इसे पढ़िए, गले में कुछ फंसा लगेगा...खुशदीप




ये ऑटो वालों की कौम ही ऐसी है...बेईमानी इऩकी रग़-रग़ में बसी है...मीटर से कभी चलते नहीं...न ही थोड़ी दूरी के लिए जाने को राजी होते है...दिल्ली के रास्तों से अनजान लोगों से औने-पौने दाम वसूलते हैं...और कभी कोई विदेशी नज़र आ जाता है तो उसकी ज़ेब पर डाका डालने से भी बाज़ नहीं आते...बेशक दुनिया में देश का नाम कितना भी ख़राब क्यों न हो...

अजी, ये ऑटो वाले ढंग से अपना काम करते तो दिल्ली में दामिनीसे कुछ नरपिशाचों की दरिंदगी जैसी वारदात ही क्यों होती...16 दिसंबर की मनहूस रात को दामिनी और उसका दोस्त कई ऑटोवालों से आग्रह करते रहे लेकिन कोई चलने को तैयार नहीं हुआ...अगर कोई ऑटोवाला राजी हो जाता तो वो दोनों हैवानों की बस में बैठते ही क्यों...

ये ऑटो वाले लातों के भूत हैं, बातों से नहीं मानते...इनका तो सीधा एक ही इलाज है, कोई कहीं जाने को मना करे तो सीधा इऩका नंबर नोट कर पुलिस को रिपोर्ट करो...वो इनसे अपने तरीके से निपटेगी, तभी ये सीधे होंगे...


राजधानी दिल्ली में ऑटो वालों के बर्ताव पर लोग अक्सर इस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करते देखे जाते हैं...कुछ हद तक ऑटो वालों के ख़िलाफ़ ये आक्रोश सही हो सकता है...लेकिन त्रिकोण का एक चौथा कोण भी होता है...गेहूं के साथ घुन कैसे पिसता है, इसे देखा बीती 14 फरवरी यानी वैलेन्टाइन्स डे पर मेल टुडे की रिपोर्टर नीतू चंद्रा ने...

14 फरवरी को दिल्ली के जंतर मंतर पर दामिनीके सम्मान में प्रदर्शनकारियों के जुटने का कार्यक्रम था...इसी कार्यक्रम के बाद करीब दस बजे दो युवकों ने मयूर विहार जाने के लिए एक ऑटो रिक्शा को रोका...ऑटो रिक्शा वाले ने कहा कि उसका बेटा बीमार है और उसे घर जाने की जल्दी है...अगर वो चाहें तो उन्हें इंडिया गेट तक छोड़ सकता है...ये सुनना था कि दोनों युवक ऑटो वाले को गालियां देने लगे...कहने लगे- इन मक्कारों की मनमानी की वजह से ही दामिनी का बलात्कार और मर्डर हुआ...दोनों युवकों ने फौरन पुलिस को बुलाकर ऑटो वाले के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करा दी...पुलिस ने चालान कर ऑटो ज़ब्त करने में देर नहीं लगाई...फिर अगले चार घंटे तक ऑटो वाला पुलिस स्टेशन पर बैठा रहा...




ये घटनाक्रम पढ़ लिया...अब जानिए कि जनरल परसेप्शन के चलते कभी कैसा अनर्थ हो जाता है...

ऊपर जिस ऑटो वाले का ज़िक्र किया, उसका नाम यशवंत राय है...दाहिनी टांग कटी होने के बावजूद 36 साल का यशवंत किराए के ऑटो के ज़रिए परिवार का गुज़ारा चलाता है...परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं...दोनों बेटे मुन्ना (14 साल) और शांतनु (5 साल) हीमोफीलिया बीमारी से पीड़ित हैं...पत्नी भी बीमार रहती है..यशवंत के दोनों बच्चे जिस बीमारी के शिकार है, अगर उसमें वक्त से ट्रांसफ्यूज़न ना हो तो शरीर से खून रिसने लगता है...

14 फरवरी को रात को भी ऐसा ही हुआ...छोटे बेटे शांतनु की कमर से ख़ून रिसने लगा...ये देखकर यशवंत को पत्नी ने जल्दी घर आने के लिए फोन किया जिससे कि बच्चे को अस्पताल ले जाया सके...यही बात यशवंत ने उन दो युवकों से भी कही थी, जो उसे मयूर विहार चलने के लिए कह रहे थे...लेकिन उन्होंने उसे पुलिस स्टेशन पहुंचा दिया...किसी तरह पुलिस की मिन्नत आदि कर यशवंत तड़के घर पहुंचा लेकिन तब तक शांतनु की हालत काफ़ी ख़राब हो चुकी थी...

यशवंत तत्काल उसे लोकनायक अस्पताल लेकर दौड़ा...वहां उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया...पांच-छह घंटे की देरी से उसका इलाज शुरू हुआ...डॉक्टरों का कहना था कि ज़रा सी भी और देर हो जाती तो बच्चे की कमर के नीचे के हिस्से को लकवा मार सकता था...शुक्र है कि डॉक्टरों की मेहनत से बच्चा ख़तरे से बाहर है...लेकिन अब भी उसका अस्पताल में इलाज चल रहा है...

