बिन फेरे हम तेरे...यानि लिव इन रिलेशनशिप...रिश्तों के नए मायने...समाज मान्यता दे या ना दे लेकिन ये है बदले ज़माने की बदली हक़ीक़त...सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप ना अपराध है और ना ही पाप...सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा है कि शादी करना या नहीं करना, किसी के साथ इंटीमेट संबंध रखना ये किसी का नितांत निजी मामला है और उसे ऐसा करने की छूट है...
ये बात अलग है कि ऐसे रिश्ते को हमारे देश में समाज की मान्यता प्राप्त नहीं
है...सुप्रीम कोर्ट ने 18 साल लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद पुरुष से संबंध तोड़ने
वाली एक महिला के मामले पर फैसला देते वक्त ये सब कहा...ये महिला अपने पूर्व
पार्टनर से डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत गुज़ारा भत्ता चाहती थीं...सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि इस महिला के मामले में डीवी एक्ट लागू नहीं हो सकता...क्योंकि इस
महिला ने ये जानते हुए भी कि उसका पार्टनर पहले से शादीशुदा है, उसके साथ लिव इन
रिलेशनशिप में रहना कबूल किया...हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही माना कि लिव इन
रिलेशनशिप के टूटने पर सबसे ज़्यादा
महिलाओं और इस संबंध से जन्मे बच्चों को भुगतना पड़ता है...सुप्रीम कोर्ट ने इनके
हितों की रक्षा के लिए संसद से क़ानून में संशोधन की भी अपील की...इन सब सवालों पर
29 नवंबर को जानो दुनिया न्यूज़ चैनल पर आज का मुद्दा कार्यक्रम में बहस
हुई...इसमें मेरे साथ समाजशास्त्री कुसुम कौल और वकील प्रिंस लेनिन भी शामिल
रहे...देखिए इस लिंक पर...
बदलता विश्व, बदलती मान्यातायें, समाज अपना साम्य ढूढ़ ही लेगा।
जवाब देंहटाएंमेरी समझ में ही नहीं आता कि ऐसे रिश्ते को मान्यता क्यों दी जाये??? मेरी समझ से ऊपर का मामला है ये भाई... :(
जवाब देंहटाएंवधू बिन शादी , शादी बिन प्यार
जवाब देंहटाएंबिन शादी के , लिव इन यार !
इन व्यवहार ने कर दी , संस्कार की ऐसी की तैसी !