मूलत: प्रकाशित- हिन्दुस्तान, 24 अप्रैल 2014
आधे से ज्यादा आम चुनाव संपन्न हो जाने के बाद कई पुराने सवाल फिर सिर उठा रहे हैं। क्या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से मतदान फुलप्रूफ हैं? हालांकि चुनाव आयोग कई मौकों पर साफ कर चुका है कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती? दिल्ली हाईकोर्ट ईवीएम की उपयोगिता को मानते हुए इन्हें देश के चुनाव-तंत्र का अभिन्न हिस्सा बता चुका है। सभी राजनीतिक दल इसे स्वीकार भी कर चुके हैं। मतदाताओं को भी इससे कोई दिक्कत नहीं। बैलेट पेपर के बेतहाशा खर्च से भी छुटकारा मिला है। नतीजे भी तेजी से मिलते हैं। यह सही है कि इस बार लोकसभा चुनाव में ईवीएम के मॉक टेस्ट के दौरान कुछ मशीनों में गड़बड़ी पकड़ी गई। कुछ जगह मतदान के समय भी शिकायतें मिलीं। चुनाव आयोग के लिए भौगोलिक रूप से इतने विशाल देश में निष्पक्ष और साफ-सुथरे चुनाव कराना कितनी बड़ी चुनौती है, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
जहां मतदान के लिए लाखों ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहां कुछेक मशीनों में तकनीकी गड़बड़ी मिलना स्वाभाविक बात है। हां, अगर ईवीएम को लेकर सवाल उठाया ही जाना है, तो वो यह है कि कैसे इससे वोटिंग को और बेहतर बनाया जाए। बेशक, ईवीएम व्यवस्था जबसे शुरू हुई है, मतदान की गोपनीयता को लेकर जरूर कुछ समझौता करना पड़ा है। जब बैलेट पेपर से मतदान होता था, तो गिनती के वक्त पहले सभी मतपत्रों को मिक्स किया जाता था। चुनाव आचार संहिता ऐक्ट-1961 के नियम 59 ए के तहत ऐसा करना जरूरी है। मतपत्रों को इसलिए मिलाया जाता था कि किसी को अंदाज न हो कि किस पोलिंग बूथ से किस उम्मीदवार को कितने मत मिले। ईवीएम आने के बाद मिक्सिंग की परंपरा खत्म हो गई। हालांकि विशेषज्ञों ने अब इसका भी समाधान निकाल लिया है, जिसमें ईवीएम को एक केबल से जोड़ दिया जाएगा। अभी हर पोलिंग बूथ के लिए ईवीएम के मतों की अलग-अलग गिनती होती है। पिछले अक्तूबर में अन्ना हजारे ने मांग की थी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में टोटलाइजर के साथ ही ईवीएम से गिनती की व्यवस्था हो। लेकिन इस बार यह नहीं किया गया।
ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका को पूरी तरह खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्तूबर में चुनाव आयोग से पर्ची की व्यवस्था (वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) करने के लिए कहा। इसमें ईवीएम से वोट देने के बाद वोटर को मशीन में एक पर्ची दिखती है, जिस पर बटन दबाए गए उम्मीदवार का नाम, नंबर और चुनाव चिन्ह दिखता है। यह पर्ची एक बॉक्स में गिर जाती है। गिनती को लेकर कोई विवाद होता है, तो इन पर्चियों को गिना जा सकता है। इस बार चुने हुए मतदान केंद्रों पर इसका इस्तेमाल भी हो रहा है। तकनीक की समस्या का समाधान भी ऐसी तकनीक से ही निकलेगा, इसके कारण पुरानी व्यवस्था पर लौटने का कोई अर्थ नहीं।
आधे से ज्यादा आम चुनाव संपन्न हो जाने के बाद कई पुराने सवाल फिर सिर उठा रहे हैं। क्या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से मतदान फुलप्रूफ हैं? हालांकि चुनाव आयोग कई मौकों पर साफ कर चुका है कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती? दिल्ली हाईकोर्ट ईवीएम की उपयोगिता को मानते हुए इन्हें देश के चुनाव-तंत्र का अभिन्न हिस्सा बता चुका है। सभी राजनीतिक दल इसे स्वीकार भी कर चुके हैं। मतदाताओं को भी इससे कोई दिक्कत नहीं। बैलेट पेपर के बेतहाशा खर्च से भी छुटकारा मिला है। नतीजे भी तेजी से मिलते हैं। यह सही है कि इस बार लोकसभा चुनाव में ईवीएम के मॉक टेस्ट के दौरान कुछ मशीनों में गड़बड़ी पकड़ी गई। कुछ जगह मतदान के समय भी शिकायतें मिलीं। चुनाव आयोग के लिए भौगोलिक रूप से इतने विशाल देश में निष्पक्ष और साफ-सुथरे चुनाव कराना कितनी बड़ी चुनौती है, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
जहां मतदान के लिए लाखों ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहां कुछेक मशीनों में तकनीकी गड़बड़ी मिलना स्वाभाविक बात है। हां, अगर ईवीएम को लेकर सवाल उठाया ही जाना है, तो वो यह है कि कैसे इससे वोटिंग को और बेहतर बनाया जाए। बेशक, ईवीएम व्यवस्था जबसे शुरू हुई है, मतदान की गोपनीयता को लेकर जरूर कुछ समझौता करना पड़ा है। जब बैलेट पेपर से मतदान होता था, तो गिनती के वक्त पहले सभी मतपत्रों को मिक्स किया जाता था। चुनाव आचार संहिता ऐक्ट-1961 के नियम 59 ए के तहत ऐसा करना जरूरी है। मतपत्रों को इसलिए मिलाया जाता था कि किसी को अंदाज न हो कि किस पोलिंग बूथ से किस उम्मीदवार को कितने मत मिले। ईवीएम आने के बाद मिक्सिंग की परंपरा खत्म हो गई। हालांकि विशेषज्ञों ने अब इसका भी समाधान निकाल लिया है, जिसमें ईवीएम को एक केबल से जोड़ दिया जाएगा। अभी हर पोलिंग बूथ के लिए ईवीएम के मतों की अलग-अलग गिनती होती है। पिछले अक्तूबर में अन्ना हजारे ने मांग की थी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में टोटलाइजर के साथ ही ईवीएम से गिनती की व्यवस्था हो। लेकिन इस बार यह नहीं किया गया।
ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका को पूरी तरह खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्तूबर में चुनाव आयोग से पर्ची की व्यवस्था (वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) करने के लिए कहा। इसमें ईवीएम से वोट देने के बाद वोटर को मशीन में एक पर्ची दिखती है, जिस पर बटन दबाए गए उम्मीदवार का नाम, नंबर और चुनाव चिन्ह दिखता है। यह पर्ची एक बॉक्स में गिर जाती है। गिनती को लेकर कोई विवाद होता है, तो इन पर्चियों को गिना जा सकता है। इस बार चुने हुए मतदान केंद्रों पर इसका इस्तेमाल भी हो रहा है। तकनीक की समस्या का समाधान भी ऐसी तकनीक से ही निकलेगा, इसके कारण पुरानी व्यवस्था पर लौटने का कोई अर्थ नहीं।
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