगों के लोन की रकम बिना कोई आपत्ति किए बिल्डर के
खाते तक पहुंचा दी...अब ये संयोग ही है इस ग्रुप को होम लोन सैंक्शन करने में
अग्रणी रहने वाले एक बैंक ने अपनी बहुत ही भव्य और आलीशान बिल्डिंग जेपी से ही
जमीन खरीद कर उसी के ऑफिस के बगल में खड़ी कर दी है...
जेपी ग्रुप के होमबायर्स ने शनिवार को अपनी
व्यथा केंद्र सरकार तक पहुंचाने के लिए जंतर मंतर पहुंच कर प्रदर्शन किया...आगे
बढ़ने से रोकने के लिए उनकी गिरफ्तारी की खबर भी आई...दो दिन पहले ही देश के वित्त
मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार की हमदर्दी होमबायर्स के साथ हैं और जिन्होंने
पैसा दिया है उन्हें उनके फ्लैट्स मिलने ही चाहिए...लेकिन क्या इसी से सरकार की
जिम्मेदारी खत्म हो जाती है...ऐसा क्यो नहीं होता कि सरकार जेपी ग्रुप के मुनाफा
कमाने वाली कंपनियों पर रिसीवर बैठा कर और अन्य परिसंपत्तियों को बेच कर जेपी
इंफ्राटेक लिमिटेड के अधूरे प्रोजेक्ट्स को युद्ध स्तर पर पूरा कराती...जिससे कि
होमबायर्स के साथ इनसाफ हो सके...साथ ही बैंकों, नोएडा अथॉरिटी के अफसरों समेत उन कथित नेताओं को भी क़ानून के कटघरे में लाना चाहिए जिन्होंने इस बंदरबांट में बिल्डर का साथ दिया....
नोएडा के मौजूदा विधायक पंकज सिंह है जो केंद्रीय गृह
मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे भी हैं...नोएडा में जेपी ग्रुप के अलावा और भी कई
बिल्डर्स हैं, जिनके पास पैसे लगाकर कई होमबायर्स फंसे हुए हैं...उन्हें भी अपने
फ्लैट दूर दूर तक नहीं मिलते दिख रहे...ऐसे होमबायर्स को लेकर पंकज सिंह यूपी के
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिले...उन्होंने भी होमबॉयर्स के साथ नाइंसाफ़ी
नहीं होने देने की बात कही...यूपी रेरा की वेबसाइट पर जाकर ऐसे बॉयर्स अपनी शिकायत
बिल्डर्स या प्रोजेक्ट के खिलाफ कर सकते हैं...लेकिन इस शिकायत के लिए भी बायर्स
को एक हजार रुपए का भुगतान करना ज़रूरी है...
जेपी के होमबायर्स आशंकित हैं कि कहीं साठगांठ से कोई लंबा खेल तो नहीं खेला जा रहा...जेवर में एयरपोर्ट के निर्माण को
कुछ ही महीने पहले हरी झंडी मिली है...जाहिर है इस एयरपोर्ट के बन जाने के बाद
आसपास की ज़मीन के दाम आसमान छूने लगेंगे...कहीं इसी वजह से दस-दस साल से इंतज़ार
करने वाले लोगों को उनके फ्लैट्स से महरूम करने के लिए कहीं साज़िश तो नहीं रची जा
रही...ऐसी सूरत बना दी जाए कि लोग जितने पैसे का निवेश किया है, उसी को वापस पाने
में ही अपनी भलाई समझने लगें...ऐसे में उनके प्लैट्स को नए सिरे से मौजूदा बाजार
भाव पर बेचकर फिर वारे न्यारे किए जाएं...
एक और संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता...वो है कि फ्लैट देने में
सात-आठ साल की होने वाली देरी के लिए पेनल्टी के तौर पर ही बिल्डर को बहुत मोटी
रकम का भुगतान निवेशकों को करना पड़ता...जेपी फ्लैट बुक कराने वालों से भुगतान में
देरी होने पर 18 फीसदी वार्षिक की दर से ब्याज वसूलता था...वहीं जेपी ने अपने
अलॉटमेंट लेटर में साफ कर रखा है कि फ्लैट का पजेशन मिलने में देरी पर 5 रुपये
प्रति स्क्वॉयर फुट हर महीने की दर से ही वो पेनल्टी देगा...यानि आपका फ्लैट 1000
स्क्वॉयर फुट का है तो आपको विलंब के हर महीने पर 5000 रुपए की पेनल्टी ही बिल्डर
से मिलेगी...लेकिन हाल फिलहाल में कोर्ट की तरफ से अन्य बिल्डर्स के मामलों में
ऐसे फैसले आए हैं कि बिल्डर जितना ब्याज पेमेंट की देरी पर होमबायर से वसूलता है
उसी हिसाब से वो पजेशन में देरी पर होमबायर को अपनी तरफ से भी पेनल्टी देगा...ऐसे
में होमबायर्स ने जेपी के खिलाफ भी कोर्ट की राह पकड़ी तो उसे पेनल्टी के तौर पर
खासी रकम का भुगतान करना पड़ सकता है....कहीं इसी से बचने के लिए तो सारा प्रपंच नहीं
रचा जा रहा...
लेख की शुरुआत शेर से की तो खत्म भी बशीर बद्र
साहब की चार लाइनों से...
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम
तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में...
फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती,
कौन सांप रहता है उसके आशियाने में...
फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती,
कौन सांप रहता है उसके आशियाने में...
(यहां बस्तियां जलाने
वाला नहीं, बस्तियां बसाने के नाम पर धंधा करने वाला ही लोगों को ख़ून के आंसू
रूला रहा है)
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
यह बेहद डरावनी और भयावह स्थिति है, सरकार को लोगों को विश्वास दिलाना चाहिये, और इसे जल्दी से जल्दी सुलझाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंशानदार सर जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा
जवाब देंहटाएंयह व्यवस्था बदलनी चाहिये -जनता के साथ अन्याय को दंडित करना भी ज़रूरी है.
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