यशवंत इस सब को अपनी किस्मत का दोष मानता है...कहता है- एक टांग कटी होने के बावजूद परिवार के पालन के लिए कड़ी मेहनत करता है...लेकिन किसी-किसी दिन ऐसे भी हालात होते हैं कि परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल हो जाता है...

आपने पढ़ लिया ये सब...अब बताइए कि गले में कुछ फंसा हुआ महसूस हो रहा है या नहीं...

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15 टिप्पणियाँ
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  1. हमेशा एक पक्ष को दोषी ठहराना बहुत ग़लत है किसी की मजबूरी का लाभ उठाना भी एक अपराध है -हृदयहीनता तो है हीऍ

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  2. ऑटो वालों की ऐसी हरकत की ज़िम्मेदार उनकी गरीबी है |यह और बात है की उनका तरीका इंसानों को अक्सर तकलीफ दे जाता है |यशवंत के साथ जो हुआ बुरा हुआ हुआ वैसे ही जैसे दामिनी के साथ बुरा हुआ था |इन सबकी ज़िम्मेदार हम इंसानों का खुदगर्ज़ मिज़ाज है| इंसान में से इंसानियत अब ख़त्म होती जा रही है |

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  3. काश, खबर उन दो युवकों तक भी पहुंचती.

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  4. निश्चय ही हमें सबको एक सा नहीं तौलना चाहिये।

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  5. एक्सेप्शन्स हर जगह होते हैं. लेकिन जनरल परसेप्शन सही ही होता है. मनुष्य को इसीलिये बुद्धि दी गयी है कि उसका सही प्रयोग करे. उन दो व्यक्तियों ने परिस्थितियों को देखा होता तो ऐसा न हुआ होता. और जनरल परसेप्शन ही नियम बनते हैं न कि अपवाद.

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  6. मीडिया जिसे चाहे विलेन बना दे हम उसे सार्वभौमिक सा मान लेते हैं, दुसरे पक्ष को समझने की कोशिश भी नहीं करते ..

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  7. फेसबुक वाल पर रतन सिंह भगतपुरा जी की टिप्पणी...

    Ratan Singh Bhagatpura सब एक जैसे भी नहीं होते पर दिल्ली ही क्यों कई शहरों में ऑटो वाले ज्यादा से ज्यादा किराये वसूलने के चक्कर में रहते है| जोधपुर जैसे शांत शहर में एक तरफ ऑटो वाले यात्री को किराये में ठगने में रहते है तो दूसरी तरफ उनके कई ऑटो पर फोन न. सहित लिखा मिलेगा- प्रसव के लिए २४ घंटे मुफ्त सुविधा | और इसके लिए कोई महिला रात २ बजे भी ऐसे ऑटो वाले को फोन करेगी तो वो मुफ्त में अस्पताल छोड़ने आयेगा और खुद दूर हुआ तो किसी नजदीकी ऑटो वाले को इस सेवा के लिए भेज देगा ! मेहरानगढ़ मंदिर के समय भगदड़ से हुई मौतों के समय भी ऑटो वालों ने घायलों व मृतकों मुफ्त पहुँचाने का सराहनीय कार्य किया ! कहने का मतलब सिक्के के दोनों पहलु मौजूद है सबको एक जैसा नहीं समझा जा सकता| दिल्ली में भी कई ऑटो वाले बड़े भले है तो कई उचक्के !!

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  8. जब मीडिया द्वारा एकतरफा वातावरण बनाया जाता है तब ऐसी बेइंसाफी हो जाती है। ऐसे ढेरों किस्‍से हैं जो हमारी संवेदनहीनता को प्रकट करते हैं।

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  9. ये बात सभी को समझनी चाहिये कि अब एक जैसे नही होते मगर जब ऐसा दौर हो तो कोई समझना ही नही चाहता उसकी मजबूरी ………यही त्रासदी है

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  10. सडकों पर राउडी राठोर किसी भी रूप में मिल सकते हैं।

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  11. ऑटो वाले हमसे क्या लेते है सिर्फ ज्यादा किराया या बदतमीजी करते है पर उन दो युवको ने तो उसके बेटे की लगभग जान ही ले ली थी. क्या उस ऑटो वाले की विकलांगता नहीं दिखी या उसका गिडगिडाना नहीं सुनाई दिया? हम ऐसे युवको को अँधा बहरा कहे तो क्या वो गलत होगा?

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  12. आजकल ऐसा ही जमाना है जब लोग सिर्फ अपना भला ही देखते हैं

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  13. मुझे कई बार बहुत अच्छे आटो वाले मिले हैं,इतने अच्छे कि सिर्फ एक बार मिलने के बावजूद आज तक याद करता हूँ.पर कई ऐसे भी मिले कि उनसे हाथापाई भर नही हुई,बस!दरसल अच्छे-बुरे इंसान हर जगह, हर पेशे और हर कौम में होते हैं.सामने वाला इंसान है और हम भी,कहीं भी और कभी भी बस यही याद रखना चाहिए.

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