बड़े शहरों में कॉल सेंटर बेरोज़गारी को दूर करने का अच्छा ज़रिया बने हुए हैं...माता-पिता को भी लगता है कि बच्चे पढ़ाई के साथ कॉल सेंटर में काम करके जेब खर्च भी खुद निकाल लेते हैं तो क्या बुराई है...बच्चे कमाई खुद ही करने की वजह से खुद मुख्तार भी होना चाहते हैं...घर की रोक-टोक से दूर होने के लिए ये अलग कमरा लेकर रहना भी शुरू कर देते हैं...ज्यादातर ये वो बच्चे करते हैं जो छोटे शहरों से अच्छी नौकरी की तलाश में बड़े शहरों का रुख करते हैं...
अच्छी नौकरियां इस देश में हैं ही कितनी..बस अच्छे पैकेज की मृगतृष्णा में ये बच्चे कॉल सेंटरों के जाल में ऐसा उलझ जाते हैं कि उससे निकल ही नहीं पाते...हताशा दूर करने को नशे जैसे ऐब और करने लगते हैं...यहां नोएडा में गैरेज किराए पर लेकर रहने वाले ऐसे कई बच्चों को मैं देखता रहता हूं...जगह कम और डिमांड ज्यादा होने की वजह से इन गैरेज का भी सात से आठ हज़ार रुपए किराया वसूला जा रहा है...इन्हीं गैरेज में एक टायलेट और किचन के लिए एक शेल्फ लगा दिया जाता है...अब ये बच्चे किराया वक्त पर दे कर वहां जो मर्जी करे कोई मकान मालिक उन्हें टोकता नहीं...छोटे शहर में कोई लड़का-लड़की साथ घूमते देखे जाएं तो आज भी कई आंखें उनकी तरफ उठ जाती हैं...लेकिन यहां बड़े शहरों में ये लड़के-लड़कियां साथ-साथ कमरों में दिन-रात रुकें, कोई कुछ नहीं कहने वाला..
अभी कल चंडीगढ़ से एक ऐसी ख़बर आई है जिसने हिला कर रख दिया...पंजाब से एक युवा दंपति अच्छी नौकरी की तलाश में चंडीगढ़ आए... एक बच्चे वाले इस दंपति ने फैसला किया जब तक अच्छी नौकरी नहीं मिलती कॉल सेंटर में ही नौकरी कर ली जाए..महंगे शहर में रहने का खर्च और रातों रात अमीर बनने की चाहत के साथ ही कॉल सेंटर की नौकरी के दबाव ने इन्हें कुंठा से भर दिया...हालीवुड की एक फिल्म को देखने के बाद इन्होंने जुर्म का रास्ता अपनाने का फैसला किया...पीजी में रहने वाले इस दंपति ने कॉल सेंटर में ही काम करने वाली दो लड़कियों को भी साथ मिला लिया...
शहरी ज़िंदगी के एक बदरंग चेहरे को उजागर करने वाली इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद सोच रहा हूं कि बेशक क़ानून इस मामले में अपना काम करेगा और दोषियों को सज़ा मिलेगी...लेकिन जिन चमचमाते शहरों में हम आराम की ज़िंदगी जीने की चाहत रखते हैं क्या ये उसकी एक त्रासद तस्वीर नहीं है...
ये कॉल सेंटर कल्चर जाने कहाँ ले जाकर छोडेगा.
जवाब देंहटाएंआगे-आगे देखिये होता है.... आपकी पिछली पोस्ट पर की टिपण्णी यहाँ भी उतनी ही सटीक बैठती है.... पैसे की होड़ में हैवानियत की हदें पार की जा रही हैं... फिर यह तो अभी शुरुआत भर है!
जवाब देंहटाएंये कॉल सेंटर कल्चर है क्या आखिर? कॉल सेंटर में नौकरी के दौरान तो कुछ गलत करवाया नहीं जाता फिर क्या करण है कि उसमे काम करने वाले भटक जाते हैं? नौकरी के दौरान अकेले कमरे ले के रहना भी एक आम सी बात है? फिर आखिर यह भटकाव कॉल सेंटर वालों का ही क्यों?
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई यह सच है कि आज के नौजवानों को कॉल सेंटर में काम नहीं करने देना चाहिए लेकिन भटकाव का सही कारण भी तलाशना होगा तब कहीं जा के इस समस्या का हल निकलेगा |
शाहनवाज़ भाई ईज़ीमनी का शौक हमेशा भटकाव का कारण बनता है |
जवाब देंहटाएंbhai kuch halat na puchho mujhe bhi jab start me acchi job nhi mili tab 3 mahine tak ek call centre me job kiya ..call centreka culture bahut hi ghatiya hai ,
जवाब देंहटाएंvesyvati to ek aam baat hai waha ki
badiya post
जवाब देंहटाएंhttp://blondmedia.blogspot.in/
post achchi likhi,
जवाब देंहटाएंsocho ,
bachchon ko bachaoge kaise ?
jawani to diwani hoti hi he.
कमाल है ...
जवाब देंहटाएंपढ़ाई से कुछ नहीं सीखा ....
मंजिल के लघु पथ कटान में भटके लोगों की दास्तान है।
जवाब देंहटाएंनये तरह की नौकरी, नयी तरह की मानसिकता..
जवाब देंहटाएंचलिए ... क्या किया जा सकता है? सब चलता है... वन नेशन .... नो जेंडर डिस्क्रिमिनेशन ....
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट पर पढी खबर ने मुझे वही बात याद दिला दी जो अक्सर मैं क्राईम पेट्रोल के एपिसोड देखने के बाद कह उठता हूं । इस देश में अपराध की एक सबसे बडी वजह है गरीबी और गरीबी की एकमात्र वजह है सरकार । दोनों ने मिलकर देश की हालत खस्ता कर दी है । शहरी चकाचौंध की जीवनप्रणाली ने भी बहुत कुछ बदल दिया है
अब ये सब विशाल भवन में रहेंगे .
जवाब देंहटाएंइनकी साधना सफल हुई.
इनकी सोच से भी अधिक.